सरगम कार में पीछे जा बैठी और गनपत कार स्टार्ट करके कार को कमलकान्त बाबू के घर की ओर बढ़ चला,सरगम कार में रोते रोते सोचती रही कि जिन लोगों को उसने अपना माना,इतना मान दिया ,इतना सम्मान दिया और उन्हीं लोगों ने मेरे साथ ऐसा बर्ताव किया,आदेश ने कितना बड़ा धोखा दिया मुझे,मैं जानती होती कि वो ऐसा करेगा मेरे साथ तो मैं कभी भी उसके प्यार में ना पड़ती.....
शायद ऐसा दिन दिखाकर भगवान मुझे कुछ सबक देना चाह रहे होगें,लेकिन इसमें गलती तो मेरी ही है,मैं क्यों फँसी आदेश के झूठे प्यार के जाल में,मैं क्यों बह गई आदेश की झूठी भावनाओं में,मैनें दिमाग क्यों नहीं लगाया,अब क्या होगा मेरा? और क्या होगा इस बच्चे का,जब सभी इस बच्चे के बाप का नाम पूछेगें तो मैं क्या कहूँगीं सबसे?
सरगम के मन में यही सब विचार आ रहे थे और यही सब सोचते सोचते वो कब कमलकान्त के घर तक पहुँच गई उसे पता ही नहीं चला,तभी गनपत कार रोकते हुए सरगम से बोला...
"दीदी!,कमलकान्त बाबू का घर आ गया है,आप भीतर चली जाइए,मैं आपका यहीं इन्तजार करता हूँ",
"ठीक है"
और ऐसा कहकर सरगम कार से उतरी और उसने संकोचवश घर का दरवाजा खटखटाया और फिर घर का दरवाजा खुला,दरवाजा किसी वृद्ध महिला ने खोला था,उस महिला ने सरगम को देखा और पूछा....
"जी!,कहिए",
तब सरगम बोली...
"मुझे कमलकान्त बाबू से मिलना था",
"आपका नाम",महिला ने पूछा...
"जी! सरगम!",सरगम बोली....
"ठीक है!आप यहीं ठहरिए,मैं उसे बुलाकर लाती हूँ",
और ऐसा कहकर वो वृद्ध महिला घर के भीतर गई और कमलकान्त को बुलाने उसके कमरें में गई तो कमलकान्त ने जैसे ही अपनी माँ के मुँह से सुना कि सरगम आई है तो वो फौरन अपने बिस्तर से उठकर बाहर की ओर भागकर आया,क्योंकि उसने मन में सोचा सरगम का इतनी रात गए उसके घर आना जरूर किसी संकट का संकेत है, वो बाहर आकर सरगम से बोला....
"सरगम जी! आप ! और इतनी रात गए मेरे घर पर,कोई बात हो गई क्या?"
"अब सब कुछ बाहर ही पूछ लेगें क्या ?भीतर आने को नहीं कहेगें",सरगम बोली...
"हाँ...हाँ...अन्दर आइए",कमलकान्त बोला...
और फिर सरगम भीतर पहुँची तो वहाँ कमलकान्त की माँ भी खड़ी थीं ,उसने अपनी माँ से कहा...
"माँ!ये सरगम जी हैं",
"कैसी हो बेटा"?,कमलकान्त की माँ ने पूछा...
"ठीक नहीं हूँ चाचीजी!", और इतना कहकर सरगम फूट फूटकर रो पड़ी....
"क्या हुआ बेटी"? रोती क्यों हो,मुझे बताओ ना कि क्या बात है"?,कमलकान्त की माँ ने घबराते हुए पूछा...
"चाची जी! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है",सरगम रोते हुए बोली....
सरगम को रोता देख अब कमलकान्त भी परेशान हो उठा और उसने सरगम के पास आकर कहा...
"सरगम जी!,कहिए ना कि क्या बात है"?
"आदेश ने मेरी जिन्दगी बर्बाद कर दी,कमलकान्त बाबू", सरगम बोली...
"क्या हुआ?पहले ये तो बताइए,", कमलकान्त ने परेशान होकर पूछा...
"हाँ! बोलो बेटी!,डरो मत",कमलकान्त की माँ बोली.....
तब सरगम बोली...
"कमलकान्त बाबू!, पहले तो आदेश ने मुझसे मंदिर में शादी की फिर वो दो महीनों के लिए वो विदेश चला गया और अब लौटा है तो वो उस शादी को मानने से इनकार कर रहा है",
"सरगम जी! आप क्यों उस नालायक से कोई भी आशा रख रहीं हैं,भूल जाइए उसे और अपनी जिन्दगी में आगें बढ़ जाइए, आप जैसी लड़की को तो कोई भी अपनाने के लिए तैयार हो जाएगा", कमलकान्त बोला....
"बात इतनी सी होती तो मैं भूल भी जाती लेकिन अब मैं उसके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ", सरगम बोली.....
अब सरगम की बात सुनकर दोनो माँ बेटे एकदम चौंक उठे और फिर कमलकान्त बोला....
"तो आपने आदेश को ये बात नहीं बताई",
"बताई थी,लेकिन उसने कहा कि ये किसी और का पाप है",यहाँ सरगम ने कमलकान्त का नाम नहीं लिया क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसे वो बात सुनकर दुख पहुँचें...
"तो आपको ये बात अंकल-आण्टी से कहनी चाहिए थी",कमलकान्त बोला....
"उनसे ही तो कहा था",और इतना कहकर सरगम फूट फूटकर रोने लगी....
"तो क्या कहा उन्होंने"?,कमलकान्त ने पूछा...
"उन्होंने मुझे उसी वक्त घर से निकाल दिया",सरगम रोते हुए बोले....
"गलत किया उन्होंने,उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए",कमलकान्त बोला....
तब सरगम बोली...
"मैं आपसे आखिरी बार मिलने आई हूँ कमल बाबू! और आपसे माँफी माँगना चाहती हूँ कि उस दिन मुझे आपकी बात पर भरोसा कर लेना चाहिए था जिस दिन आप मुझे आदेश की सच्चाई बताने आए थे,अगर मैं आपकी बात पर भरोसा कर लेती तो आज मुझे ये दिन नहीं देखना पड़ता",
"अब क्या करेगीं आप"?,कमलकान्त ने पूछा...
"पता नहीं",सरगम बोली....
"और इस बच्चे का क्या होगा"?,कमलकान्त ने पूछा...
"पता नहीं",सरगम बोली....
"अगर आपको एतराज़ ना हो तो मैं एक बात पूछूँ",कमलकान्त बोला...
"हाँ!कहिए",सरगम बोली...
"क्या मैं इस बच्चे को अपना सकता हूँ,क्या आप मुझे अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर सकतीं हैं"?,कमलकान्त ने पूछा....
"नहीं!कमल बाबू!",मेरे इस पाप को मुझे ही ढ़ोने दीजिए,आप इस पाप के भागीदार क्यों बनना चाहते हैं",सरगम बोली...
"इसलिए भागीदार बनना चाहता हूँ कि मैं आपको पसंद करता हूँ",कमलकान्त बोला....
"नहीं...नहीं...ऐसा मत कहिए,मुझ जैसे पापिन को भला कोई कैसें पसंद कर सकता है,आप मेरे पीछे अपनी जिन्दगी बर्बाद मत कीजिए कमल बाबू!",सरगम बोली...
"बेटी!कमल सही कह रहा है,मुझे इस शादी से कोई दिक्कत नहीं",कमलकान्त की माँ बोली....
"लेकिन मुझे दिक्कत है चाची जी!",सरगम बोली...
"लेकिन क्यों"?,कमलकान्त ने पूछा....
"क्योंकि आपको भानुप्रिया चाहती है और मैं उसका प्यार नहीं छीन सकती,मैनें उसे अपनी छोटी बहन माना है और मैं हमेशा उसका भला ही चाहूँगी",सरगम बोली...
"सरगम जी!ये आप अपने साथ ज्यादती कर रहीं हैं",कमलकान्त बोला....
"आप चाहे इसे जो समझें,लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती",सरगम बोली....
"तो अब आप कहाँ जाएगीं"? कमलकान्त ने पूछा...
"अपने घर,अपनी माँ के पास ",सरगम बोली...
"और ये बच्चा",कमलकान्त ने पूछा...
"मेरा पाप है तो मैं ही ढ़ोऊँगी ना इसे",सरगम बोली....
"नासमझ मत बनिए सरगम जी!,जो मैं कह रहा हूँ वही कीजिए",कमलकान्त बोला....
"नहीं! कमलकान्त बाबू! आप जिद ना करें,ये मुझसे नहीं हो पाएगा",सरगम बोली....
"जब कोई बच्चे के पिता के बारें में पूछेगा तो क्या कहेगीं आप?",कमलकान्त ने पूछा...
"पता नहीं कि क्या कहूँगी? लेकिन कुछ तो कहूँगी ही",अपनी बेबसी पर सरगम मुस्कुराते हुए बोली....
"फिर कहता हूँ,मेरा कहा मान लीजिए",कमलकान्त बोला....
कमलकान्त की इस बात का कोई उत्तर ना देते हुए सरगम बोली...
"ठीक है तो ,अब चलती हूँ,गनपत भइया कार में मेरा इन्तजार कर रहे हैं",
"ठहरिए ! मैं भी आपको छोड़ने चलता हूँ",कमलकान्त बोला...
"नहीं!कमल बाबू!आप और तकलीफ़ ना उठाएं ,मैं चली जाऊँगीं",सरगम बोली..
"चलने दीजिए ना साथ में",कमलकान्त बोला....
"नहीं! अब ये सफर मुझे अकेले ही तय करना होगा,ना जाने जिन्दगी अब मुझे किस मोड़ पर ले जाएगी",
और फिर इतना कहकर सरगम ने कमलकान्त की माँ के पैर छुए और कमलकान्त को हाथ जोड़कर अलविदा कहकर वो बाहर आकर कार में बैठ गई.....
और गनपत ने कार स्टार्ट करके आगें बढ़ा दी और फिर कमलकान्त कार को तब तक देखता रहा जब तक कि कार उसकी आँखों से ओझल ना हो गई.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा.....