परिचय
डॉ.भावना शुक्ल
जन्म – 3-दिसम्बर - जबलपुर (मध्यप्रदेश)
शिक्षा – एम.ए., एम.फिल.,पी.एच.डी, बी.एड
वर्तमान में ..सहायक प्राध्यापक ..वोकेशनल कॉलेज दिल्ली विश्व विद्यालय
शोध निर्देशिका ..साहित्यिक शोध संस्थान मुंबई .
प्रकाशन ..
प्राची पत्रिका..सहसंपादक
शब्द गरिमा..संपादक
1 पेड़ बनकर सोचो (काव्य संग्रह)
2. हिन्दी गीति काव्य धारा को महकौशल का प्रदेय
3. वन्दे शक्ति स्वरूपा – (सम्पादित पुस्तक) –
4 .जय जननी (काव्य संग्रह) 5 साहित्य ,समाज और स्त्री लेखन- (आलेखों का संग्रह)-
6 सेठ गोविन्द दास के एतिहासिक नाटकों का वस्तुगत अध्ययन
7 हिंदी के धरोहर कवि (सम्पादित )
8 साहित्य साधक और साहित्य दृष्टि
9 सोच के दायरे
10 विश्वास की गंध
11 गीत सप्तक ..संपादित
12नियति..कहानी संग्रह
*शब्द पुरुषों से साक्षात् , लघुकथा संग्रह ,उपन्यास प्रकाशनाधीन ।
.अनेक .राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मान
सेमीनार ...राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में भागीदारी ..
ईमेल- bhavanasharma30@gmail.com
मोबाइल – 09278720311
प्रायश्चित (कहानी ) लेखिका ..डॉ.भावना शुक्ल
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रात का समय था मूसलाधार बारिश हो रही थी। अचानक घर की बेल बजी. हमने सोचा इतनी रात को कौन आया होगा मम्मी पापा तो 10 दिन बाद लौट कर आने वाले हैं। फिर भी दरवाजे की दस्तक की ओर चलता चला गया दरवाजा डबल डोर का है पहला डोर खोला सामने बारिश में भीगी हुई एक महिला खड़ी थी। उन्होंने कहा कृपया मेरी मदद कीजिए मेरी गाड़ी खराब हो गई है तेज बारिश हो रही है बारिश रुकते ही मैं यहाँ से चली जाऊंगी। हमारे मन में मानवता के बीज कूट-कूटकर भरे गए थे हमने तुरंत दरवाजा खोल दिया और उन्हें अंदर आने दिया...
आते ही उन्होंने पूछा ...'वॉशरूम कहाँ है' ? ...
हमने उन्हें वॉशरूम का रास्ता बता दिया... वह अपना बैग लेकर के वॉशरूम गई थी। जब वे लौट कर के आई तब उन्होंने साड़ी की जगह सूट पहन रखा था।
हमने तुरंत ही उनके लिए एक गरमा गरम चाय बनाई और कहा इसे पीकर राहत मिलेगी...
उन्होंने... "थैंक्स कहा।"
कुछ देर हम लोग यूं ही चुपचाप बैठे रहे... थोड़ी देर बाद हमने कहा..."आप कहाँ से आ रही हैं कहाँ जा रही हैं" ...
तब उन्होंने जवाब दिया..."हम कानपुर से लखनऊ जा रहे हैं।"
इतनी रात को आप अकेली कार ड्राइव कर रही हैं।
तब उन्होंने कहा..."नहीं मेरे साथ मेरा ड्राइवर भी है जो गाड़ी में ही है।"
अनायास ही मैंने पूछ लिया ..."आपका नाम क्या है?"
वहाँ से आवाज आई..."जी मेरा नाम नेहा है।"
और आपका नाम...
जी ..."मेरा नाम शांतनु है।"
नेहा नाम सुनते ही मन में एक भूचाल-सा आ गया... सारे पन्ने पलटने लगे...
तब हमने दोबारा पूछ..." नेहा नाम है आपका...
तब उन्होंने कहा... क्या बात है "नेहा नाम से आपका कोई पुराना रिश्ता है क्या?"
जी...
उन्होंने कहा... "शांतनु जी क्या बात है आप कुछ सोच में पड़ गए."
नेहा का मतलब स्नेह होता है नेह करना होता है ...इतना बुरा भी मतलब नहीं है ...हा...हा...हा...
चाय का घूंट पीते-पीते उन्होंने कहा... "कोई और बात जहन में हो अगर किसी बात से आपका मन हल्का हो सकता है तो मैं सुनना चाहूंगी" ...
अतीत में जाने का साहस नहीं होता मन घबरा जाता है। क्योंकि अतीत को मैं पीछे छोड़ आया हूँ "अतीत अब परे" है लेकिन आज आपके इस नाम ने मेरे जीवन में फिर हलचल मचा दी... पता नहीं क्यों आपको सब कुछ बताने को मन कर रहा है।
उन्होंने कहा..."आप मुझे एक दोस्त की तरह समझिए।"
यह 2 साल पहले की बात है मेरी मामी मौसी जी के साथ शॉपिंग करने गए थे। वहीँ वे लोग एक चाट के ठेले पर चाट खाने के लिए रुक गए.
तभी वहाँ पर एक बहुत ही प्यारी खूबसूरत लड़की और उसकी माँ भी चाट खाने आई. उसकी खूबसूरती देखकर मामी से रहा नहीं गया और उन्होंने पूछ लिया... "बेटी आपका नाम क्या है?"
उसने जवाब दिया... मेरा नाम नेहा है। "
मामी ने कहा..."अरे वाह बहुत ही प्यारा नाम है।"
मामी ने उसकी मम्मी से पूछा..."बिटिया की पढ़ाई लिखाई हो गई. अब शादी भी करनी होगी।"
मां ने कहा..."हाँ ज़रूर कोई ब्राह्मण परिवार का अच्छा लड़का मिले तो सही।"
मामी ने जैसे ही यह सुना उनकी आंखों में चमक आ गई तुरंत उनकी आंखों के सामने हमारा चेहरा झूलने लगा दीदी का कितना प्यारा बेटा है जोड़ी कितनी सुंदर लगेगी।
तुरंत मामी ने उनसे कहा..."आप कृपया हमें अपना मोबाइल नंबर दे दीजिए हमारी नजर में कोई लड़का होगा हम आपको फोन करेंगे हम ब्राह्मण है।"
उन्होंने धन्यवाद कहा और बोला..."हम आपके फोन का इंतजार करेंगे।"
मामी का मन इतना खुश था सोचा जल्दी-जल्दी यहाँ से सीधे दीदी के घर जाते हैं और उन्हें सारी बातें बताते हैं वह कितनी खुश होंगी कितने दिनों से शांतनु के लिए लड़की ढूंढ रही हैं शायद किस्मत में यही लड़की होगी।
दीदी के घर पहुंचकर सारी बातें दीदी को बताई ... दीदी बहुत खुश हुई.
उन्होंने कहा..."अब तुम लोग ही समझो तुम्हें ही करना है तुम ही इसके मामा मामी हो जो करोगे अच्छा ही करोगे।"
मामी ने कहा ठीक है दीदी... "एक बार अभी फोन कर लेते हैं। फिर कल मिल कर के बात करते हैं।"
दीदी ने कहा... 'जैसा तुम ठीक समझो।'
कॉल लगाया उन्होंने फोन उठाया और बड़ी ही विनम्रता के साथ बातचीत की आगे मिलने का प्रोग्राम बनाया...
अगले दिन वह हमारे घर पर आ गई. सारी बातें हो गई लड़की की फोटो भी ले कर के आई थी। कुंडली के विषय में विचार किया कि अब उम्र 30 के पार हो चुकी है तो कुंडली मिलाने का कोई मतलब नहीं...
शीघ्र ही सगाई की तारीख निकाली गई.
हमको को लड़की की फोटो दिखा दी गई ।हमने लड़की को देखने या मिलने की इच्छा प्रकट नहीं की उसका कहना था जब आप लोगों को पसंद है मामी ने देख ही रखी है तो मेरे देखने का क्या मतलब... सगाई वाले दिन देख ही लेंगे।
मामी ने मम्मी से कहा...”शांतनु का शादी से मन उचट चुका था क्योंकि इसके पहले एक जगह शांतनु की शादी तय हो चुकी थी सगाई हो चुकी थी और ठीक शादी वाले दिन है शांतनु बरात लेकर गए और लड़की पीछे के दरवाजे से घर से गायब थी। बाद में पता चला कि उसके माता पिता जबरदस्ती उसकी शादी कर रहे थे जबकि वह किसी और को प्यार करती थी। तब से शांतनु के मन में शादी के इच्छा नहीं थी फिर भी माता पिता की खुशी के लिए उसने हाँ कर दी है।“
एक दिन हम लोगों ने लड़की वाले के यहाँ जाने का दिन निश्चित किया दीदी को लड़की दिखाई. दीदी को लड़की बहुत पसंद आई. लड़की की माँ ने अच्छे से स्वागत सत्कार किया। पता चला लड़की के पिताजी नहीं हैं। एक भाई है और माँ ही सब फर्ज अदा कर रही है।
तब दीदी ने कहा..."आप चिंता मत करिए सगाई और शादी का इंतजाम हम लोग करेंगे आप तो सिर्फ़ लड़की की तैयारी करिए और हम लोगों को दहेज में कुछ भी नहीं चाहिए इतनी प्यारी लड़की हमें मिल रही है हमें और क्या चाहिए" ?
वह दिन भी आ गया जब सगाई होनी हैं। सगाई का कार्यक्रम बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया हम भी लड़की देख कर मिलकर प्रसन्न हो गए.
शादी को अभी एक माह था। लड़का लड़की ने एक दूसरे का फोन नंबर ले लिया।
दिन भर में रोज एक बार फ्री होकर एक दूसरे से बात करते हैं एक दूसरे को जानने की समझने की कोशिश कर रहे थे। फोन पर बात करते-करते दोनों में इतनी प्रगाढ़ता हो गई कि लगने लगा हमको की अब जल्दी ही शादी हो जाए.
एक दिन हम अपने कुछ दोस्तों के साथ घूमने जा रहे थे तभी उसने नेहा से कहा अगर संभव हो तो तुम भी आ जाओ साथ में कुछ देर रह लेंगे।
नेहा तुरंत तैयार हो गई और गार्डन में पहुंच गए. हमने अपने दोस्तों से नेहा को मिलवाया और आपस में बातचीत की घूमे फिरे वहीं खाना खाया मौज मस्ती की। अब जब चलने का समय आया तब...नेहा ने हमसे कहा..."क्यों न हम दोनों आज की रात यहीं रुक जाए यहाँ रुकने के लिए होटल भी है"।
हम यह सुनकर आश्चर्य चकित हो गये और उसने कहा..."नहीं नहीं शादी के पहले यह सही नहीं है।“
तब नेहा ने कहा..."इसमें ग़लत ही क्या है हम दोनों की सगाई हो चुकी है 10 दिन बाद शादी होने वाली है क्या फर्क पड़ता है" और इतना कहने के साथ ही वह हमारे के नजदीक आने लगी...
तभी हमने उसे धक्का देकर रोका और कहा... "क्या कर रही हो यह अच्छा नहीं लगता थोड़ा सब्र करो। सब्र का फल मीठा होता है।“
फिर हमने अपने दोस्तों से कहा... “अब हमें चलना चाहिए रात होने वाली है। रास्ते में हमने नेहा को घर के नजदीकी छोड़ दिया...”
नेहा भी ...वह भारी मन से बाय कह कर चली गई.
हमको रात भर नींद नहीं आई और यही सोचता रहा यह लड़की अपने आप को रोक क्यों नहीं पा रही थी। फिर सोचा पहली बार मिले हैं उसको हमसे बात करते-करते इतना लगाव हो गया की उससे रहा नहीं जा रहा... नहीं-नहीं उसकी कोई गलती नहीं है... अपने आप को दोषी ठहराते हुए .उसने कहा.. “मैंने बहुत ग़लत तरीके से नेहा को डांटा है पता नहीं बेचारी क्या सोचती होगी। हम अब सुबह होने का इंतजार कर रहे थे कब सुबह हो और वह नेहा को फोन करें...”
आंखों ही आंखों में सुबह हो गई सुबह होते ही उसने नेहा को फोन किया नेहा ने... अनमने भाव से बात की... हमने माफी मांगी बस नेहा थोड़े ही दिन की बात और है इंतजार करो...
वह दिन आ ही गया जब जिसका सभी को इंतजार था। धूमधाम से बाजे गाजे के साथ बरात गई.
सभी ने बहुत आनंद लिया। जयमाला के समय बहुत ही आनंद आया हमारी हाइट बहुत ज़्यादा है और लड़की की हाइट कम है। 4 / 8 लोग लड़की को उठाने में लगे। तभी लड़के के दोस्तों ने शांतनु को और ऊपर उठा लिया। जैसे तैसे जयमाला का कार्यक्रम हंसी-खुशी संपन्न हुआ।
रात भर शादी चली विदा का कार्यक्रम हुआ सभी का मन दुखी हो गया... लेकिन हम बहुत खुश थे कि आज उसे नेहा के रूप में कोई प्यार करने वाला मिला है उसे समझने वाला मिला है...
घर पर बहू के आने पर सारी वैवाहिक विधियाँ संपन्न हुई और अब वह समय आ गया जिसका हमको बेसब्री से इंतजार था...
हमारा कमरा दोस्तों ने मिलकर बहुत अच्छी तरह से सजाया और हमको ऑल द बेस्ट कह कर कमरे में धक्का दे दिया...
कमरे में पहुंचते ही हमने देखा नेहा घूंघट में बैठी हुई थी। हमको देखते ही वह खड़ी हो गई... हमने कहा अरे नेहा तुम बैठो... नेहा बहुत निरीह भरी नजरों से हमारी ओर देखती रही... शांतनु ने कहा क्या हुआ इस तरह क्यों देख रही हो... अब तो मैं तुम्हारा हो गया जिसका तुम्हें बेसब्री से इंतजार था...
नेहा उठी और हमारे पैर छुए और हमने उसे उठाया... तो देखते ही उसका चेहरा हैरान हो गया... हमने कहा नेहा तुम रो क्यों रही हो... नेहा ने कहा शांतनु मैं सही कर रही हूँ या नहीं यह मैं नहीं जानती पर मेरा मन ऐसा करने को कह रहा है... क्या हुआ क्या कहना चाहती हो...
नेहा ने कहा..."उस दिन जब हम लोग घूमने गए थे तब हमारे आग्रह को तुमने ठुकरा दिया था. घर आकर हमने खूब विचार किया तब हमने सोचा तुम इतने अच्छे इंसान हो तो अच्छे इंसान को अच्छा ही इंसान मिलना चाहिए."
हमने कहा..."तुम कहना क्या चाहती हो नेहा?"
नेहा ने कहा..." आज मैं तुम्हें ऐसी बात बताना चाहती हूँ जो तुम्हारे हित में होगा... मैंने सोचा मेरे सर पर बचपन से बोझ है जिसे मैं उतारना चाहती हूँ अब मैं थक चुकी हूँ अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं होता मुझे लगा तुम समझदार इंसान हो अगर तुम मुझे समझोगे तो बहुत अच्छा है...
बचपन से मैंने देखा हमारे घर में हमारी पिताजी की मृत्यु के बाद माँ घर का भार उठा रही थी। हम जब छोटे थे तो मुझे पता नहीं चला लेकिन जब मैं बड़ी हुई एक दिन घर पर एक आंटी आई उन्होंने कहा.. “तुम्हारी बिटिया भी अब बड़ी हो गई है वह भी अब काम करने लायक हो गई है तुम्हारा बोझ भी उठा सकेगी। बहुत प्यारी बहुत सुंदर है तुम्हारी बिटिया किसी की नजर ना लगे...”
तब हम समझे नहीं लेकिन एक दिन मेरी माँ मुझे अपने साथ काम कर ले गई. वहाँ जाकर हमने जाना कि काम क्या है... माँ ने तब हमें बताया बेटा आज हम बरसों से तुम सब का पेट पाल रहे हैं मैं ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं हूँ लेकिन शारीरिक सौंदर्य हमारे पास है जिसके लिए हमें मोटे-मोटे ग्राहक मिल जाते हैं और हमारा घर चल जाता है... मैं सोचती हूँ अगर तुम भी हमारा साथ 2 / 4 साल तक दो तो तुम्हारी शादी के लिए काफी पैसा इकट्ठा हो जाएगा और फिर हम तुम्हारी शादी अच्छी जगह कर देंगे...”
हमारी बड़ी बहन की शादी हमारे पिताजी कर गए थे तो आज वह सुख से है। माँ की आदतों को जानते हुए वह हमारे घर नहीं आती।
माँ की बातें सुनकर हम अवाक रह गये लेकिन काम की अवहेलना नहीं कर पाए मन मारकर उस दलदल में उतरना पड़ा.हम ने माँ को इस सौदे के लिए हाँ कर दी...
तभी माँ ने मुझे एक कमरे में भेज दिया... कमरे के अंदर जाकर देखा तो एक हट्टा कट्टा आदमी था... जिसने मुझे पहली बार अपना शिकार बनाया... करीब 2 घंटे तक वह अपनी हवस मिटाता रहा... मैं कुछ बोल न पाई. उसके बाद उसने हमें काफी मोटी रकम दी और एक हफ्ते बाद आने के लिए फिर कहा... इसी तरह सिलसिला चलता रहा करीब 2 वर्षों से मैं इस कार्य में माँ के साथ संलग्न हूँ। लेकिन उस दिन जब मैं तुमसे मिली तब मुझे एहसास हुआ की शारीरिक सम्बंध से भी बढ़कर भी कुछ और होता है।
क्योंकि हमें माँ ने बड़े होकर देह समर्पण का पाठ पढ़ाया है।
उस दिन हमने यह निश्चय कर लिया था चाहे कुछ भी हो जाए हम अपनी आपबीती आपको ज़रूर बताएंगे। हमारी देह आपके लिए पवित्र नहीं है। हमने अपनी माँ से शादी से पहले ही कहा था कि हम उनसे मिलकर सारी बात बता देते हैं उन्हें धोखे में नहीं रख सकते। लेकिन मेरी माँ ने मुझे कसम दे दी और कहा अगर तूने ऐसा किया तो हम अपने आप को खत्म कर लेंगे। इस घर में जब मैंने कदम रखा तब मुझे लगा कि मैंने बहुत ग़लत किया है अब मैं अपने आप को रोक नहीं पाई माँ की कसम की परवाह किए बिना मैंने आपको सच बता डाला। मुझे पता है इसका अंजाम क्या होगा लेकिन अब मुझे अंजाम की परवाह नहीं, परवाह मुझे आप जैसे इंसान की है जिन्हें में धोखा नहीं दे सकती। अब फैसला आपके ऊपर है आपको जो उचित लगे वह आप करिए.
शांतनु आप कुछ बोलिए इतने खामोश मत रहिए रात काफी हो चुकी है।
हमने कहा... "नेहा अब बोलने के लिए कुछ भी शेष नहीं है। मेरी ज़िन्दगी में पहले एक भूचाल आ चुका था मैं शादी करने को तैयार नहीं था। लेकिन दूसरा झटका मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता। नेहा मैं तुम्हें स्वीकार नहीं कर सकता क्योंकि मेरी आत्मा इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं..."
नेहा ने कहा..."अंजाम मुझे मालूम था लेकिन मैं आपके सामने वचन देती हूँ अब कभी भी किसी को भी अपनी देह समर्पित नहीं करूंगी। क्योंकि मैंने अग्नि के सात फेरे आपकी अर्धांगिनी के रूप में लिए हैं। जीवन भर आपके साथ रहूँ या न रहूँ इसका निर्वाह करूंगी। क्योंकि आप ही की वजह से मैंने सही रास्ते पर चलने का निश्चय किया है या यूं कहिए कि भटके हुए राही को रास्ता मिला है।"
हमने कहा... "नेहा तुम यहीं कमरे में आराम करो मैं बाहर जाता हूँ। क्या करना है सुबह निश्चिय करूंगा।"
इतना कहकर मैं कमरे से बाहर निकल आया रात के 2: 00 बजे मुझे कुछ भी सूझ नहीं रहा था वह बाहर हॉल में आकर सोफे पर लेट गया।
सुबह जब मम्मी की नींद खुली तब उन्होंने देखा मैं सोफे पर सो रहा हूँ ... यह देख कर उन्हें हैरानी हुई और उन्होंने कहा बेटा यहाँ क्यों सो रहे हो...
मैं उठा मैंने कहा मम्मी बस यूं ही... और फ्रेश होने चला गया...
थोड़ी देर के बाद जब सभी लोग नाश्ता चाय करके फुर्सत हुए तब हमने मम्मी से कहा मामा मामी को फोन करके बुला लीजिए कुछ बातें करनी है। मेरी इस बात से मम्मी बहुत परेशान हो गई और उन्होंने फोन करके मामी को बोला रीता तुम भैया के साथ जल्दी आ जाओ. पता नहीं शांतनु क्या कहना चाहता है...
सभी के आने के बाद हमने नेहा से कहा तुम भी यहीं बैठो और मम्मी से कहा इनकी मम्मी को भी फोन करो वह भी यहाँ आए...
थोड़ी देर बाद सभी लोग एकत्र हो गए और हमने नेहा के द्वारा बताई गई सारी बातें सबके सम्मुख रख दी। इसके तुरंत बाद नेहा की मम्मी उठी और दौड़कर अपनी बेटी को मारने लगी और कहा कितना तेरे को समझाया था चुप रहना तुम्हें सही ज़िन्दगी मिल रही है लेकिन तुम सत्यवादी हरिश्चंद्र बन गई और आज अपनी ज़िन्दगी नरक बना डाली... चुप रहती तो क्या बिगड़ जाता तेरा और इसके साथ ही दो-तीन थप्पड़ लगा दिए...
तभी हमने कहा..."आंटी नेहा ने सच के रास्ते पर चलने का फैसला कर लिया है वह अपना आज सुधारना चाहती है और आप कैसी माँ हो जो उसको ग़लत राह पर चलने का संदेश दे रही हो... नेहा ने जो किया वह सही किया... लेकिन हम पति पत्नी की तरह जीवन निर्वाह नहीं कर सकते..." ।
हाँ ज़रूरत पड़ने पर हम उसकी मदद अवश्य करेंगे।
तभी मामी ने कहा..."आप लोगों को देखकर ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगा कि दिखने में चेहरा अलग और चेहरे के पीछे दूसरा चेहरा अलग है। कितना घटिया लिबास पहना है आपने, हमारे लड़के की ज़िन्दगी बर्बाद कर दी। किसपर विश्वास करें किसपर न करें हमने तो आपको और आपकी बेटी को देखकर सम्बंध तय किया था।"
तभी नेहा की मम्मी ने कहा..."चल अब यहाँ से अभी कुछ और सुनना बाकी है।"
नेहा ने... अपने सास-ससुर के पैर छुए और कहा ..’मुझे माफ कर देना मेरी माँ ने अगर कसम न दी होती तो हम शादी के पहले ही यह खुलासा कर देते। लेकिन मेरी अंतरात्मा मुझे कचोट रही थी इसलिए मैंने शादी की रात को ही शांतनु को यह सब बताना उचित समझा आप सबको और अपने आप को धोखा नहीं देना चाहती..."
नेहा ने शांतनु से कहा ...”हम जा रहे हैं पत्नी न सही अगर एक दोस्त का दर्जा दे सको तो कभी-कभार फोन पर सलाह देते रहना जिससे मैं कभी रास्ता न भटक जाऊँ। हम जल्दी ही आपको तलाक के पेपर भिजवा देंगे जिससे आप अपना जीवन पुनः प्रारंभ कर सकें...”
नेहा के जाने के बाद हम फूट-फूट कर रोने लगे और हमने कहा ..."मम्मी मेरी किस्मत में शादी नहीं है मैं अब जीवन भर शादी नहीं करूंगा आप सब की सेवा और अपना काम संभालूंगा। अब आप लोग कभी भी मुझे शादी के लिए बाध्य नहीं करिएगा।"
हमारी नजर मामी पर पड़ी... तो हमने उन्हें रोते हुए देखा और कहा... "मामी आप अपने आप को दोष मत दीजिए दोष हमारी किस्मत का है आपने तो हमारा भला चाहा था।"
हमने तभी अपने घर के नौकर को आदेश दिया कि "जल्दी ही पूरे घर से लाइटिंग और सारे बंदनवार उतर जाने चाहिए अब आप सब लोग भी शादी के माहौल से बाहर आ जाइए और अपना जीवन अलग ढंग से शुरू कीजिए" ... इतना कहकर मैं घर से निकल गया...
दिन महीने गुजरते गए बहुत दिन बाद मामी मामा ने सोचा जाकर हालचाल ले लिया जाए. घर पहुंच कर देखते हैं कि मेरी बहुत बड़ी दाढ़ी बढ़ चुकी है ऐसा लग रहा था कि मैं बिल्कुल देवदास बन चुका हूँ। मेरे से बात की तो मैंने कहा..” मामी अब शादी के विषय में बिल्कुल भी बात मत कीजिए मैंने नेहा को देखकर नेहा से शादी करने का निश्चय किया था उसे ही अपना माना था मेरी किस्मत में उसका सुख नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन मैं किसी और से शादी नहीं करूंगा...”
नेहा जी यही है मेरी आपबीती जो आपके नेहा नाम ने मुझे अतीत के पृष्ठों को पुनः खोलने के लिए बाध्य कर दिया...
नेहा ने कहा..."मैं आपसे एक बात पूछना चाहती हूँ इस दौरान आपकी कभी नेहा से बात नहीं हुई."
हमने कहा..."जी तीन चार बार हुई. वह पत्थर हो चुकी है उसकी माँ का वही हाल है। माँ के बार-बार कहने पर भी वह अब कहीं नहीं जाती न ही किसी को घर में आने देती है..."
उसका कहना है..."एक बार मेरी ज़िन्दगी में खुशियों का झोंका आया मैं उसकी महक हूँ अब अपवित्र नहीं करना चाहती। आपके साथ मैं शादी के बंधन में बंधी थी। आपके नाम का सिंदूर और मंगलसूत्र अब भी मेरे शरीर पर सुशोभित है उसे कलंकित नहीं करना चाहती। भले ही आप मेरे साथ नहीं है पर मैं कल्पना मैं आपको वरण कर चुकी हूँ।" ...
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नेहा ने कहा... "शांतनु जी एक बात आपसे कहना चाहती हूँ जिस लड़की ने आपको मन से अपना मान लिया है आपके कारण वह दलदल से निकलकर बाहर आ गई है... क्या अभी भी वह अपवित्र है ... सारा जीवन उसने आपके नाम कर दिया... क्या कभी उसे अतीत से निकलने का अधिकार मिलेगा... कौन देगा उसे अधिकार... आप भी उसी की यादों में खोए रहते हैं... क्या अब भी आप उसे माफ नहीं कर सकते... गलती करने के बाद सुधरने का मौका सभी को होता है मेरे हिसाब से तो एक मौका आप नेहा को भी दे दीजिए आपकी और उसकी ज़िन्दगी संवर जाएगी..."
"नेहा जी आपकी बातों ने मेरे मेरे तन-बदन में हलचल-सी मचा दी ,दिमाग में प्रेरणा का संचार किया है। इस विषय पर मैं विचार अवश्य करूंगा क्योंकि देवदास बनकर जीवन बर्बाद नहीं किया जा सकता। तुरंत हमने... फोन उठाया और नेहा को फोन लगाया ..."
नेहा ने तुरंत फोन उठाया... " कहा शांतनु बहुत दिनों बाद आपको हमारी याद आई...'
हमने कहा नेहा... "यह जीवन दोबारा नहीं मिलता तुमने अपना प्रायश्चित कर लिया है। शायद तुम और हम एक दूसरे के लिए ही बने हैं मैं तुम्हें अपना नाम देना चाहता हूँ... मैं आ रहा हूँ..."