टमाटर Navneet Marvaniya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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टमाटर

कोई एक गॉव की सड़क पर मोहनलाल और उसका बेटा सुरेश स्कूटर पर जा रहे है, सुरेश स्कूटर चला रहा है और मोहनलाल पीछे बैठे है | वो सड़क का रास्ता सिंगल पट्टी जैसा है और आगे जाकर मुख्य शहर को मिलता है | रास्ते पर यातायात कुछ खास नहीं है |

मोहनलाल मन ही मन मुस्कुराते हुए अपने बेटे से कहेते है, कितने अच्छे से शगुन कि विधि निपट गई | हमें जैसे चाहिए थे वैसे ही समधी मिल गए | सुरेश सिर्फ़ “हं...” ही जवाब देता है | उसे पिता जी कि यह बात अच्छी नहीं लगी | मोहनलाल फिर से बात को आगे बढ़ाते हुए कहेते है, अब नरेश का ब्याह शांति से निपट जाए | फिर कोई चिंता नहीं मुझे | आप दोनों भाई कि शादी कि हमारी जिम्मेदारी अब समाप्त होगी और उसके बाद में और तुम्हारी माँ चार धाम कि यात्रा के लिए निकल पड़ेंगे |

सुरेश प्रत्युत्तर में सिर्फ “हं...” ही बोलता है | इससे मोहनलाल थोडा बोखला उठते है, कब से क्या हं... हं... कर रहा है ? मुँह में मुंग भरे है क्या ? क्या चल रहा है तेरे दिमाग में ? बता मुझे ! सुरेश गंभीर चहेरे के साथ प्रत्युत्तर देता है, “कुछ नहीं”

डफोड़, तारो बाप छू, तेरा मुँह देख के पहेचान लेता हूँ, बता क्या बात है ? मोहनलाल थोडा गर्म हो गए |

सुरेशने स्कूटर  टी स्टोल पर रोका और चायवाले को 2 चाय का ऑर्डर देते हुए कहा... पापा, जब हम लड़कीवालो के घर गए थे लड़की देखने, तब समधी जी ने सब के साथ हाथ मिलाया | में थोडा सा ही जूते निकालने के चक्कर में लेट हुआ तो मेरे सामने तो देखा ही नहीं ! एसा थोड़ी न होता है ? एक बात आपने नोटिस की पापा ? सब को कोल्ड्रिंक्स दिया था ! मुझे सबसे लास्ट में दिया | इतना ही नहीं, जाते समय समधी जी ने आप से हाथ मिलाया, फूफा जी से हाथ मिलाया | गोविन्द चाचा से भी हाथ मिलाया !! और मेरे साथ ? मेरे सामने तो देखा तक नहीं ?! क्यूँ ? में नरेश का बड़ा भाई नहीं हूँ ? मेरा भी हक्क बनता है !! और तो और मेरी इतनी बेइज्जती कि उन लोगो ने फिर भी आपने वही पे नरेश का ब्याह तय कर दिया ! मुझे किसीने पूछा तक नहीं !! क्यूँ ? मेरी राय कि कुछ कद्र ही नहीं है मेरे ही घर में !

मोहनलाल चाय कि एक चुस्की लेते हुए... ओह.. ! अच्छा ! तो यह बात है ..? चल अभी निकलते है, मैं तुजे बाद में समजाता हूँ | चाय ख़त्म करके दोनों निकल पड़ते है |बाजार से होते हुए दोनों स्कूटर से एक कपड़े कि दुकान पर आ पहुँचते है | दुकान का मालिक जमनादास दोनों बाप - बेटे को देखके मुस्कुरा उठता है, आइए.. आइए शेठ जी और छोटे नवाब आप भी पधारीए | बहुत दिनों के बाद आप दोनों बाप - बेटे के साथ में दर्शन हुए |

सुरेश अपने पापा कि और देख के थोड़ा टाईट होता है | जैसे बता रहा हो कि “मेरी वेल्यु सब को है, सिर्फ घर में ही कोई पूछता नहीं है |” मोहनलाल सुरेश का यह रुप नज़र अंदाज करके दुकानदार से बाते करने लगते है | देखो जमनादास, आपको तो पता ही है, हमारे छोटे बेटे नरेश कि शादी तय हुई है | तो समधी जी के परिवार को देने के लिए हमें अच्छी सी शोल दिखाईए. जमनादास उसके नोकर के साथ कस्टमर के लिए कोल्ड्रिंक्स मंगवाते है और बड़े प्यार से कहेते है, हां, हां... क्यू नहीं ! आइए आइए शेठ जी, इस तरफ आ जाइए.

दोनों बाप-बेटे अलग अलग डिजाइन कि शोल देख रहे है | उसी वक्त मोहनलाल के समधी जी अम्रतलाल भी वही दुकान पे आ पहुँचते है | साथ में लड़की के मामाजी और छोटा बेटा कल्पेश भी है | अपने समधीजी को देख के मोहनलाल खुश हो जाते है, “अरे ! समधी जी, क्या बात है ! आप यहाँ ?” “हाँ... हाँ.. क्यों नहीं !! हम लड़कीवाले खरीददारी नहीं कर सकते क्या ?”

दोनो समधी जी हाथ मिलाते है, मामाजी भी हाथ मिलाते है, सुरेश के सामने हाथ बढ़ाते है, तो वह प्रणाम करता है, उन्हें अच्छा नहीं लगता है |

मोहनलाल मुस्कुराते हुए... “अरे, एसा नहीं है समधीजी... मगर आप तो लड़की वाले हो, आपको तो शादी का जोड़ा खरीदना होता है न ! तो फिर आप यहाँ कैसे ?”

क्यूँ भाई, आप ही हमें भेट - सोगाद देंगे ? हम कुछ नहीं दे सकते क्या ? हम भी आपके लिए और सुरेश जी के लिए सफ़ारी का कपड़ा खरीदने आए है | अच्छा हुआ आप यहाँ पर ही मिल गए | आपकी पसंद का ले सकेंगे |

सुरेश थोड़ी नाराजगी के साथ कहेता है, “नहीं, नहीं, मुझे नहीं चाहिए कुछ |”

समधी जी बड़े प्यार से कहेते है, एसा थोड़ी न चलेगा ? आप बड़े भैया हो हमारे दामाद के.. आप को तो लेना ही पड़ेगा | अरे ! जमनादास ये हमारे जमाईराज के बड़े भैया है | उनके लिए एक सफ़ारी का अच्छा वाला कपडा दिखाईए |

दुकानदार एक से एक अच्छे कपडे दिखाते रहेते है, खरीददारी होती है | कोल्ड्रिंक्स पीते है | बिल पे होता है... और दोनों समधी जी बाय करके निकलते है | सुरेश समधी जी को बाय कहते वक्त प्रसन्न चहेरे के साथ सामने से हाथ मिलाता है |

मोहनलाल और सुरेश स्कूटर पे खरीददारी कर से वापस आ रहे होते है | सुरेश खुशी खुशी मोहनलाल को कुछ बता रहा है और मोहनलाल के चहेरे पर हलकी सी मुस्कान है, वह कुछ बोल नहीं रहे है, सिर्फ़ सुरेश का बदला हुआ रुप देख रहे है |

सुरेश बात को आगे बढ़ाता है... “और तो और उनका छोटा बेटा है न कल्पेश, उसने तो मेरे पैर भी छुए | कितने अच्छे लोग है.. है न पापा ?” मोहनलाल कुछ जवाब नहीं दे रहे है |  सुरेश अपने स्कूटर के आईने में देखते हुए... “पापा, आप मेरी बात सुन भी रहे हो या नहीं ?”

सुन भी रहा हूँ और समज भी रहा हूँ, तु गाड़ी रोक यहाँ |

पर क्यूँ ? क्या हुआ ? सुरेश थोड़ा गभरा जाता है |

मैंने कहा ना गाड़ी रोक. बाप छू तारो...

सुरेश स्कूटर को एक टमाटर कि लारी के पास रोक देता है.

मोहनलाल स्कूटर से नीचे उतर के टमाटरवाले से पूछते है, भाईसाब, यह टमाटर का क्या दाम है ?

सब्जीवाला : अस्सी रूपये किलो दाम बताता है | उसी वक्त एक बाइकवाला सब्जीवाले के थेले के बगल में से अपनी बाइक निकालता है | जगह कम है तो सुरेश को बाइक थोड़ी छू जाती है | सुरेश थोड़ा गर्म हो जाता है : “अबे ओये... दिखता नहीं है क्या ?” बाइकवाला भी बोखला उठता है, “तू अँधा है ? रास्ते में खुद खड़ा है और मुझे कह रहा है !” इतना कह कर बाइकवाला चला जाता है | सुरेश मुँह बिगाड़ के बड़बडा़ता है, “जाने कहाँ कहाँ से आ जाते है एसे लोग...”

मोहनलाल सुरेश को कहते है, बेटा, यह टमाटर देख रहे हो ?

“अरे पापा ! हमें टमाटर का क्या करना है ?” सुरेश थोडा़ इरिटेट होता है |

मोहनलाल एक टमाटर को हाथ में लेकर कहेते है... बेटा ! ये सभी टमाटर एक जैसे ही लगते है तुम्हें ?

हा पापा  !  सभी एक जैसे ही है, इसमें क्या ?

मोहनलाल एक टमाटर को रुमाल से साफ़ करके रखता है और पूछता है, अब बताओ ! ?

क्या पापा आप भी ! सभी टमाटर ही है...| एक जैसे ही है !

मोहनलाल वो ही एक टमाटर के ऊपर पानी छिड़कता है और पूछता है, अब बताओ !?

सुरेश को कुछ समज में नहीं आता, “पापा आपको हो क्या गया है ? सभी एक जैसे ही टमाटर है | चलिए ना हमें लेट हो रहा है !”

मोहनलाल अपने बटवे में से मखमल जैसा एक कपडा निकालते है और उसके ऊपर टमाटर को रख के पूछते है, अब बताओ ! ?

अरे पापा  ! टमाटर को मखमल के ऊपर रखने से टमाटर थोड़ी न आलू बन जाता है ?

मोहनलाल मुस्कुराते हुए कहेते है, बहुत अच्छा बेटा ! एक काम कर ये वाला टमाटर मुझे दे दे और चल हमें मंदिर जाना है | सुरेश सब्जीवाले को 10 रूपए देता है और दोनों बाप - बेटे फिर से स्कूटर पे निकल पड़ते है | सुरेश स्कूटर चलाते चलते आश्चर्य से पूछता है | पापा हम मंदिर क्यूँ जा रहे है ? मोहनलाल मन ही मन मुस्कुराते हुए कहेते है, वो सब मैं तुझे बाद में बताऊँगा |

दोनों एक मंदिर में पहुँचते है | वहा भगवान श्री कृष्ण कि प्रतिमा के सामने दोनों बाप-बेटे खड़े रहेते है | मोहनलाल वह टमाटर प्रसाद के तौर पर भगवान के चरणों में रख के भगवान को वंदन करते है और सुरेश को कहेते है ; अब बता, अब यह टमाटर कैसा लगता है तुझे ?

सुरेश थोड़ा भाव विभोर हो के बताता है... पापा, अब तो यह भगवान के चरणों में है | अब तो यह प्रसाद बन गया |

मैं भी यही समजाना चाहता हूँ तुम्हें ... सभी इन्सान एक ही समान है | अगर तुम्हें कोई मान देता है तो तुम्हारी नज़र में उसकी वेल्यु बढ़ जाती है और अगर कोई तुम्हें अच्छे से न बुलाए तो उसकी वेल्यु तुम्हारी नज़र में कम हो जाती है | एसा ही होता है न ? सभी समान टमाटर में से दूसरे को नीचा मानकर खुद को ही सबसे ऊँचा टमाटर मानना उसको ही “मान” कहा जाता है | हमारी नज़र में तो सभी इन्सान एक समान ही होने चाहिए |

सुरेश को कुछ समज में नहीं आता | पापा तो क्या मैं और वो सब्जीवाला दोनो एक समान है ?

हाँ बेटे, दोनो एक समान ही हो, एक मोल का टमाटर हैं, दूसरा सब्जीमंडी का टमाटर है, तुम सुरेश टमाटर हो, मैं मोहनलाल टमाटर... सब अपने अपने कर्म भुगत रहे है, उसमे मैं विशेष हूँ यह मानने कि जरुरत ही क्या है ?

तो पापा, फेक्टरी के मालिक और काम करने वाला मजदूर दोनों समान हैं ?

ऑफ़ कोर्स, कारीगर है तो मालिक है | अगर कारीगर नहीं रहे तो मालिक किसका ? मोहनलाल भगवान के चरणों में रखा हुआ टमाटर हाथ में लेकर सुरेश को दिखाते हुए कहते है – “ किम्मत तो तब बनती है जब मानव सिर्फ़ मानव न रहकर भगवान का प्रसाद बन जाए |”

खुद दूसरो के विनय में रहे, खुद को दूसरो से छोटा माने, विनम्र रहे तब जा के उसकी किम्मत बनती है |

सुरेश को थोडा़ समज में तो आया पर पूरी तरह से पिताजी से सहमत नहीं था | सुरेश थोड़ी दलिलबाजी करता है | पापा, अगर हम खुद को दूसरो से छोटा मानेंगे तो लोग हमारा अपमान नहीं करेंगे ?

मोहनलाल मुस्कुराते हुए कहेते है, - “ भगवान के टमाटर को अपमान का क्या डर ? उन्हें तो मान और अपमान दोनों ही एक समान लगना चाहिए|”

हं... बात तो आपकी सही है . पर पापा.. बिना मान खाए तो आदमी जिएगा कैसे ?

नहीं नहीं, ऐसा नही है - “ मान तो खाना है, मगर हमारे मान कि वज़ह से दूसरो को दुःख नहीं होना चाहिए | मान फ़ूड कि तरह है और अपमान विटामिन कि तरह है |”

यह बात सुरेश को समज में नहीं आइ, पापा यह फ़ूड और विटामिन !! कुछ मेरी समज में आए ऐसे समजाइए न |

देख बेटा, तूने कोई अच्छा काम किया तो लोग तेरी वाह ! वाह ! तो करेंगे ही | मगर उस वक्त तुम्हें ख्याल रखना है कि मेरे अकेले से यह काम नहीं हुआ है बहुत सारे लोगो के सपोर्ट से हुआ है | मान का लड्डू आने पर तू सभी में बाँट देना और कभी कबार अपमान आ गया.... तो उसे विटामिन समजकर स्वीकार कर लेना पर सामनेवाले को दुःख मत देना |

सुरेश को वो स्कूटरवाला याद आ गया.. जिसको सुरेश ने कुछ अनाब - शनाब बक दिया था |  थेक्स पापा.. आपने मेरी आँखे खोल दी |

तो यह ले टमाटर और बनजा आज से ही भगवान का प्रसाद |

सुरेश नत मस्तक हो के टमाटर को ले के पापा को प्रणाम करता है और भगवान को भी |