सौराष्ट्र के गिर सोमनाथ जिले में वेरावल नाम का एक शहर है। वेरावल अपने आप में प्रसिद्ध हैं यहां बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है। वर्षभर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। भव्य मंदिर के पास बसे इस छोटे शहर में लोगों ने अपना जीवन यापन करने के लिए विभिन्न दुकानों, पर्यटकों को घूमाने, मवेशी पालने जैसे कार्यों का सहारा लिया है।
यहां रमिला, अपने पति और दो बच्चों के साथ रहती है। रमिला का पति रिक्शा चालक है, सुबह जल्दी उठकर वेरावल स्टेशन से श्रद्धालुओं को रिक्शा में मंदिर लाता और फिर दर्शन करवा शहर घुमाता। रमिला भी मंदिर के पास फूलों की दुकान चलाती। रमिला की बड़ी बेटी कभी-कभी मां की मदद कर दीया करती। इसी तरह उनका जीवन-यापन हो रहा था।
कुछ दिनों से रमिला रात में ठीक से सो नहीं पा रही थी। एक अजीब-सा डर उसे सता रहा था। जैसे कुछ बुरा होने वाला हो। अचानक रात में नींद से उठ कर वह ॐ नमः शिवाय का जाप शुरू कर देती। सोमनाथ दादा में उसकी अटूट श्रद्धा थी। सबने उसे बहुत समझाया कि भोले नाथ सब ठीक करेंगे पंरतु उसका मन मानने को तैयार नहीं था। रात को ठीक से न सोने के कारण अब रमिला की तबियत बिगड़ती जा रही थी। दिन ब दिन वह कमजोर हो रही थी, कभी मन करे तो मंदिर के प्रांगण में जा घंटो भजन सुनती तो कभी मंत्रोच्चार करती।अब उसने काम पर जाना भी छोड़ दिया। बेटी घर संभालती और रमिला पूरा दिन खोई-खोई सी रहती।
देखते ही देखते महीना बीत गया और श्रावण मास आ गया। हिंदू शास्त्रों के अनुसार श्रावण मास की बहुत मान्यता है। श्रद्धालु दूर -दूर से ज्योतिर्लिंग के दर्शन को आते है। उपवास, भजन कीर्तन रखा जाता है। रमिला के पति के लिए यह समय कमाई का भी है। घर बड़ी बेटी के हाथों सौंप, वह काम पर निकल जाता। तबियत ठीक न होने पर भी रमिला उपवास करने की जिद्द पकड़ती है। ऐसे करते दो-तीन दिन ही बीते थे कि टीवी, समाचार पत्र सब जगह मौसम विभाग की चेतावनी आने लगी। अगले 72 घंटे गिर सोमनाथ पर बहुत भारी है। अरब सागर से उठा चक्रवाती तूफान तट से टकरानेवाला है। पहले तो लोगों ने इसकी गंभीरता को न समझते हुए कहा कि- जब विदेशी ताकत आक्रमण कर-कर के थक गई पर हमारे सोमनाथ दादा का बाल भी बांका न कर सकी तो यह तूफान क्या चीज़ है? धीरे-धीरे मौसम आक्रामक हो रहा था। समुद्र विकराल रूप धारण करने लगा। हवाएं तेज़ होने लगी, बादल की गर्जना, बिजली का कड़कना और जोरदार बारिश मानो तूफान की ओर से चेतावनी दे रहे थे। सरकार भी तटीय इलाकों को खाली कर, सुरक्षित जगह जाने की गुजारिश कर रही थी। रमिला के पति ने सोचा कि वह परिवार संग जूनागढ़, अपने चचेरे भाई के घर जाते है। मौसम ठीक होते ही घर आ जायेंगे। सब लोग अपनी जरूरत का सामान भरने लगे और रमिला चुप चाप वहा से उठ के चली गई।
मौसम बिगड़ने लगा, समुद्र का पानी कच्ची दीवारें तोड़ शहर में घुस आया। नदी, नाले, घर, घाट, दुकान सब जल मग्न हो रहा था। किसी की छत ढह गई तो किसी का सामान बह गया, किसी का बच्चा भूख से बिलख रहा था तो किसी के मवेशी कराह रहे थे। चारों ओर बेबसी और मज़बूरी की चीत्कार सुनाई पड़ रही थी। ऐसे में रमिला की बेटी को ख्याल आया कि रमिला बहुत समय से दिखाई नहीं पड़ी। वह सब घबरा गए और रमिला को आवाज लगाने लगे पंरतु रमिला वहां नहीं थी। पास-पड़ोसी से भी पूछा पर कोई फायदा नही। तभी रमिला के पति को एहसास हुआ कि शायद रमिला मंदिर गई हो, उसे सोमनाथ दादा में अटूट आस्था जो है। घुटनों तक पानी में, तेज बारिश के थपेड़े सहता हुआ जैसे तैसे वह मंदिर पहुंचा। लोगों की भीड़ के बीच उसे मंदिर के प्रांगण में रमिला दिखाई दी। रमिला हाथ जोड़, आंखे बंद किए एक ही बात दोहरा रही थी- हे सोमनाथ दादा ! जैसे गंगा के वेग को आपने अपनी जटा में समेट कर पृथ्वी को जल मग्न होने से बचाया था उसी तरह आज फिर एक बार इस तूफ़ान के वेग को अपने में समा जाने दो और अपनी प्यारी नगरी सोमनाथ को बचा लो। सब रमिला से घर जाने को कहने लगे परन्तु वह किसी की नहीं सुन रही थी। पानी तेज़ी से कमर तक भर गया। पुजारी भी मन्दिर का दरवाजा रमिला के लिए खुला छोड़ घर को चला गया। रमिला का पति भी उसकी जिद्द के आगे थक हार कर,अपने बच्चों की खातिर घर लौट गया। रात गहरी और भयानक हो रही थी। पानी गले तक पहुंच गया, फिर भी रमिला टस से मस नहीं हुई। आंख बंद कर महादेव से केवल प्रार्थना करती जा रही थी। ऐसा कहा जाता है कि यदि आप महादेव की भक्ति पूरे श्रद्धा और विश्वास से करते है तो महादेव भी कभी आपको निराश नहीं करते। अगली सुबह मौसम विभाग ने समाचार दिया की तूफान का रूख दूसरी ओर मुड गया है और अब सोमनाथ, सौराष्ट्र सुरक्षित है। बारिश हल्की हो चली थी, पानी उतरने लगा। और रमिला मंदिर के प्रांगण में बेहोश पड़ी थी।