गाय हमारी माता है ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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गाय हमारी माता है

गाय हमारी माता है,
गफूर उसको खाता है

गाय खावक आदमी मुख्यमंत्री कैसे रहेगा। हटाओ ससुर..

जेपी की जिंदा कौम, कैसे भी, अब्दुल गफूर से सिंहासन खाली करवाकर, खुद बैठने को आतुर थी।

ये 1975 था।
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कश्मीर के अलावे, बस 2 राज्य ऐसे हैं, जहाँ कभी मुस्लिम मुख्यमंत्री हुआ। यह गौरव है महाराष्ट्र को जहां CM हुए अद्बुलरहमान अंतुले।

और बिहार, जिसके सीएम गफूर हुए। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे, लम्बे समय तक विधायक और मंत्री रहने के बाद 1973 में बिहार के मुख्यमंत्री बने। उनकी छवि एक ईमानदार,और सख्त प्रशासक की थी।

मगर मुसलमान थे, तो गाय खाने वाले की छवि, बनाकर ही सत्ता से हटाया जा सकता था।
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दरअसल, चिमनभाई पटेल थे बदमाश। गुजरात में कांग्रेस की विजय के बाद इंदिरा, उन्हें CM बनाना नही चाहती थी। लेकिन विधायकों में पकड़ थी, तो बन गए।

इंदिरा ने सोचा, देख लूंगी बच्चू। मैं तेरा गेहूं का कोटा घटा दूँगी। सबक सिखा दूंगी। बस ये गेहूं का कोटा,

.. नही घटाना था।

गुजरात मे गेहूं के प्राइज बढ़े। हॉस्टलों में, मेस में मंथली फीस में 2 रुपये की वृद्धि हुई। छात्रों ने हड़ताल कर दी। दंगा फसाद, पुलिस कुटान, और ज्यादा दंगा फसाद, औऱ ज्यादा पुलिस कुटान..

छात्रों का आंदोलन स्टेट भर में फैल गया। अभी तक इंदिरा खुश थी, कि निपटेगा चिमनभाई।

हिहिहि
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लेकिन मामला मोरारजी ने हाईजैक कर लिया। वो तो बैठे ही थे, ताक में। इंदिरा ने लतिया के कैबिनेट से बाहर कर दिया था।

अब सुनहरा मौका था, इंदिरा को सबक सिखाने का। वे छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व करने आगे आये, बोले तो हाईजैक कर लिया।

अकेले काम नही बनता, तो दूसरा हाइजैकर बिहार से बुलाया। नाम था- जेपी
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गुजरात सरकार, आंदोलन से निपटने में विफल रही। ऊपर से चिमनभाई परम करप्ट प्राणी थे। विधानसभा भंग करने, तुरन्त चुनाव की मांग लेकर, मोरारजी अनशन पर बैठ गए।

उधर संघी प्राणी तन मन से तोड़फोड़ में व्यस्त रहे। जिसे वे गुजरात "नवनिर्माण आंदोलन" कहते थे।

मोरारजी+तोड़फोड़+अक्षम गुजरात सरकार+ जेपी+ भन्नाये छात्र+ भरमाई जनता=
इंदिरा ने विधानसभा सस्पेंड की।

अंततः भंग की।

इस तरह मोरारजी विजयी हुए। विकराल, अष्टभुजी, परम ताकतवर,1971 वाली दुर्गा, आज गुजरात मे धूल चाट गयी। मरा विपक्ष जिंदा हो गया।
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गुजरात मॉडल अब बिहार में लागू हुआ। वहाँ भी छात्र सँघर्ष समिति बनी। इन लोगो ने भी जमकर रैली-वैली, तोड़फोड़ की।

CM हाउस के आसपास आग लगा दी, पुलिस ने दौड़ा दौड़ाकर कूटा। पिटकर सब गए डैडी के पास। डैडी, गुजरात से एक्सपीरियंस लेकर आये थे। उन्होंने ने नेतृत्व स्वीकारा।

पटना के गांधी मैदान पर जेपी ने विशाल रैली की। दिनकर की खूबसूरत पोएटिक लाइन अखबारों में छपी - "सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है"

लेकिन "अंडर द ब्रेथ" असली नारा था- गाय हमारी माता है, गफूर उसको खाता है।
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भारत 1962, 1965, 1971 में 3 युद्ध लड़ चुका था। हम युद्ध के लिए आतुर होते हैं, पर उसकी इकॉनमिक कीमत भरने की बारी आये, तो फट जाती है।

देश का 70% बजट फ़ौज, वॉर एफर्ट्स,उससे बने कर्ज में घुस रहा था। यह सच है कि टैक्स स्काई रॉकेट हुए थे, महंगाई बेरोजगारी चरम पर थी। इंदिरा सत्ता में थी, तो दोषी थी। 3 साल पहले की दुर्गा, अब दुष्टा थी।

गुजरात, बिहार के CM की बलि लेकर आंदोलन रुका नही। अब इंदिरा की बलि चाहिए थी। इस यज्ञ में सब कूदे। मोरारजी, संघी, दूसरे विपक्षी, प्रिवीपर्स की चोट खाये महाराजे, इंदिरा के उभार से दुखी कांग्रेसी..

पूरे उत्तर भारत मे राजनीतिक हड़कम्प था। एक बरस, हर दिन एक नया समझौता, एक नई बलि देकर इंदिरा टाइम काटती रही। फिर कोर्ट का फैसला आया।
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इंदिरा की अपने साइकोलॉजिकल भूत अलग थे। वे निक्सन से लड़कर आयी थी। कोल्डवार का दौर था। दूसरी राजधानियों की तरह दिल्ली वैश्विक इंटेलिजेंस एजेंसियों का प्लेग्राउंड था।

पर इंदिरा ओवर सेंसिटिव थी। बात बात में उन्हें विदेशी हाथ नजर आता था। सेना के विद्रोह की बाते दिल्ली में होती थी। एक बार तो सैम से पूछा- क्या तुम मेरी गवर्मेन्ट टेक ओवर करने वाले हो??

इस पैरानोइया के दौर में , जब सब खिलाफ थे। एक सुबह उनके पुराने साथी डीपी धर की मौत हुई। दोपहर पता चला कि इलाहाबाद कोर्ट ने निर्वाचन रद्द कर दिया।

शाम को पता चला कि कोर्ट ने पीएम की कुर्सी छोडवाने का प्रबन्ध कर दिया है। पार्टी में लोग पीएम एस्पिरेन्ट बने घूम रहे हैं। खैर, सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गयी।

लेकिन हफ्ते दस दिन बाद बाद, जेपी ने दिल्ली में रैली की। सेना और पुलिस से इस "अवैध सरकार" के आदेश न मानने का आव्हान किया।

अगले दिन सुबह इमरजेंसी की घोषणा हुई।
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तो जनाब... गाय, गेहूं और गफूर को मिलाने से इमरजेंसी की तरकारी, ऐसे बनती है।