जब सरगम आदेश के सीने से लगी तो आदेश बोला...
"ये क्या कर रही हो सरगम! कोई देख लेगा तो क्या समझेगा?"...
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?मैं अब आपकी पत्नी हूँ",सरगम बोली...
"ये क्या बक रही हो तुम"?,आदेश बोला...
"उस दिन आपने मुझसे मंदिर में शादी की थी ,भूल गए क्या आप"?,सरगम ने पूछा...
"तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि तुम मेरी पत्नी हो",आदेश बोला....
"ऐसा मत कहिए आदेश जी!मैं आपके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ",सरगम गिड़गिड़ाते हुए बोली...
"क्या बकवास कर रही हो तुम? चली जाओ यहाँ से नहीं तो मैं शोर मचा दूँगा",आदेश बोला....
"हाँ!मचाइए शोर मैं भी चाहती हूँ कि आपकी करतूत का पता सबको चले",सरगम गुस्से से बोली...
"देखो सरगम !जबरदस्ती मेरे गले मत पड़ो नहीं तो इसका अन्जाम अच्छा नहीं होगा",आदेश बोला...
"अब अन्जाम जो भी हो लेकिन आज सबको इस बात का पता चल ही जाना चाहिए",सरगम बोली...
"तुम्हारी बात पर भरोसा करेगा कौन"?,आदेश बोला...
"कोई भरोसा करे या ना करे लेकिन अब इस बात को सबके सामने आ ही जाना चाहिए",सरगम बोली...
और फिर सरगम और आदेश की चीख-पुकार सुनकर शीतला जी अपने कमरे से बाहर निकलीं और आदेश से पूछा....
"आदेश!क्या हुआ?इतना शोर क्यों हो रहा है"?
तब आदेश नीचे सीढ़ियों पर खड़ा होकर बोला...
"देखो ना माँ ! ये सरगम क्या कह रही है"?
"क्या कह रही है बेटा"?
"कह रही है कि वो माँ बनने वाली है और उस बच्चे का बाप मैं हूँ",आदेश बोला...
"क्या कहा सरगम ने? किसी और का पाप अब ये हमारे मत्थे मढ़ रही है इसकी इतनी हिम्मत",शीतला जी गुस्से से बोलीं...
"हाँ!माँ !ना जाने किसका पाप लेकर घूम रही है और अब उस पाप को मुझसे अपनाने के लिए कह रही है",आदेश बोला...
तब सरगम भी सीढ़ियांँ उतरकर शीतला जी के पास आई और उनसे बोली....
"चाची जी!मैं सच कह रही हूँ,ये बच्चा आदेश जी का है,आप जब शादी में गईं थीं तो आदेश जी ने मुझसे मंदिर में शादी की थी",
"कुल्टा कहीं की,कमलकान्त का पाप तू मेरे बच्चे के सिर डाल रही है,शरम नहीं आती तुझे ऐसा कहते हुए", शीतला जी बोलीं...
"नहीं!चाची जी ! कमल बाबू का कोई दोष नहीं है,उनके चरित्र पर दाग मत लगाइए",सरगम बोली...
"चरित्रहीन तो तू है,ना जाने कहाँ कहाँ मुँह मारती फिर रही है और अब मेरे बच्चे को फँसाने का ख्वाब देख रही है",शीतला जी बोलीं....
"नहीं!ये सच नहीं है चाची जी!मेरी बात पर भरोसा कीजिए",
ये कहते हुए सरगम रोते हुए शीतला जी के पैरों पर गिर पड़ी लेकिन शीतला जी का मन ना पिघला और घर में हो रही चिल्लमचिल्ली के कारण सदानन्द जी भी अपने कमरें से बाहर आए और सबसे पूछा...
"क्या हो रहा है ये सब"?
"देखिए तो ये सरगम क्या कह रही है",शीतला जी बोलीं...
"क्या कह रही सरगम?"सदानन्द जी ने पूछा....
"कह रही है कि ये माँ बनने वाली है"शीतला जी बोलीं...
"ये क्या कह रही हो भाग्यवान"?,सदानन्द जी ने चौंकते हुए पूछा...
"हाँ!सच कह रही हूँ",शीतला जी बोलीं....
तब सदानन्द जी ने सरगम के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा....
"सरगम बेटी!क्या ये सच है"?
"मुझे माँफ कर दीजिए चाचाजी! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई",सरगम रोते हुए सदानन्द जी के पैरों पर गिर पड़ी...
"इससे ये तो पूछिए कि ये पाप किसका है"?शीतला जी बोलीं...
"बोलो बेटी बोलो! मुझे बताओ कि कौन है वो,जिसने तुम्हें धोखा दिया है",सदानन्द जी बोले....
"चाचाजी!वो आदेश जी हैं",सरगम बोली...
"क्या कह रही हो सरगम? तुम्हें और कोई नहीं मिला ये इल्जाम लगाने के लिए,मेरे ही घर में रह कर मेरे ही घर की इज्जत पर तुम कीचड़ उछाल रही हो,कुछ तो सोच लिया होता ऐसा कहने से पहले",सदानन्द जी बोलें...
"लेकिन ये सच है चाचाजी",सरगम बोली....
"मैं कैसें मान लूँ कि इस बच्चे का बाप आदेश है क्योंकि वो तो दो महीने से विदेश में था",सदानन्द जी बोलें...
तब आदेश आगें आकर बोला...
"पापा! ये झूठ कह रही है,इतने दिनों से ये कमलकान्त के साथ चक्कर चला रही थी ,हो सकता है कि ये बच्चा उसी का हो",
अब सरगम की बरदाश्त के बाहर हो चुका था और उसने आदेश के गाल पर एक थप्पड़ रसीदते हुए कहा....
"अपनी गलती स्वीकार नहीं कर सकते तो कम से कम किसी भले इन्सान पर तो इल्जाम मत लगाओ"
"तेरी ये जुर्रत ! तू मेरे बच्चे पर हाथ उठाएगी,गलती खुद की और इल्जाम मेरे बेटे पर ,ऊपर से अकड़ तो देखो,चोरी की चोरी ,ऊपर से सीनाज़ोरी,निकल जा मेरे घर से इसी वक्त,मेरे घर में ऐसी कुलच्छिनियों की कोई जरूरत नहीं है",शीतला जी बोलीं...
"हाँ!रहना ही कौन चाहता है ऐसे घर में,मेरा अब दम घुट रहा है आप सबके बीच ,मैं खुद यहाँ से जाना चाहती हूँ",सरगम बोली...
"हाँ!तो ले ले अपना सामान और निकल जा मेरे घर से",शीतला जी बोलीं...
और फिर सरगम ने अपने सर्टिफिकेट और अपने कुछ कपड़े बैग में भरे और चल पड़ी बाहर की ओर तब तक भानुप्रिया भी अपने कमरे से बाहर आ गई थी और उसने भी सरगम को घर से जाने से ना रोका , फिर जब सरगम घर के बाहर जाने लगी तो सदानन्द जी बोले.....
"सरगम!इतनी रात को कहाँ जाओगी?,सुबह चली जाना"
"जाने दीजिए ना! जाती है तो"!,शीतला जी बोलीं....
तब सदानन्द जी बोले....
"सरगम! गनपत को जगा लो ,वो तुम्हें छोड़ आएगा,इतनी रात को अकेले जाना ठीक नहीं,उसे उसके कमरें से बुला लो और चली जाओ,कार की चाबी भी उसी के ही पास है",
और फिर सरगम ने उस समय सदानन्द जी की बात की अवहेलना करना ठीक नहीं समझा ,कुछ भी हो सदानन्द जी ने हमेशा उसे पिता के जैसा प्यार और सम्मान दिया था इसलिए उनकी बात का मान रखना सरगम ने अपना फर्ज समझा ,फिर अपना बैग लेकर वो सर्वेन्ट क्वार्टर की ओर चली गई और गनपत के कमरें के पास जाकर उसके कमरें के दरवाजे को खटखटाया ,गनपत ने आँखें मलते हुए दरवाजा खोला और सरगम को सामने देखकर अवाक रह गया फिर उसने सरगम से पूछा....
"दीदी!आप! और इस वक्त है",
"हाँ! गनपत भइया! उन सभी ने मुझे घर से निकाल दिया है",सरगम बोली...
"पहले भीतर आओ,फिर बात करते हैं",गनपत बोला...
फिर सरगम भीतर गई और उसने सिमकी और गनपत को सारी कहानी कह सुनाई,सरगम की बात सुनकर दोनों पति पत्नी की आँखें नम हो गईं और फिर सरगम फूट फूटकर रोई और सिमकी ने उसे अपने गले लगाकर चुप कराया फिर सिमकी ने पूछा....
"दीदी! अब तुम क्या करोगी,कहाँ जाओगी"
"घर जाऊँगी और क्या करूँगी",सरगम बोली...
"और अब इस बच्चे का क्या होगा ?"सिमकी ने पूछा...
"अब जो भी हो उसका, लेकिन मुझे अब यहाँ से जाना ही होगा",सरगम बोली...
"ठीक है दीदी! चिट्ठी लिखकर हाल-चाल बताती रहना",सिमकी बोली...
फिर एकाएक सरगम को कमलकान्त का ख्याल आया और उसने उससे माँफी माँगने का सोचा,क्योंकि अगर उसने उसकी बात पर भरोसा किया होता तो आज उसे ये दिन ना देखना पड़ता इसलिए उसने गनपत से पूछा...
"गनपत भइया! क्या आप कमलकान्त बाबू के घर का पता जानते हैं",
"हाँ! मैं छोटे मालिक को कई बार कार में उनके घर लेकर गया हूँ"
"तो क्या आप मुझे वहाँ ले चलेगें"?सरगम ने पूछा...
"हाँ! क्यों नहीं! आपने मुझे भाई माना है इतना तो मैं कर ही सकता हूँ आपके लिए",गनपत बोला...
"ठीक है तो आप मुझे उनके घर ले चलिए,मुझे उनसे कुछ जरूरी काम है, फिर आप मुझे बस स्टैण्ड छोड़ दीजिए",सरगम बोली...
और फिर सरगम सिमकी से विदा लेकर गनपत के साथ कमलकान्त बाबू के घर चल पड़ी....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....