शूलवंश - वो कोन है ? Tanmay द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शूलवंश - वो कोन है ?

वो कोन है ?

एक भयंकर युद्ध चल रहा है एक तरफ थे राक्षस,असुर ,भूत,डायन ओर दुसरी तरफ थे बिच्छूवंश के योद्धा । चारों तरफ कोहराम मचा था एसा लग रहा था की दानव जीत रहे हो बिच्छूवंश के योद्धा जेसे पीछे हट रहे हो उनी योद्धा मे से एक योद्धा जिसका नाम काशी है वो दूसरे योद्धा से कहता हैं की एसा ही चलता रहा तो हम लोग ये युद्ध हार जाएंगे। उस दुसरे योद्धा जिसका नाम वीरसिंग था उसने कहाकी अभी हार मत मानो अभिभी हम जीत सकते है फिर से काशी बोलता है की हम ऐसा युद्ध लड़ रहा है जो हम अकेले नहीं जीत सकते । तभी अचानक वहा बड़ा धमाका होता है हर जगह धुवा धूवा हो जाता जब वहा से धुवा हट्टा है तो सारे योद्धा देखते हैं की एक महारथी है जिस के हाथ में एक राक्षस का सिर है उसको देखते ही सारे योद्धा शूलवंश की जय हो ऐसे नारे लगा ने लगे ऐसे ही और रणभूमि में जगह जगह धामकें होने लगे और महारथी आने लगे जिसे युद्ध फिर से बिच्छूवंशी के पक्ष में जाने लगा। इन योद्धा को देख कर काशी वीरसिग से पूछता है की ये लोग कोन है जो आते ही इन असुर और दानव पर भारी पड़ने लगे l वीरसिग ने कहा की के ये शूलवंश के योद्धा है जो अब तक एक भी युद्ध नहीं हारी तो काशी पूछता है ऐसा क्यू तो वीरसीग कहता है की ये लोग जिसके अंदर रहकें युद्ध कला सीखी है वो इस ब्रह्माण्ड के सबसे ताकतवर योद्धा में से एक है। काशी फिर वीरसिग से पूछता है की वो योद्धा कोन है तो विरसिंग कहता है की वो ५ योद्धा है ध्रुव , युग ,सुमेर , रुद्र ओर अनन्या । 

                                                                                     दुसरी तरफ एक असुर जिसका नाम प्रहस्त था वो जल्दी जल्दी युद्धभूमी से दूर जरा रहा था वो बहुत गभराय] हुआ था । युद्धभूमी से दूर शिविर थे वो एक शिविर मे जाते ही कहता सेनापतिजी वो लोग या गए है । वो सेनापति केहता है मुजे इसी पल का इंतजार था । प्रहस्त ने कहा की सेनापतिजी उन लोगों ने युद्ध कर रुख पलट दिया है जेसे ही सेनापति ये सुनता है वो गुस्से बोलता है प्रहस्त को की ऐसा तुमको लगता है । सेनापति केहता मुजे इसी पल तो कबसे इंतजार की कब मे अपनी तलवार उस ध्रुव का सिर को काटने का । तभी तो महाराज ने मुजे ये अवसर दिया की मे इस सेना का सेनापति बनू ओर उनके दूषमनो को खतम करडु। प्रहस्त केहता ही की एसा पहले तो कभी हुआ नहीं के यू अचानक शूलवंश के योद्धा युद्ध लड़ने आए हो । सेनापति केहता है ये सोचने लायक बात तो है पर मुझे क्या मुझे तो बस महाराज का मकसद पूरा करना है । प्रहस्त फिर से डरते हुवे पूछता है की मैंने सुना है की आप भी पहले बिछुवंशी थे । इतना सुना की वो गुस्से से प्रहस्त को देखने लगा प्रहस्त दर के मारे कांपने लगा वो सेनापति से माफी माने लगा और बोला की मुझे माफ कर दीजिए और बोला की में भी गधा हूं कैसे आपको सवाल कर सकता हू दुसरो की बातो में आके सेनापति प्रहस्त को शांत रहने को बोलता है फिर केह्ता की उसने जो ही सुना है वो सही है जैसे ही प्रहस्त ये सुनता है उसको लगा है जैसे उसके पैरो तले जमीन खिसक गई हो । वो सोचने लगता है की अभ तक उसने जो भी सुना था वो सच था वो मन में कहता की ऐसा मुकीन नहीं है की कोई बिछुवंशी कलेसामराज्य को अपना कर शैतान की पूजा करे और अपनो के खिलाफ ही लडे। सेनापति ने देखा की प्रहस्त अपने ही खयाल में खोया हुवा है वो समझ जाता है की वो क्या सोच रहा है । सेनापति कहता है प्रहस्ट से की मुझे पता है की तुम क्या सोच रहें हो प्रहस्त सवालिया नजरों से सेनापति को देखता जैसे उसे जानना हो की सेनापति ने अपने ही लोग को धोका क्यू दिया सेनापति ये समाज जाता है और बोलता है की तुम को यहीं जानना है की मेने कलेसामराज्य को क्यों अपनाया और अपने ही लोगो को क्यू धोका दे रहा हु प्रहस्त हा में सिर हिलाता है सेनापति कहता कि मुझे तो उन लोगो ने ही ऐसा बना दिया उन लोगो में कुछ ऐसा भी है जो दुसरे की कमियाबी पर खुश होते है पर कुछ ऐसा भी जो तुम्हे आगे बढ़ता देख नही सकते वो तुमसे जलने लगते है मेरे साथ भी ऐसा हूवा था पहले तो सब काफी खुश हुवे मेरी कमियाबी देख कर पर जब उनको पता चला की मुझे युद्ध अभियाश वो सीखा रहा है वो लोग मुझसे जलने लगे और तरह तरह की बाते करने लगे प्रहस्त बीच में बोलते हुवे कहता की वो कोन सेनापतिजी उसका नाम तो होगा ना । सेनापति केहता की वो था एक महान योद्धा जिसके सामने आज तक कोई भी टिक नहीं पाया उसने शैतान तक को हराया है तुम जो ये कलेसामराज्य इतना फैला हुवा देखते ही न वो इतना फैला भी ना होता अगर वो होता तो हम अभी असुरलोक में होते अगर वो होता तो । प्रहस्त जैसे ही ये सुनता है की उसने शैतान को हराया है और अगर वो होता तो हम अभी असुर्लोक में होते वो सोचने लगता है की ऐसा तो कोन जिसके बारे में उसे पता नही अभी तक प्रहस्त केहता है तो वो योद्धा अभ कहा है और उसका नाम क्या है । सेनापति कहता उसको १०० साल पहले कैद करडिया था और हम उसका नाम नही ले सकते । प्रहस्त पूछता है क्यू सेनापति बोलता केहते उसका नाम लेने से उसका अभिश्राप टूट जाएगा । अगर वो इतना ही शक्तिशाली था तो उसको कैद क्यू किया ओर कैद किया तो किया उसको अभिश्राप क्यू दिया । सेनापति केहता है उतना तो मुजे नहीं पता क्यू की मे वाहा पे नहीं था जब ये सब हो रहा था मुजे बस इतना पता है की उसको कैद करने के पीछे कलेसामराज्य ओर शूलवंश दोनों का हाथ था ओर उसको अभिश्राप इसलिए दिया क्योंकि वो अपनी कैद से बाहर ना आसके। उसको अभिश्राप इसलिए दिया क्यू की जब उसे कैद किया था तब उसने कहा था की जो भी उसको सच्चे मन से याद कर के बुलाएगा वो वापस जरूर आयेगा उसकी मदद करने के लिए । प्रहस्त एक ओर सवाल पूछता उसे पहले सेनापति केहता की ये बाते बाद में भी होती रहेंगी अभी ये युद्ध जीतना जरूरी है।

जब सनापति ओर प्रहस्त युद्धभूमि पोहच जाते है तो देखते है की शूलवंश के योद्धा ने युद्ध का पासा पलत दिया सेनापति गुस्से से लाल हो जाता है और जोर से बोलता है तुम्हारी मौत मेरे हाथ ही लिखी है । तभी उन लोगो के थोड़ी ही दूर एक असुर सिर के बल धड़ाम करके गिर जाता है वो सेनापति को डरते हुवे केहता के सेनापतिजी आपने आने में इतनी देर क्यू करदी वो बड़े खतरनाक योद्धा है उन होने हमारे सारे प्रतिभा साली असुर को चुटकी में हरा दिया जैसे वो लोग उनके सामने बच्चे हो सेनापति उस असुर से केहता की तुम चिंता मत करो उनकी मौत मेरा हाथ ही लिखी है।

              दुसरी तरफ युद्धभूमि में ध्रुव और उसके साथ सुमेर युग और अनन्या आसुरो के साथ युद्ध कर रहें थे । सुमेर युग से केहता की मिनटों के काम मे घंटों लग रहे है । युग केहता ये बात तो सही है तुमहारी पर हमन कर ही क्या सकते है । हमे गुरुजी ने आदेश दिया है की हुमए ये युद्ध जितना इसिलए पर ये ध्रुव ने हम सबको धीमा कर दिया है । ध्रुव एक नीली आँख वाला लड़का था वो एक साथ ३ असुर को मार देता है । ध्रुव सुमेर ओर यूग को देख कर केहता की मे तुम लोग की तरह इतना तेज नहीं हु की एक ही बार मै सब को खतम कर दुं । तभी एक असुर ध्रुव को देख कर भाग ने लगता है ध्रुव ये देख लेता है ओर अपनी तलवार से उस पर वार करता है । तभी वाहा सेनापति या जाता है ओर उसकी तलवार से ध्रुव के वार को रोक लेता है । ये देख के ध्रुव सुमेर ओर युग की आंखे फटी की फटी रेह जाती है ।

              ध्रुव सोचने लगता है की ये कोन है जिसने मेरा वार इतनी आसानी से रोक लिया जेसे वो कुछ हो ही ना सुमेर रुद्र ओर युग भी यही सोच रहे थे की एसा तो हो नहीं सकता कोई भी आम असुर इस हमले को रोक सकता है वो भी तलवार से पर वो लोग ये नहीं जानते थी कि जिसने ध्रुव का हमला रोक है वो कोई आम असुर नहीं है बलकि सेनापति है । सेनपती ध्रुव से केहता की इतना कमजोर वार तो कोई भी रोक लेगा ये सुन कर ध्रुव को गुस्सा आने लगता है ओर वो सेनापति पर वार करने लगता पर उसके सभी वार सेनापती विफल कर देता है । सेनापति केहता की इतने कमजोर जिसे कोई भी रोक ले ओर तुम अपने आपको शुलवंश के योद्धा कहेते हो ओर गुस्से में कहेता की तुम लोग वो सब भूल गए जो उसने तुम सबको सिखाया था । ध्रुव, सुमेर, युग, रुद्र गुस्से मे आकार एक साथ सेनापति पर हमला करने लगते है पर उनके सभी हमले नाकाम हो जाते हैं सेनापति के सामने तभी रुद्र कुछ मंत्र अपने मन में बोलता है जिसे उसकी तलवार चमक ने लगती है । रुद्र अपनी पूरी रफ्तार से सेनापति की तरफ बढ़ता है पर सेनापति उस रुद्र को देख लेता है और हमले से बचते हुवे रुद्र की गर्दन को पकड़ लेता है और उसको हावा में उछाल देता है और हाथ से एक हमला करता है जो रुद्र को लगता है और जमीन पे गिर जाता है और बेहोश हो जाता है । वही सेनापति और भी गुस्से में आ जाता है और अपना रूप बदल लेता है और युग ध्रुव पर सुमेर पर हमला करने लगता है ।

                        सेनापति के हमलों से ध्रुव युग सुमेर और रुद्र बुरी तरह गायल हो चुके थे । सेनापति हस्ते हुवे केहता है शूलवंश के योद्धा और इतनी बुरी हालत मुझे ताजूब होता है की लोग तुमको शूलवंश के योद्धा केह्ते है सेनापति एक और हमला करता है जिसे योग ध्रुव और सुमेर जमीन पे गिर जाते है सेनापति ध्रुव के पास आता हैं और उसको सर को पकड़ के कहता है की तुजे तो में बाद में अपने हाथो से मरुगा पहला इन ३ से तो निपटलू सेनापति रुद्र सुमेर और युग को एक जगह पे फेक देता है और एक मंत्र बोलने लगता जिसे उसके हाथो में बड़ासा गोला बनने लगता है ध्रुव जमीन पे पड़े हुवे अपने दोस्तो को देखता है पर कुछ कर नही पा रहा था वो सेनापति ध्रुव को देख का बोलता है चिंता मत करो थोड़ी देर बाद तुमें भी उन लोगो के पास पहुंचा दुगा । सेपनापति अपना पूरा जोर लगा के ध्रुव के दोस्तो पर वार करता है ध्रुव को लगता है की अब उसके दोस्त नहीं बच पाएंगे पर तभी वहा अनन्या आ जाती है और सेनापति के हमले को दो भाग में बात देती है ये देख के सेनापति सोचने लगता है को ये कोन जिसने मेरे हमले को विफल करी दिया तभी सेनापति की नजर अनन्या के सिर पर जाती और वो बोलता है तुम जरूर अनन्या होगी अनन्या केहती है तुम कैसे पता सेनापति केहता है तुम्हारे सिर पर जो ताज है उसको देख कर वो समझ गया की ये धरतीमाता का ताज है और तुम अनन्या हो । अनन्या कहती सही कहा तुमने क्या में तुम्हारा नाम जान सकती हु जिसने मेरे दोस्तो की ये हालत करदी है ।

        सेनापति केहता हैं मेरा नाम सुकेतु  बहुत हो गया परिचय अभ सामना करो मेभी तो देखू जिसके पास धरतीमाता का ताज है वो कितना काबिल है ये ताज को धारण करने के लिए । अनन्या केहती हैं जेसी तुम्हारी मर्जी सुकेतु अनन्या पर एक बाद एक वार करते जा रहा था पर अनन्या के पास उसके है वार का तोड़ था l सुकेतु समझ जाता है और वार रोक देता है अनन्या केहती बस इतना ही दम था तुम्हारे में । सुकेतु बोलता है में तूजे मार नही सकता उस ताज की वजसे पर में तुमे है मूर्छित जरूर कर सकता हू अपने वार से तभी सुकेतु अपनी आंखे बंध कर लेता है और कुछ बुदबुदाने लगता है और देखते ही उसके हाथ में एक अस्त्र आ जाता है जिसे वो अनन्या की ओर चला देता है अनन्या उस अस्त्र को देख समझ जाती है की उस अस्त्र से बचना बहुत मुश्किल है तभी अनन्या अपनी आंख बंध कर लेती है और कुछ बुदबुदाती है तभी उसके हाथो में एक परसू आ जाता है जिसे वो उस अस्त्र को रोक लेती है और वहा जोर से धमाका को हो जाता है सुकेतु जोर जोर से हंसने लगता जाता है पर धमाके का धुंआ वहा से हट जाता है तो उसकी हसी वही रुक जाती है । वो देखता है की अनन्या ने उसके हमले को रोक लिया है वो सोचने लगता है की एसा केस हो सकता है वो अपने आप से ही काहता की मेने जिस अस्त्र से वार इस्तेमाल किया था उसे बचना तभी संभव जब उसके पास इसे कही ज्यादा ताकतवर अस्त्र हो तभी वो अनन्या के हाथ मे परशु को देखता वो हेरान ओर भयभीत होने लगता है वो बोलता है की ये वो शस्त्र नहीं हो सकता सुकेतु अपने सभी दानव जो उसके साथ थे उनको आदेश देता ही वो सभी एक साथ पर अनन्या पर हमला करे तभी प्रहस्त ओर दूसरे असुर अनन्या पे वार करने के लिए एक साथ आगे बढ़ने लगते है ओर अनन्या को चारों ओर से गेर लेता है अनन्या पर उसका कुछ फरक नहीं पड़ता वो कहती है की तुम लोग की मोत तुम्हें यह खिच लाया है एक असुर को ये सुनते है गुस्सा आ जाता है ओर वो अनन्या पर टूट पड़ता है अनन्या अपने परशु से उस असुर की तरफ फैक्ट्री है वो परशु इतने तेज से जाता है की उस असुर जरा भी मोका नहीं मिलता है उसे बचने का ओर देखते ही उसका सर उसके शरीर से अलग हो जाता है प्रहस्त ओर दूसरे असुर ये देख के दर से जाते है तभी सुकेतु केहता की दरों ओर एक साथ उसपे वार करो प्रहस्त केहता की पर सेनापति हम इसका सामना नहीं कर सकते सुकेतु गुस्से से केहता की जितना कहा है उतना करो प्रहस्त दूसरे असुर को बोलता है हमला करो लेकिन दूसरे असुरो के मन जेसे दर बेथ गया हो वो प्रहस्त की बात को सुन नहीं रहे थे प्रहस्त जोर आवाज मे केहता की तुम लोगों ने सुन नहीं सेनापति जीने क्या कहा तभी वे सभी लोग एक साथ अनन्या पर टूट पड़ते है अनन्या अपने मन कुछ मंत्र बोलती है अपने परशु जोर उनकी तरफ वार करती परशु एक रोशनी निकलती ओर प्रहस्त को छोर कर सभी असुर के सर कट जाते है प्रहस्त किसी तरह अनन्या के वार बच गया था पर उसके पेट मे चोट आई थी जिसे वो जमीन पे गिर गया था तभी सुमेर जोर से चिलाते हुवे बोलता है की अनन्या अपने पीछे देखो अनन्या जब पीछे देखती है तो थोड़ी दर जाती क्यू की एक ताकतवर हमला उसकी तरफ पूरी रफ्तार से आर था अनन्या आपने परशु को पकड़ के कुछ बुदबुदाती है ओर वो हमला उसके पास आया उसने अपने परशु से उस हमले को दो भाग मे बात दिया पर हमला इतना ताकतवर था जिसने अनन्या के पैर भी डगमगा गए जब अनन्या देखती है की ये हमला ओर किसने नहीं बलकि सुकेतु ने किया था वो सोच है की ये कोई आम आसूर नहीं अगर ये आम असुर होता तो कब का ध्रुव ले हाथों मार जाता पर इसके पर अस्त्र का ज्ञान भी है अनन्या अपनी सोच से बाहर आती है ओर अपना पुरा जाट लगा के उस हमले कोन खतम कर देती है पर सुकेतु का हमला इतना ताकतवर था थी सूके दो हीसे होने पर भी वो जहा टकराया उस जग पे लड़ रहै असुर ओर बिछुवंश के योद्धा वही के वही भसम हो गए । सुकेतु जब देखता है की अनन्या उसके इस हमले को भी रोक लिया वो समज जाता है की उसने जोभी सोचा था वो यही शस्त्र है पर वो सोचता है की एसा नहीं हो सकता इसके पास ये शस्त्र कहा से आया था मेने सुन था की उसके कैद होने के साथ उसके सारे शस्त्र भी चले गए थे फिर उसका ये शस्त्र इसके पास कहा से आया क्या उसके सारे शस्त्र इन लोगों पास आगए है । जब अनन्या देखती है की सुकेतु से वार से उसके योद्धा घायल ओर कुछ योद्धा तो मर गए है अनन्या गुस्से मे आ जाती जिसे पूरे आसमान मे काले बदल गिर जाते है ओर जोर जोर बिजली कड़कने लगती है अनन्या अपने मन कुछ मंत्र बोलती है जिसे उसके परशु चमकने लगता ओर उसके परशु के आसपास रोशनी निकालने लगती जो बादलों को छु रही थी सुकेतु समज जाता है की उसका अंत नजदीक है पर वो कुछ कर पता उसे पहले ही अनन्या अपना परशु को सुकेतु तरफ वार कर देती है परशु इतने तेजी सुकेतु की तरफ आ रहा था की उसके बीच आने वाली हर चीज को वो तबाह कर रही थी चाहे वो कोई असुर या दानव वो हर किसिको तबाह करके के सुकेतु की तरफ तेजी से बढ़ रही थी सुकेतु को उसकी मोत दिख रही थी तभी वान कुछ मंत्र बोलत है जिसे उसके आसपास एक कवच आ जाता है परशु उस कवच से टकराता है पर उस परशु मे इतनी ताकत थी को कवच को तोड़ते हुवे सुकेतु के छाती मे लग जाता है ओर उसके छाती मे लगते ही सुकेतु भी परशु के साथ चला जा था वो बहुत कोशिश कर रहा था उसके छाती से परशु को निकाल ने की पर वो निकाल नहीं पा रहा था तभी वो एक बड़े से पत्थर से टकरा जाता है ओर जमीन पे गिर जाता है उसके मुह से खून निकालने लगता है अनन्या जेसे ही उसके परशु की तरफ हाथ करती है उसका परशु सुकेतु की छाती से निकाल जाता है ओर अनन्या के हाथों मे या जाता है सुकेतु छाती से खून निकाल रहा था प्रहस्त सुकेतु को उठाता है सुकेतु जब ऊपर देखता है तो अनन्या उसकी तरफ आ रही थी वो प्रहस्त से बोलत है की सबको को पीछे हटेनो को बोल दो हम ये युद्ध नहीं जीत सकते प्रहस्त जेसे ही कुछ बोलने वाला था सुकेतु कहता है की कुछ भी मत बोलों अभी जो कहा है वो करो प्रहस्त अपने मन कुछ मंत्र बोलता है फिर अपने मन ही कहता की सुनो सभी लोग ये सेनपती का आदेश है हम इस युद्ध से पीछे हट रह है अभी हम ये युद्ध नहीं जीत सकते है तभी सुकेतु आती हुवी अनन्या से केहता की अभी तो मे जा रहा हु पर लतुगा जरूर वो इसे कही ज्यादा ताकतवर हो कर अनन्या सुकेतु से कहेति के ये तुमहारी गलत फेमि है अभी सीधा तुम यमलोक जाने वाले हो । सुकेतु कहता है ये तुमहारी भूल है मे यही मरने वाला नहीं तभी सुकेतु कुछ मंत्र बोलत है जोर से अपने दोनों हाथ जमीन मे मारता है जिसे तेज रोशीनी निकलती है सारी रणभूमि की जमीन से वो रोशनी इतनी तेज थी जिसे अनन्या ओर बाकी सभी लोग की आँख बंध हो जाती है ओर वे लोग जॉब आँख खोलते है तब वह पे कोई भी नहीं था सिर्फ थे तो बिछुवंश ओर शूलवंश के योद्धा सारे योद्धा जीत की खुशी मनाने लगे कशी वीरसिग से केहता की अपने सही कहा था इन लोगों के आते ही हम ये युद्ध जीत गए वीरसिग केहता हा इन लोगों की बात ही अलग है इन खुशियों के बीच ध्रुव सुमेर युग ओर रुद्र अपने अप को सभाल ते हवे उठते है तभी अनन्या उन चारों के पास आती है ओर बोलती है की तुम चारों ने शूलवंश का नाम कलंकित कर दिया होता अगेर मे यहा नहीं होती सारे योद्धा के सामने शूलवंश का नाम मितिमे मिल जाता अगेर हमारे होते हुवे ये युद्ध हार जाते । वे चारों कुछ नहीं बोलते वे लोग शर्म से अपना सर नीचे कर देते है । ध्रुव अनन्या से केहता की हुमने कोशिश तो बहुत की पर वो सुकेतु ज्यादा की शक्तिशाली था अनन्या ये सुनते ही गुस्से मे केहाती है की ऐसी बाते एक शूलवंश के योद्धा के मुह से सुन रही हु अनन्या केहती मे बताती हु तुम लोग क्यू कमजोर पद गए सुकेतु के सामने तुम लोगों ने कभी भी ठीक से गुरुजी की सिखशा ली ही नहीं ओर ली तो उसका प्रशिक्षण ठीक से किया नहीं अगर किया होता तो आज ये हालत न होती तुम लोगों की । सुमेर धीमेसे बोलत है तुमए तो केवल यही देखाए दिया की हम उस सुकेतु सामने कमजोर पद गए तुमने ये नहीं देखा की हमने दूसरे असुर ओर दानव को भी मार है । ध्रुव केहता सुमेर से की उसने जो भी बोल है वो भी सत्य है अगर हमारा प्रशिक्षण ठीक से करते तो आज हम ये युद्ध कबका जीत चुके होते अनन्या इन लोगों बाते करते हुवे देख लेती है बोलती है क्या बाते कर रहे हो अभी चलो जल्दी अनन्या सभी योद्धा को एक जगह पे एकथा होने को बोलती है जब सभी योद्धा एक जगह पे या जाता है तब अनन्या सबको जीत मुबारक देती हुवे कहती है ये जीत के लिए उन सभी के नाम इतिहास मे सुवर्ण अक्षरो मे लिखे जाएगे क्यू की ये तुमलोगों ने बढ़ी बहादुरी से लड़ ओर आने वाली हर पीढ़ी ये याद रखेगी केसे तुम सभी लोगों ने अपनी बहादुरी ओर अपनी जान की परवाह की ये बिना जीती ओर कई मनुष्य जान बचाई है ओर अभी सबसे आग्रह करती हु की आप सभी लोग राज्य की तरफ प्रस्थान करे ओर अपने अपने घर जा कर आराम करे । जब अनन्या ध्रुव रुद्र युग ओर सुमेर आसमान मे उड़ते हुवे जा रहे थे तब युग सुमेर ध्रुव रुद्र ओर अनन्या से केहता की पता नहीं वो सुकेतु अजीबसी बाते कर रहा था। सुमेर ध्रुव ओर रुद्र अपना सिर हा मे हिलाते है जब अनन्या ये बात सुन लेती है तो बोलती कोन सी बात कर रहा था युग केहता की वो हुमसे लड़ते समय बात कर रहा था की हम सब भूल चुके है जो भी उसने हमे शिखाया था जब अनन्या ये सुनती है तो वो थोड़ा अशमंजस मे या जाती है फिर केहती की तुम लोग उसकी बात पर ज्यादा ध्यान मत दो अपने अप केसे बेहतर बना सकते हो उसके बारे मे सोचो ओर अपने उड़ने की गति बढ़ा देते हैं जब वे लोग अपने राज्य की सीमा मे आते है ध्रुव केहता की जभी मे राज्य मे आता हु मुजे ऐसा ही लगता है की मे यह पहली बार आया हु सुमेर बोलता है की ये बात से मे भी सहमत हु ध्रुव हमारे राज्य की बात ही कुछ ओर है ।

                जब अनन्या ओर उसके दोस्त राज्य मे आते है तो वो लोग देखते ही की वीरसिंग उनके पास आ रहा है जब वीरसिंग उन लोगों के पास आ जाता है तो केहता है की गुरुजी आप सभी का इंतजार कर रहे है वो भी राजमहल के द्वार के पास । जब ये लोग ये सुनते है की गुरुजी उनका हा ही इंतजार कर रहे है वो भी द्वार पर वो लोग परेशान हो जाते है की ऐसा क्या हुवा की गुरुजी हमारा इंतजार द्वार पर ही कर रहै है । ध्रुव बोलता है जल्दी चलो तो जरूर कुछ बात होगी तभी गुरुजी हमारा इंतजार कर रहै है तभी वो लोग जल्दी जल्दी राजमहल के द्वार की ओर अपने कदम बढ़ लेते है जब वो राजमहल पोहोच ने वाले थे वो दूर से देखते है की आदमी वाहा पे खड़ा है वो आदमी दिखने मे उन लोगों से कुछ ही साल बदा होगा पर उसके चेहरे का तेज बता रहा था की वो आदमी इन लोगों से कही जायदा ताकतवर ओर ज्ञानी था । वो लोग जब गुरुजी की पास पोहच जाते है तो उनको जुके प्रणाम करते है ओर बोलते है की गुरुजी की ऐसी क्या समस्या आन पड़ी की अपको हमारा इंतजार द्वार पर ही करना पद रहा है । गुरुजी केहते है सुनो तुम पचो युद्ध मे जोभी हुआ है वो सब महागुरु ओ को पता लग गया है ओर वो उसे खुश नहीं है । सुमेर केहता पर गुरुजी हमने तो ये युद्ध जीत लिया है गुरुजी केहते है हा हमे वो पता है लेकिन हमे येभी पता है की तुम लोग कैसे युद्ध हारने भी वाले थे ओर अगर वह अनन्या नहीं होती तो तुम लोग ये युद्ध हार ही गए होते । युग अपनी मुट्ठी भिचते हऐ कहता है की जभी देखो तब ये सभी लोग हमको नीचा दिखाते है अनन्या से ओर हम सबको पता है की अनन्या किसके सहारे जीती है अगर उसके पास वो ताज ओर वो परशु नहीं होता तो वो भी हमारी तरह उस समय कमजोर होती । गुरुजी ये बात सुन लेते है ओर गुस्से मे सुमेर से केहते है की तुम इस तरह अनन्या के बारे मे बात नहीं कर सकते ओर मत भूलो वह सिर्फ तुम्हारी दोस्त नहीं बल्कि इस राज्य की महारानी भी है ओर इसलिए तुम्हें उसे सम्मान देना चाहिए बल्कि तुम लोगों तो उसे सुक्रिया केहना चाहिए की उसने तुम लोग की जान ओर शूलवंश की इजत बचाई है । युग को अपनी गलती का ऐसास हो जाता है ओर वो अपना सिर शर्म से जुका लेता है । अनन्या गुरुजी केहती की जाने दीजिए मुजे तो आदत है ये सब सुनेकी आप युग पर गुस्सा मत कीजिए आप ये बताए की महागुरु आो ने क्या कहा गुरुजी केहते की उन्होंने तुम सभ को सजा देने को कहा है जिसे ये गलती दोबारा ना हो । अनन्या केहती है हमारी सजा क्या है गुरुज। गुरुजी केहते है की तूमए कोई सजा नहीं मिली है बल्कि तुमए तो महागुरु आो ने उनके महल मे बुलाया है अनन्या केहती है क्यू बुलाया है गुरुजी केहते है की कुछ नहीं पता मुजे की उन्होंने तूमए क्यू बुलाया है अनन्या ये सोच कर परेशान होने लगती है की आखिर महागुरजी उसे क्यू बुलाया होगा । जब गुरुजी अनन्या के चेहरे पर परेशानी देखते है तो केहते है की क्या हुआ अनन्या एसा पहली बार तो नहीं जब महागुरु ने तूमए बुलाया हो तुम इसे पहली भी कही बार वहाँ जा जुकी हो फिर ये परेशानी क्यू है तुमहारे चेहरे पर । अनन्या केहती है की एसी कुछ बात नहीं गुरुजी पर उन्होंने जब भी बुलाया है मुजे तब कोई ना कोई मुशीबत आई है इसिलए मे थोड़ा दर रही हु वहाँ जाने के लिए । गुरुजी केहते तूमे दर नई कोई जरूरत नहीं है अभी तूमे जाना चाहिए उन को इंतेजार करवाना ठीक बात नहीं है । फिर गुरुजी ध्रुव सुमेर युग रुद्र को देख के बोलते है की तुम लोग की सजा ये है की तुम लोग अभी इस पूरे सप्ताह राज्य से बाहर नहीं जा सकते ओर तुम सभी को राजमहल की साफई करनी होगी । जब वे लोग ये सुनते है की उनको सारे राजमहल को साफ करना होगा वो सभी गुरुजी के सामने विनती करने लगे की हमे ये सजा मत दीजिए पर गुरुजी ने कहा की ये सजा मैंने नहीं बल्कि महागुरु ओ ने सुनाई है । अनन्या ये सुन कर हसने लागि रुद्र अनन्या से केहता की तुम भी हसलों हम पर अनन्या केहती है की अब तुम लोगों ने काम ही एसा किया है तो मे क्या करु । गुरुजी अनन्या से केहते है की तुम अभी तक यही हो तूमए जाना चाहिए ओर ध्रुव सुमेर रुद्र ओर युग को बोलते है की चलो अपने कपड़े बदल दो ओर काम चालू करदों । अनन्या गुरुजी आज्ञा लेकर वहाँ से चलती जाती है पर थोड़ा आगे गई थी की उसे युग आवाज सुनाई देती है जो उसको ही बुला रही थी जब अनन्या देखती है तो युग उसकी तरफ आ रहा था जब युग अनन्या के पास आ जाता है तो अनन्या केहती है क्या हुआ अब युग केहता की मे तुमसे माफी मागने आया हु मुजे माफ कारदो मुजे एसा नहीं केहना चाहिए था तूमे अनन्या बोलती कोई बात नहीं तुमने जो भी कहा वो गुस्से मे आके कहा। जब अनन्या महागुरु के महल पोहचती है तब देखती है चार महागुरु अपने स्थान पर बैठे है पर एक महागुरु वहा पे नहीं थे अनन्या उनके पास जाती है ओर अपना सिर जुक कर उनको प्रणाम करती है ओर कहती है की अपने मुजे बुलाया महागुरु । उन मेसे सो बीच वाले स्थान पे बैठे थे जिनका नाम महागुरु देवदत था वो केहते की हमे बहुत खुशी है की तुमने ये युद्ध केवल जीत नहीं बल्कि हमारे कही योद्धा की जान भी बचाई है पर युद्ध मे कुछ एसा भी हुआ है जो नहीं होना चाहिए था तूमए पता है मे किसकी बात कर रहा हु । अनन्या केहती है महागुरु देवदत मुजे पता वहा क्या हुआ देवदत केहते है तो तूमए ये ध्यान रखना होगा की उन चारों के सामने उसकी किसकी भी बात जरा साभि जीकर न हो पिछले १०० सालों से उसका नाम यह किसकी ने नहीं लिया उसे से जुड़ी हर चीज को यहा से कही ओर जगह सुरक्षित रखा गया ताकि वहा कोई पोहच ना सके ओर उसके बारे मे कोई जान ना पाए की वो कोन है ओर ये तुमहारी ज़िम्मेदारी है की वो चारों भी उस बात को भूल जाए । दूसरी तरफ ध्रुव सुमेर रुद्र ओर युग महल की सफाई कर रहे थे । सुमेर जोर से झाड़ू नीचे पटकते हुऐ केहता है की मे एक योद्धा ओर वो भी महारथी की श्रेणी मे आता हु ओर मुजे ये झाड़ू लगाना पद रहा है तब युग केहता है की भाई झाड़ू उठा ले वरना गुरुजी ने तुजे एसे देख लिया तो एक नई सजा के लिए तयार रेहना । सुमेर केहता है की देखनों दो मुजे उसे कोई फरक नहीं पड़ता तभी सुमेर के पीछे गुरुजी आ जाते है सुमेर बोलत रेहता है जब युग सुमेर को गुरुजी गुरुजी बोलता है सुमेर केहता मुजे दरा मत गुरुजी के नाम से मे गुरुजी डरता नहीं हु । तभी गुरुजी केहते है ये अच्छी बात है की तुम मुजसे डरते नहीं हो जब ये सुमेर सुनता है तो वो दर जाता है ओर पीछे देखता है तो गुरुजी उसके ठीक सामने खरे थे सुमेर हकलाते हुऐ केहता है की गुरुजी मेरा वो मतलब नहीं था । गुरुजी केहते कोई बात नहीं पर अगर तुम लोगों ने ये काम समय रहते खतम नहीं किया तो एक ओर सजा के लिए तयार रहना ओर वो सजा ये होगी तूमए फिर पूरे राज्य की सफाय करनी पड़ेगी तभी रुद्र केहता की पर गुरुजी हमे सजा क्यू हम तो हमारा काम तो कर रहे है । गुरुजी केहता की वो जो भी अगर कोई एक भी काम करने पीछे रह गया या फिर उसने काम नहीं किया तो सभी को सजा मिलेगी । युग केहता सुमेर से देखा तूने तेरी वजह से हमे भी सजा मिलेगी ओर इस तरह सुमेर ओर युग बेहस सुरू हो जाती है तभी गुरुजी हसने लगते है ओर उन लोगों रोकते हुऐ केहता के मे मजाक कर रहा था तभी सुमेर युग ध्रुव रुद्र भी हसने लगते है । गुरुजी केहते की कभी कभी मे भी अपने शिष्यों से मजाक कर सकता हु । तभी वहा महागुरु शंकराचार्य आ जाते है ओर केहते है क्या चल रहा है गुरु ओर शिष्यों की बीच । महागरु को देख वे चारों ओर गुरुजी उन्हे प्रणाम करते है । गुरुजी केहते है कुछ नहीं थोड़ा मजाक कर रहा था अपने शिष्यों के साथ गुरुजी तभी महागुरु उन चारों से केहते ही क्या मजाक किया मुजे भी बताओ तभी सुमेर सारी बाते महागुरु को बता देता है । महागरु केहते है क्या चेतन तुम भी एसा मजाक करते हो अपने शिष्यों के साथ । जब ये लोग बात कर रहे थे तभी उस कुछी दूर काशी और वीरसिंग जा रहे थे जब वो लोग ध्रुव और उसके दोस्तो को महागुरु और गुरुजी के साथ हंसते हुए देखते है तो वही रुक जाते है काशी वीरसिंग से पूछता है की गुरुजी के साथ वो कोन है जिनका तेज गुरुजी सेभी ज्यादा है वीरसिंग काशी से केहता है की तुम इने नहीं जानते । काशी केहता नहीं में तो अभी आया हुना इसीलिए मुझे यहा के बारे में कुछ ज्यादा नहीं पता अभी तक । वीरसिंग केहता हा में तो ये भूल ही गया था । जो गुरुजी के साथ है वो महागुरु है काशी केहता महागुरु मतलब ये हमारे गुरुजी केभी गुरुजी है । वीरसिग केहता हा और ये एकेले महागुरु नही है यहां ४ और महागरू मतलब कुल ५ महागुरु है । काशी केहता ५ महागुरु और उनके नाम क्या है । वीरसिंग केहता की जो पहले महागुरु है उनका नाम महागुरु देवदत है दूसरे महागुरु का नाम महागुरु मारकंडे है तीसरे महागुरु का नाम है महागुरु अगस्त्य है चौथे महागुरु का नाम है महागुरु गौतम और को आखरी पांच वे महागुरु है जिनको तुम अभी हमारे गुरुजी चेतनजी के साथ देख रहे हो उनका नाम महागुरु शंकराचार्य । काशी केहता है की इन महागुरु ओ में ऐसा क्या है की ये हमारे गुरुजी के अलग है । वीरसिंग केहता इनको समस्त ब्रह्माण्ड क्या ज्ञान है और इनको सब पता होता है और इन सभी के पास ऐसी ऐसी सिद्धिया है जो हमे पता भी नही है । जब काशी ध्रुव और उसके दोस्तो को देखता है तो केहता है की अनन्याजी यहाँ नही है । वीरसिंग केहता हा वो हमारी महारानी हैना तो इसलिए युद्ध की सारी जानकारी अभी वो सारे महागुरु जी को दे रही है । जब काशी ये सुनता है की अनन्या जी उनकी महारानी है तो वो अचंभित हो के केहता की अनन्या जी हमारी महारानी है और फिर भी हमारे साथ युद्ध लड़ने आई थी पर उनको देखकर ऐसा लगता नही के वो महारानी है जिस तरह वो सभी से बात करती है । वीरसिंग केहता हा वो तो है अनन्याजी ओर उनके सभी दोस्त बहुत अच्छे है वो किसी भी साथ भेदभाव नही करते सभी के साथ अच्छे से बात करते है और सभी मान देते है । वीरसिंग केहता है की अभी चलो यहा़ से हमे और भी काम है । विरसिंग ओर काशी वहा से चले जाते है दूसरी तरफ सुमेर को सेनापति सुकेतु की कही हुवी बाते याद आती है ओर गुरुजी ओर महागुरु शंकराचार्य से केहता की गुरुजी हम जब उस सुकेतु से लड़ रहे थे तब वो बड़ी अजीब सी बाते कर रहा था । गुरुजी केहते है की क्या बात कर रहा था वो । सुमेर केहता की वो बोल रहा था की हम सब भूल गए है जो भी उसने हमे शिखाया था पर उसका नाम नहीं ले रहा था । जब दोनों गुरु ये बात सुनते है वो लोग के चेहरे पर थोड़ी सी चिंता आ जाती है फिर वो अपने अप को सामान्य करते फिर महागुरु शंकराचार्य कहते है की कही दिनो से हथियारों के कमरों की भी सफाई नहीं हुई है तुम लोग अभ वो साफ करने के लिए जाओ यहा की सफाई हो गई है । फिर वे चारो गुरजी और महागुरजी प्रणाम किया और वहा से हथियारों के कमरे की तरफ चले गए । उनके जाते ही चेतन ने शंकराचार्य की सुकेतु के केसे उसके बारे में याद है मुझे जहा तक मालूम है कि उस श्राप का असर सभी लोगो पर हुवा है तो फिर उसको केसे याद है उसके बारे में । शंकराचार्य केहते है की वो तो मुझे भी नही पता पर में इसके बारे में पता लगाता हु पर मुझे लगता है जो हो रहा है वो सही हो रहा है क्योंकि हम भी तो यही चाहते है की उसका इतिहास उजागर हो ताकी सभी को पता चलें कि वो है कोन और उसने क्या क्या किया था ।