फिर जब शास्त्री जी ने सरगम से ऐसा कहा तो सरगम ने कभी भी शिवसुन्दर शास्त्री जी के घर से जाने का नहीं सोचा,कुछ ही दिनों में उसे शास्त्री जी की सिफारिश से एक संगीत विद्यालय में संगीत अध्यापिका का काम मिल गया और वो दो तीन बच्चों को उनके घर पर जाकर ट्यूशन भी देने लगी थी,अब उसे लगने लगा था कि उसकी जिन्दगी पटरी पर आ गई है,उसे रहने को एक घर और शास्त्री जी जैसे पिता समान सज्जन की छत्रछाया मिल गई थी और व्यस्तता के कारण वो अपना अतीत भूलती जा रही थी,मोहल्ले के लोग भी उसे इज्जत की नज़र से देखते थे,बस मोहल्ले की एकाध औरतों को वो जरूर खलती थी,वें कहतीं थीं कि ना जाने कौन है?,कहाँ से आई है और शास्त्री जी ने अपने घर में एक जवान लड़की को आसरा दे दिया,घर में जवान लड़का है कुछ ऊँच नीच हो गई तो कौन जिम्मेदार होगा? लेकिन शास्त्री जी इन सबकी परवाह नहीं करते,उन्हें तो सरगम में कोई दोष नजर ही नहीं आता था,उनकी नज़र में सरगम एक नेकदिल और सुशील लड़की थी......
सरगम से जलने वाली औरतों में से एक मिसराइन भी थी,उसे बहुत दिक्कत थी सरगम से ,वो इसलिए की सरगम से मिसराइन की बहू सुनन्दा कभीकभार बात कर लेती थी,मिसराइन को अपनी बहू सुनन्दा से सरगम का बात करना इसलिए अच्छा नहीं लगता था कि जब सरगम सुनन्दा को मिसराइन और उसके बेटे से मार खाते हुए देखती थी तो वो सुनन्दा से कहती...
"भाभी! तुम चुपचाप सब सहती क्यों रहती हो,जवाब क्यों नहीं देती,घरवाले तुम्हारा शोषण करते रहते हैं और तुम मूक पत्थर सी चुपचाप पड़ी रहती हो",
"तो क्या करूँ सरगम दीदी? ये लोग मेरी बड़ी बहन को दहेज के लालच में मार चुके हैं,मुझे डर हैं कि कहीं मुझे भी ना मार दें",सुनन्दा बोली...
"ये सब क्या है भाभी? उनकी बेटी मार दी जाती है और तुम्हारे घरवालों ने ससुराल वालों के खिलाफ कोई भी आवाज नहीं उठाई ,ऊपर से अपनी छोटी बेटी को भी उसी नरक में ब्याह दिया",सरगम ने पूछा...
तब सुनन्दा बोली....
"दीदी! मेरी माँ बहुत गरीब थी,जैसे तैसे अपने जेवर बेंचकर उन्होंने मेरी बड़ी बहन का ब्याह इस घर में कर दिया,लेकिन इन लोभियों ने उसे एक रात सीढ़ियों से धक्का दे दिया और सबसे कह दिया कि सीढ़ियों से फिसल कर मर गई,बड़ी बहन के ग़म में एक दिन मेरी माँ भी चल बसी और उस घर में मैं एकदम अकेली रह गई,कोई भी सहारा ना था मेरा,इसलिए ये लोग मुझे यहाँ ब्याहकर ले आएं और मेरी माँ का घर बेचकर सारे रूपये हड़प कर गए,मैंने सोचा था कि मुझे भी अपनो का सहारा हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ,इन लोगों को बहू नहीं घर की नौकरानी चाहिए थी",
"ओह...तुम पढ़ी लिखी हो",सरगम ने पूछा...
"हाँ! पाँचवीं पास हूँ",सुनन्दा बोली...
और ऐसे ही आते जाते कभीकभार सरगम सुनन्दा से बात कर लेती थी और इसी से मिसराइन के तन बदन में आग लग जाती थी,इसी तरह एक दिन की बात है,सुनन्दा ने एक दिन दो किलो दूध गरम किया और उसे ठण्डा होने को रख दिया,इतने में थकावट के मारे उसकी आँख लग गई तो बिल्ली ने कुछ दूध पिया और कुछ बिखरा दिया ,अब तो मिसराइन के गुस्से का ज्वालामुखी फूट पड़ा और उसने अपने बेटे पवन से सुनन्दा की शिकायत लगा दी,अब पवन ने पहले तो सुनन्दा को जी भर के पीटा फिर घर से निकालने लगा, सुनन्दा अपने पति और सास के पाँव पकड़कर बोली....
"मुझे माँफ कर दीजिए,घर से मत निकालिए,मैं कहाँ जाऊँगीं"?
लेकिन सुनन्दा की किसी ने ना सुनी और पवन ने उसे घसीटकर घर के बाहर कर दिया,सुनन्दा रोती रही ,गिड़गिड़ाती रही लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी,मोहल्ले वाले यूँ ही तमाशबीन बने तमाशा देखते रहे,तभी सरगम उसी समय अपने स्कूल से लौटी थी,साथ में राधेश्याम भी था,वो भी किसी सुनार की दुकान में मुनीमगीरी करने लगा था,सरगम ने वो नजारा देखा तो गुस्से से एकदम उबल पड़ी और सुनन्दा से पूछा...
"ये क्या हो रहा भाभी?"
"सरगम दीदी!आज मेरी जरा आँख क्या लग गई और तब तक बिल्ली दूध पी गई ,इसलिए ये लोग मुझे घर से निकाल रहे हैं"सुनन्दा बोली...
"और तुम चुपचाप मार खा रही हो",सरगम गुस्से से बोली...
"तो मैं कर भी क्या सकती हूँ,एक बेबस और लाचार औरत का कोई सहारा नहीं होता सरगम दीदी!", सुनन्दा बोली...
तब सरगम बोली...
"तुम बहुत कुछ कर सकती हो,अगर कोई सहारा नहीं है तो अपना सहारा खुद बनने की कोशिश करो,ये दुनिया ऐसी ही है ,यहाँ कोई तुम्हारी मदद करने नहीं आएगा,सब तमाशा ही देखेगें,इसलिए इस दुनिया में जीना है तो अपना अधिकार खुद पाना सीखो,कोई यहाँ तुम्हें अपना अधिकार देने नहीं आएगा,जिस तरह तुम्हें घर से बाहर निकाला गया है तो उसी तरह तुम घर के भीतर घुसने की कोशिश करो,इस तरह से हिम्मत हार कर मत बैठों,लोग तो चाहते ही हैं कि तुम हिम्मत हारकर बैठ जाओ"
अब सरगम की बातें सुनकर सुनन्दा को जोश आ चुका था फिर वो उठी और अपने घर के भीतर जाने लगी,तब उसकी सास मिसराइन बोली....
"ऐ...भीतर कहाँ घुसी चली जा रही है",?
"ये मेरा भी घर है और मैं घर के भीतर जा रही हूँ,जिसमें दम है तो मुझे भीतर जाने से रोककर दिखाए", सुनन्दा बोली...
"ऐ...बड़ी जुबान चल रही तेरी ,कैंची की तरह,दो थप्पड़ में ही जुबान बंद कर दूँगा तेरी",सुनन्दा का पति पवन बोला...
"दम है तो थप्पड़ मारकर दिखाओ,आज दोनों माँ बेटे के दिमाग ठिकाने ना लगा दिए तो मेरा नाम भी सुनन्दा नहीं", सुनन्दा बोली...
और ऐसा कहकर सुनन्दा भीतर भी चली गई और दोनों माँ बेटे उसे भीतर जाता देखकर कुछ भी ना बोल सके और मोहल्ले वाले भी अब खुश थे,क्योंकि मिसराइन ने पूरे मोहल्ले को भी तंग रखा था, इधर सबने सरगम की तारीफ की कि आज उसकी वजह से ही सुनन्दा इतनी हिम्मत जुटा पाई है और फिर तब तक शास्त्री जी भी वहाँ आ पहुँचे थे,वहाँ भीड़ देखकर उन्होंने राधेश्याम से पूछा...
"क्या हुआ बेटा!,यहाँ इतनी भीड़ क्यों इकट्ठी हैं?"
तब राधेश्याम बोला...
"बाबा!भीतर चलो पहले, फिर आपको सब बताता हूँ,",
और फिर सब घर के भीतर पहुँचे तो राधेश्याम बोला....
"बाबा!आज तो सरगम जी बिल्कुल रानी लक्ष्मी बाई बन गईं थीं और सुनन्दा भाभी को ऐसी पट्टी पढ़ाई कि उन्होंने तो आज अपनी सास और पति को किनारे लगा दिया,",
"बेटी! क्यों उलझी तू मिसराइन से,वो ठीक औरत नहीं है,उसके घर की तो रोज की बात है,हम तो ना जाने कब से देख रहे हैं ये सब",शास्त्री जी बोलें...
"बाबा! किसी औरत के साथ ज्यादती हो रही है और मैं बरदाश्त कर लूँ,ये मैं कैसें होने दे सकती थी,किसी औरत के साथ गलत होता देख मैं चुप कैसें रह सकती थी भला! मैं भी तो एक औरत हूँ", सरगम बोली...
"बाबा!सरगम जी ठीक कह रहीं हैं",राधेश्याम बोला...
"मैंनें ये कब कहा कि सरगम बिटिया ने गलत किया,मैं तो बस ये कह रहा था कि मिसराइन सही नहीं है,वो जुबान और मन दोनों की ही काली है,शास्त्री जी बोले....
"बाबा!आप परेशान ना हो,मिसराइन काकी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी",राधेश्याम बोला...
तुम लोंग कहते हो तो ठीक है...
और ऐसा कहकर शास्त्री जी हाथ मुँह धोने स्नानघर की ओर बढ़ गए....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....