Kalvachi-Pretni Rahashy - 53 books and stories free download online pdf in Hindi

कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५३)

और उन्होंने उस व्यक्ति से प्रसन्नतापूर्वक पुनः पूछा...
"क्या आप सत्य कह रहे हैं,यही प्रसिद्ध वैद्य धरणीधर हैं"?
"हाँ! महाशय! यदि आपको मेरी कही बात पर संदेह है तो आप स्वयं वैद्य जी के पास जाकर उनसे उनका परिचय पूछ सकते हैं",वो व्यक्ति बोला....
"ऐसी कोई बात नहीं है महाशय! मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है और जो वट वृक्ष के तले समाधि लगाकर बैठीं हैं,वें युवती कौन हैं"?,व्योमकेश जी ने पूछा....
"जी! वें वैद्य जी की भान्जी हैं,जिनका नाम धंसिका है,सुना है वें किसी राज्य की रानी थी,किन्तु उनके स्वामी ने उनका त्याग कर दिया है"वो व्यक्ति बोला....
"ओह...ये बड़ी दुखद बात है",व्योमकेश जी बोले....
"सच कहा आपने ,उनके स्वामी ने उनका त्याग किया ये अत्यधिक दुखद बात है,उन बेचारी का इसमें कोई दोष भी नहीं था,वें तो भली युवती हैं,पापी तो उनका स्वामी था जो ऐसी सुशील गुणी स्त्री को अपने संग ना रख पाया",वो व्यक्ति बोला....
"सच कहा आपने! ये संसार ऐसा ही है,पुरूष कुछ भी करें परन्तु दोषी वो स्त्री को ही ठहराता है,ये सब बताने हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद महाशय! अब मैं अपने परिवारजनो को बता दूँ कि इस कन्या का उपचार हो चुका है और ये शीघ्र ही स्वस्थ भी हो जाएगी,वे सभी वहाँ बैठे चिन्ता कर रहे हैं कि ना जाने वैद्य जी ने क्या उत्तर दिया", व्योमकेश जी उस व्यक्ति से बोले...
"हाँ...हाँ...अवश्य महाशय! आप को शीघ्र सबसे कहना चाहिए कि अब ये कन्या ठीक है",वो व्यक्ति बोला....
इसके पश्चात व्योमकेश जी भैरवी को लेकर सभी के समीप पहुँचे और उन सबसे कहा कि.....
" हम बिल्कुल सही स्थान पर आए हैं,ये वैद्य और कोई नहीं धरणीधर ही हैं और वो वट वृक्ष के तले बैठी युवती गिरिराज की पत्नी धंसिका है और वैद्यराज ने ये भी कहा है कि भैरवी को यहाँ कुछ दिवस रुकना होगा क्योंकि अभी उसकी स्थिति ऐसी नहीं है कि हम उसे अपने साथ ले जा सकें"
" किन्तु हम तीनों का तो वैतालिक राज्य पहुँचना अति आवश्यक है",कालवाची बोली...
"तो तुम तीनों शीघ्र ही वैतालिक राज्य पहुँचो,इस स्थान से वैतालिक राज्य अधिक दूर नहीं है,हम भैरवी के स्वस्थ होने के पश्चात वैतालिक राज्य चले जाऐगें और हमारे यहाँ रहने पर इसी मध्य यदि हमारा वार्तालाप धंसिका से हुआ तो ये बात अति उत्तम होगी,क्योंकि और कोई जानकारी भी हमें गिरिराज के विषय में मिल सकती है",व्योमकेश जी बोले...
"हाँ! यही उचित रहेगा,आप सभी यहीं ठहरें और अब हम तीनों को यहाँ से जाने की अनुमति दें",अचलराज बोला....
"तो अचलराज अब हमें और अधिक बिलम्ब नहीं करना चाहिए,इसी समय हम तीनों को वैतालिक राज्य हेतु प्रस्थान करना चाहिए",वत्सला बोली...
"हाँ! चलो,अब हम तीनों यहाँ से प्रस्थान करते हैं",कालवाची बोली....
इसके पश्चात तीनों सभी से अनुमति लेकर उस स्थान से कुछ दूर आएं एवं कालवाची ने सबका रुप बदला,इसके पश्चात तीनों वैतालिक राज्य की ओर उड़ चले,कुछ ही समय में वें तीनों वहाँ पहुँच गए,उनके वहाँ पहुँचने पर रात्रि हो चुकी थी,जो उनके लिए अच्छा था,क्योंकि रात्रि में उन्हें अधिक सावधान रहने की आवश्यकता नहीं थी,वें सभी पहले वैशाली के कक्ष की ओर गए एवं वहाँ पहुँचकर सभी अपना अपना रुप बदलकर अपने अपने कक्ष की ओर चलीं गईं......
दो दिवस ऐसे ही बीत गए, अब गिरिराज अपने पुत्र सारन्ध के साथ आखेट से लौटकर वापस आ चुका था एवं सारन्ध ने अपने कक्ष में राजनर्तकी को नृत्य करने के लिए बुलवाया,किन्तु राजनर्तकी मयूरिका का स्वास्थ्य उस रात्रि कुछ ठीक नहीं था,इसलिए उसने सारन्ध के कक्ष में संदेशा भिजवाया कि उसका स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं है इसलिए आज रात्रि वो राजकुमार सारन्धा की सेवा करने में असमर्थ है,इस बात से राजकुमार सारन्ध क्रोधित हो उठे और उन्होंने राजनर्तकी के कक्ष में संदेश भिजवाया कि....
"यदि राजनर्तकी मेरे कक्ष में आने में असमर्थ है तो प्रातःकाल वो इस राजमहल को छोड़कर जा सकती है,इस राजमहल को ऐसी राजनर्तकी की कोई आवश्यकता नहीं है",
अब इस बात से राजनर्तकी मयूरिका अत्यन्त चिन्तित हो उठी और उसने अपनी सहनर्तकियों से राजकुमार सारन्ध के कक्ष में जाने को कहा,किन्तु उन सभी में से कोई भी राजकुमार सारन्ध के कक्ष में जाने के लिए तत्पर ना हुई क्योंकि सभी राजकुमार सारन्ध के क्रोध से परिचित थी इसलिए सहनर्तकियों ने भी राजकुमार सारन्ध के कक्ष में जाने से मना कर दिया और कर्बला बनी कालवाची तो इसी अवसर की ताक में थी कि कब उसे राजकुमार सारन्ध के कक्ष में जाने का अवसर मिले और वो राजकुमार सारन्ध के समीप जा सके,इसलिए वो राजनर्तकी मयूरिका से बोली....
"राजनर्तकी मयूरिका! यदि आपको कोई आपत्ति ना हो तो मैं राजकुमार के कक्ष में जाने हेतु तत्पर हूँ",
"तुम अभी उनके क्रोध से परिचित नहीं हो इसलिए ऐसा कह रही हो",राजनर्तकी मयूरिका बोली....
"कोई बात नहीं राजनर्तकी! मैं तब भी उनके कक्ष में जाने के लिए तत्पर हूँ",कर्बला बनी कालवाची बोली....
"यदि वहाँ कुछ अनुचित हुआ तो तुम ही उस सभी की उत्तरदायी होगी,मैं नहीं", राजनर्तकी मयूरिका बोली....
"हाँ! मुझे स्वीकार है",कर्बला बनी कालवाची बोली....
"यदि राजकुमार सारन्ध ने तुम्हारे संग कोई दुर्व्यवहार किया तो उसका दोष भी तुम मुझे नहीं दे सकती", राजनर्तकी मयूरिका बोली....
"मैंने कहा ना कि आप उसकी चिन्ता ना करें,मैं ये सबकुछ अपनी इच्छानुसार कर रही हूँ,मैं किसी भी बात के लिए आपको कभी भी दोषी नहीं ठहराऊँगीं",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"तो अब और अधिक बिलम्ब मत करो,चलो शीघ्र ही श्रृंगार करके राजकुमार सारन्ध के कक्ष में पहुँचो" ,राजनर्तकी मयूरिका बोली.....
"हाँ! चलिए सौन्दर्य प्रसाधिका(ब्यूटिशियन) को बुलाइए ताकि वो मेरा श्रृंगार कर दें",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"हाँ! मैं अपने समक्ष ही तुम्हारा श्रृंगार करवाऊँगी,ताकि राजकुमार तुम्हें देखकर अति प्रसन्न हो जाएं और उनका क्रोध भी शान्त हो जाए, मैं उनके पास संदेश भी भिजवा देती हूँ कि मैं उनकी सेवा हेतु उनके कक्ष में एक नई नर्तकी भेज रही हूँ", राजनर्तकी मयूरिका बोली....
इसके पश्चात कर्बला बनी कालवाची का राजनर्तकी मयूरिका के समक्ष श्रृगांर हुआ,इसके पश्चात वो राजकुमार सारन्ध के कक्ष में पहुँची और कर्बला को देखकर राजकुमार सारन्ध की आँखें खुली की खुली रह गई,तब राजकुमार ने कर्बला से पूछा....
"तुम मयूरिका की सहनर्तकी कब बनी"?
"जी!अभी कुछ ही दिवस हुए हैं मुझे उनकी सहनर्तकी बने हुए",कर्बला बोली....
"नाम क्या है तुम्हारा"?,राजकुमार सारन्ध ने पूछा....
"जी! कर्बला नाम है मेरा",कर्बला बोली...
"मुझे प्रसन्न कर पाओगी या नहीं",राजकुमार सारन्ध ने पूछा...
"अब ये तो मैं नहीं बता सकती राजकुमार! किन्तु पूरा प्रयास करूँगी आपको प्रसन्न करने का,सोचकर तो यही आई हूँ", कर्बला बोली...
"रुप,लावण्य और यौवन तो अत्यधिक है तुम में,बोलती भी मधुर हो,नृत्य भी आता है या नहीं",राजकुमार सारन्ध ने पूछा....
"वो तो आप मेरा नृत्य देखकर ही बता पाऐगें कि मैं नृत्य कर भी सकती हूँ या नहीं",कर्बला बोली....
"आज मुझे तुम्हारा नृत्य देखने की इच्छा नहीं है,अभी मैं आखेट से लौटा हूँ,अत्यधिक थका हूँ तो तुम बस मेरी सेवा करो,मुझे मदिरापान कराओ और मेरे समीप आकर बैठो",राजकुमार सारन्ध बोला...
"जी! राजकुमार! जैसी आपकी आज्ञा",कर्बला बनी कालवाची बोली....
और इसके पश्चात कर्बला बनी कालवाची सारन्ध की सेवा में लग गई एवं उसे मदिरा के पात्र भर भरकर देने लगी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....

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