प्यार की कहानी (15 )
सुनलो मैं अपने प्यार की कहता हूँ कहानी!
गुजरी जो इश्क-ऐ – दिल पे वो है अपनी जुबानी !
कुछ रोज साथ साथ गुजारे हंसी-खुशी।
पर कुछ दिवस के बाद ही रहने लगा दुखी।
यह सोचकर कि अब तो बिछुड़ना जरूर है ।
फिर जाने कब मिलें कि गांव बहुत दूर है।
अब कौन रोज सुबह से आकर जगाएगा।
अब कौन मुझको प्यार के नगमे सुनाएगा।
अब कौन साथ बैठ जूठी रोटी खाएगा।
अब कौन रोज साथ हंसेगा हंसायेगा ।
मैं तुमको प्यार करता हूँ करता ही जाऊंगा ।
पर नाम तेरा अपनी जुबां पर न लाऊँगा।...
कई बार जी हुआ कि जुबां अपनी खोल दूँ।
मैं तुमको चाहता हूँ ये तुमसे ही बोल दूँ।
इसके लिये कुछ रोज पहले आधी रात को,
कुछ शब्द तय किये थे जिनसे कहता बात को।
एक रोज सुबह से ही मैं साहस बटोर कर।
था इन्तजार में कि कहीं तुमको रोक कर ।
इस राज ऐ दिल को तुम पे खोल कर ही रहूँगा
मैं तुमको चाहता हूँ बोलकर ही रहूँगा !
तुम सामने आए तो हम बे बोल हो गए।
जो वाक्य तराशे थे सब बेमोल हो गए।
अब मैंने तेरे रूप की प्रतिमा सी बना कर
रख ली है दिल के भीतरी परतों में छिपा कर !
आंसू जो बह सके न उनका जल चढ़ाऊंगा
पर नाम तेरा अपनी जुबां पर ना लाऊंगा !...
उन झील सी आँखों में थी , गहराई असीमित ।
एक बार क्या डूबे कि हम डूबे ही रहे नित।
जी चाहता है उम्र भर डूबे ही रहें हम ।
खुशियां न मिल सकी 'न सही साथ तो हैं गम,
अब गम के सहारे ही गुजारेंगे जिन्दगी
तकदीर में लिखी थी मेरे बुत की बंदगी
हम बंदगी को प्यार का पर्याय कहेंगे
तुमसे मिली हर बेदना हंस हंस के सहेंगे
यह चाह है कि जिन्दगी में वो भी दिन आए
यह शख्श तेरे सामने यह गीत सुनाये
विश्वास है ये मन में कि गाना तो गाऊँगा
पर नाम तेरा अपनी जुबां पर ना लाऊंगा !
मेरे हमदम मेरे हमदर्द हो हमराज हो तुम ,
मेरे नगमों का हर अल्फाज हो तुम ,
बहुत समझा समझ न पाया मैं
खुली पुस्तक भी हो और राज हो तुम!
तुम मेरे दर्द की कहानी हो ,
मेरे गीतों की तुम रबानी हो !
जूही हो केतकी हो बेला हो,
कुमुदिनी चंपा रातरानी हो !
तुममें कश्मीर नजर आता है
जान्हवी नीर नजर आता है !
जुल्फ के साए से बंधा हूं मैं ,
प्यार जंजीर नजर आता है !
जब से तुम जिंदगी में आए हो,
आंखों के रस्ते दिल पे छाए हो !
कौन कह सकता है पराये हो ,
मेरी रग रग में तुम समाए हो !
अब मेरा दींन हो ईमान हो तुम ,
मेरे अल्लाह मेरे भगवान हो तुम !
उम्र भर तुमको ही नमाजूँगा
मेरी गीता मेरा कुरान हो तुम!
तुमको पाकर स्वयं को भूला हूं,
स्वप्न झूले में बरसों झूला हूं,
एक ठोकर की जिंदगी अपनी
नदी के तीर का घरगूला हूं !!
पवन का झोंका भी अगर आए ,
जिंदगी रेत बन बिखर जाए,
जो तेरे आस्तां मे आ जाए,
वो भला और फिर किधर जाए !
जग को जाना जब जमकर ज्योति को जग पर जमाया,
तुम भी क्या हो कि आंखें बंद की तब देख पाया!
तुम्हारी याद है कि आ गई लो आ गई
वो भूली दास्तां स्मृति पटल पर छा गई
मैं एक पल भी अकेला चैन से न बैठ पाया
तुम्हारी याद ने कई बार सोते से जगाया
खुली आंखों में भी कई बार तेरे चित्र ने आकर
दिया धोखा मुझे कर चार चक्षु मुस्कुराकर
अकेला पाते ही मैं तुमको याद करता हूं
अकेला बैठ तुमसे घंटों बात करता हूं
अब तो आजा के हम अधूरे हैं
भावनाओं ने चौक पूरे हैं
अब तो आजा के सूर्य ढलता है
अब तो आजा के दम निकलता है
अब तो आजा के याद आती है
अब तो आजा के बात जाती है
अब तो आजा के प्राण जाते हैं
शून्य को शून्य में समाते हैं
एक तेरी झलक के पाते ही
बोल भर कान में सुनाते ही
देह को पार्थिव बना दूंगा
प्राण को प्राण से मिला दूंगा
००