....हर एक व्यक्ति अपनेआप में एकदम से निराला होता है।उसके जैसा कोई नहीं।अपनी एक खास पहचान लिए हम घूमते है।अपनी मनोभावनिक जो भी बनावट है,उसमे सबसे अधिक हिस्सा हमारे आसपास घटित हो रही घटनाओं का होता है।सब अपने ही दुनिया में मगन है।वैसे तो जीवन जीये जा रहे है।
बस फर्क इतना सा है की,किसीने पा लिया है और किसी को पाना है।पा लेने की खुशी से उसे फिर से खो देने का को डर होता है ना शायद यही जीवन का महत्वपूर्ण अंश है।फिर चाहे वो व्यक्ति हो,सुंदर सा रिश्ता हो या फिर मनचाही नौकरी हो या फिर धन ।जब तक हमारे अंदर पाने की चाह तब तक हम इस दुनिया में किसी काम के है।जरा,सोचिए की,आपकी सभी इच्छाएं ही मर गई..?तो आपकी जरूरत ही क्या किसीको?
व्यक्ति के अंदर जबतक मोह,माया ,घृणा ,गुस्सा नफरत प्यार कुंठा अवसाद की सारी भावनाएं है तब तक वह जीवित है।वह पत्थर बन गया तो उसकी जगह भावना नहीं ले पाएंगे।वह हर एक अंग से किसी भी कार्य का नही होगा ।जैसा हम सोच रहे है शायद हम वैसे ही बनते जाते है।
जिसके अंदर मोह माया है ।वही व्यक्ति इस संसाररूपी रथ को चलाता है।
जीवन का सार सिर्फ इतना सा है की,पाने की खुशी और खोने का डर।इससे अलग कुछ है ही नही।
हम अपने जीवन काल में किसी की कितनी मदत कर सकते है,....?अगर इसे एकदम से सरल और आसान भाषा में समझाया जाए तो ,"हम थाली में परोसने वाले खाने को,निवाला बनाकर मुंह में रख सकते है..लेकिन चबाना उसे ही पड़ेगा ।कभी कभी हालत ऐसे ही बन जाते है ,की कुछ उम्मीद और सहयोग की अपेक्षा करना भी दुश्वार होने लगता है।जिंदगी ना जाने कौनसे मोड़ पर आकर रुक जाए कह नही सकते।
सब कुछ सही से चल रहा होता है ,और अचानक सब में बाधाए आने लगती है।जो काम हम बाधाओं से शुरू करते है ,कभी तो यह सिलसिला खतम हो बस इतनी सी ख्वाहिश होती है।
...जीवन घटित हो रहा है।अनेक मायने में।एक ही जगह एक ही समय में उसकी कलगणना अलग अलग है।इंसानों के लिए समय का अलग महत्व है।उसी प्रकार हमारे आस पास जो प्राणी है उनके लिए भी समय है।लेकिन वे इस्तेमाल करते है ,कुदरत की घड़ी।जो उसे चलती है चांद और सूरज की गति।अगर हम भी इस घड़ी से अपना तालमेल बिठा ले तो शायद हमे भी जीवन में अधिक समय की पूर्ति होगी।एवं है खुद कुछ अच्छा महसूस करेंगे।
कुछ एक लोग होते है ,वह धीट स्वभाव के होते है।उनका जो भी काम होगा वह खुद मनवा लेंगे या कर लेंगे.।
काफी हद तक वही लोग जीवन में सफलता हासिल कर लेते है।और जो मन के रिश्तों में खोया रहता है ऐसे व्यक्तियों को हमेशा से ही उपहास का पात्र एवं खुद को मनो भावनीक आधार खोजने के लिए जूझना पड़ा है।
आखिरकार जीवन का सुख सही मायनो में देखा जाए तो ,सिर्फ संतोष ता पूर्ण जीवन का आचरण ही है।अपितु यही परम सत्य है।ऐसा अगर कहा जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं होगी।
इंसान का वजूद सिर्फ कुछ समय के लिए है ।इसका सिर्फ मालिक बदलता है।बाकी सब यही रह जाता है।किसी असमर्थ व्यक्ति का सहारा बन जाना अपने आप में ईश्वर के प्रति अपना भाव आपनी श्रद्धा समर्पित करने जैसा है।