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----- आज भी इन्तेज़ार है -----
जो सबको मिल जाता है अक्सर बचपन में
उस दोस्त का मुझे आज भी इन्तेज़ार है।
स्कूल में जो तुम्हारे साथ बैठे
साथ आए और साथ घर जाए
जो जी भर तुमसे बातें करें और
जो चुप हो राहो तुम तो तुम्हारी खामोशी पढे
जो डाँटे तुम्हें और मनाए भी
जो रुलाये तुम्हें और हँसाये भी
जो चुप्पी को समझना और तुम्हारी आँखों को पढ़ना जानता हो
जो हो तुम्हारी हकीकत से वाकिफ़ और रग रग को पहचानता हो
जो ये समझे की तुम्हारे लिए उसे किसी और के साथ बाँटना बड़ा मुश्किल सा काम है
क्योंकि अपने इकलौते दोस्त को खोने का डर शायद दिल में शुरू से विराजमान है
जो समझे तुम्हें की तुम्हें खुद को समझाना नहीं आता क्योंकि तुम हमेशा दूसरों को समझते आये हो
जो तुम्हें बिन बोले गले लगाए
तुम रो पड़ो अगर तो चुप कराते हुए साथ आँसू बहाये
जिसकी जुबान पर दोस्त के नाम पर तुम्हारा नाम सबसे पहले आए
दुनिया का तो पता नहीं पर जिंदगी के अंत तक साथ निभाए
और जो ना रहो तुम तो शायद वो भी ना जी पाए
जो तुम्हें पहले समझे न कि समझाये
जिसकी आँखों में तुम्हें खोने का डर भी नजर आए।
पर खैर स्कूल तो अब खत्म हो गया और साथ ही 'सिर्फ़ मेरा दोस्त' मिलने की उम्मीद
ये तो बस मेरे ख्याल मेरे विचार हैं
पर ना जाने क्यों उस दोस्त का मुझे आज भी इन्तेज़ार है । । ।
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---- मैं कौन हूँ -----
इस शख्सियत के अंदर एक और शख्स है मुझमे
जो आजतक खुद को भी न दिखा वो अक्स है मुझमे
* एक वो है जो हार बैठा है जिंदगी से हताश होकर
दूसरा वो है जिसे मुस्कराकर जिंदगी बितानी है
एक वो है जो शायद अकेला पड़ गया है कहीं
दूसरा वो है जिसे अपनी अलग दुनिया बसानी है
एक वो है जिसने खो दिया है खुदको सबको समझते समझते
दूसरा वो है जिसे अपनी कहानी भी सुननी है
जो समझा बैठा है खुदको वो समझदार है मुझमे
एक नासमझ जिद्दी और नर्म दिल से बच्चे का सार है मुझमे ।
* एक वो है जिस हर चीज़ की फिक्र रहती है
दूसरा वो है जो बेफिक्र है हर बात के लिए
एक वो है जो खुश है अकेले में
दूसरा वो है जो तरस रहा है किसी साथ के लिए
एक वो है जो शांत है समंदर सा
दूसरा वो है जिसमें बवंडर भरा है बात के लिए
जो सबको सुन जाती है वो चुप्पी हर ओर है मुझमे
कमबख्त जो किसी को सुनाई न दे वो शोर है मुझमे ।
* एक वो है जो हर पल मुस्कुराता है
दूसरा वो है जो हर बात से उदास है
एक वो है जिसका दिल काँच से भी नाज़ुक है
दूसरा वो है जिसमें पत्थर से ज़ज्बात हैं
एक वो है जो अपने लिए बहुत खास है
दूसरा वो है जिसकी न किसी को फिक्र न कीमत का आभास है
जो किसी को दिखता नहीं वो राज़ है मुझमे
जो नाराज़ बैठा है खुद से वो आवाज़ है मुझमे । । ।
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-श्रुति शर्मा