विशाल साम्राज्य औऱ 18 घण्टे काम ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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विशाल साम्राज्य औऱ 18 घण्टे काम

विशाल साम्राज्य औऱ 18 घण्टे काम..

यह 1944 का जर्मनी था, और उसका मेहनतकश नेता। जून की 6 तारीख थी और ब्रिटेन में डेरा डाले अमेरिकी, कनाडियन और ब्रिटेन के फौजी दो हजार से अधिक नौका, फिग्रेट, डिस्ट्रॉयर्स, शिप में सवार होकर नारमण्डी के तट पर पहुचे।

उनका स्वागत गोलियों की बौछार से हुआ।
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1942 तक हिटलर की ताकत अपने उरूज पर थी। पूरा यूरोप उसकी मुट्ठी में था, आधा रूस उसके कदमो में।

ब्लित्कृग़ज़, याने तेज अचानक हमले की नीति से दुनिया स्तब्ध थी। इतने कम वक्त में इतना बड़ा इलाका इतिहास में किसी ने नही जीता था।

और हिटलर इसका एकमात्र बादशाह था। नाजी पार्टी का मुखिया, सरकार का प्रमुख, सेना का प्रमुख, विदेश नीति का प्रमुख...

अथाह ताकत- अथाह जिम्मेदारी।
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क्योकि सफलता के साथ समस्या भी आती है। इतिहास में इतना लंबा समुद्र तट किसी के पास नही था। रशिया की अब तक हुई जीत ने विशाल भूभाग उनके कदमो में दे दिया था।

दर्जन भर देश, नए इलाके, आजाद मगर हिटलर के कठपुतली देश- हर निर्णय हिटलर से होकर गुजरता।

हर कोने में, हर वक्त, हिटलर की हां, और ना का इंतजार होता रहता।
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एल्प्स की सुरम्य वादियों के बीच उसके महल में हिटलर 5 जून की रात देर तक लोगो से मिलता रहा। पार्टी, पॉलिटिक्स, कूटनीति और युद्ध के मसलों पर फैसले होते रहे।

उसे नींद की समस्या थी, तो दवा लेकर रात 3 बजे वह सोने गया। इस वक्त मित्रराष्ट्रों की सेनाएं अपने शिप्स में चढ़ रही थी।

सोते हुए हिटलर के बिस्तर से , एक हजार किलोमीटर दूर, नारमण्डी के तट पर मित्रराष्ट्रों की सेना सुबह की पहली रोशनी के साथ पहुँच गयी।
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हिटलर के मशहूर जनरल रोमेल को इस वक्त तक यूरोप की कोस्टलाइन की सुरक्षा का जिम्मा दिया जा चुका था।

उसने बंकर बनवाये, तोपें, बड़ी गन, लैंडमाइंस लगवाए। लेकिन इतनी बड़ी कोस्टलाइन के लिए सुरक्षा के लिए बड़े संसाधन और फ़ौज चाहिए थी।

मगर हिटलर को रशियन बॉर्डर पर फ़ौज चहिए थी, जहां अब उसे अब कड़ी टक्कर मिल रही थी। रोमेल को मना कर दिया गया।

हिटलर का विश्वास था, की मित्रराष्ट्रों का हमला कैले पर होगा। वो जगह जो इंग्लिश चैनल पर ब्रिटेन के सबसे करीब है। वहीं फौजो, टैंकों का जमावड़ा कर दिया गया।

पर मित्रराष्ट्रों ने उससे दूर, नारमण्डी को चुना। कैसे उन्होंने जर्मन इंटेलिजेंस को धोखा दिया, कैले पर नकली आक्रमण की योजना की अफवाहें चलवाई, और कैसे हिटलर के दूसरे कयास गलत हुए, वो अलग कहानी है।
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नारमण्डी पर भी सुरक्षा कम नही थी। मगर 15-20 किमी के तट पर मित्रराष्ट्रों ने भयंकर बमबारी की, और सारे संसाधन चार घण्टों में, अचानक झोंक दिये।

नारमण्डी तट को 6 हिस्सों में बांटा गया था। तीन में अमरीकी, एक कनाडियन और दो ब्रिटिश फ़ौज को जीतना था। लक्ष्य था, सेनाएं उतारनी है, थोड़े से तट को कब्जा करके, सुरक्षित करना है। ताकि इसके और सेनाएं पीछे उतारी जा सकें।

तट पर तैनात जर्मनों ने पहले ही घण्टे में ही दस हजार से ज्यादा एलाइड फौजियों को मार गिराया।

समुद्र लाशों से भर गया, लेकिन एलाई फौजो का आना कम न हुआ। बीच के ऊपर आकर उन्होंने जर्मन्स को काबू में किया।

भारी कीमत देकर, बारह बजे तक कुछ किलोमीटर समुद्र तट वे सुरक्षित कर चुके थे। अब इन पर हजारों हजार सैनिक उतर रहे थे।
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खबर तो सात बजे तक हिटलर के महल में पहुँच गयी। पर अभी सिचुएशन का पूरा अंदाजा न था। सोते हुए सर्वशक्तिमान को उठाये कौन?

रोमेल ने पेरिस में तैनात टैंक रेजिमेंट को, तुरन्त नारमण्डी तट पर भेजने की आज्ञा मांगी।

आज्ञा दे कौन??

आखिर हिम्मत करके, दस बजे हिटलर को उठाया गया। ग्यारह बजे तक उसने जनरलों की मीटिंग ली। फैसले लिए.. दोपहर बाद तक उन पर अमल शुरू हुआ, लेकिन अब तक मित्रराष्ट्र एज ले चुके थे।
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पूरे इलाके पर हजार बमवर्षक उड़ रहे थे । जर्मन टैंक या, फौजी अगर निकलकर तट की ओर जाते, तो सड़को पर ही खत्म हो जाते। अब रात का इंतजार करना पड़ा।

रोमेल ने अपनी ब्रीफिंग में हिटलर से कहा था- जब कभी हमला होगा, पहले 24 घण्टे में फैसला हो जाएगा।

फैसला 12 घण्टे में हो गया। 6 जून को एक छोटा सा तट जो जर्मनी हारा, ग्यारह माह बाद 30 अप्रेल 1945 को वे बर्लिन हार गए थे।

हिटलर ने आत्महत्या कर ली।
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तेज, अतिविस्तार, और फिर सब कुछ अपनी मुट्ठी में बन्द रखना, आपको महानता का अहसास कराता है।

लेकिन अतिकेन्द्रित व्यवस्था में स्वयं के विनाश का बारूद भी होता है। एक क्षण में जो अविजित दिखता है, अगले ही पल एक मजबूत प्रहार से बिखर जाता है।

यह इतिहास में एकाधिक बार हुआ है। लेकिन अहंकार और अतिमहत्वकांक्षा के शिकार लीडर वही वही चीजें दोहराते हैं। अठारह अठारह घण्टे जागकर जो खड़ा करते हैं..

छह घण्टे की नींद के बाद उसे बिखरा पाते हैं।