कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३५) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३५)

अन्ततः भैरवी अचलराज के अंकपाश से दूर हुई और दुखी होकर बोली....
"मुझे क्षमा करो अचलराज!मैनें आज तक तुमसे ये बात छुपाकर रखी कि मैं ही भैरवी हूँ"
"किन्तु भैरवी!सच्चाई छुपाने का कारण क्या था"?,अचलराज ने पूछा...
"मैं अत्यधिक निर्धन थी,लोगों के घरों में चोरी करके अपना जीवनयापन कर रही थी,इसलिए तुम्हें ये सब बताने में मुझे तनिक संकोच हो रहा था",भैरवी बोली...
"तो तुमने मुझी उसी रात पहचान लिया था इसलिए तुमने मुझे अपना नाम दुर्गा बताया",अचलराज बोला....
"हाँ!,यही कारण था अपनी पहचान छुपाने का",भैरवी बोली...
"पहचान छुपाने की क्या आवश्यकता थी भैरवी!मैं भी तो निर्धन हूँ",अचलराज बोला...
"किन्तु!तुम परिश्रम करके अपना जीवनयापन करते थे और मैं चोरी करके अपना जीवनयापन कर रही थी",भैरवी बोली...
"स्वयं को दोषी मत ठहराओ भैरवी! ये तो परिस्थितियांँ ऐसी होती हैं इसलिए मानव को विवश होकर ऐसे कार्य करने पड़ते हैं",अचलराज बोला...
"तुम भी अपने स्थान पर ठीक हो,किन्तु किसी युवती को यूँ चोरी करना शोभा नहीं देता",भैरवी बोली...
"कोई भी ऐसे कार्य नहीं करना चाहता,क्योंकि किसी को भी ऐसे कार्यों में कोई रूचि नहीं होती,विवशता ही मानव से सब कुछ करवाती है,तुम इन सबके लिए स्वयं को अपनी दृष्टि में दोषी सिद्ध मत करो",अचलराज बोला...
"तुम जैसे थे अब भी बिल्कुल वैसे ही हो",भैरवी बोली..
"तुम भी तो वैसी ही हो",अचलराज बोला...
"जब तुमसे नहीं मिली तो ऐसा प्रतीत होता कि ना जाने तुम कैसे हो गए होगे,किन्तु तुमसे मिलकर मेरी सभी शंकाएँ दूर हो गईं",भैरवी बोली....
"किन्तु !तुम्हें ज्ञात कैसें हुआ कि मैं तुम्हें यहाँ मिलूँगा",अचलराज ने पूछा...
तब भैरवी बोली....
"मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं था तुम्हारे विषय में,ये तो नियति ने हम दोनों को पुनः मिला दिया,किन्तु निकली तो मैं तुम्हारी खोज में ही थीं,माँ ने यूँ ही बातों बातों कर्बला से तुम्हारी चर्चा की कि तो कर्बला बोली कि तुम्हें खोजकर हम पुनः अपने राज्य पर विजय प्राप्त कर सकते हैं,बस यही सोचकर हम तीनों तुम्हें खोजने निकल पड़े",
"राज्य पर विजय",वो कैसें होगा भैरवी?ना हमारे पास सैनिक है और ना ही शस्त्र",अचलराज बोला....
"अब जब तुम्हारा मिलना सम्भव है तो कुछ भी सम्भव है",भैरवी बोलीं...
"तुम सच में अब भी वैसी ही हो निर्भय एवं वाक्पटु",अचलराज बोला...
"और तुम भी वैसें ही हो,मेरा अनुसरण करने वाले",भैरवी बोली...
"हम युवक इतने बुद्धिमान नहीं होते ना इसलिए हमें बुद्धिमान युवतियों की बातों का अनुसरण करना पड़ता है",अचलराज बोला....
"सच में, मैं तुम्हें और तुम्हारी बातों को बहुत याद करती थी और कभी कभी तो रो भी लेती थी",भैरवी बोली...
"इसका तात्पर्य है कि तुम मुझे कभी भूल ही नहीं सकी",अचलराज बोला...
"ये कभी नहीं हो सकता अचलराज!जब मेरे प्राण जाऐगें ना तभी तुम्हारी स्मृतियाँ मेरे मस्तिष्क एवं हृदय से मिटेगीं",भैरवी बोली...
"ऐसा मत बोलो भैरवी!,इतने वर्षों बाद मिली हो और पुनः दूर जाने की बात कर रही हो",अचलराज बोला...
"तुमने भी मुझे अत्यधिक याद किया ना!",भैरवी ने पूछा...
"मैं तो रात्रि में सो भी नहीं पाता था,मन इतना व्याकुल हो जाता था तुम्हारी याद में कि सोचा करता था यदि मेरे पास पंख होते तो पंक्षी बनकर तुम्हें कहीं से भी खोज निकालता",अचलराज बोला...
"तुमने मुझे खोजने का प्रयास तो किया ही होगा",भैरवी बोली...
"हाँ!अत्यधिक खोजा,किन्तु तुम मिल ना सकी",ये कहते कहते अचलराज की आँखें द्रवित हो उठीं....
"अब दुखी क्यों होते हो?"अब तो मैं तुम्हारे समक्ष हूँ",भैरवी बोली...
"किन्तु!जो इतने वर्ष मैनें तुम्हारे बिन काटे हैं ,तो उन क्षणों को मैं कैसें भूल सकता हूँ,"अचलराज बोला...
"प्रेम करते हो मुझसे",भैरवी ने पूछा...
"नहीं!तुम तो मेरी शत्रु थी इसलिए तो तुम्हें याद कर करके मैं व्याकुल हो जाता था",अचलराज बोला...
"तुम पुनः परिहास कर रहे हो,जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती",भैरवी बोली...
"रुठ गई बावरी! इतने वर्षों के पश्चात मिली हो तब भी रूठोगी",अचलराज बोला....
"नहीं!रूठूँगी....कभी नहीं रूठूँगी " और ऐसा कहकर भैरवी ने अचलराज का हाथ पकड़ लिया....
"भैरवी!अब ये हाथ कभी मत छोड़ना",अचलराज बोला....
"नहीं!कभी भी तुम्हारा हाथ और साथ नहीं छोड़ूगी",भैरवी बोली...
"और महारानी जी कैसीं हैं"?अचलराज ने पूछा...
"वैसें तो ठीक हैं किन्तु उन्होंने पिताश्री की याद में अत्यधिक अश्रु बहाए इसलिए दृष्टिहीन हो गईं हैं", भैरवी बोली...
"तुम चिन्ता मत करो भैरवी अब मैं सब कुछ ठीक कर दूँगा,",अचलराज बोला....
और दोनों इसी प्रकार बातें करते रहे,उधर कर्बला और कुबेर घर पहुँचे और दोनों ने देखा कि अचलराज और भैरवी वहाँ उपस्थित नहीं हैं तो उन्होंने व्योमकेश जी से पूछा तो व्योमकेश जी बोले....
"दुर्गा घर आई थी और उसने देखा कि अचलराज घर पर नहीं है तो वो भी उसे खोजने ना जाने कहाँ चली गई,",
तब कुबेर बोला...
"ठीक है तो हम दोनों उन दोनों को खोजकर लाते हैं "
अन्ततः कर्बला एवं कुबेर दोनों ही अचलराज एवं भैरवी को खोजने चल पड़े,वें कुछ दूर पहुँचे ही थे कि उन दोनों को किसी वार्तालाप के स्वर सुनाई दिए,दोनों ने ध्यान से सुना तो वें दोनों अचलराज एवं भैरवी थे,इसलिए दोनों उन दोनों के समीप चल पड़े किन्तु दोनों जैसे ही उन दोनों के कुछ समीप पहुँचे तो उन दोनों ने देखा कि अचलराज एवं भैरवी एक वृक्ष के तले बैठें हैं और अचलराज भैरवी की गोद में अपना सिर रखकर लेटा है और दोनों के मध्य प्रेम भरा वार्तालाप चल रहा है,कर्बला ने दोनों की बातें भी सुनी,जो कि अत्यधिक प्रेम से परिपूर्ण थीं,वो दृश्य देखकर कर्बला के देह में अग्नि प्रज्ज्वलित हो उठी,वो उस समय तो वहाँ दोनों से कुछ ना बोली और शान्तिपूर्वक वहाँ से वापस लौट आई,किन्तु अब कौत्रेय भयभीत हो उठा था क्योंकि उसे ज्ञात हो चुका था कि कर्बला उससे ऐसे ऐसे प्रश्न पूछने वाली है,जिनका उत्तर उसके पास नहीं है क्योंकि उसने कर्बला से जो झूठीं झूठीं बातें कहीं थीं वो अब विपत्ति बनकर उसके समक्ष आ खड़ी हुई हैं,वो अब वहाँ से भाग भी नहीं सकता था,अब तो कुबेर के पास कोई भी मार्ग शेष ना बचा था इसलिए उसने अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए ,मार्ग में ही कर्बला बनी कालवाची से कहना प्रारम्भ किया....
"कालवाची!मैं नहीं जानता था कि भैरवी ऐसी निकलेगी,उसने तो तुम्हारा प्रेम ही छीन लिया",
तब कालवाची क्रोधित होकर बोली...
"शान्त रहो तुम! तुमने ही कहा था ना कि वो मुझसे प्रेम करता है",
"इसमें बेचारे अचलराज का क्या दोष है? वो भैरवी ही कुल्टा निकली तो मैं क्या करूँ"?
"तो इसका क्या तात्पर्य है"?कालवाची ने पूछा...
तब कौत्रेय बोला....
"इसका तात्पर्य है कि कदाचित भैरवी को ज्ञात हो गया होगा कि अचलराज तुमसे प्रेम करने लगा है इसलिए उसने अचलराज पर अपने प्रेम का इन्द्रजाल फेंक दिया होगा और वो बेचारा सीधा-सादा व्यक्ति उसके मोहजाल में फँस गया होगा",
"तो अब मैं क्या करूँ?",कालवाची ने पूछा...
"एक ही मार्ग शेष बचता है कालवाची! तुम भी साम,दाम,दण्ड,भेद से अचलराज को उससे छीन लो",कौत्रेय बोला...
"किन्तु!ये कैसें सम्भव होगा",कालवाची ने पूछा...
"कालवाची!,तुम इतनी भोली हो कि पहले तो सभी पर विश्वास कर लेती हो और जब फँस जाती हो तो इसके पश्चात मुझसे समाधान पूछने लगती हो",कौत्रेय बोला...
"कौत्रेय! अब बोलो ना कि मैं क्या करूँ",?,कालवाची बोली...
"तुम्हारे पास ऐसी शक्ति है कि तुम किसी का भी रूप धारण कर सकती हो",कौत्रेय बोला...
"तात्पर्य क्या है तुम्हारा"?,कालवाची ने पूछा....
तब कौत्रेय बोला...
"तुम अचलराज से प्रेम करती हो ना तो तुम उसे भैरवी बनकर भी तो प्रेम कर सकती हो",
ये सुनकर कालवाची एक क्षण को स्तब्ध रह गई....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....