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मनोदशा एक अवदशा

रिद्धिमा अब धीरे-धीरे अंदर से ही टूट रही थी वह बिखर तो चुकी थी पर उसे समेटने वाला जैसे कोई नहीं था वह अपने दिल के राज किसी को बता भी नहीं पाती थी कि वह किस मनोदशा से गुजर रही है और इस मनोदशा कि उस पर कैसी अवदशा हो गई है
बाहर से एकदम साधारण से दिखने वाली रिद्धिमा अंदर से बहुत ही गहरी चोट खाए हुई थी उसने इसके लिए अपना सारा जीवन व्यतीत किया उसका हमसफर रितेश जिसके लिए उसने अपने रिश्ते नाते अपना जीवन सभी न्योछावर किया अब वही रितेश उसे अपने जीवन में कोई मूल्य नहीं दे रहा था कई बार उसे अपमानित करता था तो कई बार उसे प्रताड़ित करता था मानसिक तौर से और रिद्धिमा इस छोटी-छोटी बातों को लेकर गंभीर रूप से मानसिक तौर से असहाय हो चुकी थी यह मनोदशा केवल उसका अंतर्मन ही जानता था वह जानती थी कि उसे दर्द देने वाला वही इंसान है जो उसके जीवन में कितना महत्व रखता है पर दुनिया वालों के लिए तो रिद्धिमा जैसी कोई भाग्यशाली महिला नहीं थी क्योंकि उनके रिश्तेदारों ने रिद्धिमा और रितेश को गरीबी से अमीरों की ऊंचाइयों तक खूब नजदीक से देखा था और सभी यही मानते थे कि रिद्धिमा बहुत ही भाग्यवान है कि उसे रितेश जैसा होनहार पति मिला जो अब इस वक्त बहुत ही कामयाबी के कदम चूम रहा था लेकिन कोई नहीं जानता था कि इस कामयाबी के पीछे रिद्धिमा ने कई रातें जागकर बीते है और रितेश के हर एक कदम पर उसका साथ दिया है यहां तक की उसने अपनी गवर्नमेंट जॉब भी छोड़ दी और रितेश को आगे लाने के लिए उसके हर एक फैसले पर हामी भरी और अब वही रितेश कामयाबी मिलने पर रिद्धिमा को मानसिक तौर से प्रताड़ित कर रहा था रिद्धिमा उसे कभी कहीं नहीं पाई की वह अब पूर्ण रूप से टूट चुकी है उसे बस रितेश का केवल सहारा चाहिए वह भी मानसिक रूप से यह धन दौलत यह शोहरत उसके लिए कोई मायने नहीं रखती की जिसके लिए उसने अपना सारा जीवन और अपनी आइडेंटिटी को भी पीछे छोड़ दिया अब वह अपने आप को कई बार दोषी ठहरती थी कि बड़ी आई थी अपने पति की प्रगति के लिए सब कुछ न्योछावर करने अब लें भुगत लेकिन उसके स्वास्थ्य से भी बात करके उसे कहां खुशी मिल पाती थी क्योंकि वह पूरी तरह से टूट चुकी थी उसे लगता था कि जैसे वह पहले जैसे रिद्धिमा है ही नहीं उसको लगता था कि जैसे सब कुछ उसे दूर हो रहा है जैसे उसकी आइडेंटी उसका रितेश के प्रति प्यार और रितेश का उसके प्रति आदर अब धीरे-धीरे सब कुछ दूर हो रहा है और जैसे दूर क्षितिज की तरह उसे कुछ धुंधला सा दिखाई देता था जो शायद उसका भूतकाल ही था कि जहां वह और रितेश अपनी छोटी सी दुनिया में कुछ चंद सामान के बीच भी कितने खुश थे और अब जब उसके पास दुनिया की सारी भौतिक सुविधाएं हैं फिर भी जैसे वह निर्धन है क्योंकि उसका रितेश थी अब दुनियादारी के बीच में जैसे रिद्धिमा को भूल चुका है अब रिद्धिमा हंसना बोलना जैसे भुल चुकी थी वह एक पुतले की तरह अपना जीवन बिता रही थी और इसके कारण उसकी मनोदशा की ऐसी अवदशा हुई की रितेश को रिद्धिमा को पागलों की अस्पताल में भरती करना पड़ा वह रिद्धिमा की जो रितेश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर चुकी थी आज वही रितेश रिद्धिमा के मानसिक स्वास्थ्य के लिए कुछ न कर पाया और उसी की बदौलत आज उसे पागलों की अस्पताल में जाना पड़ा....

कई बार हम देखते हैं कि हमारा ज्यादातर का समर्पण हमें ही डूबो देता है इसीलिए अपने अस्तित्व को कभी नहीं मिटाना चाहिए अपनी आइडेंटिटी बनाने के लिए हर हमें किसी भी परिस्थिति में चाहे वह महिला हो या पुरुष उन्हें अपने दम पर ही अपनी आइडेंटी बनानी चाहिए और अपने दम पर ही रहना चाहिए किसी पर भी निर्भर रहना नहीं चाहिए क्योंकि यह दुनिया का दस्तूर है कि कोई किसी का नहीं सब पैसे के ही हकदार है यह सभी के लिए नहीं है कुछ चुनिंदा लोग है जो आपका उपकार का बदला अपकार से देते हैं इसीलिए इसे ज्यादा लोग दिल पर ना लें।जय द्वारिकाधीश 🙏🏻

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