वैसे मेरी बीवी काफी गुसैल है...हर वक्त नाक पर गुस्सा बैठा रहता है, इस गुस्से का अधिक्तर शिकार मैं ही रहा हूं और पेनल्टी में मुझे ऐसा खाना खाने को मिला है जिसमें नमक से समझौता किया गया हो, रात का बचा हुआ खाना , नाश्ते का खाना दोपहर के भोजन में इत्यादि
वैसे मैं गुस्सा दिलाने का कोई काम नहीं करता पर मेरी तकदीर उसका ही साथ देती है ।
एक दिन की बात है, मुझसे पानी का ग्लास हॉल में गिर गया और ग्लास उठाकर किचन में रखने जाने वाला ही था कि मेरी वाईफाई मार्केट से लौट आई सिर्फ एक जोड़ी नई चप्पल के साथ
"क्या हुआ, बाकी सामान कहा है" मैंने पूछा अपनी वाईफाई से
"वो, बाकी दुकान बंद थी, सिवाय चप्पल की दुकान के, इसलिए ये खरीद लाई" उसने कहा
"अब दोपहर में जाओगी तो कौनसा दुकान खुला मिलेगा,"मैंने थोड़ा अपना रुबाब दिखाया
"कैसी है चप्पल, एकदम सस्ती मिली है" उसने चप्पल दिखाते हुए पूछा
"सस्ती चीज़ नहीं चलती है, कितनी बार तुमसे कहा है मैंने" मैं आवाज़ ऊंची कर के बोला
"तुम्हारी ही नहीं चलती, मैं तो चला लेती हूं" उसने पलटवार किया, "देखो मैं तुम्हें पहन कर दिखाती हूं"
उसने पहन नी सुरु कर दी, "और चल के भी दिखती हूँ"
इसी बीच मैं किचन से पोछा लाने चला गया
पोछा ढूंढने में टाइम लगा तभी हॉल से किसी के "भहड़ाम" से गिरने की आवाज आई
बिना पोछा लिए ही हॉल में दौड़ा और क्या देखता हूं, बीवी ज़मीन पर औंधे मूंह गिरी पड़ी है
मुझे पता था ये गलती मेरी है, ना पानी गिरता और ना वो गिरती, उसका ध्यान भटकाना जरूरी था
"यही होता है सस्ती चीज़ों से, अगर ब्रांडेड ख़रीदी रहती तो तुम्हारी जान का जोखिम ना होता"
मैं ज़ोरो से भड़का और उसे हाथ के बल, बड़े प्यार उठाया
मुझे नाटक करना पड़ा क्योंकि मेरी बीवी को थोड़ा भी भनक लग जाता कि पानी मैंने गिराया है, बिना मेरी बात सुने , वो मुझे घर से निकाल देती।
"पैसा, जान से ज्यादा जरूरी है क्या,???बीवी को लगा में उसके लिए फिक्रमंद हूं
ये देख, मैंने और फिक्र दिखाई
"हर चीज़ में तुम अपना ही मन बनाती हो, कभी तो मेरी बात मान लिया करो, ब्रांडेड ब्रांडेड होता है" कहते हुए में उसे कमरे में ले गया, बम लगा दिया
वो मेरी गलती भूल चुकी थी...इसका फ़ायदा उठाकर और उसकी नज़रें बचाते हुए, मैंने किचन से पोछा उठाया और अपने सबूट को मिटाने हॉल में पहुंच गया
भगवान का शुक्र है, बाल-बाल बच गये पर मेरी तक़दीर का क्या करूँ
वो अंदर से चिल्लाई, मैं अंदर के कमरे की तरफ भागा कि अब यह कहाँ गिर पड़ी।
"मुझे उठायो" उसने कहा
मैं हैरानी में की हुआ क्या अचानक से, मैंने उसे गोद में उठाया और हाल में ले आया
वो उतर गई और सोफे का सहारा लेकर फर्श को चेक करने लगी
मुझे पता था वो सबूत ढूंढ रही थी, मैं अंदर ही अंदर खुश हो रहा था पर यह क्या वो झुक क्यो रही, सोफे के नीचे क्या देख रही है
"ओह्ह शिट!!! " मेरे कुछ सबूत उसके हाथ लग गए
पानी का ग्लास और कुछ छलके पानी सोफे ने निचे गिरे थे
मैं सोच ही रहा था कि अचानक मेरी बीवी ने ग्लास फेक के मारा, मैं झुक गया और उसका निशाना चूक गया पर वो बिना मारे रहेगी नही।
दरवाजे की राह में वो खुद खड़ी थी सो मैं अंदर कमरे में घुश गया और कमरे को अंदर से लॉक कर दिया
पर कब तक , अंदर से आवाज़ आयी
"जब तक वो थक न जाये"
उसे मेरी जरूरत है, मुझे उसकी नही
मैं झुकेगा नही साला !!!