कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५२) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(५२)

त्रिलोचना और कौत्रेय जब फल एकत्र करके वापस लौटे तो भैरवी ने पूछा....
"अत्यधिक बिलम्ब कर दिया तुम दोनों ने वापस आने में,कहीं पुनः तो नहीं झगडने लगे थे",
"नहीं! भैरवी! भला हम क्यों झगड़ेगें?,हमें तो फल एकत्र करने में समय लग गया",त्रिलोचना बोली...
"ये तो अद्भुत बात हो गई कि तुम दोनों बिना झगड़े ही यहाँ वापस गए",अचलराज बोला....
"ये सब बातें छोड़ो,लो ये फल खाओ,तुम्हें अत्यधिक भूख लग रही थी ना!",कौत्रेय बोला....
"हाँ! भूख तो अत्यधिक लग रही है,लाओ पहले मुझे फल दो",अचलराज बोला....
"हाँ...हाँ...तुम भी लो,हम दोनों बहुत से फल लेकर आए हैं,इन्हें खाकर सभी की छुधा शान्त हो सकती है",त्रिलोचना बोली....
सभी शान्तिपूर्वक फल खा ही रहे थे कि तभी अचलराज बोला....
"क्या रानी माँ कुमुदिनी चन्द्रकला देवी के मन के भेद ज्ञात करने में सफल हो गईं होगीं"?,
"अब ये तो उनसे भेट करने के पश्चात ही ज्ञात होगा कि वें चन्द्रकला देवी से मिल पाईं या नहीं",वत्सला बोली....
"हाँ! ये बात ज्ञात करने के लिए अब हम सभी को रात्रि होने की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी",भैरवी बोली....
"यदि वें अपने कार्य में सफल ना हो सकी तो क्या पता हमें आज रात्रि भी इस वन में रुकना पड़े", भूतेश्वर बोला...
"ईश्वर उन्हें सफलता प्रदान करें,मेरी तो यही कामना है",सेनापति व्योमकेश जी बोले...
"तुम्हारा हृदय क्या कहता है कालवाची"?,भूतेश्वर ने पूछा...
"तुम्हारे कहने का आशय क्या है? मैं कुछ समझी नहीं",कालवाची बोली...
"मेरे कहने का तात्पर्य है कि रानी माँ अपने कार्य में सफल होगीं या नहीं",भूतेश्वर बोला...
"हाँ! वें अब तक अपने कार्य में सफल हो भी चुकीं होगीं,मुझे पूर्ण विश्वास है",कालवाची बोली...
"कदाचित! तुम्हारा कथन सत्य हो कालवाची!",भूतेश्वर बोला....
"मैं उतनी देर से देख रही हूँ भूतेश्वर कि तुम कालवाची की हर बात पर अपना समर्थन व्यक्त कर रहे हो", भैरवी बोली...
"वो तो ऐसे ही,यदि कोई सही बात बोल रहा है तो उसका उत्साह बढ़ाना हमारा कर्तव्य है",भूतेश्वर बोला....
"बात तो हम सभी भी सही बोलते हैं परन्तु आज तक मैनें तो तुम्हें हम सभी का उत्साह बढ़ाते हुए नहीं देखा, क्या कालवाची तुम्हारे लिए इतनी विशेष है जो तुम उसकी हर बात का समर्थन करते हो", अचलराज हँसते बोला....
"ऐसा कुछ नहीं है अचलराज!",भूतेश्वर अपनी दृष्टि नीचे करते हुए बोला....
"हाँ...हाँ....भूतेश्वर! अब तो हम सभी को भी कुछ कुछ समझ में आ रहा है",भैरवी बोली....
"क्या समझ में रहा है तुम सभी को"?,भूतेश्वर ने पूछा....
"अरे! ये सब परिहास बंद करो और ये सोचो कि रात्रि को हम सभी रानी कुमुदिनी से कहाँ मिलेगें"?, सेनापति व्योमकेश बोले...
"हाँ! आपका कहना तो बिल्कुल उचित है,हमने उनसे किसी निर्धारित स्थान पर मिलने को नहीं कहा,ये बहुत बड़ी भूल हो गई हम सभी से",वत्सला बोली...
"हाँ! यही तो मैं भी उतने समय से सोच रहा हूँ",सेनापति व्योमकेश बोले....
तक कालवाची बोली....
"कोई बात नहीं,हम सभी पंक्षी का रुप लेकर उन्हें आश्रम में खोज लेंगे और एक स्थान निर्धारित कर लेगें,जहाँ पर सभी एकत्र हो जाऐगे़,यदि मुझे रानी कुमुदिनी पहले दिख गईं तों मैं उन्हें पंक्षी रूप में परिवर्तित करके आश्रम के बाहर ले आऊँगीं और यदि वें किसी और को पहले दिख गईं तो निर्धारित स्थान पर आकर मुझे सूचना दे देगा कि वें कहाँ पर हैं और तब मैं उनके पास जाकर उन्हें पंक्षी रूप में बदलकर निर्धारित स्थान पर वापस ले आऊँगी",
"हाँ! यही उचित रहेगा",अचलराज बोला....
और सभी यूँ ही वार्तालाप करते हुए रात्रि होने की प्रतीक्षा करने लगे,रात्रि का दूसरा पहर बीत चुका था,इसलिए सभी पंक्षी रुप में आश्रम की ओर चल पड़े,कुछ ही समय में वें सभी वहाँ पहुँच भी गए ,इसके पश्चात सभी एक एक करके आश्रम के भीतर पहुँच गए एवं एक निर्धारित स्थान चुनकर वहीं वापस सभी को एकत्र होने को कहा गया,इसके पश्चात सभी आश्रम में रानी कुमुदिनी को खोजने लगें,रानी कुमुदिनी उन सभी में से किसी को नहीं मिली,इसलिए वें सभी पुनः निर्धारित स्थान पर वापस आ गए किन्तु कालवाची अब भी रानी कुमुदिनी को खोज रही थी और उसे रानी कुमुदिनी मिल भी गई,
तब एकान्त में ले जाकर कालवाची ने रानी कुमुदिनी को पंक्षी रुप में बदल दिया और दोनों आश्रम के बाहर निर्धारित स्थान पर पहुँच गईं,जहाँ सभी उन दोनों की प्रतीक्षा कर रहे थे,उन दोनों को देखकर सभी अत्यधिक प्रसन्न हुए और यथास्थान की ओर उड़ चले,सभी के मध्य वार्तालाप भी चल रहा था और उसी वार्तालाप के मध्य रानी कुमुदिनी ने सभी को बताया कि गिरिराज की पत्नी का नाम धंसिका है,जिसे गिरिराज ने अपमानित करके राजमहल से निकाल दिया था,धंसिका के माता पिता अब जीवित नहीं है,कदाचित वो अब अपने मामाश्री धरणीधर के संग रहती है,जो कि एक प्रसिद्ध वैद्य है,वें दोनो शंखनाद पर्वत के समीप बसे राज्य शिशुनाग में रहते हैं,किन्तु अभी ये संदेहात्मक है कि वें दोनों वहाँ पर रहते हैं या नहीं या धंसिका उनके संग रहती है या नहीं......
"तब तो ये ज्ञात करना अत्यधिक कठिन हो जाएगा कि धंसिका है कहाँ"?,अचलराज बोला...
"हाँ! वही तो मैं भी सोच रही थी",रानी कुमुदिनी बोली....
"तो अब हमें क्या करना चाहिए"? कौत्रेय ने पूछा....
"अब हमें भी शंखनाद पर्वत की ओर प्रस्थान करना चाहिए, शिशुनाग राज्य जाकर ज्ञात करते हैं कि धंसिका और उसके मामाश्री धरणीधर कहाँ रहते हैं",सेनापति व्योमकेश जी बोलें....
अन्ततः सभी सेनापति व्योमकेश जी के कहे अनुसार शंखनाद पर्वत की ओर चल पड़े एवं रात्रि भर में ही वें सभी शिशुनाग राज्य पहुँचकर धंसिका और उसके मामाश्री धरणीधर की खोज करने लगे...
वें सभी अभी भी पंक्षी रुप में ही थे क्योंकि पंक्षी बनकर वें सरलता से उड़ सकते थे एवं एक स्थान से दूसरे स्थान शीघ्रता से पहुँच सकते थे और सभी तीन तीन के समूह में साथ थे,यशासम्भव सभी ने बहुत प्रयास किया किन्तु वें धंसिका और उसके मामाश्री की खोज नहीं कर पाएं एवं सभी को हताश एवं असफल होकर पुनः वैतालिक राज्य लौटना पड़ा,क्योंकि गिरिराज के आखेट से वापस आने का समय हो गया था इसलिए अचलराज,वत्सला एवं कालवाची का राजमहल पहुँचना अति आवश्यक था, वें सभी वैतालिक राज्य की सीमा लाँघने ही वाले थे कि तभी पंक्षी बनी भैरवी पर एक प्राजिक(बाज़) ने आक्रमण किया,भैरवी स्वयं को सम्भाल ना पाई एवं उसके एक पंख पर गम्भीर चोट आ गई जिसके कारण वो विक्षत होकर उड़ने में असमर्थ हो चुकी थी और अचेत होकर सीधे पर धरती पर गिरने को हुई तो कालवाची ने तीव्र गति से जाकर उसे बचा लिया और सभी भी कालवाची के पीछे पीछे धरती पर चले गए,जिस धरती पर वें सभी पहुँचे तो वहाँ समीप ही एक विशाल वट वृक्ष के तले उन्हें छोटी सी कुटिया दिखाई दी,कालवाची ने पहले सभी को मानव रुप में परिवर्तित किया और इसके पश्चात अचलराज ने चोटिल भैरवी को गोद में उठाया और सहायता हेतु उस कुटिया की ओर चल पड़े.....
वें सभी वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि उस विशाल वट वृक्ष के तले एक स्त्री ध्यानमुद्रा में बैठी है एवं वट वृक्ष के बगल की कुटिया के बाहर कुछ लोग पंक्ति में बैठे थे,तब व्योमकेश जी ने उपस्थित उन लोगों में से एक से पूछा....
"महोदय! तनिक सहायता चाहिए थी"
"कैसी सहायता महोदय"?,उस व्यक्ति ने पूछा...
"हमारे साथ जो कन्या है,वो चोटिल हो चुकी है,क्या इस स्थान पर कहीं उसका उपचार हो सकता है "?, व्योमकेश जी बोले....
"जी! महोदय! हम सभी अपने उपचार हेतु ही यहाँ आए हैं,इस कुटिया में प्रसिद्ध वैद्य रहते हैं,उनके यहाँ से कोई निराश नहीं लौटता,आप अपनी पुत्री को उनके पास ले जाएं,वें इनका शीघ्रतापूर्वक उपचार कर देगें",वो व्यक्ति बोला....
"किन्तु! यहाँ तो बहुत से रोगी हैं और हमारी पुत्री की दशा बिल्कुल अच्छी नहीं है उसे शीघ्र ही उपचार की आवश्यकता है",सेनापति व्योमकेश बोलें....
"तो महाशय!आप पहले अपनी कन्या का उपचार करा लीजिए,हम सभी को कोई आपत्ति नहीं",वो व्यक्ति बोला....
"बहुत बहुत आभार आप सभी का",सेनापति व्योमकेश जी बोले....
और सभी रोगियों की अनुमति लेकर अचलराज और व्योमकेश जी भैरवी को लेकर कुटिया के भीतर गए एवं वैद्य जी ने शीघ्रता से भैरवी का उपचार प्रारम्भ कर दिया,उपचार के पश्चात वैद्य व्योमकेश जी से बोलें....
"महोदय! आपको यहाँ अपनी कन्या को लेकर कुछ दिनों तक रहना होगा,क्योंकि इनकी स्थिति अभी ऐसी नहीं है कि इन्हें आप अपने संग ले जाएं",
अब व्योमकेश जी को वैद्य जी की बात माननी पड़ी और उन्होंने वट वृक्ष के तले ही अपना डेरा डाल दिया एवं वहाँ उपस्थित एक रोगी के परिवारजन से व्योमकेश जी ने वैद्य जी का परिचय पूछा था तो वो व्यक्ति बोला....
"ये प्रसिद्ध वैद्य धरणीधर जी हैं",
ये सुनकर व्योमकेश जी के मुँख पर प्रसन्नता के भाव प्रकट हो गए.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....