कुलभूषण त्रिपाठी जी के अन्तिम संस्कार के बाद सदानन्द जी ने एक भाई की तरह अपनी मुँहबोली सुभागी और उसके तीनों बच्चों की जिम्मेदारियों को लेना शुरु कर दिया,अब सुभागी और सरगम को भी पता था कि अब सरगम मेडिकल की पढ़ाई नहीं कर पाएगी क्योंकि उसकी पढ़ाई के लिए खर्चा कहाँ से आएगा और उन्होंने संकोचवश ये बात सदानन्द बाबू से भी नहीं बताई,इसलिए सदानन्द बाबू ने कस्बें के काँलेज में ही बी.एस.सी. में सरगम का एडमिशन करा दिया और सुभागी को कुछ रूपये देकर वापस दिल्ली रवाना हो गए और जाते जाते सुभागी से ये कहकर गए...
सुभागी बहन!आप बिल्कुल भी चिन्ता ना करें,मैं आपको हर महीने मनीआर्डर से पैसें भेजता रहूँगा और कभीकभार आता भी रहूँगा,इसके अलावा आपको कभी भी कोई भी परेशानी हो तो ख़त लिखकर मुझे जरूर बता दीजिएगा,आप तो वैसें मेरी भाभी लगतीं हैं लेकिन अब से मैं आपको बहन कहूँगा,ताकि निःसंकोच भाई समझकर आप मुझे अपनी परेशानी बता सकें....
तब सुभागी बोली...
अब क्या बोलूँ भाईसाहब?आप तो जैसे हमारे लिए एक फरिश्ता बनकर आएं हैं,वें तो आधे रास्ते में मेरा साथ छोड़कर चले गए,आप ना होतें तो जाने मेरा और मेरे बच्चों का क्या होता?
तब सदानन्द बाबू बोलें.....
ऐसा ना कहें बहन!शायद ये उस ऊपरवाले की मरजी थी कि मेरे भाई को उन्होंने अपने पास बुला लिया और मैं कौन होता हूँ आपकी मदद करने वाला,जो भी करवाता है वो सब वो ऊपरवाला करवाता है,ये तो मेरी खुशनसीबी है जो मैं आपलोंगों के काम आ सका....
और फिर सदानन्द बाबू दिल्ली पहुँचते ही अपने वादे को नहीं भूले और हर महीने बिना भूले सुभागी के लिए रूपये भेजते रहे और कभीकभार आकर उनकी खोज ख़बर भी ले लेते,समय बीतता रहा और ऐसे ही सरगम को काँलेज में एक साल होने को था और एक दिन सरगम अपनी सहेलियों के साथ काँलेज के बगीचे में इमली के पेड़ के नीचे बैठी बातें कर रही थीं,क्योंकि उस दिन प्रोफेसर साहब क्लासरूम में लेक्चर देने नहीं आए थे....
तभी एक पत्थर सरगम के सिर पर आके लगा और उसने इधरउधर देखा तो उसे कोई भी नज़र नहीं आया,जब सरगम को कोई नहीं दिखा तो वो फिर से अपनी सहेलियों के संग बातों में मगन हो गई,तभी दूसरा पत्थर आकर उसकी एक सहेली श्वेता को लगा,अब सरगम तो कुछ ना बोली लेकिन उस की सहेली श्वेता को गुस्सा आ गया और वो वहीं खड़े होक इधरउधर देखने लगी तो उसे थोड़ी दूर कुछ लड़के नज़र आएं जो इमली के पेड़ पर पत्थर मारकर इमली तोड़ना चाहते थे,सरगम की सहेली श्वेता ने उन लड़को से कहा....
सुनो! ये क्या बतमीजी है?
तब उन लड़कों में से एक लड़का सामने आकर बोला....
जी!मोहतरमा!आपने कुछ कहा....
हाँ!मैनें कहा कि ये क्या बतमीजी है?श्वेता बोली....
बतमीजी....हमने तो कोई बतमीजी नहीं की,वो लड़का बोला....
अच्छा...जी!तो इसका मतलब है कि ये पत्थर आसमान से बरस रहे हैं,श्वेता बोली....
अच्छा !तो ये बात है,हम तो कच्ची कच्ची इमलियाँ तोड़ रहे थे..,वो लड़का बोला....
वो क्यों भला?श्वेता ने पूछा...
खाने के लिए...और किसलिए...,वो लड़का बोला...
ये सब बहाने मुझे मत बताओ,तुम लोंग केवल हमें परेशान करने के लिए पत्थर मार रहे थें,मेरी सहेली सरगम को तो इतनी जोर से सिर पर एक पत्थर लगा कि उसके सिर से खून भी निकल आया,श्वेता बोली....
कहाँ लगी?देखूँ तो जरा,वो लडका इतना कहकर उनके नजदीक आ पहुँचा...
तब श्वेता बोली....
बस ढूढ़ लिया बहाना,हम लड़कियों के नजदीक आने का....
भलाई का तो जैसे जमाना ही नहीं है,दर्द पूछो तो भी आप लड़कियों को लगता है कि हम लफंगागीरी कर रहे हैं,इमलियाँ खाने की कहो तो वो भी आप लड़कियों को झूठ लगता है,आखिर हम लड़के करें तो करें क्या?वो लड़का बोला....
लेकिन लड़के इमली खाते ही कहाँ हैं?श्वेता बोली....
कैसीं बातें कर रहीं हैं मोहतरमा?मैं तो इमली बहुत खाता हूँ,बहुत अच्छी लगती है नमक और मिर्च के साथ,कच्ची इमली की चटनी भी मुझे बहुत पसंद है,इसलिए तो तोड़ रहा था और आप गलत समझ बैठीं,वो लड़का बोला.....
चलिए!गलती हो गई,लेकिन देखकर तोड़ना चाहिए था ना इमलियाँ,ख्वामख्वाह में मेरी सहेली का सिर फूट गया,श्वेता बोली....
किन्हें लगा ?पत्थर जरा देखूँ तो,वो लड़का बोला....
ये बैठी है बेचारी सिर पकड़कर ,इसे लगा पत्थर,श्वेता ने सरगम की ओर इशारा करते हुए कहा....
तब उस लड़के ने सरगम की ओर देखा तो बस देखता ही रह गया,जब काफी देर तक उस लड़के ने सरगम के ऊपर से अपनी नज़रे नहीं हटाईं तब श्वेता बोली.....
क्या हुआ मिस्टर स्टेच्यू क्यों बन गए?
कुछ नहीं जी.....बस ऐसे ही...इमलियों के बारें में सोच रहा था,वो लडका बोला.....
उस लड़के की बात सुनकर वहाँ मौजूद सभी लड़कियांँ खी....खी....खी..करके हँसने लगीं....
तब श्वेता ने उस लड़के से कहा.....
इमलियों के बारें में सोच रहे थे कि और ही कोई बात है..
और क्या सोचूँगा जी? आपलोंगों की सैण्डल थोड़े ही खानी है,वो लड़का बोला.....
तो फिर जाइए यहाँ से,श्वेता ने कहा....
जी!मोहतरमा!लीजिए हम चलें और इतना कहकर वो लड़का जाने लगा तो श्वेता बोली....
जनाब!नाम तो बताते जाइएं....
जी!गुलाम को शाश्वत कहते हैं,...,उस लड़के ने कहा...
नाम तो बहुत अच्छा है आपका,श्वेता बोली....
जी! अब अपना नाम बताने की भी तकलीफ़ भी उठा ही लें,शाश्वत बोला....
मेरा नाम श्वेता है,श्वेता बोली...
और आपकी सहेली का भी कुछ नाम होगा,शाश्वत ने पूछा।।
वो मैं नहीं बता सकती,इसकी इजाजत नहीं है मुझे,श्वेता बोली....
तो इजाजत ले लीजिए,शाश्वत बोला....
वो मैं नहीं ले सकती,क्योकिं उसे ये सब पसंद नहीं है,श्वेता बोली....
तो कोई बात नहीं जी! और इतना कहकर शाश्वत वहाँ से चला गया...
तब सरगम श्वेता से बोली....
कितना बकवास करती है तू!
कुछ भी कहो,लड़का था बड़ा जोरदार,तभी बकवास कर रही थी उससे,श्वेता बोली....
तू तो सभी लड़को को देखकर ऐसा ही कहती है,सरगम बोलीं....
ना रे!ये तो तेरे लिए था,वो तुझे कैसें देख रहा था,श्वेता बोली....
तो मैं क्या करूँ?सरगम बोली....
कुछ नहीं बहन!वो पहली नज़र में ही तुझ पर फ़िदा हो गया है,श्वेता बोली...
मुझे परवाह नहीं,मैं काँलेज पढ़ने आती हूँ,ये सब करने नहीं,सरगम बोली...
नाराज़ क्यों होती है मेरी जान?ये सब तो इसी उम्र में होता है,श्वेता बोली....
तुझे पता है ना कि मेरे ऊपर कितनी जिम्मेदारियाँ हैं,सरगम बोली...
हाँ!बहन मालूम है,श्वेता बोली...
तब भी तू मुझसे ऐसी बातें करती है,सरगम बोली...
इसलिए तो उसे तेरा नाम नहीं बताया,श्वेता बोली....
अच्छा किया तूने,मेरा नाम जानकर वो करता भी क्या?सरगम बोली...
इश्क़ करता तुझसे,श्वेता बोली....
फालतू की बातें मत कर,चल यहाँ से लेक्चर का समय हो गया ,सरगम बोली....
और फिर दोनों लेक्चर अटेंड करने अपने क्लासरूम की ओर बढ़ गई......
दोनों का वो दिन ऐसे ही बीत गया और दूसरे दिन वें दोनों पढ़ने के लिए लाइब्रेरी पहुँची तो कुछ ही देर में शाश्वत भी वहाँ आ पहुँचा और उन दोनों की सामने वाली बेंच पर आकर बैठ गया,श्वेता की नज़र उस पड़ी तो इशारों में पूछ बैठी कि तुम यहाँ कैसें?
तब उसने इशारों में जवाब दिया कि..मैं भी आपलोंगों की तरह यहाँ पढ़ने आया हूँ....
और इतना बताकर वो पढ़ने लगा लेकिन पढ़ते समय शाश्वत का ध्यान किताब पर कम और सरगम पर ज्यादा था...
क्रमशः....
सरोज वर्मा....