रात का वक्त , रागिनी का कमरा
रागिनी बेड पर बैठी मुस्कुरा रही थी और गिरिराज उसे पैरों में अपने हाथों से पायल पहना रहा था । उसने पायल पहनाने के बाद हल्के होंठो से पैरों को चूम लिया । रागिनी अपने पैर पीछे करते हुए बोली " छोडिए ठाकुर साहब हमेशा आप हमे उतरन ही पहनाते रहिएगा । आपकी थकान हम दूर करते हैं और हीरे जवाहरात से आपकी पत्नी लदी रहती है । वो तो नाम की बीवी हैं , असली प्यार तो हम ही आपको देते हैं उसके बाद में हमे आप उसकी उतरन देते हैं । ये हीरो का हार , पायल सब उसकी उतरन हैं । "
" अरे नाराज काहे होती हैं । माना की ई सब उसके हैं लेकिन ऊं इनको पहनती नही हैं । सबके सब नए हैं तुम खुद ही देख लो । अरे ई सब खाली अलमारी की शोभा बढ़ाते रहते हैं । हम इनको उठाकर इनकी असली जगह पहुंचा देते हैं । " गिरिराज ने कहा ।
रागिनी इतराते हुए उससे अपना चेहरा फेरकर बोली " इतनी मेहनत क्यों करना ठाकुर साहब । आप हमारे लिए नए जेवर क्यों नही बनवा देते । "
गिरिराज बेड के पीछे वाले हिस्से से अपनी पीठ टिकाकर बोला " बनवा देते लेकिन जब से ऑफिस की बागडोर बाबुजी ने अपने कंधे पर ली हैं तब से रूपए निकालना हमारे लिए मुश्किल हो गया हैं । हर चीज के लिए उनसे पैसा मांगना पडता हैं । ' रागिनी गिरिराज के पास आई और उसके सीने पर अपना चेहरा टिकाकर बोली " आपके बाबुजी मरने के बाद सारा रूपया छाती पर लेकर जाएंगे । आप ही तो घर के बेटे हैं । आपका भी हिस्सा हैं जायदाद में मांगते क्यों नही और अगर मांगने से न मिले तो छीन लीजिए । आपका हक हैं ।" रागिनी कहे जा रही थी और गिरिराज ध्यान से उसकी बातों को सुन रहा था । " तुम ठीक ही कहती हो। वैसे अगर हमारी बीवी हमको एक बेट दे देती , तो बाबुजी हमरे मुट्ठी में चले आते फिर घर मे हमरी इज्जत भी बढ जाती और हमरी शान भी । "
" तो अच्छे डाक्टर से क्यों नही दिखा लेते अपनी पत्नी को और अगर वो बांझ हैं तो छोड दीजिए उसे ।। आपके कदमों में तो हजारों बिछने को तैयार हैं । " रागिनी की बातों से गिरिराज तिरछा मुस्कुराया और उसके होंठों पर अपनी उंगलियां फिराते हुए बोला " कसम से रसमलाई से भी ज्यादा मीठी हो और तुम्हरी बाते ऊं का तो कोई जवाब ही नही । "
रागिनी ने ऊपर उठकर हल्के से उसके होंठों को छुआ और बहके अंदाज में बोली ......"
प्यार भरे लफ्ज़,
कभी रसीले लब्जों से भी सुना दिया करो,
कि उतर कर इन नशीली आँखों में,
फिर कहाँ कुछ सुनाई देता है ।।गिरिराज ने हाथ बढ़ाकर टेबल लेंप ऑफ कर दिया और रागिनी को अपने करीब खींच लिया ।
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रात का वक्त , रघुवंशी मेंशन
अमित आज राघव के साथ हवेली आया हुआ था । परी की नज़र उसपर पडी तो वो भागकर उसके पास पहुंची । अमित उसे गोद में उठाते हुए बोला " क्या कर रही हैं हमारी परी ? "
' मैं जानू के साथ गेम खेल रही हूं । आप भी खेलोगे हमारे साथ । "
" ये जानू कौन हैं ? " अमित ने आश्चर्य से पूछा । परी ने सामने खडी जानकी की ओर इशारा कर दिया जो संध्या से बात कर रही थीं । आमित को समझ आ गया वही उसकी केअर टेकर हैं ।
अमित परी को लेकर हॉल में चला गया और राघव अपने कमरे की ओर बढ गया । करूणा सोफे पर बैठते हुए बोली " आप कब आए अमित ? "
" बस भाभी मां आपके हाथों के बने खाने की याद आई तो दौडा चला आया । "
" अच्छा किया आपने । " करूणा ने कहा और संध्या को आवाज लगाई । " संध्या ... संध्या ....
संध्या और जानकी का ध्यान उसपर गया ।। " जी भाभी "
" सबका खाना टेबल पर लगवा दो । " करूणा ने कहा तो संध्या हां में सिर हिलाकर किचन में चली गई । करूणा ने जानकी को अपने पास बुला लिया ।। " इनसे मिलो जानू ये हैं ' अमित सिंह राठौर ' । राठौड़ एम्पायर के मालिक और देवरजी जी के खास दोस्त । "
' हल्लो ' अमित ने अपना हाथ आगे किया । जानकी ने भी ठीक उसी वक्त अमित को हाथ जोड़कर नमस्ते कहा । एक मिनट के लिए सिचुएशन आकवर्ड थी लेकिन सब एक साथ हंसने लगे ।
राघव भी चेंज कर नीचे आ चुका था । सब लोग खाना खाने के लिए डायनिंग टेबल की ओर बढ गए ।
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सुबह का वक्त , रघुवंशी मेंशन जानकी के दोनों हाथ में फूलों से भरी थाल थी । वो कॉरीडोर से गजर ही रही थी , की तभी साइड टेबल पर रखे फूलदान में उसका दुपट्टा फंसा । उसे ध्यान नही रहा और वो चलती चली गयी । जब दुपट्टा पूरी तरह से सीने से सरक गया तब एकाएक ही उसके कदम रूक गए । जानकी ने पलटकर देखा तो उसका दुपट्टे का एक सिरा फूलदान में अटका पडा था और दूसरा हिस्सा ज़मीन छू रहा था । जानकी तेजी से चलने को हुई तो फर्श पर ठोकर लगी । गरीमत थी की वो गिरी नही उसने खुद को संभाल लिया । उसके चलने से पायले शोर कर रही थी और इसी शोर कि वजह से राघव की नींद टूट गयी । जानकी तो अपनी उलझनों को सुलझा रही थी । उसे ध्यान ही नही रहा की वो इस वक्त राघव के कमरे के सामने खडी हैं । राघव गुस्से से उठते हुए बोला " कौन हैं जो इस तरीके से परेशान कर रहा हैं । " राघव ने जैसे ही दरवाजा खोला उसे जानकी नज़र आई । राघव को देख जानकी तुरंत पलट गयी । उसने कसकर अपनी आंखें मींच ली । राघव गुस्से से बोला " अपने कमरे का रास्ता भूल गयी हो या पायलो से शोर करने की आदत हैं । इस तरीके से मेरे कमरे के सामने क्यों टहल रही हो ? "
जानकी न तो कुछ बोली और न ही आंखों खोलकर उसने राघव की ओर देखा । उसका कोई जवाब जब राघव को नही मिला , तो उसने गुस्से से अपने हाथों की मुट्ठियां भींच ली । वो कुछ कहने ही जा रहा था की तभी उसकी नज़र जानकी के दुपट्टे पर गयी । राघव ने जानकी की ओर देखा जो हाथों में फूलों की थाल पकड़े खडी थी । शायद राघव को समझ आ गया उसके देखते ही जानकी ने उसकी ओर पीठ क्यों कर ली ? राघव ने उसका दुपट्टा उठाकर उसके कंधे पर डाल दिया ।
" जाओ यहां से इन पायलो का शोर अपने कमरे में करो मेरे कमरे के आगे नही । " राघव की बात सुनकर जानकी वहां से भाग गयी । कितने ही फूल ज़मीन पर बिखर चुके थे । राघव कमरे के अंदर चला आया , तभी उसे पैरों में कुछ चुभा । राघव ने नीचे झुककर उसे उठा लिया । वो एक पायल थी , शायद जानकी की पायल ही खुलकर यहां गिर गयी होगी । राघव भी कुछ यही सोच रहा था । " शायद ये पायल उस लडकी की ...... मुझे लौटा देनी चाहिए । " राघव उठकर जाने लगा की तभी राघव को कुछ याद आया । " मैं क्यों देकर आऊ , सुरेश आएगा तो उसके हाथों भिजवा दूंगा । " इतना कहकर राघव ने वो पायल वही टेबल पर रखी और कबर्ड से अपने कपड़े निकाल वाशरूम में चला गया । इधर जानकी अपने कमरे में आ चुकी थी । उसने थाल टेबल पर रखी और अपना दुपट्टा ठीक किया । " खुद को समझते क्या है ? मैं वहां जानबूझकर शोर करने थोडी न गयी थी । इस तरीके से कौन बात करता हैं भला ? सच ही कहा था संध्या ने इनसे दूरी बनाए रखने में ही भलाई हैं । " जानकी ये सब खुद से बोल फूलो की थाल लेकर बाहर चली गई । नीचे बाकी सब नाश्ते की टेबल पर बैठे थे ।
जानकी परी को अपने हाथों से खिला रही थी । राघव की नजरें बार बार जानकी पर चली जाती । उसे जानकी से जलन हो रही थी । उसके आने के बाद से परी का ध्यान राघव पर कम होने लगा था । सब नाश्ता कर ही रहे थे की तभी दरवाजे से किसी की आवाज आई ।
" ये क्या बात हुई किसी ने नाश्ते पर मेरा इंतजार ही नही किया ? " सबने सामने की ओर देखा तो राज मूंह फुलाए अंदर चला आ रहा था । संध्या मन में बोली " लो अब होगी महाभारत शुरू । "
राज जैसे ही चेयर पर बैठने लगा राघव उसके आगे से प्लेट हटाकर बोला " खाना कही भागा नही जा रहा । कम से कम हाथ तो धोकर आ जाओ । "
" ओह हां मैं तो भूल ही गया था । " ये बोल राज जाने के लिए पलटा ,की तभी उसे कुछ ध्यान आया और वो रूक गया । उसने जानकी को एक नज़र अच्छे से देखा और फिर बोला " ये कौन हैं , पहले कभी नही देखा इन्हें यहां ? " परी जानकी के गालों को छूते हुए बोली " ये मेरी जानू हैं । "
" अच्छा जी तो मैंने कब कहा ये मेरी जानू हैं । " राज ने उसे चिढ़ाते हुए कहा ।
परी गुस्से से उसे घूरने लगी । राज जानकी की ओर देखकर बोला " कही आप इस शैतान की नयी केअर टेकर तो नही । "
जानकी ने हां में अपना सिर हिला दिया । राज उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाकर बोला " हाय आय एम राज ..... राज सिंह राठौर .... जानकी उसके हाथ की ओर देखने लगी । परी उसका हाथ हटाते हुए बोली " ये मेरी जानू हैं । अपने हाथ को दूर रखो । "
' ओ हल्लो मैं उन्हें लेकर नहीं भाग रहा । बस हल्लो कर रहा हूं । अगर मुझे गुस्सा दिलाया न तो मैं उन्हें अपने साथ लेकर चला जाऊगा । " राज के ये कहते ही परी जानकी के गले लग गयी । ' नयी मैं जानू को कही नही जाने दूगी । "
" मैं तो तुमसे छीनकर ले जाऊगा । ' ये बोलते हुए राज वहां से उठकर चला गया । जानकी परी को खुद से अलग करते हुए बोली " हम कही नही जा रहे हैं छोडिए हमे । "
" नयी हम आपको नही छोड़ेंगे । आपको पता हैं जानूं राज चाचू न सच्ची में आपको ले जाएगे । चलो न हम दोनों चलकर छुप जाते हैं । " परी की बातों पर सबको हंसी आ रही थी । जानकी ने उसे खुद से अलग किया और उसे नाश्ता कराने लगी । राज भी हैंडवाश कर वहां चला आया । वो जानकी की ओर गुलाब का फूल बढ़ाते हुए बोला " दिस इस फॉर अ मोस्ट ब्यूटीफुल गर्ल , प्लीज एक्सेप्ट इट । " जानकी हैरान नजरों से राज को देखने लगी ।
राज तुरंत बोला " गलत मत समझिए मैं फ्लर्ट नही कर रहा आपके साथ । आप सचमुच बेहद खूबसूरत हैं । आप रखेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा । "
संध्या राज के हाथों से गुलाब लेकर बोली " सॉरी राज लेकिन हमारी जानू को गुलाब नही पसंद । "
" व्हाट .... लड़कियों का तो पसंदीदा फ्लार होता हैं गुलाब और आपको नही पसंद ..... पर क्यों ? " राज ने पूछा तो जानकी बोली " माना की ये गुलाब बेहद सुंदर होता हैं , लेकिन अपने साथ कांटों को भी संजोकर रखता है । ये मोहब्बत की निशानी जरूर हैं और साथ ही दर्द की भी इसलिए बेहतर होगा इससे दूर रहा जाए । "
राज मुस्कुराते हुए बोला " मुझे तो कुछ समझ नही आया आपने जो बोला बट जो भी बोला अच्छा बोला । ' इस बार जानकी को बहुत तेज से हंसी आई थी ।
" आप मुस्कुराती भी बहुत अच्छा है । " राज ने फिर से कहा । राघव उन सबकी बेतूकी बाते सुनकर पक चुका था । जानकी अपनी हंसी रोकते हुए बोली " राज आप बिल्कुल हमारी मीठी की तरह बातें करते हैं । "
" कौन मीठी .... ? "
" हमारी बहन "
" ओह ' राज आगे बोला " इफ यूं डोंट माइंड क्या मैं भी आपको जानू कह सकता हूं । " जानकी ने कुछ नहीं कहा तो राज आगे बोला " अगल आपकों नही पसंद तो नही कहूगा । वैसे आपका पूरा नाम क्या है मैं वही कहकर बुला लूगा । "
जानकी हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली " हमारा नाम जानकी झा हैं । वैसे तो हमारे दोस्त और करीबी लोग ही हमें इस नाम से पुकारते हैं । आप हमे जानू कह सकते हैं , हमे कोई एतराज़ नहीं । "
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जानकी को राघव का गुस्से वाला रूप देखने को मिला । ऐसे में वो उसे लेकर क्या राय बनाएंगी ?
प्रेम रत्न धन पायो
( अंजलि झा )*********