शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 6 शैलेंद्र् बुधौलिया द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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शैलेन्द्र बुधौलिया की कवितायेँ - 6

बड़े लाड़ दुलार सें पालौ जीऐ , पार  पलना झुलाओ कबहूँ गोद लई!

देके  स्लेट पढ़ाओ जीए  अ आ ई , जिद्द पूरी करी जो कबहूँ खीझ  गई!

जाकी छींक पै धरती उठाएं फिरौ, सोओ नई  रातभर जो कबहूँ पीर भई!

जाखों  प्राणन से ज्यादा प्यार करौ,  आज बेटी हमारी सयानी भई!

 

 जाखों छाती धरें फिरे रातन कै, कटे हाथन हाथन दिन सबरे !

जाकी  बातन  में दुख भूल गए, जाकी चालन से मन मोद भरे,!

 जाखों कईयां लई और पिठइयां धरी, गए मेला तमासिन में सबरे!

ऐसी फूलन सी बेटी बोझ भई, जा के हाथन हाथन लये  नखरे!

 

हमको यह मालूम नहीं था एक  दिन हम पछताएंगे !

हम तो सोच रहे थे भैया अब अच्छे दिन आएंगे !!

 

मुझको यह मालूम नहीं था, ऐसे भी दिन आएंगे !

सच्चाई पर चलते चलते, एक दिन हम पछताएंगे !!

 

वह विचार वह संस्कार, जो बचपन ने मुझमें डाले !

वह तहजीबें है वह नसीहतें  हम थे अंतर में पाले !!

नहीं जानता था ये पांसे, यूँ उल्टे पड़ जाएंगे ~

हमतो सोच रहे थे  भैया अब अच्छे दिन आएंगे!

 

महंगाई कम हो जाएगी काला धन आ जाएगा !

हर एक घर से इक इक बच्चा, रोजगार पा जाएगा !!

पन्द्रह पन्द्रह लाख हमारे खातों में आ जाएंगे ~

हम तो सोच रहे थे भैया अब अच्छे दिन आएंगे!!

 

भ्रष्टाचार नहीं होगा अब लोकपाल आ जाएगा!

 चोरी लूट अपहरण डाके, नहीं  कोई कर पाएगा !

नहीं जानते थे कि ये सब यह खुद ही करवाएंगे ...

 

हम तो सोच रहे थे भैया अब अच्छे दिन आएंगे ~

यह वसुदेव कुटुंम्बी वसुधा हरी-भरी हो जाएगी!

हरएक नस्ल की फस्ल हमारे आंगन में लहरायेगी!!

 नहीं जानते थे कुछ कीड़े फसलें ही खा जाएंगे~

 हमने तो सोच रहे थे  भैया अब अच्छे दिन आएंगे...

 

 

सुन लो हे शिवराज आज से हो रहे अब हम तुम न्यारे !

 दे दो हमें पांचवा वेतन, नहीं तो पछतैहो प्यारे

शर्मा शर्म बेच कर सो रहे पाराशर के ऊपर हो रहा

 शर्मा शर्म बेचकर सो रहा हूं पाराशर के ऊपर हो रहा हूं

तुम्हें मिटाने की ठाणे जी अब गोपाल हैं रखवारे !

दे दो हमें पांचवा वेतन, नहीं तो पछतैहो प्यारे समय बांट रहे हमें डांट रहे ता पर उल्टा जवाब गांठ रहे

हम भी दबी मारते जानत करते हैं बारी न्यारी दे दो

 दे दो हमें पांचवा वेतन, नहीं तो पछतैहो प्यारे

 

भैया मिलजुल कें समय जौ बिताऔनें

कोरोना काल खों हराऔनें

घर में रऔनें घर बाहर नहीं जाऔनें

 कोरोना काल खों हराऔनें

 

चीन नाम को है एक देश

वामें बसों बुहान प्रदेश

हौयीं सें पैदा भऔ कलेश

हम का जानत ते भारत मेंआऔने

कोरोना काल खों हराऔने

 

दो मीटर से करियो बात

काऊ से नहीं मिलइयो हाथ

जो तो छूबे सें लग जात

राम-राम कर कें नाते सब निभाऔनें

कोरोना काल खों हराऔनें

 

खासो छींको जितनी बार

अपने मुंह को ढ़ाको यार

नईं तौ कई हो जें बींमार

हाथ आंख नाक मुंह से नईं लगाओनें

कोरोना काल खों हराऔनें

 

हाथ धोओ साबुन सें खूब

रोज सवेरें लेने धूप

पीने कॉफी चाय और सूप

ठंडो पीने ना काउ खों पिवाऔनें कोरोना काल खों हराऔनें

 

बड़ौ भयानक है जौ रोग

सबरौ विश्व रहौ है भोग

बात समझ लो जौ सब लोग

खुद भी बचनें और देश भी बचाऔनें

कोरोना काल खों हराऔनें

 

 चिकित्सकन नें जौई बताओ जागो है बस एक उपाऔ

अपने खुद कौ करौ बचाओ

फिर दवाई कौनऊं काम नहीं आऔनें

कौरोना काल खों हराऔनें

 

कछू दिनन की है जो बात

फिर हम सब बैठें एक साथ

जै हैं मेला और बरात

पहले प्रानन खौं अपने बचाऔनें में

कोरोना काल खों हराऔनें

 

 घर में रओनें घर बाहर नहीं जाऔनें

कोरोना काल खों लिखो हराओनें