नेताओ को आम खाने का शौक होता है।
काटकर, चूसकर, छीलकर..आम, और अवाम को खाने वाले नेताओं ने हमारे बीच काफी गहरी लकीरें बनाई।जो ऐसी खाई में तब्दील हुई कि आम आदमी, उसमें धंसकर रह गया।
जिया-उल-हक ऐसे ही लकीर के फकीर, आम पसन्द जीव थे।
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11 साल निष्कंटक राज करने वाले पाकिस्तानी मिलिट्री रूलर जिया के निशान, पहले मिलट्री रूलर, अय्यूब खान से बिल्कुल उलटे है।
अय्यूब ने जो बनाया, जिया खत्म करके गए। खैबर पख्तूनवाह में पैदा अय्यूब, ब्रिटिश आर्मी के एक फौजी के घर पैदा हुए। AMU में पढ़ने के बाद फ़ौज में गए। उनके सीनियर्स ने टैलेंट देखा और भेज दिया सैंडहर्स्ट ..
ये ब्रिटिश अकादमी दुनिया की मिलिट्री सर्विसेज का कैंब्रिज है। लौटकर वे ब्रिटिश फ़ौज के ऊंचे ओहदों पर रहे। पाकिस्तान बनने पर पाकी फ़ौज ऑप्ट की, टॉप जनरल हुए।
जिन्ना के बाद लियाकत, होल सोल थे। अयूब को डिफेंस मिनिस्टर बनाया। लियाकत की हत्या के बाद पाक में लीडरशीप का अकाल हुआ।
घिसटती सरकारें आई।तो 1957 में अयूब ने तख्ता पलटा, और खुदमुख्तार हो गए।
कोल्ड वॉर का दौर था। अयूब ने अमरीका को जॉइन किया, ढेरों पैसे, हथियार, प्रोजेक्ट्स हथियाये। खूब सड़कें, पोर्ट, स्कूल, यूनिवर्सिटीज, डेम, नहरें बनी।
पाकिस्तान में आजाद, कॉस्मोपॉलिटन सोसायटी कभी बनी, तो वो अयूब के राज में थी। तब पाकिस्तान को इंडिया से ज्यादा विकसित माना जाता।
मगर 1965 में भारत से अनिर्णित युद्ध, ईस्ट बंगाल की खराब हालत, फातिमा जिन्ना से राष्ट्रपति चुनाव, ठगी से जीतना ..
ऐसे विवाद थे कि उन्हें अपने चमचे, याह्या खां को सत्ता सौपनी पड़ी। 71 हारकर याह्या भी खेत रहे। जुल्फी भाई का राज आया।
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जुल्फिकार भुट्टो एक बार मुलतान गए। उनका सूट मिसफ़िट हो रहा था।
एक बड़े फौजी अफसर ने उनका सूट खुद ठीक करवाया। उनको टैंक में घुमाने ले गया। और तो और.. उनसे तोप भी चलवायी।
गोला निशाने पर, भुटटो खुश!!
सालभर में वो अफसर, 7 सीनियर जनरलों को फांदकर सेनाध्यक्ष बन गया। जुल्फी अपने जनरल जिया उल हक की वफादारी और मोहब्बत के कायल थे।
मोहब्बत इतनी परवान चढ़ी की दो साल के भीतर जुल्फिकार कब्र में, और जिया उनकी कुर्सी पर थे।
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पंजाबी मिलिट्री क्लर्क, कम मौलवी के बेटे जिया ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से BA करके आर्मी जॉइन की थी।
धर्म के इतने पक्के की नमाज के लिए अंग्रेज अफसरों से नाफरमानी कर बैठे थे। पार्टीशन के बाद पाक आर्मी ऑप्ट की, और अब देश के होल सोल थे।
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जिन्ना सेकुलर व्यक्ति थे। हिन्दू मुसलमान वाली बकैती केवल सत्ता पाने तक था। पहली स्पीच में उन्होंने सेकुलर देश की कल्पना बताई।
"हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, पाकिस्तान में मस्त रहो भाई..." उन्होंने "रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान" बनाया था।
उनके मरने के कोई दस साल बाद पाकिस्तान का ऑफिशियल नाम "इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान" हुआ।
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फिर शुरू हुआ किसी को कम मुसलमान, कम देशभक्त, कम अक्लमंद बताने का दौर। सुन्नी टॉप पे, शिया दब के, अहमदिया तो नॉन मुस्लिम ही करार दे दिए गए।
लेकिन धर्म पे खतरा खत्म होता कहाँ है। तो सत्ता में आने पर जिया ने इस्लाम को खतरे से परमानेंटली बाहर निकालने की योजना बनाई।
शरिया कानून लागू किया। ईशनिंदा में मौत की सजा रखी। यानी मुल्ले आपको किसी भी बात पर ब्लासफेमी बताकर मरवा सकते थे।
हुदूद आर्डिनेंस लाये। हुदूद, याने रेस्ट्रिकशन, याने गैर इस्लामिक आचरण पर सजा। कोड़ा वोड़ा, पत्थर वत्थर सब लागू।
फिर प्रेस सेंसरशिप लागू की। अखण्ड पाकिस्तान के सपने में, अफगान मुजाहिदीन को दिल खोलकर सपोर्ट किया। मदरसे खोले, जहां से आगे चल के तालिबान निकले।
इस्लाम के लिए यूथ को आईडियोलॉजी, और हथियार से लैस कर, आतंकी बनाने की पॉलिसी जिया ने शुरू की। ISI की ताकत बढ़ी।
जो हुजूर कहें, वही संसद पहुंचता। बाबे और मुल्ले झूमकर संसद में पहुंचाए गये। हर मसला इस्लाम और शरिया के ब-नजरिये देखा जाने लगा।
मने जल्द ही इस्लाम बचने ही वाला था।
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कि तभी आमो में विस्फोट हो गया।
मने हुआ ये की एक फौजी अभ्यास देखने बहावलपुर गए जिया को, गिफ्ट में आम की टोकरी मिली।
किसने दी, कोई नही जानता। उनका जहाज उड़ा, औऱ फटकर क्रेश हुआ। जिया का जीवन 17 अगस्त 1988 को समाप्त हुआ।
कहते हैं कि आमो की टोकरी में बम था। चमचों ने नारे लगाए " जब तक सूरज चांद रहेगा, जिया तेरा नाम रहेगा"।
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लेकिन 2010 के अठारहवें सम्विधान संशोधन द्वारा उनका नाम पाकिस्तान के सम्विधान से हमेशा के लिए हटा दिया गया।
मगर याद से कैसे मिटा सकते हैं किसी को। आज भी जब चार आदमी, चैनल पर बैठकर पाकिस्तान की बरबादी की दास्तां कहते है, जिया को याद करके लानत भेजते हैं।
वही मीडिया जो जीतेजी उन्हें मास्टर टेक्टीशियन..
और "रिंगमास्टर" कहा करता था।