गृहमंत्री की बेटी ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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गृहमंत्री की बेटी

गृहमंत्री की बेटी किडनैप हो गयी!!!

"राजा नही फकीर है, देश की तकदीर है" के नारे के साथ वीपी के जनता दल ने 140 सीटें जीत ली। कांग्रेस 195 सीट के साथ पहले नम्बर पर रही।

लेकिन कहाँ 415 और कहाँ 195.. देश ने कांग्रेस को बैकसीट लेने का आदेश दिया था।
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रामपंथी औऱ वामपंथी दोनो मिले, वीपी को समर्थन दिया। बैसाखियों पर वीपी ने सरकार बनाई, PM बन गए।

चाभी, भाजपा ने चाभी घुमानी शुरू की।पंजाब इस वक्त जल रहा था। कश्मीर में छिटपुट आतंकवादी घटनायें शुरू हो गयी थी। वहां कुछ पुलिस अफसर, कुछ आईबी अफसर, एक जज मारे जा चुके थे।

ये ज्यादातर मक़बूल भट मामले से जुड़े लोग थे। मकबूल बट एक हाइजैकर था, जिसे फांसी हुई थी। तो कश्मीर में असंतोष था, पर आतंकवाद अभी शुरू न हुआ था।
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वीपी ने शपथ ली। मुफ़्ती मोहम्मद सईद, जो कांग्रेस से जनता दल में गए थे, गृह राज्यमंत्री बने।

शपथ की खुमारी उतरी न थी, कि फोन आया- "जनाब आपकी बेटी किडनैप हो गयी है"

सईद की बेटी डॉक्टरी पढ़ रही थी। कालेज से वापस आ रही थी। रस्ते में मिनी बस रुकवाई गयी, मिथुन की बहन की तरह एक मारुति में बिठाया गया.. और फुर्र।
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किडनैपरों की मांग ?? कुछ नही, बस 5 लड़के छोड़ दीजिए, जो कुछ तोड़फोड़ और आतंकी घटनाओं में पकड़े गए हैं।

शपथ 1989 के दिसम्बर में हुई थी। अभी तो गद्दी का गुलगुलापन ठीक से फील भी न किया , कि ये मोटी कील चुभ गयी। हाथ पैर फूल गए, करना क्या है, किसी को न सूझे।

अफरातफरी मच गई।
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दुनिया जानती है कि भारत सरकार लौंडों की धमकी में नही आती। पर ये तो कोई सरकार नही थी।

चुनाव जीते सांसदों का झुंड था।

गृहमंत्री की बीवी का रो रोकर बुरा हाल था। बेचारा चाहता था, बेटी फटाफट घर आये। बाकी जिसे छोड़ना है, छोड़ दो, बवाल खत्म।

भाजपा मूकदर्शक बनी थी। असहमति न होना सहमति होती है। वीपी ने आतंकी छोडने का निर्णय किया।
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पर कश्मीर में मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने किसी को छोड़ने से इनकार कर दिया। केंद्र से दो मंत्री श्रीनगर गए- आरिफ मोहम्मद खान और इंदर कुमार गुजराल। फारुख को मनाया गया।

मांगे गए अपराधी छोड़ दिये गए।
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सरजमीने हिंदुस्तान की सर्वशक्तिमान सरकार ऐसे आसानी से घुटनों पर आ जायेगी, भला किसने सोचा था।

कश्मीर के छोकरो ने न सोचा था।उनके पाकिस्तानी हैंडलर्स ने भी न सोचा था। छुड़ाए गए लड़को का हीरो वेलकम हुआ। किडनैपर्स भी हीरो बन गए।

कल के चवन्नी छाप शोहदे, अब मशहूर "फ्रीडम फाइटर" थे, "मुजाहिद" थे। छोड़े गए लड़कों में एक मुश्ताक अहमद जरगर था।
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रुबाइया कांड के बाद कश्मीर में प्रदर्शनों में तेजी आ गयी, जोश खरोश और आतंकवाद में भी। कई प्रो-इंडिया नेता, धार्मिक लीडर्स मार दिए गए।

ये नेता हिन्दू थे, मुस्लिम भी।

सरकार का क्रेकडाउन हुआ।अर्धसैनिक बलों ने प्रदर्शन करती भीड़ पर गोली चलाई। गांवकदल ब्रिज पर 40 लोग मारे जाने की खबर ने गुस्सा भड़का दिया।
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संघियों ने मामला हाथ मे लिया। जगमोहन राज्यपाल बनाकर भेजे गए। बसें लगाकर, भत्ते का वादा करके, पंडितों से कश्मीर खाली कराया गया। ताकि इसके बाद मुसलमानों को "सबक सिखाया" जा सके।

सबक सिखाया या नही, वो मुझे नही पता। पता यह है कि वीपी सरकार मन्दिर- मंडल के चक्कर मे गिर गयी।

कश्मीरी पंडित कभी घर न लौट सके।
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मुश्ताक अहमद जरगर अर्धशिक्षित कश्मीरी लड़का था। कश्मीर में छुटपुट शान्ति भंग की घटनाओं में लिप्त था, पकड़ा गया था। रुबाइया कांड में छूट गया। सो अब हीरो बन गया।

उसने अपना गैंग बढाया। अब नरसिंहराव सरकार आ चुकी थी। 1992 में उसे फिर पकड़ लिया गया। फिर जेल डाला गया।

बेचारा जरगर। अबकी बार, भाजपा सरकार के इंतजार में आठ साल जेल सड़ा।
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तो नई शताब्दी की शुभ वेला में IC814 का अपहरण किया गया। घुटना टेक पार्टी सत्ता में थी। 150 भारतीय के बदले 3 आतंकी छोड़े गए। देसी जेम्स बॉन्ड डोवाल, और विदेश मंत्री जसवंत, 3 आतंकी प्लेन में बिठाकर कंधार ले गए। उनमे एक मुश्ताक अहमद जरगर भी था।
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दुनिया की सर्वशक्तिमान, देशप्रेमी, मजबूत सरकार को एक नही, दो दो बार ठेंगा दिखाने का रिकार्ड सिर्फ मुश्ताक अहमद जरगर के नाम है।

कंधार की धुंध में गायब होने के बाद वो मुजफ्फराबाद में बस गया।

पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।
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तो उन 3 आतंकियों में मसूद अजहर जरा ज्यादा ही फेमस हुआ। क्योकि उसने 2002 में हमारी सन्सद को अपना थैंक्यू भेजा था।

लेकिन मुश्ताक अहमद जरगर भी कम नही था।
उसके लड़के मुम्बई हमले में शामिल थे। वही हमला जिसमे करकरे मारे गए।

लेकिन आतंकी गोलियों से नही, श्राप से।
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श्राप वाली बाई। वही, जो भोपाली मूर्खो ने संसद में भेजा है। करकरे को, उनके श्राप से मरा पाकर जरगर, उनका और उनकी सरकार का तीसरी बार कृतज्ञ हुआ।