कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३८) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३८)

अन्ततः सभी की सहमति पर उन सभी ने उस नगर को त्यागकर वैतालिक राज्य की ओर प्रस्थान किया,वें मार्ग पर ही थे ,अभी वैतालिक राज्य नहीं पहुँचे थे,इसलिए रात्रि को वें सभी किसी वृक्ष के तले विश्राम करते और अगले दिन पुनः अपनी यात्रा प्रारम्भ करते,उस रात्रि भी सभी ने ऐसा ही किया,सभी ने एक वृक्ष के तले अग्नि प्रज्वलित करके भोजन पकाया एवं भोजन ग्रहण करके विश्राम करने लगे,अर्द्धरात्रि होने को थी,एकाएक कर्बला बनी कालवाची अपने भोजन हेतु जागी,कालवाची जागी तो एकाएक भैरवी भी जाग उठी किन्तु मारे आलस्य के वो अपने बिछौने पर ही लेटी रही ,बिछौने से ना उठी,उसने सोचा कर्बला जल पीने हेतु जागी होगी,किन्तु ऐसा ना था,उसने जो देखा वो देखकर तो जैसे उसकी श्वास ही रुक गई,उसने वहाँ प्रज्वलित हो रही अग्नि के प्रकाश में देखा कि कर्बला ने क्षण भर में ही बीभत्स रूप धारण कर लिया और पलक झपकते ही वो सर्र से आकाश की ओर उड़ गई, भैरवी तो अब स्तब्ध थी कि क्या करें,क्या ना करे,इतनी रात्रि में वो किसे जगाए और उससे क्या बोलें?
अन्तोगत्वा उसने सोचा कि वो ऐसे ही सोए रहने का अभिनय करेगी जब तक कि कर्बला लौट नहीं आती एवं वों ऐसे ही शान्त मुद्रा में अपने बिछौने पर लेटी रही जैसे कि गहरी निंद्रा में डूबी हो और कुछ समय पश्चात वहाँ सर्र से कर्बला आई और उसने बीभत्स रूप को त्यागकर सुन्दर युवती का रूप धरा और पुनः अपने बिछौने पर जाकर विश्राम करने लगी,अब भैरवी के रूधिर का परिसंचरण एकाएक रुक सा गया,उसकी श्वास की गति मंद हो चली थी क्योंकि कर्बला उसके बगल में ही विश्राम कर रही थी,भैरवी ने मन में सोचा....
"ये प्रेतनी है या मायाविनी,अवश्य इसने कर्बला की हत्या करके उसका रूप धारण कर लिया है,इसका तात्पर्य है कि जब कर्बला खो गई थी तो तभी इस प्रेतनी ने उसकी हत्या करके उसके शरीर पर नियन्त्रण कर लिया होगा और हम सभी के पास आ गई, तो इतने दिनों से हम सभी इस मायाविनी के संग रह रहे थे कदाचित वन में भी उस दिन मेरा रूप धारण करके अचलराज के साथ यही थी,इसका तात्पर्य है कि हम सभी के प्राण संकट में हैं,ये प्रेतनी हम सभी की भी हत्या कर देगी,हे!ईश्वर,मैं अब क्या करूँ? कैसें इस प्रेतनी से सभी के प्राण बचाऊँ?"
यही सब सोचते सोचते भैरवी को रात्रि भर निंद्रा ना आई और भोर होते ही वो जाग उठी और अवसर ढूढ़ने लगी कि कब उसे अचलराज अकेले में मिले और वो रात्रि को घटित हुए वृतान्त को कह सकें,किन्तु अत्यधिक प्रयत्न के पश्चात भी उसे ऐसा कोई अवसर ना मिल सका और भैरवी के इस संशय को कुबेर बना कौत्रेय भाँप गया,उसने कर्बला बनी कालवाची से कुछ वार्तालाप किया जो कुछ इस प्रकार था.....
"कर्बला! इधर आओ,मुझे तुमसे कुछ कहना है",,कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"हाँ! कहो !",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"यहाँ सभी के समक्ष नहीं,उस वृक्ष के तले एकान्त में चलो,उस वृक्ष पर फल हैं,सबसे कह देगें कि हम फल तोड़ने जा रहे हैं",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"तुम तब तक वहाँ चलो,मैं अभी वहाँ आई",कर्बला बनी कालवाची बोली...
कुछ क्षण के पश्चात कौत्रेय सभी से बोला....
"मैं उस वृक्ष के फल तोड़ने जा रहा हूँ",
और वो उस वृक्ष के तले चला गया,तभी कर्बला बोली...
"मैं भी उसकी सहायता के लिए वहाँ जाती हूँ",
तभी अचलराज बोला...
"रुको!कर्बला!मैं भी तुम्हारे संग चलता हूँ"
ऐसा कहकर अचलराज भी वहाँ चला गया,इधर भैरवी अचलराज को रात्रि वाली बात बताने का अवसर खोज रही थी,किन्तु अचलराज तो कर्बला के संग जा चुका था,इसलिए भैरवी किसे वो बात बताती,उधर कर्बला भी अचलराज के संग जाने से कुबेर की बात नहीं सुन सकती थी,अब समस्या दोनों के लिए ही उत्पन्न हो गई थी,तभी भैरवी ने मन में सोचा....
"यदि! वो बात मैं काकाश्री से कह दूँ तो....नहीं....नहीं...मैं ये बात काकाश्री से नहीं कह सकती, क्योंकि वें वैसे भी अचलराज को लेकर भयभीत रहते हैं ,यदि उन्हें ये ज्ञात हो गया कि ये कर्बला नहीं कोई प्रेतनी है तब तो उनका जीना ही दूर्भर हो जाएगा,हे!ईश्वर मुझे शक्ति देना कि मैं सबकी इस प्रेतनी से रक्षा कर सकूँ"
बेचारी भैरवी तो ये समझ रही थी उसकी सखी कर्बला की हत्या करके उस मायाविनी ने उस के शरीर पर नियन्त्रण पा लिया है,उसे ये कहाँ ज्ञात था कि ये उसकी सखी नहीं ,उसकी पुरानी शत्रु कालवाची है,जिसे उसके पिता ने दण्ड दिया था....
इधर भैरवी चिन्तित थी और उधर कुबेर और कर्बला चिन्तित थे,अन्ततः ना ही भैरवी अचलराज से कुछ कह पाई और ना ही कुबेर कर्बला से कुछ कह पाया,दोनों ही अवसर ढूढ़ने में लगीं थीं एक अचलराज से अपनी बात कहने का और दूसरी कौत्रेय की बात सुनने का,अब कौत्रेय ने अपनी बुद्धिमत्ता दिखाते हुए कर्बला से मद्धम स्वर में कहा....
"मैं अचलराज को तनिक दूर ले जाता हूँ और जब भैरवी एकान्त में हो तो तुम उसके समक्ष अचलराज का रूप धर कर चली जाना,तब तुम्हें ये ज्ञात हो जाएगा कि भैरवी के मस्तिष्क में क्या चल रहा है क्योंकि मुझे उस पर संदेह है"
और हुआ भी यही भैरवी की दृष्टि बचाकर कुबेर अचलराज को सबसे तनिक दूर ले गया और इसी मध्य कालवाची ने अचलराज का रूप धारण किया और भैरवी के समक्ष चली गई,तब व्योमकेश जी भी उन दोनों के समीप नहीं थे,वें सभी के अश्वों को घास डाल रहे थे,अब कालवाची अचलराज थी इसलिए भैरवी ने निःसंकोच उससे कहा...
"अचलराज!मुझे तुमसे कुछ कहना है,मैं कबसे तुम्हें कुछ बताने का प्रयास कर रही थी किन्तु अवसर ही नहीं मिल रहा था"
"हाँ!कहो भैरवी कि क्या बात है"? अचलराज बनी भैरवी ने पूछा...
"अचलराज! जिसे हम सभी कर्बला समझ रहे हैं वो कर्बला नहीं है", भैरवी बोली...
"वो कर्बला नहीं है....यदि वो कर्बला नहीं है तो कौन है वो"?,अचलराज बनी कालवाची ने पूछा....
"अचलराज! वो कोई मायाविनी या प्रेतनी है"भैरवी बोली...
"किन्तु!तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकती हो कि वो कोई मायाविनी या प्रेतनी है",,अचलराज बनी कालवाची ने पूछा...
"मैनें अर्द्धरात्रि में उसे प्रेतनी का रूप धरते देखा था",भैरवी बोली...
"और क्या क्या देखा तुमने"?,अचलराज बनी कालवाची ने पूछा...
"वो बीभत्स रूप धरकर क्षण भर में आकाश की ओर उड़ गई और कुछ समय पश्चात लौटी और पुनः कर्बला का रूप धरकर बिछौने पर लेट गई",भैरवी बोली....
"तुमने ये बात किसी और से तो नहीं कही",अचलराज बनी कालवाची ने पूछा...
"नहीं! अभी तक तो नहीं कही"भैरवी बोली...
"और कहना भी मत नहीं तो तुम्हारा अचलराज इस संसार में नहीं रहेगा",अचलराज बनी कालवाची बोली...
"ये तुम क्या कह रहे हो अचलराज?"भैरवी ने पूछा...
"क्योंकि मैं अचलराज नहीं कर्बला हूँ",अचलराज ने कर्बला का रूप धरकर बोला....
अब तो ऐसा दृश्य देखकर भैरवी के पाँव तले से धरती खिसक गई....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....