द लास्ट बाउंड्री ऑफ़ इंडिया ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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द लास्ट बाउंड्री ऑफ़ इंडिया

भारत की आखरी सीमा,
पंजाब,और हिमाचल प्रदेश...

जब नक्शा देखता हूँ, तो सोचता हूँ,कि कश्मीर विहीन भारत, कैसा शीश विहीन होता।

मगर, सही- अच्छा-उचित-नियमानुकूल तो यही था कि कश्मीर पाकिस्तान में जाता।

अरे भाई, ये मैं नहीं,
सरदार पटेल सोचते थे।
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क्योकि दो राष्ट्र सिद्धांत का मतलब-भारत एक देश नही। इसमे दो राष्ट्र हैं। हिन्दू राष्ट्र, और मुसलमान राष्ट्र

इस थ्योरी पर हिन्दू महासभा,औऱ मुस्लिम लीग एकमत थे। याने दोनो एकमत थे, कि वे एकमत नही हो सकते। कांग्रेस उनकी असहमति से असहमत थी।

पहेली लगने वाली बात पर ज्यादा सिर न दुखाये। ये जान लें कि देश के टुकड़े उन्होंने करवाये, जिन्हें हिन्दू राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्र, अलग अलग चाहिए था।
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अंग्रेजो ने "अपना इलाका"बांट दिया। मुस्लिम बाहुल्य को पाकिस्तान, हिन्दू बाहुल्य इंडिया..

पर ये 52% भारत ही बंटा था। बाकी 48% रजवाड़ों का इलाका था। "आजादी" तो इनको भी मिली थी। पर सिर्फ इतनी,कि कौन सा देश जॉइन करोगे।

फैसले का अधिकार, राजा को दिया।
जनता को नही।
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तो राजाओं को लुभाने, डराने का दौर चला।

हिन्दू जनता- हिन्दू राजा-> नो समस्या।
मुस्लिम जनता- मुस्लिम राजा-> नो समस्या

झमेला वहां था, जहां राजा मुस्लिम-जनता हिन्दू थी, या उल्टा था। जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर ऐसे ही रजवाड़े थे।
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तो बंटवारे के बेसिक प्लान, याने द्विराष्ट्र सिद्धान्त को माना जाये, तो हिन्दू बाहुल्य जूनागढ़, हैदराबाद इंडिया में होने चाहिए।

मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर पाकिस्तान का। लेकिन फैसला, वहां के किंग्स को करना था, जो उल्टा चाहते थे।
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सरदार और वीपी मेनन (गृह सचिव) के सामने 530+ रियासतें थी। उन्होंने आसान सवाल पहले हल किये। निपटाकर कठिन सवाल पर बैठे।

अब तक सब कुछ, बिना मारधाड़ के निपटा था, आगे भी प्रेम से निपटे, इसलिए सरदार पटेल ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत को चिट्ठी लिखी।

कहा- कश्मीर तुम रख लो।
जूनागढ़, हैदराबाद हमे दे दो।

"बीपी मेनन' गूगल करें, उनकी किताब खरीद ले, 1400 रु की है।
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लियाकत ने ठुकरा दिया। बोले- अरे बचुआ, कश्मीर में का बा?? सूखी पहाड़ियां?? मालमत्ता तो हैदराबाद में है। वहां का नवाब हमसे एक्सेशन चाहता है। तुमको काहे दे दें भाई??

सरदार चिंतित। ईस्ट पाकिस्तान और वेस्ट पालिस्तान पहले ही इंडिया के दोनो कंधों पर भूत की तरह सवार था।

साउथ में भी पाकिस्तान बना, तो "पेट का कैंसर" हो जायेगा।
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अब मारधाड़ ही रास्ता था। हमने जूनागढ़ और हैदराबाद को जोर-जबर से मिलाया।

तो पाकिस्तान ने जवाब दिया। उसने कश्मीर पर कबायली हमला किया।अब पिक्चर में नेहरू की एंट्री होती है।
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कश्मीर, नेहरू के पुरखो का घर।

"पटेल सर, 500 रियासत पर जो चाहो फैसला करो, लेकिन कश्मीर, भारत का होना ही चाहिए"

- यह नेहरू की इल्तजा थी।

अगर नेहरू की रिक्वेस्ट थी, तो सरदार का भी निर्णय थी।

- कश्मीर बनेगा इंडिया, Done 👍
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लेकिन कश्मीर में,अलग ही खेल चल रहा था। 1930 में ब्रिटिश ने गिलगित बाल्टिस्तान ( जिसे आप POK कहते है) को कश्मीर राजा से 1960 तक लीज पर लिया था।

अंग्रेजो 1947 में ही झोला उठा लिए, तो गिलगित सम्हालने, राजा के तहसीलदार पहुचें। तो उन्हें पब्लिक ने लतिया के बंधक बना लिया।

इसे गिलगित रेबेलियन कहते है।लोग डोगरा राज नही चाहते थे। एक अंग्रेज अफसर विलियम ब्राउन ने विद्रोह को लीडरशिप दी। एक गवर्निंग काउंसिल बनी।

जल्द ही उस काउंसिल ने पाकिस्तान में विलय कर लिया।
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ठीक इस वक्त इंडियन आर्मी, नक्शे में काफी नीचे, श्रीनगर के आसपास कबायलियों से जूझ रही थी। युद्ध जारी था।

पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष अंग्रेज था। भारतीय सेनाध्यक्ष भी अंग्रेज था।
तभी सर्दियां आ गयी। मने बहुतई ठंडी। एकद्दमे बरफे बरफ। दोनो अंग्रेजो ने एक दूसरे को रम की बोतल भेजी। अपनी अपनी सरकारों को कह दिया..

इत्ती ठंडी में हम ना लड़ते भैया।
युद्ध विराम करो।
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युद्ध विराम रेखा आज भी LOC है।

आज के पाठ से आपको व्हाट्सप यूनिवर्सिटी और फोकटिया देशभक्ति साइड कर, 6 तथ्य "एकेडेमिकली" समझ लेने है।

1- द्विराष्ट्र सिद्धान्त के हिसाब से कश्मीर पाकिस्तान का था
2- सरदार पटेल इससे सहमत थे।
3- नेहरू सहमत नही थे।
4- इसलिए सरदार भी,अब सहमत नही थे

5- "लार्जली" जिसे हम POK कहते है, वो लोकल लोगो ने स्वेच्छा से पाकिस्तान से मिलाया।

6- दोनो तरफ सेनाध्यक्ष गोरे थे, जो कालों की लड़ाई लड़ना नही चाहते थे।
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कन्क्लूजन- सरदार PM होते, अकेले की चलती, तो वाकई कश्मीर समस्या न होती। न रहता कश्मीर, न बजे बांसुरी।

न अक्सई चिन का झमेला, न 62,65,71 की लड़ाई,न POK का दुख। नेहरू जिम्मेदार भी न होते।

व्हाट्सप यूनिवर्सिटी सिर्फ एडविना के भरोसे चलती।