मैं पापन ऐसी जली--भाग(१०) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मैं पापन ऐसी जली--भाग(१०)

आदेश का यूँ कमरें को गौर से देखना सरगम को कुछ अटपटा सा लगा तो सरगम ने आदेश से पूछा...
"क्या हुआ?आप कमरे को इतने गौर से क्यों देख रहे हैं?"
"तुम्हारे कमरें में केवल पंखा ही है,एयरकंडीशनर नहीं है और तुम्हारा कमरा इतना सादा क्यों हैं? यहाँ ना कोई साज-सजावट और ना ही कोई महँगा फर्नीचर है",आदेश ने सरगम से पूछा...
"जी!मुझ जैसी मिडिल क्लास लड़की को इन सबकी कोई जरूरत नहीं",सरगम बोली...
"तुम ऐसा क्यों सोचती हो,?",आदेश ने पूछा...
"जी!यहाँ दिल्ली जैसे शहर में पढ़ने का पता है कितना खर्च लगता है,मेरी पढ़ाई का खर्च तो मेरी माँ उठा ही नहीं सकती लेकिन चाचाजी मेरी पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं,उन्होंने अपने घर में आसरा दिया है,इतना क्या कम है जो मैं अब उनसे अपने एश-ओ-आराम की चींजे भी लेना शुरू कर दूँ और फिर मुझे आदत है पंखे की हवा में रहने की,मेरे घर में ना तो एयरकंडीशनर था और ना ही महँगा फर्नीचर और फिर मेरा ये कमरा बगीचे के बगल में है इसलिए मैं खिड़कियाँ खोल लेती हूँ और इस ताजी हवा के आगे एयरकंडीशनर भी फेल है",सरगम बोली....
"कैसी बातें कर रही हो सरगम?अब तुम हमारे घर में रहती हो तो जिस तरह से हम सभी रहते हैं तो तुम्हें भी उस तरह से रहने में भला क्या एतराज़ है?",आदेश ने कहा...
"आदेश जी! मैं अपने लिए केवल उतना ही चाहती हूँ जिससे कि मेरा गुजारा चल सकें,मैं ऊँची ख्वाहिशें नहीं रखतीं,मेरी जड़े अभी भी जमीन में हैं और मैं धरातल में रहना ही पसंद करती हूँ",सरगम बोली...
"इसका मतलब है कि तुम बड़ी स्वाभिमानी हो",आदेश बोला...
"अब आप चाहे इसे जो समझें,मैनें अपने चारों ओर एक दायरा बना रखा है और जिसे पार करना मेरे लिए बिल्कुल गँवारा नहीं",सरगम बोली....
"खुद्दार लोग ऐसे ही होते हैं",आदेश बोला....
"आदेश जी मैं कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं कर सकती,",सरगम बोली....
"अच्छा लगा तुम्हारे बारें में जानकर",आदेश बोला....
"आदेश जी!मेरी जिन्दगी एक खुली किताब है,जिसके बारें में कभी भी किसी से कुछ छुपा नहीं है", सरगम बोली...
"तो इसका मतलब है कि तुमने कभी किसी से मौहब्बत भी नहीं की होगी",आदेश ने पूछा...
"जी!मेरे पास फालतू चींजो के लिए समय नहीं है",सरगम बोली....
"मौहब्बत फालतू चींज नहीं होती",आदेश बोला....
"अभी इन सबके लिए मेरे पास समय नहीं है",सरगम बोली....
"लेकिन कोई भा गया तो फिर अपने दिल को कैसें समझाओगीं"?,आदेश ने पूछा...
"तब की तब देखी जाएगी",सरगम बोली....
"जी!आप तो किताब देने वाली थी ना!,",आदेश बोला...
"जी!मैं ये तो भूल ही गई"
और इतना कहकर सरगम किताबों वाली अलमारी की ओर बढ़ गई और उसने धर्मवीर भारती की गुनाहों का देवता निकाली और फिर आदेश के पास आकर बोली....
"ये बहुत ही खूबसूरत प्रेमकहानी है"
"इस कहानी के नायक-नायिका अन्त में मिल जाते होगें शायद,इसलिए ये तुम्हारे लिए खूबसूरत प्रेमकहानी होगी",आदेश बोला...
"नहीं!दोनों बिछड़ जाते हैं",सरगम बोली....
"तो फिर क्या फायदा ऐसी प्रेमकहानी पढ़ने का"?आदेश बोला...
तब सरगम बोली.....
"ये कहानी चन्दर और सुधा के बीच अव्यक्त किस्म के प्रेम की है,वो प्रेम जिसे दोनो ही पूजते हैं किन्तु कोई भी स्वीकार करने की चेष्टा नहीं करता और ना स्वीकृति की ज़रूरत ही समझता है, दोनो एक दूसरे को खुश तो देखना चाहते हैं पर सामाजिक बेड़ियों से इतने जकड़े हुए हैं कि आदर्शवाद को मन में बसा कर अपने इस प्रेम की बलि देना ही उचित समझते हैं, कहानी की शुरुआत से ही उनके बीच परस्पर झगड़े और प्रेम के प्रसंग दिखाए गए हैं,चन्दर सुधा का देवता था और सुधा ने हमेशा एक भक्त की तरह ही उसे सम्मान भी दिया और प्रेमिका की तरह चाहा भी है, वहीं चन्दर अंजाने में ही सही पर सुधा का सस्नेह ख़याल रखता है, घर भर में अल्हड़ पुरवाई की तरह तोड़-फोड़ मचाने वाली सुधा, चन्दर की आंँख के एक इशारे से शांत हो जाती है, दोनों का एक दूसरे के प्रति अधिकार इतना स्वभाविक है कि जैसे आरती के दीपक की पवित्रता या कहें शिशु की मुस्कुराहट....
"इतना प्रगाढ़ प्रेम था दोनों के बीच में तो फिर अलग होने की वजह क्या थी"?,आदेश ने पूछा...
"सब मुझ से ही पूछ लेगें तो फिर पढ़ेगें क्या"?,सरगम बोली...
"अरे अब बता भी दो",आदेश बोला...
"फिर आपकी रूचि खतम हो जाएगी किताब पढ़ने में",सरगम बोली....
"ऐसा कुछ नहीं होगा,तुम बताओ",आदेश बोला...
तो फिर सरगम बोली....
"कहानी में ये मोड़ तब आता है जब सुधा का विवाह किसी और से हो जाता है और चन्दर एवं सुधा अलग हो जाते हैं, फिर नायक, नायिका के वियोग में, इतना आहत हो जाता है कि अपनी सुधबुध खो बैठता है",
"दोनों का विवाह भी तो हो सकता था",आदेश बोला...
"हमारे समाज में अन्तर्जातीय विवाह नहीं होते आदेश बाबू!",सरगम बोली...
"ये कैसी प्रेमकहानी हुई भला",आदेश बोला...
"जब आप इस किताब को पढ़ेगे ना तब इस कहानी का मर्म समझ पाऐगें",सरगम बोली...
"अब तो पढ़नी ही पढ़ेगी,तभी पता चलेगा कि इसमें क्या है"?,आदेश बोला...
तब सरगम बोली....
"यह कहानी हर उस पुस्तक प्रेमी को पढ़नी चाहिए जिसे भावों के अनियंत्रित वेग का अनुभव करना हो, ये कहानी प्रेम को एक नई परिभाषा देती है क्योंकि प्रेम पवित्रता की ही नहीं,बल्कि त्याग की भी पराकाष्ठा है"
"तो क्या सच्चा प्रेम ऐसा होता है"?आदेश ने पूछा...
"जी!हाँ!ऐसा ही होता है",सरगम बोली...
"बिना प्रेम किए तुम प्रेम के बारें में इतना कैसें जानती हो"? आदेश ने पूछा....
"प्रेम का भाव आने के लिए जरूरी तो नहीं कि प्रेमी से ही प्रेम किया जाए",सरगम बोली....
"अच्छा!तुम बताओ,तुम कैसा प्रेमी चाहोगी,जैसा कि चन्दर था"?,आदेश ने पूछा...
"नहीं!वैसा तो नहीं,साथ निभाने वाला प्रेमी चाहिए,जो हर कदम पर मेरा साथ दें,",सरगम बोली...
"अगर उसके घरवालों को तुम पसंद ना आई और उसने तुम्हें अपने परिवार की खातिर छोड़ दिया तो फिर क्या करोगी?",आदेश ने पूछा....
"पहले उसे मेरी जिन्दगी में आने तो दो",सरगम बोली....
"ठीक है तो अब मैं चलता हूँ ,काफी देर हो चुकी है बात करते करते",
"जी !गुडनाइट!",सरगम बोली....
"मतलब तुम चाह ही रही हो कि मैं यहाँ से चला जाऊँ",आदेश बोला...
"आप गलत समझ रहे हैं",सरगम बोली...
"मैं तो मज़ाक कर रहा था",
और फिर आदेश सरगम को गुडनाइट बोलकर अपने कमरें में चला गया और आदेश के जाने के बाद सरगम काफी देर तक आदेश की कही बातें सोच सोचकर हँसती रही और फिर कुछ देर पढ़ने के बाद वो भी सो गई,दिन यूँ ही गुजर रहे थे और इधर आदेश और सरगम में नजदीकियांँ बढ़तीं जा रहीं थीं,सरगम को आदेश से बातें करना बहुत अच्छा लगता था और कभी कभी वो आदेश के साथ उसकी कार में घूमने भी चली जाती थी,सरगम की आदेश से बढ़ती नजदीकियों को कमलकान्त ने भी गौर किया और उसने एक रोज़ सरगम से कहा....
"सरगम जी !मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ",
"जी!कहिए!,"सरगम बोली....
"जो आप कर रहीं हैं वो बिल्कुल ठीक नहीं है",कमलकान्त बोला....
"आपके कहने का मतलब क्या है,मैं क्या कर रही हूँ और क्या ठीक नहीं है"?सरगम गुस्से से बोली....
फिर सरगम का गुस्सा देखकर कमलकान्त कुछ बोल नहीं पाया.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....