मैं पापन ऐसी जली --भाग(२८) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मैं पापन ऐसी जली --भाग(२८)

जब सरगम राधेश्याम की बात पर हँस पड़ी तो राधेश्याम बोला....
"हँस लीजिए....आप भी हँस लीजिए,मेरी बेबसी पर",
"खुद को बेबस कहता है नालायक!,बेबस तो मैं हूँ जिसे ऊपरवाले ने ऐसा नकारा बेटा दिया है",,शिवसुन्दर शास्त्री जी बोले...
"बाबा! क्या मेरे भीतर कोई भी खूबी नहीं है जो दिन रात मुझे कोसते रहते हो",राधेश्याम शास्त्री ने पूछा...
"कोसता नहीं हूँ बेटा! मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि तू सही राह पर चले,खूबियाँ तो तुझमें खूब है लेकिन तू उन खूबियों का इस्तेमाल करता कहाँ है,तू मेरी बात सुनता होता तो आज तेरा ये हाल ना होता", शिवसुन्दर शास्त्री जी बोले...
"आप चाहते हैं कि मैं आपकी तरह मंदिर का पुजारी बन जाऊँ तो ये मुझसे ना हो पाएगा",राधेश्याम शास्त्री बोला...
"मैं चाहता था कि जब तक तुझे नौकरी नहीं मिल जाती तो मंदिर का पुजारी बनने में बुराई ही क्या है,चार लोंग इज्ज़त से देखने लगेगें,तुझे नेक इन्सान कहेगें तो मुझे भी तसल्ली हो जाएगी,मेहनत की रोटी मिलने लगेगी,चार पैसें होगें जेब में तो जमाना पूछने लगेगा,इससे ज्यादा भला और क्या चाहिए जिन्दगी में", शिवसुन्दर शास्त्री जी बोले...
"मुझे नहीं चाहिए ऐसी इज्जत और ना ऐसी इज्जत की रोटी",राधेश्याम शास्त्री बोला...
"और तू ये जो आवारागर्दी करके जो इज्ज़त कमा रहा है क्या वो ठीक है,मुफ्त में बाप की कमाई की रोटी तोड़़ता है,ऊपर से चार लोग बातें करते रहते हैं कि शास्त्री जी का बेटा ऐसा है,शास्त्री जी का बेटा वैसा है, तू अब कमाने लायक हो गया है अब तुझे खिलाना मेरे वश का नहीं रह गया है ",शिवसुन्दर शास्त्री जी बोलें...
तब राधेश्याम शास्त्री बोला....
"आपको उन चार लोगों का इतना ही डर है तो फिर आप अपने उन चार लोगों से ये क्यों नहीं कहते कि मुझे नौकरी दिलवा दें,बाबा!ये चार लोग वही लोग हैं, जो कुछ करो तो भी कुछ ना कुछ कहेगें और कुछ ना करो तो भी कुछ ना कुछ कहेगें और यही चार लोग है जो हमारे मरने की बाट जोहते हैं कि कब ये मरें और कब हम इनकी अर्थी को काँन्धा दें",
"तेरी अक्ल में तो जैसे पत्थर पड़े हैं ,कुछ भी समझाओ समझता ही नहीं है,कभी कभी तो मुझे ऐसा भी लगता है कि शायद तेरी अक्ल घास चरने चली गई है और घास चरकर अभी लौटी नहीं है इसलिए तू शायद ऐसी बातें करता है, तुझे तो कुछ भी समझाना बेकार है",शिवसुन्दर शास्त्री जी बोले...
"तो क्यों समझाने लग जाते हैं आप मुझे,जब आपको पता है कि मेरी अक्ल में पत्थर पड़े हैं",राधेश्याम शास्त्री बोला...
तब शिवसुन्दर शास्त्री जी सरगम से बोले....
"बेटी! ये तो कभी मेरी बात समझेगा नहीं,मुझसे ऐसे ही बहस करता रहेगा,तुम ऐसा करो,जो वो पीछे वाला कमरा है,उसमें बिस्तर पड़ा है,वहाँ जाकर थोड़ी देर आराम कर लो",
"बाबा! लेकिन अब तो सुबह होने वाली है ,अब आराम करने का कोई मतलब नहीं है",सरगम बोली...
"देखा! सीख इस लड़की से कुछ,इसे कहते हैं संस्कार",शिवसुन्दर शास्त्री जी राधेश्याम से बोले...
"अब उन्होंने आराम करने से मना कर दिया तो यहाँ संस्कारों वाली बात कहाँ से आ गई,मतलब कोई आराम करने से मना कर देता है तो वो संस्कारी हो जाता है",राधेश्याम बोला....
राधेश्याम की बात सुनकर सरगम हँसने लगी तो शिवसुन्दर शास्त्री जी बोलें....
"देख रही हो ना बिटिया! कितना मूरख है ये!....अरे! भट्टगँवार......जड़बुद्धि....तुझे कभी कुछ समझ में नहीं आता,बिटिया कहना चाहती है कि अब भोर हो गई है और ब्रह्ममुहूर्त चल रहा है तो इस समय नहीं सोना चाहिए",
"ओह....आप अक्लमन्द और आपकी मेहमान अक्लमन्द,मैं तो हूँ ही निरा मूरख और आज आप ये इनके सामने सिद्ध करके ही मानेगें,तभी तो बात बात पर मुझे जलील कर रहे हैं आप!",राधेश्याम शास्त्री बोला....
"हे! देवता....हे! तीनों लोको के स्वामी!....ब्रह्माण्ड के रचयिता.....मुझे क्षमा करें प्रभु! जो आपको मूरख कहा,अब आप अपने कक्ष में जाकर तनिक विश्राम करें तो बेचारी बिटिया को आपकी सड़ी गली बातों कुछ तो राहत मिलेगी,क्योंकि मुझे पता है कि वो तुम्हें बहुत देर से झेल रही है आपको और अब बिल्कुल से पक चुकी होगी",शिवसुन्दर शास्त्री जी बोले....
"विनती करने की जरूरत नहीं है,मैं जा रहा हूँ अपने कमरें में",
और ऐसा कहकर राधेश्याम अपने कमरें में चला गया तो शास्त्री जी सरगम से बोलें....
"बिटिया! भोर हो गई है तो कोई बात नहीं,थोड़ी देर जाकर आराम कर लो,एकाध घण्टे के बाद जाग जाना"
"ठीक है बाबा!,वैसे मैं आपको बाबा तो कह सकती हूँ ना!,आपको बुरा तो नहीं लगेगा",सरगम ने पूछा...
"हाँ....हाँ....बिटिया! क्यों नहीं,इसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है? अच्छा! अब तुम उस कमरें में जाकर आराम कर लो",
और फिर सरगम आराम करने चली गई और करीब सुबह के आठ बजे के बाद वो जागी,तब तक पुजारी जी मंदिर की पूजा करके वापस आ चुके थे ,सरगम जागकर अपने कमरें से बाहर आई तो पुजारी शिवसुन्दर शास्त्री जी उससे बोलें....
"जाग गई बिटिया!,वो उधर आँगन के उस कोने में स्नानघर है तुम नहाकर जल्दी से तैयार हो जाओ,मैं तब घर के मंदिर की पूजा करने के बाद कुछ नाश्ता बनाने की तैयारी करता हूँ"
"नहीं!बाबा!मेरे रहते आप नाश्ता क्यों बनाऐगें भला!,बस आप थोड़ी देर रुकिए मैं यूँ नहाकर आई और मैं ही नाश्ता बनाऊँगी",सरगम बोली...
"जैसी तेरी मर्जी बिटिया!",शास्त्री जी बोलें...
और फिर कुछ देर बाद सरगम नहाकर रसोईघर में पहुँची,रसोईघर बहुत ही अस्त व्यस्त था,पहले सरगम ने नाश्ता बनाना ठीक समझा,उसने सोचा रसोईघर नाश्ता बनाने के बाद व्यवस्थित करेगी,शास्त्री जी की रसोई अब भी कच्ची थी और वहाँ मिट्टी के चूल्हे पर ही खाना बनता था,फिर सरगम ने चूल्हा जलाया और उसे वहाँ आलू के सिवाय कुछ नहीं दिखा इसलिए उसने झट से आलू उबलने चढ़ा दिए और फिर दूसरे चूल्हे पर उसने हलवा बना लिया,जब तक हलवा बना तो तब आलू उबल गए और उसने झट से उबले आलूओं की तरीवाली सब्जी बना दी,साथ में पूरियाँ भी तलने लगी और अब नाश्ता तैयार था और उसने शास्त्री जी को आवाज लगाई...
"बाबा!आ जाइए,नाश्ता तैयार है"
तब शास्त्री जी रसोई में पहुँचे और सरगम से बोलें...
"खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है बिटिया,लगता है तुमने नाश्ता जोरदार बनाया है"
"वो तो अब खाकर ही पता चलेगा कि नाश्ता कैसा बना है?",सरगम बोली...
"तो देर किस बात की है ,तो फिर परोस दो थाली",शास्त्री जी बोले...
और फिर सरगम ने शास्त्री जी के लिए थाली परोस दी और उन्होंने नाश्ता खाकर देखा तो बोलें....
"आज ये नाश्ता करके शीलवती की याद आ गई,वो भी मुझे ऐसे ही परोसकर खिलाया करती थी,बिटिया!तुम्हारे हाथों में तो अन्नपूर्णा का वास है,आनन्द ही आ गया आज तो"
और तब तक राधेश्याम भी जाग उठा और वो रसोईघर की ओर आया और उसने बाहर से झाँककर देखा और बोला...
"तो आज आप पका रही नाश्ता! तभी खाने की खुशबू से मेरी नींद टूट गई",
"तो फिर तू भी नहाकर आजा और गरमागरम नाश्ता कर ले,नसीब वालों को मिलता है ऐसा नाश्ता",शास्त्री जी बोले...
"क्या बाबा! आप भी कैसीं बातें करते हैं"?,सरगम बोली...
"सही तो कहता हूँ बिटिया! तुम्हारे माँ बाप नसीब वाले हैं जो तुम्हारे हाथ का पका खाना खा पाते हैं", शास्त्री जी बोलें....
"बाबा! मैं अनाथ हूँ,दोनों ही नहीं रहे अब तो"!,सरगम रूआंसी होकर बोली...
"मायूस मत हो बिटिया! मैं तो हूँ ना!",शास्त्री जी बोले...
और फिर राधेश्याम बोला...
"मैं भी तैयार होकर अभी आया बस",
और फिर राधेश्याम तैयार होने चला गया....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....