प्रिय बाऊजी,
मुझे पता है कि ये पत्र आपको कभी नहीं मिलेगा, मैं जानती हूँ, आपका इस दुनियाँ से पता बदल गया है, आप इस दुनियाँ से दूर जा चुके है, जहाँ से कभी कोई नहीं लौटता। मुझे लगता है शायद ये दुनियाँ भी आपकी तासीर की नहीं थी।
शादी के बाद बहुत बार सोचा आपको पत्र लिखु कोशिश भी की, लेकिन बार - बार कागज कोरा ही रह गया । इसका कारण व्यस्तता नहीं थी, मुझे लगता था कि आप हमेशा ही बिना कहे ही सब कुछ समझ जाते रहे, न जाने कहाँ से आपको मेरी हर बात, हर पीड़ा पता चल जाती थी।
अभी आपकी यादों की तस्वीर धुंधली नहीं हुई है, मैं अपने दिल कि बात आपसे कहना चाहुँगी और कुछ सवाल भी -कैसे.... आप हमें अकेला छोड़ के चले गये? क्यों इतनी जल्दी थी जाने की?जानती हूँ आपके पास कोई जवाब नहीं है मेरे नामुमकिन से सवालो का । सवाल बहुत है, लेकिन मैं जानती हूँ कि इनके जवाब अब कभी नहीं मिलेंगे, लेकिन इससे जवाब करना तो नहीं थम जाता।
आप शायद जानते थे कि आपकी बेटी ने तो अभी पंख खोलना भी नहीं सीखा, अभी तो उसकी उड़ान बाकी थी, उसकी आँखों में कई सपने झिलमिला रहे थे, इनमे आपके अधूरे सपने भी तो बाकी थे। यों आपका जाना एक कसक सी छोड़ गया, मेरे भीतर...
मेरी उम्र चाहे बड़ी हो गई लेकिन मुझे आपको देखकर बच्ची सा ही भाव रहा है । अब मुझे कौन जीवन के अनुभवों से परिपक्व करेंगा ? कौन मेरी नादान शरारतों को हँसकर माफ करेगा? और कौन जीवन का मर्म समझायेगा ? अब किसके जीवन की कहानियों के पिटारे से अब मैं सिखुंगी?
आपने कुछ सुना, आपके जाने के बाद लोग आपकी ईमानदारी कि कसमे खाते है, आपकी सादगी की मिसाले देते है ।आपके बारे में बताते है कि यह इंसान अर्श से फर्श पर आ गया, लेकिन कभी भी हिम्मत नहीं हारी, वो ना सिर्फ उठा, बल्कि चला और कामयाब भी हुआ, ये वह इंसान है जिसे कभी घमंड नहीं हुआ ना किसी से गिला - शिकवा न कभी बैर,तभी तो आपके जाने की खबर से वो लोग भी पछता रहे, जिन्होंने आपके मार्ग में, काँटे बिछाये और कितनी ही बाधाएँ खड़ी की और हमेशा आपको रोकना चाहा । वो देखना चाहते थे आपको हताश, निराश । पर आप हमेशा ना हारते ना दुखी होते और चेहरे पर मुस्कान बनी रहती। लोग कभी आपके चेहरे पर दुःख के भावो को नहीं पढ़ पाते थे, आप तो हमेशा एक समान ही बने रहते थे ।आपकी नजर में आपका कोई बैरी नहीं था लेकिन आपको कोई तकलीफ देता, चोट पहुंचाता रहा तो वो आपका मित्र कैसे हुआ ? यह तो आप ही जाने।
यह आपका बड़प्पन ही था कि आप सब कुछ जानते हुये भी अनजान बने रहते थे, दुनियादारी की लड़ाई - झगड़ो की बातो से, आपके मन में किसी के प्रति कोई बैर नहीं था, न जाने किस मिट्टी के बने थे आप ....
आप ये कतई ना समझना कि मैं आपकी बेटी हूँ इसलिए मैं आपके सिर्फ गुण ही देख सकी, अवगुण नहीं। मैने तटस्थ होकर भी आपको देखा, लेकिन मुझे कही भी कुछ ऐसा नहीं मिला। कठोर परिश्रम से तपकर और चेहरे से कठोर पर, भीतर से मुलायम ही रहे जो एक चींटी को भी अपनी आँखों के सामने पीड़ा में नहीं देख पाता।
कितनी ही शारीरिक पीड़ाओं का दर्द आपने हँसते - हँसते उठा लिया। तभी तो हार्ट सर्जरी होने पर डॉक्टर मरीजों को आपकी मिसाल देते रहे।
ऐसे कितने ही अनगिनत पल है, जिन्हे में सिलसिलेवार लिखना शुरू करूँ तो शायद एक उपन्यास बन जाये पर आपका जीवन एक उपन्यास से भी कहीं ज्यादा है, जो मैं कभी नहीं लिख पाऊँगी । जहाँ आज कि दुनियाँ में, लोगो में, स्वार्थ सिर चढ़कर बोलता है, वहीँ आपने दूसरो के प्रति अपनापन व दया दिखाकर मानवता के साथ - साथ मेरा सिर भी गर्व से ऊँचा कर दिया।लोगो को धोखा देना, छल - कपट, झूठ बोलना आदि बाते आपके जीवन से दूर थी, पूरे जीवन काल में बुराइयों से बचे रहना आसान नहीं था, फिर भी वे आपको छू तक नहीं सकी।
कभी - कभी तो आपको इन्ही आदतों के कारण नुकसान भी उठाना पड़ा और इस कारण ही कभी - कभी आपकी और मेरी कहा-सुनी हो जाती "क्यों आप ऐसे आदर्शो पर चलते है जिससे स्वयं को ही नुकसान उठाना पड़े, क्यों नहीं छोड़ देते आप अपने ये आदर्श ?"
पर कहाँ आप मानने वाले थे आप तो मुझे ही समझाने लग जाते "गलत-गलत ही होता है, चाहे वो कितनी ही सावधानी से या किन्ही भी परिस्थितियों में किया जाये।"
फिर मैं भी आपकी बातों के आगे कहाँ कुछ बोल पाती थी।शायद ऐसा करते हुये आप अपने गुण, संस्कार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित कर रहे थे। रोप दिया था वो बीज आपने संस्कारो का हमारी मिट्टी में, जिम्मेदारी के साथ।
क्या हमारे द्वारा मीठी-मीठी बाते करने मात्र से इंसान हमारे बस में हो जाता है... नहीं... ऐसा नहीं होता। आपका लोगो के साथ सहयोग व समर्पण की भावना, और अच्छा बोलने के कारण ही आपकी बातों को, आपकी स्मृतियों को वो सब सींच रहे है। नहीं तो, कौन याद करता है किसी को?
उस ज़माने में अपने पांच बच्चो को अच्छे स्कूल में पढ़ाना-लिखाना और योग्य बनाना कहाँ कोई कर पाता और उसमे से भी यदि चार बेटियाँ हो तो और भी मुश्किल हो जाता है। लेकीन आपने कभी बेटा व बेटी में कोई फर्क नहीं समझा, तब के दिनों में ये इतना आसान भी नहीं था, ये तो एक विरला इंसान ही कर सकता है इसमें कोई शक नहीं है।
रिश्तो को निभाना कोई आपसे सीखे चाहे वो रिश्ते खून के हो या मित्रो, पड़ोसियों से बनाये हुये, पर आपने रिश्तो को निभाया वरन उन रिश्तो को जिया पूरी शिददत के साथ, सींचा है हमेशा जड़ो तक। तभी तो समाज में भी आपका एक सम्मानजनक स्थान हमेशा बना रहा।
कितने ही कष्ट आपके जीवन में आये, साक्षी है इसके ये धरती, सूरज, चाँद, सितारे और ये समाज और इन सबसे भी कहीं ज़्यादा साक्षी है हम आपके बच्चे।जीवन की किसी भी परिस्थिति में आपके कदम नहीं डगमगाये गलत राहों कि ओर, ना ही आपकी हिम्मत को कोई कम कर पाया।
तभी तो ईश्वर भी आपकी बार-बार परीक्षा लेता रहा और आप हमेशा जीत जाते। जाने कैसे...? मुझे लगता है कि मौत कि चुनौती को भी आपने सहर्ष स्वीकार कर लिया, नहीं तो, वह कहाँ...???? इतनी आसानी से जीत पाती। लेकीन फिर भी आपकी जीजिविषा व अंतिम क्षणों में मौत से लड़ने कि ताकत को में सलाम करती हूँ।
कहते है, अच्छे लोगो कि ज़रूरत वहॉँ भी होती है।बाऊजी . . . इस बार भी आप ज़िन्दगी हारकर भी मौत से जीत ही गये। शायद मृत्यु का पूर्वाभास आपको हो गया था, तभी तो अंतिम समय में आपके शब्द दिल को चीर रहे थे। कोई कैसे..? अपनी मृत्यु से पहले ही सब बोल सकता है - - उस शाम को जब धरती पर अँधेरे का धुंधलका छाने लगा था । तब कहे गये आपके ये शब्द आज भी मेरे कानो में गुंजते है.....
"मेरे जाने का वक़्त नजदीक आ गया है। तुम हिम्मत रखना, डरना नहीं, निराश नहीं होना, ये जीवन का सफर ऐसा ही है, जो भी आता है, उसको जाना ही पड़ता है, बस फर्क ये है कि कोई जल्दी जाता है, कोई देर से। "मुझे अपनी ज़िन्दगी में किसी से कोई गिला-शिकवा, रंज नहीं है।""परिवार, रिश्तेदार व समाज से भी किसी से कोई शिकायत नहीं है, ईश्वर ने मुझे बेहतरीन जगह, बेहतरीन जीवन व अपने लोग दिए है। धन्यवाद उसका बहुत-बहुत।"
मृत्यु से पहले ये स्वीकारोक्ति कैसे कर पाये आप?आपके जाने के बाद भी आपकी यादें पीछा नहीं छोड़ रही, आसान तो नहीं है, इतने सालो का साथ कुछ दिनों में भुला पाना । आपके साथ जो गया, वो कभी लौटकर नहीं आ सकता, और जो हमारे पास रह गया वो अनमोल है। तरसते है लोग उन अनमोल पलों के लिए जो हमने आपके साथ जिये।
आपकी बेटी
सुमन