रचना : - माँरचनाकार : - श्रीमती स्नेहल राजन जानी"माँ" ही कितना अजीब शब्द है न? यह शब्द बोलते ही मनको अजीबसी शांति मिलती है। कभी दर्द में तो कभी खुशियों में, कभी अकेलेपन में तो कभी यूंही, माँ याद आ ही जाती है। छोटे बड़े सबके लिए उसकी माँ के इर्दगिर्द ही उसकी दुनिया घूमती रहती है।
माँ जिंदा हो तो तो कभी भी उसे याद करने पर सीधा फोन करके बात कर सकते हैं। पर जब माँ यह दुनिया छोड़कर हमेशा के लिए चली जाती है तो याद आते ही आंखे भर आती है। फिर उसे कितना भी बुलाओ वह आनेवाली नहीं है।
बीमार बच्चा होता है और नींद माँ की उड़ जाती है। खेलने बच्चा जाता है, खुश माँ होती है। नोकरी में बेटे की तरक्की देख माँ आसमान छूती महसूस करती है। माँ की दुआ को तो खुद ईश्वर ने भी चमत्कार माना है। माँ की ममता तो ईश्वर को भी धरती पर ले आती है। माँ का प्यार पाने के लिए तो खुद भगवान भी अवतार लेते रहते हैं। जब बच्चा कुछ नहीं बोलता, बोलना भी नहीं सीखा होता तब से उसकी माँं उसे समझती है। बच्चे के एक एक इशारे का मतलब उसे पता होता है। बच्चा कितना भी रो रहा होगा, जैसे ही अपनी माँ को देख लेगा अपने आप ही चूप हो जाएगा।
जब पूरा संसार हमें त्याग दे तब भी हमें अपने साथ रखती है हमारी माँ। कितनी भी कमज़ोर हो, लेकिन जब बच्चे पर मुसीबत आती है तो मां अपने आप ताकतवर बन जाती है। ऐसा सिर्फ मनुष्योमे ही नहीं, पशु पक्षी में भी होता है। जहां इस दुनियामे लोग एकदूसरे से बात भी करते हैं तो पहले वह कैसे दिखते है उसपे ध्यान देते है। जब की एक माँ के लिए उसका बच्चा दुनियाका सबसे खूबसूरत बच्चा होता है। माँ के लिए कुछ भी करनेकी जरूरत नहीं, बस उसके आसपास रहो, वह खुश हो जाएगी।
"मेरी बेटी मेरा अभिमान।", "मेरा बेटा मेरा गुरुर।", "माय वाइफ इज़ माय लाइफ" ऐसा कुछ भी माँ के लिए नही बोल सकते, क्यूं की वह है तो आज हम है।
अब ऐसे में सोचो कि हम सिर्फ एक ही दिन मदर्स डे कैसे मना सकते हैं? माँ का दिन कैसे हो सकता है? माँ से तो पूरी ज़िंदगी है। इंसान की इस धरती पर मौजूदगी उसकी माँ का ही एहसान है। माँ अगर डांटती है तो बच्चे को सुधारने के लिए। माँ अगर हाथ उठाती है तो बच्चे को सबक सिखाने के लिए, ताकि उसका बच्चा गलती से भी गलत रास्ते पर न चला जाए।
अंतमे मैं इतना ही कहूंगी कि माँ का दिन भले ही साल में एक ही बार मनाओ पर उसका आदर हररोज करो। उसके जितना त्याग किसी और के बस की बात नही है। वह सिर्फ अपने पति, बच्चे और परिवार के लिए ही जीती है। उसे पता होता है कि बच्चे को जन्म देना मतलब मौत को एकदम करीब से देखना। फिर भी वह अपने बच्चेका मूंह देखनेकी खुशी के सामने अपना दर्द भूल जाती है और अपनी जिंदगी दांव पर लगा देती है।
धन्यवाद।
स्नेहल जानी।