गाय की बछिया Rajesh Rajesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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गाय की बछिया

रणधीर का संयुक्त परिवार गांव में सबसे बड़ा था। उसके परिवार में माता पिता अपनी छोटी बहन के अलावा दादा दादी ताऊ ताई उनके दो बेटे चाचा चाची उनका एक बेटा था। इतना बड़ा परिवार गांव के मकान में बड़ी दिक्कतों से रहता था, इसलिए उसका पूरा परिवार मिलकर फैसला करता है, कि अपने खेत में बड़ा सा मकान बनाकर सब उसमें एक साथ रहेंगे। रणधीर शहर में पढ़ाई कर रहा था। लेकिन वह पढ़ लिख कर नौकरी नहीं करना चाहता था क्योंकि गांव में उसकी जमीन जा जात बहुत और आसपास के गांव में किसी के पास इतनी खेती की जमीन नहीं थी जितनी रणधीर के परिवार के पास थी। इसलिए वह शहर से खेती के नए-नए तरीके सीख कर गांव में अपने पिता ताऊ चाचा जी और ताऊ चाचा के लड़कों के साथ अपने गांव की खेती की जमीन पर खेती करता है। रणधीर के आने के बाद रणधीर के नए-नए तरीकों से उनकी खेती आसपास के गांव में सबसे ज्यादा अच्छी होती थी। और फसल बेचकर उन्हें इतना अधिक मुनाफा होता था कि वह गांव के गरीब परिवारों की आर्थिक मदद भी कर देते थे। इस वजह से रणधीर के पूरे संयुक्त परिवार का पूरा गांव बहुत आदर सत्कार करता था। किंतु रणधीर के किसान बनने के बाद रणधीर का परिवार कीटनाशक दवाइयों का खेती में हद से ज्यादा प्रयोग करने लगा था। परिवार में सुख समृद्धि आने के बाद रणधीर के ताऊजी अपने दोनों बेटों का एक ऊंचे खानदान में विवाह कर देते हैं। रणधीर के ताऊ के दोनों लड़कों का विवाह होने के बाद रणधीर के माता-पिता भी रणधीर के साथ शादी के लिए एक सुंदर सुशील पढ़ी लिखी लड़की ढूंढना शुरू कर देते हैं। और एक दो महीने में उन्हें मधु नाम की अपनी पसंद के मुताबिक रणधीर के साथ शादी करने के लिए मिल जाती है। रणधीर का परिवार खूब धूमधाम से रणधीर की शादी करता है। मधु शादी की पहली रात ही रणधीर से कहती है कि "मुझे अपनी गाय की बछिया से बहुत ज्यादा प्यार है क्या मैं उसे तुम्हारे घर लाकर पाल सकती हूं।"मधु की यह बात सुनकर रणधीर की हंसी छूट जाती है और वह कहता है "हमारे घर में इतनी गाय हैं और उनकी बहुत सी बिछिए है, उनके साथ तुम्हारी बछिया भी बहुत आराम से रहेगी मैं कल ही तुम्हारे साथ तुम्हारे मायके जाकर तुम्हारी प्यारी बिछिया को लेकर आऊंगा।"और दूसरे दिन मधु रणधीर मधु के मायके से मधु की बछिया को ले आते हैं। मधु की बछिया आम बछिया से बिल्कुल अलग थी दूध जैसा उसका सफेद रंग था हिरणी जैसा चेहरा था, वह नटखट चंचल भी बहुत ही थी। भोले भाले चेहरे की बछिया से कुछ ही दिनों में रणधीर के पूरे परिवार को प्यार हो जाता है। रणधीर के दादा दादी जब सर्दियों में अपने घर के बड़े आंगन में धूप सेकने बैठते थे, तो मधु की चंचल नटखट भोली भाली बछिया उनकी चारपाई के आसपास खूब उछल कूद करके खेलती रहती थी। ऐसे ही जब वह है गर्मियों में छाया में बैठते थे तो गाय की बछिया उनकी चारपाई के पास उछल कूद कर के खेलती रहती थी। गाय की बछिया की अजीबोगरीब शरारते देखकर कभी-कभी रणधीर के परिवार का हंस-हंसकर बुरा हाल हो जाता था। रणधीर के दादा दादी गाय की बछिया को अपने बच्चे जैसा प्यार करने लगे थे। जब कभी मधु रणधीर के साथ अपने मायके जाती थी, तो गाय कि बछिया का उसकी मां गाय से मिलाने छोटे टेंपो में साथ लेकर जाती थी, तो घर का सूना आंगन देखकर रणधीर के दादा दादी का गाय की बछिया की बहुत याद आती थी। और जब मधु गाय की बछिया तो अपने मायके से वापस लाती थी, तो रणधीर के दादा दादी गाय की बछिया को अपनी चारपाई के पास बुलाकर उसके कान में पूछते थे कि? "तेरे जाने के बाद हमें तेरी बहुत याद आती है क्या तू भी हमें वहां याद करती थी।" तो गाय की बछिया पहले उनकी बात ध्यान से सुनती थी और फिर आंगन में उछल कूद कर के खेलने लगती थी। रणधीर के आने के बाद रणधीर का परिवार कीटनाशक दवाइयों का बहुत ज्यादा खेती में प्रयोग करने लगा था, इस वजह से ना चाहते हुए भी पशुओं के चारे में या आसपास की हरे घास पत्तों में भी कीटनाशक दवाइयां फैल जाती थी। वह गाय की छोटी बछिया को ना जाने कैसे कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव वाला चारा हरी घास पत्ते खाने में जायद आने लगा था। वह कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव वाली हरी घास हरे पत्ते चारा सबसे ज्यादा खाने लगी थी। और एक दिन गाय की बछिया रणधीर के दादा दादी चारपाई के पास खेलते खेलते बेहोश हो जाती है। और उसकी नाक मुंह से खून आने लगता है। बछिया के ऐसी दर्दनाक हालत देखकर रणधीर के दादा दादी दुखी होकर तेज तेज चिल्लाकर गाय की बछिया के लिए मदद मांगने लगते हैं। उनके बिलाप कि आवाज सुनकर रणधीर मधु और रणधीर का पूरा परिवार वहां इकट्ठा हो जाता है। रणधीर तुरंत गाय की बछिया की ऐसी बुरी हालत देखकर मधु के साथ गाय की बछिया को पशुओं के अस्पताल लेकर जाता है। पशुओं का डॉक्टर गाय की बछिया कि पूरी जांच करके रणधीर मधु से कहता है कि "कीटनाशक दवाइयों का चारा खाने से तुम्हारी गाय कि बछिया को कैंसर हो गया है, और कैंसर भी लास्ट स्टेज पर है। तुम्हारी गाय की बछिया ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह तक जीवित रहेगी।"पशुओं के डॉक्टर की यह बात सुनकर मधु रोने लगती है। मधु को देखकर रणधीर की आंखों में भी आंसू आ जाते हैं। रणधीर किसी तरह अपने को संभाल कर मधु से कहता है "यह बात दादा दादी को किसी भी हालत में पता नहीं चलनी चाहिए।"रणधीर और मधु पशुओं के अस्पताल से वापस आने के बाद, दादा दादी को गाय की बछिया कि मामूली बीमारी बताकर गाय कि बछिया कि कैंसर वाली बात छुपा लेते हैं। और एक दिन दादा दादी की चारपाई के पास गाय की बछिया रोज की तरह उछल कूद कर के खेल रही थी। और अचानक दादा दादी के पैरों के पास गिरकर दम तोड़ देती है। तब रणधीर दादा दादी और पूरे परिवार को बताता है कि "गाय की बछिया की दर्दनाक मौत का कारण अपने खेतों में हद से ज्यादा कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करना है।"रणधीर की यह बहुत सुनने के बाद उसके दादा दादी और पूरा संयुक्त परिवार बेजुबान मासूम गाय की बछिया की दर्दनाक मौत का अपने को जिम्मेदार मानते हैं इसलिए वह सब उस दिन से कीटनाशक दवाइयों का पूरी तरह प्रयोग करना छोड़ देते हैं। और उस दिन से ऑर्गेनिक खेती करना शुरू कर देते हैं। खुद भी ऑर्गेनिक खेती करते हैं और अपने गांव आस-पास के गांव वालों को भी ऑर्गेनिक खेती करने की सलाह देते हैं।