दोहा 🌹🌹🌹
होरी के हुड़दंग में सब यैसे हुरयात
ऊँच नीच छोटे बड़े आपस में मिलजात
एक दूजे को परस्पर जब हम रंग लगात
मूठा देत गुलाल कौ भेदभाव मिट जात
भुला ईर्षा शत्रुता वैमनस्य और बैर
एक रंग रंगजात सब को अपनों को गैर
रंग रंग के रंग जब एक रंग हो जात
तब केशरिया संग हरा रंग बहुत हर्षात
🌹🌹🌹होरी 🌹🌹🌹
विधि ने यैसी खेली होरी।
अंग अंग रंग दई गोरी ।।
विधि ने यैसी खेली होरी
बारन में कारौ रंग डारौ
गालन मल दई रोरी ।।
विधि ने यैसी खेली होरी
अधरन लाल नैन रतनारौ
पोरन रंग निवोरी ।।
विधि ने यैसी खेली होरी
मुख चंदन कंचन रंग काया
दई केशर में बोरी ।।
विधि ने यैसी खेली होरी
अंग अंग रंग दई गोरी
विधि ने यैसी खेली होरी ।।
होली जो सबकी होली है ।
होली तो सबकी होली है ।।
जा दिन की गाली भी हमको
प्रेम पगी बोली है ।।
होली तो सबकी होली है ।
रंग रंग के रंग रंगे पर
सबकी एक टोली है ।।
होली तो सबकी होली है ।
फिकत अबीर गुलाल निरंतर
भरी रहत झोली है ।।
होली तो सबकी होली है ।
दौड़त गिरत नठत रूठत वे
होली हमजोली है ।।
होली तो सबकी होली है।
००
यामनी चंदन की खुशबू से ही महकी है मगर ।
यामनी अब उसकी खुशबू दूर तक ले जायगी ।।
रात पा चंदन की खुशबू फैलती दिगन्त है ।
प्रेम चंदन यामनी में अद्भुत अनन्त है ।।
राधे में राधे नहीं, गोविन्द में गोविन्द ।
गोविन्द राधे हो गये, और राधे गोविन्द ।।
एक जरा सी भूल ने मेरा
जीवन नरक बना डाला है ।
तीस बरस तक जिसे सहेजा
मैंने मन के हर कोने में।
आज अचानक उसे खो दिया
एक जरा संयम खोने में।
प्रेम प्रकाशित इस काया का
अब हर अंग काला काला है ।
एक जरा सी भूल ने मेरा
जीवन नरक बना डाला है।
००
कितने बरस,महीने कितने, कितने दिन बीते ।
भरते रहे तिजोरी फिर भी रीते के रीते ।।
बुरी नजर से बददुआ से डरते हैं।
जरा से शोर से हवा से डरते हैं।।
मेरे मौला इनकी सेहत सलामत रखना।
ये नन्हे बच्चे दवा से डरते हैं।।
फरेबे दौर में ईमान पै कायम है ये दुनियां।
ये बात और है कि हम वफा से डरते हैं।।
न जाने कब कहां कैसे मिटा दे वो मेरी हस्ती।
अगर ये खौफ न हो तो कब खुदा से डरते हैं।।
००
उसने याद नहीं करने की कसम उठाई है
मैंने ही हर वक्त उसे आवाज लगाई है।
बड़ा निठुर है वेदर्दी है और सितमगर भी
जिसने मेरे सूने घर में शमां जलाई है।।
जब जब हुआ सामना हंस कर प्यार जताया
और बिछड़ जाने पर उसको याद न आया ।
ये उसकी चाहत है या फिर कोई छल है
जीवन वीता पर अबतक मैं समझ न पाया।।
०००
वो किसी के हो नहीं सकते
दाग दामन के धो नहीं सकते।
छीनते हैं जो हक गरीबों का
चैन से वो भी सो नहीं सकते।।
०००
शैलेन्द्र बुधौलिया का जन्म दतिया में 1956 में हुआ,।एम ए हिन्दी तक शिक्षा प्राप्त शेलेंद्र ने नाटक शास्त्र का अध्ययन भी किया और दर्जनों नाटक में अभिनय किया। एकांकी 'एक कण्ठ विष पायी' में आपने शंकर जी का एकल अभिनय किया जो बड़ा लम्बा गीत नाट्य है। हरदौल, कुंजा वती का भात, सुन्दरिया, नाटक जारी है आदि नाटक में उनका अभिनय खूब सराहा गया।