The Author Praveen kumrawat फॉलो Current Read महात्मा जरथुश्त्र By Praveen kumrawat हिंदी आध्यात्मिक कथा Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books निलावंती ग्रंथ - एक श्रापित ग्रंथ... - 1 निलावंती एक श्रापित ग्रंथ की पूरी कहानी।निलावंती ग्रंथ इश्क दा मारा - 38 रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है... डेविल सीईओ की मोहब्बत - भाग 79 अब आगे,और इसलिए ही अब अर्जुन अपने कमरे के बाथरूम के दरवाजे क... उजाले की ओर –संस्मरण मनुष्य का स्वभाव है कि वह सोचता बहुत है। सोचना गलत नहीं है ल... You Are My Choice - 40 आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह... 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परन्तु कुछ कर न सके, और जरथुश्त्र के जीवनकाल में ही उनका मत ईरान में सर्वव्याप्त हो गया।पश्चिमी विद्वानों के विचारों से जरथुश्त्र का समय ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व है। परन्तु अनेक प्राचीन ग्रीक लेखको ने जरथुश्त्र को ईसा से कई हजार (करीब छः हजार) वर्ष पूर्व माना है। यह निश्चित है कि संसार में जरथुश्त्र और उनके धर्मग्रंथो के नाम बहुत प्राचीन है। कहा जाता है जरथुश्त्र और वेदव्यास का शास्त्रार्थ हुआ था। वेदव्यास स्वयं ईरान गये थे। दुःख के साथ कहना पड़ता है कि जैसे बुद्ध मत भारत की धरती पर जन्मकर और फल-फूल कर अपनी जन्म-भूमि से निर्वासित हो गया, उसी प्रकार महात्मा जरथुश्त्र का मत आज से एक हजार वर्ष पूर्व इस्लाम की क्रूरता के कारण अपने देश से निर्वासित हो गया। जरथुश्त्र के ईरानी अनुयायी ने इस्लाम के सामने घुटने टेक दिये और कुछ अपनी जान बचाकर भारत भाग आये। इन्ही का नाम पारसी है। पश्चिमी भारत के 'उदवाड़ा' नामक स्थान में इनका प्रधान मंदिर है, जहां इनके द्वारा पूजी जाने वाली पवित्र अग्नि स्थापित है। ये अग्नि की पूजा करते है।प्राचीन ईरान और भारत की संस्कृतियों में काफी समानता है। यह उनके ग्रंथो के अध्ययन से पता चलता है। कहते है हमारे पितामह आर्यो की एक शाखा ईरान में बस गयीं थी। देश-काल के भेद से ईरानी और भारतीय संस्कृतियों में अंतर आ गया, परन्तु यथार्थतः दोनो सभ्यताओ का स्त्रोत एक है। जैसे प्राचीन भारतीय आर्य लोगो ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चतुर्वर्ण की व्यवस्था की थी, वैसी मिलती-जुलती व्यवस्था ईरानियों में पायी गई है। उनके चारो वर्णो के नाम क्रमशः आथ्रवण, रेथेष्टार, वास्ट्रयोश तथा हुतोक्ष है। वे भी आर्यो के समान अग्नि, जल, वायु, इंद्र, आदि को देवता मानकर पूजते थे। उनकी भाषा वैदिक संस्कृत से मिलती-जुलती है।प्राचीन ईरान के धर्मग्रंथ का नाम यस्न है। इसमे 72 हास यानी भाग है। इनमे जरथुश्त्र की गाथा पांच भागो में है। उन पांचो के नाम इस प्रकार है— अहुनवैती, उष्तवैती, स्पेन्तामैन्यु, योहू-क्षत्र तथा वहिश्तोइश्ती। इन्ही पांचो भागो में जरथुश्त्र की सारी शिक्षाएं भरी पड़ी है। ईरानियों के महत्वपूर्ण ग्रंथ अवेस्ता में कही-कही उसी प्रकार उद्गार है जैसे ऋग्वेद की ऋचाओं में। इनके ईश्वर का नाम अहुरमजदा है। जरथुश्त्र ने कुछ निर्गुण की-सी भी कल्पना की है और इसके विपरीत उन्होंने अहुरमजदा को छः अन्य रूपो से युक्त माना है। इन्ही सबसे उन्होंने संसार की उत्पत्ति की कल्पना की है। ईरानी एवं पारसी लोग आतर अर्थात अग्नि को संभवतः ज्ञान का प्रतीक मानकर पूजते है। उपर्युक्त गाथा 'अहुनवैती' में सत-असत का गम्भीर विवेचन किया गया है। उनका मूल सिद्धांत इसी भाग में संकलित है। उसमें बताया गया है कि जीवन मे सत ओर असत इन विरोधी शक्तियों का महत्व है। असत की उपस्थिति से ही सत का मूल्य आंका जा सकता है। दुःख, प्रतिकूलता, अंधकार और मृत्यु के होने से ही सुख, अनुकूलता, प्रकाश और अमरता का मूल्यांकन होता है। जीवन की क्षणभंगुरता समझकर ही मोक्ष की अभिलाषा होती है। सांख्य के प्रकृति और पुरुष की तरह जरथुश्त्र ने संसार के विकास के लिए सत और असत की उपस्थिति आवश्यक समझी है। उनके अनुसार भाव के अनुसार ही अभाव का महत्व है। जरथुश्त्र ने कर्म-मार्ग पर जोर दिया है। निष्काम कर्म अत्यंत आवश्यक। दुखियों की सहायता करना महान पूण्य है। निष्काम सेवा, परोपकार, दया, प्रेम, त्याग, उदारता आदि दैवी गुणों से सम्पन्न व्यक्ति ही मनुष्य कहा जा सकता है। मानवता की उन्नति के लिए परस्पर की सहानुभूति महान साधन है। महात्मा जरथुश्त्र ने मन, वचन तथा कर्म से पवित्रता तथा सत्य-पालन पर बहुत जोर दिया है। सत्य भाषण और सत्याचरण के समान संसार मे कोई धन नही है; परन्तु सत्य भाषण के साथ मीठे वचन का प्रयोग करना चाहिए। इस मत का सार 'अश' के नियमो की श्रेष्ठ भावना है। 'अश' के अर्थ-व्यवस्था, संगति, अनुशासन, पवित्रता, सत्यशीलता, परोपकार आदि है। इस मत के अनुसार 'वोहू महह' (विचार एवं अन्तध्वनि) के शब्द जो सुन पाते है और उनके अनुसार कर्म करते है वे स्वास्थ्य और अमरत्व को प्राप्त करते है। यह मत मृत्यु के बाद भी जीवन मानता है। पारसी धर्म की नैतिकता का महान भवन निम्न तीन भीतों पर खड़ा है–हुमत= अच्छे विचार।हुख्त= अच्छे उच्चार (वाणी)।हुवश्र्त= अच्छे आचार।अब पूरी दुनिया में पारसियों की कुल आबादी संभवतः 1,20,000 से अधिक नहीं रह गई है। माना जा रहा है कि उनकी संख्या घट रही है। Download Our App