Prem Ratan Dhan Payo - 42 Anjali Jha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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Prem Ratan Dhan Payo - 42








कमिश्नर की बाते सुनकर अमित बोला " आप लोगों का ये फ़ैसला राघव को बिल्कुल पसंद नहीं आएगा । वो पहले ही कह चुका हैं आप लोगों से , की आप सब इस मामले से दूर रहेंगे । "

" ऊपर से आडर्स आए हैं ऐसे में फ़ॉलो तो करना ही पडेगा । हम पर्सनली जांच कर रहे हैं इनके पीछे किसका हाथ हैं । मैं तो यही कहुगा अगर वो अपराधी आपके हाथ लगे ,तो उसे कानून के हवाले कर दीजिएगा । मैं विश्वास दिलाता हु उसे कडी से कडी सजा दिलवाऊगा । " कमिश्नर साहब कह ही रहे थे की तभी पीछे से एक आवाज आई ।

" आपके कानून को इतनी जहमत उठाने की जरूरत नही हैं कमिश्नर साहब । मैं यकीन दिलाता हु उस खूनी को मौत से बद्तर सजा दूगा । " सबने आवाज की ओर गर्दन घुमाई , तो देखा पीछे राघव खडा था । राघव आगे आया और कमिश्नर साहब के सामने खडे होकर बोला " मैं अभी भी कह रहा हु कमिश्नर साहब दूर रहिए इस मामले से , क्योंकी इस बार मैं कानून की भी नंही सुनूगा । " राघव की आंखें गुस्से से आग अगल रही थी । उसकी बातें एक चेतावनी की भांति से जिसे कमिश्नर भली-भांति समझ रहे थे । इतना कहकर राघव अंदर चला गया । पुलिस यहां राघव को समझाने आई थी , लेकिन राघव ने उन्हें ही समझा बुझाकर जाने के लिए कह दिया । कमिश्नर साहब इंस्पेक्टर के साथ वहां से चले गए ।

आज का दिन यू ही बीत गया । राघव हाथ पर हाथ धरकर बैठा नही रहा । उसके आदमी उसके पिता और भाई के कातिलों की तलाश में जुटे थे । राघव का शक वीरेंद्र पर सबसे पहले गया । उसने वीरेंद्र पर नज़र रखने के लिए अपने आदमियों से कहा । ठीक उसी शाम राघव अपने फार्म हाउस पर था । दीपक भी उसके साथ इस वक्त स्टडी रूम में बैठा था । कैलाश जी एक आदमी को लेकर अपने साथ अंदर दाखिल हुए । " छोटे मालिक असलम एक जरूरी खबर लेकर आया है । "

राघव ने उनके साथ खडे आदमी को एक नज़र देखा और बोला " कहो क्या खबर है ? "

असलम आगे आया और अपनी बात बताते हुए बोला " सर आपका शक बिल्कुल सही था । वीरेंद्र अपनी हवेली से उसी दिन से गायब है जिस दिन आपके पिता और भाई की मौत हुई थी । हम लोगों ने उसकी तलाश जारी रखी है । फिलहाल तो उस तक नही पहुंच पाए , लेकिन उस तक पहुंचने का जरिया हमने ढूंढ निकाला । वीरेंद्र का खास आदमी कमलेश हमारे कब्जे में हैं । "

राघव उठते हुए बोला " उसे तहखाने में लेकर आओ । " राघव ये बोल रूम से बाहर चला गया । कैलाश जी और अमित भी उसके पीछे पीछे निकल गये ।

असलम आगे था और उसके ठीक पीछे चार से पांच गार्डस कमलेश को खींचते हुए अंधेरे कमरे के अंदर ला रहे थे । अधेरे को पार कर जब उन लोगों ने कमरे में प्रवेश किया , तो वहां लाल रंग की धीमी और मध्यम रोशनी थी । राघव सामने वाले सोफे पर बैठा था । सिर पीछे की सीट से टिका रखा था और हाथ सोफे के पिछले हत्थे पर फैलाकर रखें हुए थे । कोई आवाज नहीं थी उस कमरें में सिवाय कदमों के आहट के ‌‌। गार्डस ने कमलेश को राघव के कदमों में फेंक दिया । राघव ने आंखें खोली और गर्दन सीधी कर ली । कमलेश की शक्ल सूरत देखकर साफ़ पता चल रहा था की उसे मारा पीटा गया था । राघव ने उसके बालों को मुट्ठीयो में भरा और उसका चेहरा ऊपर कर बोला " कहां हैं तेरा बुजदिल मालिक ? कौन से बिल में जाकर छिपा हैं ‌‌? "

" आहहहह ..… हमको नही मालूम .... हमे छोड दो हम कुछ नहीं जानते ‌‌। " कमलेश ने दर्द से छटपटाते हुए कहा । राघव ने उसका सिर पास रखे टेबल पर दे मारा । वो यही नही रूका । उसने उसे पीटना चालू रखा । राघव का गुस्सा अब उसपर बरसने लगा था । कमलेश से जब मार बर्दाश्त नहीं हुई , तो उसने अपने हाथ जोड लिए । " हम बताते हैं । हमे छोड दीजिए हम सब सच बताते हैं । भैयाजी इस वक्त शहर से बाहर मां काली के मंदिर में डेरा डालकर बैठे हैं । पूरा खंडहर उनके कब्जे में हैं । पक्षी भी वहां पर नही मार सकते । आप लोग गये तो जिंदा नही ...... कमलेश अपनी बात पूरी भी नही कर पाया था , की तभी वहां गोली की आवाज गूजी । राघव के हाथ में गन थी जिसे वो कमलेश के सामने पाइंट करके खडा था । राघव के गन से गोली निकल चुकी थी और वो कमलेश के माथे को भेदती हुई बाहर निकली । कमलेश सीधा उसके कदमों मे जा गिरा । राघव उसे देखते ही बोला " कोई गलत बाते करे ये राघव को पसंद नहीं । कल खून की होली जरूर खेली जाएगी लेकिन जिंदा बचकर कौन लौटेगा इसका फैसला राघव करेगा ‌‌। ....... असलम अपने आदमियों को तैयार करो । अगले एक घंटे के अंदर हम काली मां के मंदिर के लिए निकलेंगे । "

" जी सरकार " इतना कहकर असलम वहां से चला गया ।

राघव के कहे अनुसार उनके आदमी वीरेंद्र का पीछा करते हुए निकल पडे । अमित और राघव इस वक्त गाडी में थे । राघव ने कैलाश जी को हवेली भेज दिया था । करूणा को इस वक्त अकेला छोडना भी उचित नहीं था ।

शहर से दूर काली मां का पुराना मंदिर जो की अब खंडहर में तब्दील हो चुका था । इस वक्त उस आस पास का एरिया को पूरी तरह से वीरेंद्र के आदमियों ने अपने कब्जे में ले रखा था ।

अंदर वीरेंद्र इस वक्त अपने कमरे में सोफे पर बैठा आराम फरमा रहा था । उसके चेहरे पर डर का कोई भाव नही था ।

बाहर राघव के आदमियों ने फायरिंग शुरू कर दी थी । राघव ने किसी को भी बख्शने के लिए नही कहा था । अंदर तक ये गोलियां का शोर पहुंच रहा था । वीरेंद्र आंखें बंद किए इन शोर को सुन रहा था । उसके चेहरे पर बस मुस्कुराहट थी । उसका एक आदमी कमरे के अंदर भागता हुआ आया । " भैयाजी राघव सिंह रघुवंशी ने हमला कर दिया हैं । उनके आदमी यहां तक पहुंच चुके हैं । " इतना सुन वीरेंद्र ने अपनी आंखें खोल ली । वो एक शैतानी हंसी हंसते हुए बोला " कमाल हैं मिस्टर रघुवंशी बडी जल्दी पहुंच गये आप । आइए हम भी बडी बेसब्री से आपका इंतजार कर रहे थे । "

राघव के आदमियों ने खंडहर के अंदर जाने के लिए रास्ता बना दिया था । अमित और राघव दोनों अंदर घुस चुके थे । उनके सामने जो आता वो गोलिया का शिकार बन जाता । राघव ने सामने से आ रहे आदमी को जोरदार लात मारी और उसका कॉलर पकड दीवार से लगाते हुए बोला " कहां हैं वीरेंद्र ? " उस आदमी ने डरते हुए सामने की ओर इशारा कर दिया । राघव ने उसे छोडा और सामने बंद दरवाजे की ओर बढ गया । उसने एक जोरदार किक दरवाजे पर मारी और गन के साथ अंदर दाखिल हुआ । वीरेंद्र होंठों पर बडी सी मुस्कुराहट लिए एक हाथ में शराब से भरी गिलास पकडे राघव को ही देख रहा था । " आओ मिस्टर रघुवंशी तुम्हारा ही इंतज़ार था । वो क्या है न अकेले जाम पीने में वो मजा नही ‌‌‌‌। किसी का साथ मिल जाए तो मजा दुगना हो जाता हैं , फिर चाहे दोस्त हो या दुश्मन क्या फर्क पडता हैं ? "

राघव तेज कदमों के साथ उसके करीब पहुंचा । आनन फानन में उसने टेबल पर पडी शराब की बोतल उठाई और वीरेंद्र के सर पर दे मारी । वीरेंद्र को इसकी उम्मीद नही थी । वो अपना सिर पकड दर्द से कराहने लगा । राघव ने उसक कालर पकड सोफे से उठाया और गुस्से से बोला " मेरी जिंदगी तबाह कर तू यहां मे मजे से शराब पी रहा हैं । भला तू क्या जाने मां बाप का प्यार क्या होता हैं , खुद तो नाजायज ठहरा ‌‌भला रिश्तों की कद्र कहा से समझेगा । आज तू मेरे हाथों मारा जाएगा । " ये बोल राघव ने उसे मारने के लिए हाथ उठाया , तो वीरेंद्र ने उसके मुक्के को अपने पंजों से रोक लिया । उसने दूसरे हाथ से राघव के पेट पर वार किया । दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो चुकी थी । कभी राघव भारी पडता तो कभी वीरेंद्र । वीरेंद्र ने राघव का सिर कांच के सीशे पर दे मारा । राघव के सिर से खून आने लगा था । वीरेंद्र हांफते हुए बोला " सबसे पहले तुझे मारना चाहता था , लेकिन तेरे बाप और भाई पहले हाथ लग गये । कोई बात नही पूरे परिवार की बली मेरे हाथों ही चढनी हैं । अब तू भी कुत्ते की मौत मरेगा । " ये बोल वीरेंद्र ने दीवार पर लगी तलवार निकाल ली । उसने जैसे ही तलवार उठाई , राघव ने पलटकर उसके सीने में चार से पांच गोलिया दाग दी । वीरेंद्र के हाथ से तलवार पीछे की ओर छूट कर गिर पडी । राघव उठते हुए बोला " मौत मेरे नही तेरे सर पर नाच रही थी । राघव ये बोलकर जैसे ही पलटा उसके कमर पर गोली आकर लगी । उसने कमर के हिस्से पर देखा तो खून रिस रहा था । वो पलटा तो देखा वीरेंद्र के हाथों में गन थी लेकिन उसने दोबारा गोली चलानी चाही तो नाकामयाब रहा क्योंकि गन खाली हो चुकी थी ।

" राघव...... " अमित चीखते हुए उसके पास पहुंचा । उसने गिरते ही राघव को संभाला । वहां पुलिस भी पहुंच गयी थी । राघव के आदमी उसे हास्पिटल ले गये । सांसें वीरेंद्र की भी चल रही थी , इसलिए उसे भी अस्पताल में भर्ती कराया गया ।

वही दूसरी तरफ हवेली में करूणा को लेवर पेन शुरू हो चुका था ‌‌। हालत इतनी गंभीर हो गयी थी की उसे हॉस्पिटल ले जाना नामुमकिन था । डाक्टर्स की टीम वहां उसकी देखभाल के लिए मौजूद थी । घर की जितनी भी नौकरानियां थी सब उनकी मदद में जुटे थे । कैलाश जी नीचे हॉल में परेशान होकर इधर से उधर टहल रहे थे ।

उधर दूसरी तरफ हॉस्पिटल में राघव का इलाज चल रहा था । वक्त रहते गोली निकाल दी गयी जिससे राघव को बचा लिया गया । इधर घर में करूणा ने एक छोटी सी बच्ची को जन्म दिया । नर्स ने बाहर आकर ये खबर दी तो सब बहुत खुश हुए । कैलाश जी ने अमित को फोन कर ये खबर दे दी । उसने भी बताया की राघव खतरे से बाहर हैं ।

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अगला दिन , सुबह का वक्त




राघव को होश आ चुका था । उसे जैसे ही अमित ने ये बताया उसकी भतीजी ने जन्म लिया हैं , तभी से राघव उससे मिलने के लिए बैचेन हो उठा था । राघव अमित को देखते हुए बोला " मुझे अभी घर जाना हैं अमित । "

" कैसी बाते कर रहा हैं तू इस हालत में घर जाएगा । डाक्टर परमिशन नही देंगे । मुझे किसी के परमिशन की जरूरत नही हैं । मुझे घर जाना है अभी और इसी वक्त । " अमित के समझाने का कोई असर नही हुआ ‌‌। राघव अपनी जिद पर अडा रहा । फाइनली अमित ने डाक्टर से बात की और राघव को लेकर हवेली के लिए निकल पडा । राघव की खुशी का ठिकाना नही था । वो भागता हुआ करूणा के कमरे में पहुंचा । दर्द का उसे कोई एहसास नही था । इस वक्त करूणा के पास एक नन्ही सी जान लेटी हुई थी । आस पास घर में काम करने वाली औरते मौजूद थी । कोई परी के साथ खेल रहा था तो कोई करूणा की मदद के लिए उसके पास बैठा था । नन्ही राजकुमारी को देखने के लिए ही सब वहां मौजूद थे । राघव ने आहिस्ता आहिस्ता अपने कदम बच्ची की ओर बढा दिया । उसने जब उसे गोद में उठाया , तो उसकी आंखों से आसू छलककर परी के गालो पर गिर पडे । राघव के हाथ कांप रहे थे । उसने उस नन्ही सी जान को अपने सीने से लगा लिया । अमित मुस्कुराता हुआ बोला " तो क्या नाम सोचा हैं भाभी मां आपने इस राजकुमारी का ? "

करूणा चुप रही राघव बच्ची को देखते हुए बोला " वही जो भैया ने सोचा था ' परी ' .......

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आज तो मैं भी राघव की खुशी में आसूं बहा बैठी । जल्द मुलाकात होगी दोस्तों अगले भाग में

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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