POK - आपकी छाती का काँटा ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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POK - आपकी छाती का काँटा

POK - आपकी छाती का कांटा

जिसे पाकिस्तान ने 1947 में कब्जा कर लिया था। जिसे नेहरू हार गए।

आज बड़ा दुख हो रहा है कि नेहरू पीड़ितों को यह बताते हुए, कि POK में नेहरू का दूर दूर तक रोल नही।

इंडियन आर्मी का भी नही। किसी युद्ध का भी नही। ये इलाका, स्वेच्छा से, पाकिस्तान से मिला था। इसे इतिहास में "गिलगित रेबेलियन" कहते हैं। ज्यादा जानने के लिए सिम्पली गूगल करें..

विलियम ब्राउन .. !!!
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ब्रिटिश मिलिट्री अफसर- गिलगित स्काउट नाम की पैरामिलिट्री फोर्स का कमांडर. ..

ऊपरी कश्मीर, जिसे हम गिलगित बाल्टिस्तान कहते हैं, पाकिस्तान ने इंडिया या कश्मीर राजा से लड़कर नही जीता।

और न नेहरू ने गिफ्ट क़िया। इसे पाकिस्तान को गिफ्ट करने वाला यह बन्दा था- मेजर विलियम ब्राउन
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गिलगित,ब्रिटिश सरकार ने राजा हरिसिंह से 30 साल के लिए लीज पर लिया था। असल में डूरंड लाइन, और अफगानिस्तान सीमा पर "रूस ब्रिटेन ग्रेट गेम" के सिलसिले में अंग्रेजो को इस इलाके की जरूरत थी।

1930 में ली गयी ये लीज 1960 में समाप्त होती, लेकिन 1947 वक्त बदल गया, हालात बदल गए। जज्बात बदल गए।

ब्रिटिश झोला उठा के चले। तो डोगरा राजा का डेलिगेशन, गिलगित गया, प्रशासन का चार्ज हैंडओवर लेने। साथ मे गए कुछ राजा के सिपाही।

जी राजा के सिपाही ..
सिपाही याने ठुल्ले याने पुलिसवाले..
नॉट किंग्स "आर्मी.."
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रजवाड़ो को "आर्मी" रखने की इजाजत नही थी। सहायक सन्धि, सब्सिडरी ट्रीटी.?? सेना नही रखना है, हम सुरक्षा गारन्टी लेंगे, रेजिडेंट रखेंगे, अंग्रेजो की राजाओ से सहायक सन्धि???

लार्ड वेलेजली-कुछ याद आया??

ओके। तो राजा की आर्मी नही थी। मुट्ठी भर पुलिसवालों और प्रभार लेने गए डेलिगेशन को लोकल लोगो ने आसानी से बंधक बना लिया गया। क्योकि ये लोग डोगरा शासन में लौटना नही चाहते थे।
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क्यो नही लौटना चाहते थे? क्या हिन्दू मुसलमान??

नही जी, रोकड़ा, रोजी रोटी..

कश्मीर रियासत को उसके 100 साल पहले, सिख राजा, रणजीत सिंह के नौकर गुलाबसिंह ने खरीदा था। पूरे 75 लाख में, जो तब बेहद बड़ी रकम थी।

ये पैसा ब्याज पे उठाया था बेचारे ने। तो अब किसे लूटकर किस्तीभरता?? कश्मीर की पब्लिक को ही न..

तो डोगरा वंश, अपने कठोर टैक्सेशन और रूड प्रशासन के कारण बड़ा अलोकप्रिय था। बाद में एक राजा (हरिसिंह के दादा) थोड़े ठीक ठाक हुए। मगर राजवंश की इमेज तो खराब थी।

और गिलगित वालो को तो लीज के कारण, 1930 में मुक्ति मिली थी। अब वे भला फिर क्यो डोगरा राज में लौटते??
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तो सिपाहियों, कर्मचारियों के हाथ पैर बांधकर, गिलगित में एक पब्लिक काउंसिल बनाई गई। इस विद्रोह की पूरी सेटिंग विलियम ब्राउन ने किया।

अब जाहिर है, ये बंटवारे का वक्त था। इस इलाके सीमा लगती थी। डोगरा राज से, और पाकिस्तान से। यही दो विकल्प थे।

वे पाकिस्तान से मिल गए। जो उन्हें पूर्ण ऑटोनॉमी देने का वादा कर रहा था।
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ऑटोनमी .. याने अनुच्छेद 370,

याने वही जो हम तब तक डिसाइड नही कर पाए थे कि दें न दें। तो गिलगित की अस्थायी सरकार फटाफट पाकिस्तान से विशेष दर्जे के साथ जुड़ गई।

आज भी वह पाकिस्तान का प्रान्त नही, "गिलगित एजेंसी" ही है।

"आजाद कश्मीर" के "प्रधानमंत्री" कभी कय्यूम थे, कभी कौन है याद नही। मगर पाकिस्तनियो ने ऑटोनमी के वादे को निभाया है आज तक!!

खोखली ऑटोनॉमी ही सही।
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गिलगित बाल्टिस्तान जब कश्मीर से अलग हुआ, हमारी सेना श्रीनगर पर लड़ रही थी।

फिर राजा ने इंडिया में एक्सेशन पेपर साइन कर लिया था, तो हमारा दावा तो अब सारे के सारे राज्य पर बनता था। हमने दावा किया।

उसका बड़ा हिस्सा जो अब पाकिस्तान के आक्यूपेशन में था। हमने उसे पाकिस्तान ऑक्यूपाईड कश्मीर POK कहना शुरू किया।

मगर आज की पीढ़ी के अनपढ़ों को बताया गया है, कि पाकिस्तान ने हमसे (नेहरू से) या कश्मीर राजा से लड़ कर POK कब्जा किया है,

ये समझ गलत है।
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खैर, बात तो विलियम ब्राउन की हो रही थी। आपने गूगल किया तो अच्छा।

वरना किताब के शौकीनों के लिए नीचे फोटो तो है ही।