एक था बर्ड।
बर्ड बड़ा था, तो बड़ा वाला बर्डवादी भी था..
आत्मानुभूति से शिक्षाएं लेता था, और देता भी था। उड़ता था नील गगन में , ऊंचे ऊंचे आसमान में। बाहें फैलाये, खुला आकाश..
मंद मंद पवन।
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सब कुछ माकूल चल रहा था कि एक नामाकूल बादल आ गया।
नामाकूल मने कि...
बहुते ठंडा ठंडा कूलम कूल। नियम तो कहता था कि क्लाउड को अवॉइड कर। लेकिन बर्ड जी को लगा, कि बेनिफिट ले सकते हैं, तो घुस गए क्लाउड में।
घुसते ही बर्ड जी की कुल्फी जम गई। बन गए बर्फ की डली, और डली आसमां से जमीं की ओर चली।
धप्प से आकर नीचे गिरी। किस्मत देखिये, गिरे एक खेत में ..
तो शिक्षा- यह प्राप्त हुई को उड़ते बर्डवादी को, कूल बादल अवॉयड करने चाहिए। वर्ना बर्ड, खेत रहता है।
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तो खुला खेत था, खाली था। किसान प्रोटेस्ट में गया था, इसलिए खेत मे गधे चर रहे थे।
गरम मसाला गिराते थे। एक बैशाखनन्दन , जमे हुए बर्ड साहेब पर गरमागरम मसाला गिरा गए। धप्प, धप्प, धपाधप....
तो साहेबान। लीद ताजा थी,और ताजा लीद, गर्म होती है। गरमागर्म लीद में ठंडक दूर होने लगी। बर्ड जी ठंड से बेहाल थे, वक्त काटे न कटता था।
यूं समझिये जैसे सत्तर मिनट, सत्तर साल की तरह कटे। लीद जीवनदान की तरह थी।
इस बर्ड महोदय ने शिक्षा प्राप्त की- "लीद ही अमृत है, जीवन है, जीवन का सार है"।
ज्ञान को तुरन्त अंडासेल को व्हस्ट्सप किया- "लीद जीवनदायी है। एनर्जी देता है, तो
"जो बर्ड से करे प्यार, वो लीद से कैसे करे इनकार...।" भाटसप आग की तरह फैलाया गया। एक-एक बर्डवादी ने सौ-सौ कट्टर बर्डवादियों को शेयर किया।
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बर्फ पिघल चुकी थी, पर पंख लीद में लिपटे थे। उड़ना, निकलना सम्भव न था।
कोई बात नही, गुनगुनी लीद में डूबे बर्ड को अब आनंद आ रहा था। आनंद आता है, गर्मी चढ़ती है, तो नारे सूझते हैं।
पहले गुनगुनाया, फिर अतिरेक में चीखने लगा। बात मन की होती, तो ठीक था। मगर नारे चहुं ओर गूंजने लगे। खेत के कोने कोने तक आवाज पहुंची।
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वहीं दो बिल्लियां विचरण कर रही थीं।उन्होंने आवाज सुन ली। समझ गयीं कि बर्ड है, लीद में फंसा है। बेनिफिट लिया जा सकता है।
उन्होंने लीद को खोदना शुरू किया। बर्ड जी बेहद खुश हुए। उन्हें लीद से निकालने वाले दोस्त आ गए थे। ऊपर से गिरकर बच जाना, ठंड में मरने से बच जाना, अब लीद से बाहर निकालने वाले भी हाजिर !!!
अजी, वह नसीबों वाला बर्ड था।
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पर नसीब तो पंजा छाप विधायकों से भी ज्यादा कुत्ती चीज है। जाने कब पल्टी मार जाए। बर्ड जी के नसीब भी पलट रहे थे।
दोनों बिल्लियों ने बर्ड जी को लीद से निकाला, आधा आधा खा गए।
पेट में जाने से पहले बर्ड जी ने अंडों को आखरी व्हाट्सप भेजा " क्लाउड से बचो, लीद से बचो, लीद से निकालने आयी बिल्लियों से बचो" ।
पर वो मैसेज अभी तक अनडिलिवर्ड है। डिलीवर मैं कर देता हूँ
"जो गले गले तक लीद में डूबे हैं, उन्हें नारे नही लगाने चाहिए"