बाबूमोशाय ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बाबूमोशाय

बाबूमोशाय, जिंदगी लम्बी नही
बड़ी होनी चाहिए

ये डायलॉग मोहम्मद शाह के काफी बाद आया। उनकी बादशाहत की उपलब्धि तो यही थी, कि जब दूसरे 2-4-6 माह में मारे जा रहे थे।

रंगीला 27 बरस निकाल गए।
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वो मुगलिया सल्तनत का "सय्यद युग" था। औरँगजेब के बाद, कैद रखे बेटे मुअज्जम को गद्दी मिली।

जो बहादुरशाह प्रथम के नाम से 65 की उम्र में बादशाह हुआ। मगर 4 साल में अल्लाह को प्यारा हुआ। यह है 1712 की बात है।

इसके बाद सय्यद भाइयो ने, बादशाह बनाने- हटाने-मरवाने का खेल शुरू किया।अगले 9 साल में 4 बादशाह आये, गए।

पांचवे 19 बरस के लड़के को जेल से निकाल कर गद्दी पर बिठाया गया।
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रोशन, मुअज्जम का पोता था।

बाप उत्तराधिकार के युध्द में मारा गया था। जीतने वाले, जहाँदार शाह ने इनके पूरे परिवार को जेल डाल दिया था।

रोशन, सीधे जेल की कोठरी से निकल, गद्दी पर बैठा, मोहम्मद शाह का विरुद धरा। आने वाले दौर में "रंगीला" के नाम से पहचाना गया।

रंगीले को शायरी का शौक था। बड़ा अच्छा बोलता था। कला, नृत्य, संगीत, पेंटिंग, शराब और नशे का शौकीन। अच्छे कपड़े पसन्द करता।
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उस जमाने मे एलीट वर्ग में घाघरे जैसी ड्रेस चलती थी।आप अकबर, जहांगीर की पेंटिंग्स में देखेंगे।उसकी जगह अचकन (जो नेहरू पहनते थे) का चलन मोहम्मद शाह रंगीला ने ही शुरू किया।

एक नई भाषा, उर्दू उसके दौर में परवान चढ़ी। ख्याल गायकी बढ़ी, कव्वाली ऊंची चढ़ी, दिल्ली में बाग बगीचे बने, और नाइट लाइफ का कहना ही क्या।

रोज नए इवेंट होते। कोठा संस्कृति, मुशायरे और नृत्य संगीत के जोरदार प्रोग्राम से दिल्ली के कूचे गुंजायमान रहते।

तो सारे कलाकार, नचनिये, गवैये, भांड, जो औरँगजेब के वक्त दिल्ली छोड़कर भाग गए थे। लौटकर दिल्ली आ बसे।
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मगर जिल्लेइलाही खुद कम कलाकार नही थे। सत्ता में आने के 2 बरस बाद एक सैयद भाई का मर्डर हो गया। दूसरे को जहर दे दिया गया।

मगर इसमे बादशाह का कतई हाथ नही था। यही तो कलाकारी थी।

दरबार मे और भी कलाकारियाँ हुईं। कोई गवइया, कोई बाबा, कोई मित्र, कोई चमचा वजीर बन जाता। फिर हटा दिया जाता , दूसरा आ जाता।

दरबार खुद में कल्चरल इवेंट था। कभी बादशाह दरबार मे आते हुए कपड़े पहनना भूल जाते, कभी सबको जनाने कपड़े पहन कर आने का आदेश देते।

कोई वजीर कल घुंघरू बांधकर आये। न आये तो जेल जाए। लड़ाई वडाई का शौक नही था, सो किसी ने नपुंसक कह दिया। रंगीले ने मुगलिया गद्दी पर यौनकर्म करते हुए तस्वीर बनवाई।

गूगल पर उपलब्ध है।
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यह दौर था जिसमे निजामउलमुल्क सल्तनत बचाने की कोशिश कर रहे थे।पर जब बादशाह का हाल देखा तो दक्कन जाकर अपनी रिसायत बना ली।

देखा देखी दूसरे सरदार भी अपने इलाको के नवाब होते गए। बादशाह कभी कभी परेशान होते तो बाप दादो को गरियाते।

राजकाज अस्तव्यस्त था। कभी मराठे चढ़ आते , कभी बंगाल, कभी गुजरात, कभी अवध का सरदार स्वतन्त्र हो जाता। साम्राज्य सिकुड़ रहा था, टूट रहा था,

बादशाह इवेंट में मस्त थे।
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सेना, सरदार, दरबार मे फूट, झगड़े थे। राजा नाकाबिल हो, अफसर निरंकुश, मजे में मस्त रियाया हो, घर मे फूट हो, तो लुटेरों को मौका मिल जाता है।

नादिरशाह ने मौका भांप लिया।
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1739 में बादशाह, करनाल के पास उसे रोकने, फ़ौज के साथ पहुंचे। मगर जैसे दरबार मे जाते वक्त कपड़े भूल जाते, इस बार तोपखाना दिल्ली भूल आये।

थोड़ी झड़प के बाद आखिर नेगोशिएशन शुरू हुई। 5 लाख रुपये देकर पिंड छुड़ाना तय रहा।

मगर सदाअत खान की निशानदेही पर नादिर पलट गया। 200साल की गद्दीनशीनी, और मुगलिया दौलत में से सिर्फ 5 लाख??
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पैसा उसे कम लगा। दिल्ली पर हमला किया, कत्लेआम-आगजनी की। तीन दिन में 30 हजार लोग मारे। सदाअत खान ने ग्लानि से आत्महत्या कर ली।

बादशाह ने नही की। नादिर की खातिरदारी की, जमुना के तीर बिठाकर, झूले झुलाए।

कोहिनूर, तख्ते ताउस, बेशुमार दौलत और सिंधु के उस पार के इलाके देकर बाय बाय किया। और फिर डूब गया अय्याशी में।

रंगीला दस और साल जिया और 1748 में अल्लाह ने उसे अपने दरबार मे बुला लिया। तो रंगीले बादशाह ने कुल 27 साल राज किया था।
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लाल किले पर चढ़कर सलामी लेने वालों सूची बड़ी लम्बी है। पर जुबान पर कुछ ही नाम रहते हैं। इतिहास किसी को गर्व और इज्जत से याद करता है।

कुछ को जमाना वक्र मुस्कान के साथ, मोहम्मद शाह रंगीला कहता है।

जब रोटी रोजी रोजगार का जवाब-"आएगा तो फलना ही" हो, तब आपका पूछना लाज़िम है - तो फिर से आकर करेगा क्या? मन की बात?

या कहो दिल से,
नोटबन्दी, फिर से??
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याद रहे,किसने कितने चुनाव जीते, कितनी सीटें हासिल की, ये कभी इतिहास का सवाल नही होता।

इतिहास तो मुंह सिकोड़कर कहता है- बाबू मोदाय..

राजा का कार्यकाल लम्बा नही!!
उसका हासिल, ऊंचा होना चाहिए।