इन विद्रोही सैनिकों ने बहादुर शाह जफर से कहा--आप अंग्रेजो के खिलाफ आजादी के संघर्ष के नेता बन जाये। बहादुर शाह बुड्ढा हो चुका था।वह अक्षम भी था और अंगजो की पेशन पर निर्भर था।बहादुर शाह डरपोक कठपुतली राजा था।उसने विद्रोही सैनिको के परस्तअव को ठुकरा दिया।वह नेेता नही बनना चाहता था।वह नेेता बनकर 1857 के सवतंतरत के आंदोलन का संचालन नही करना चाहता था।
उसने नेता बनने से इनकार करने के साथ आंदोलन कारी सिपाहियों के विद्रोह की सूचना उत्तर पश्चिम प्रान्त के उप गवर्नर को सैनिक विद्रोह की सूचना भिजवाई।लेकिन अंग्रेजो ने उस पर विश्वास नही किया।अंग्रेजो ने सैनिक विद्रोह के लिए उसे ही जिम्मेदार मान लिया।और तब दबाव में उसे स्वतंत्रता आंदोलन का नेता बनना स्वीकार कर लिया।और तब उसने भारत के अलग अलग प्रान्त या राज्य के राजाओं के पास पत्र भिजवाए।उसने पत्र में सभी राजाओं से अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन में भाग लेने की अपील की।बहादुर शाह की अपील का असर हुआ और यह आंदोलन पूरे भारत मे फैल गया।
इस विद्रोह का असर देश के बड़े व्यापक हिस्से पर हुआ।अवध,रोहिलखण्ड,दोआब,बुंदेलखंड,मध्य प्रान्त,बिहार का बड़ा हिस्सा और पूर्वी पंजाब ने अंग्रेजी शासन की नींव को हिलाकर रख दिया।
उतरी भारत मे विद्रोह के प्रमुख केंद्र कानपुर,बरेली,फरुखाबाद,बिजनोर,मुरादाबाद, शाहजहांपुर, बदायूं,अलीगढ़,मथुरा,आगरा,मुजफ्फरनगर आदि थे।झांसी,नागपुर और बिहार का बहुत बड़ा हिस्सा इस आंदोलन का केंद्र था।
राजस्थान में नसीराबाद छावनी में 28 मई 1857 को,नीमच में 3 जून 1857 को विद्रोह भड़का लेकिन इसका मुख्य केंद्र कोटा था।
जोधपुर में एरनपुरा में विद्रोह हुआ।इसमें आवा के ठाकुर तथा मेवाड़ और मारवाड़ के कुछ जमीदार भी शामिल थे।1857 के विद्रोह से दक्षिण भारत के क्षेत्र भी अछूते नही रहे।पंजाब के भी काफी क्षेत्रो में विद्रोह फैला।
अवध में 1857 के विद्रोह की कमान बेगम हजरत महल ने संभाली क्योकि उसका बेटा नाबालिग था और वह अपने बेटे की संरक्षिका थी।बेगम हजरत महल अकेली नही थी।उनके साथ अवध के अनेक जमीदारों और ताल्लुकदारों ने भी 1857 के आंदोलन में भाग लिया था।अवध में पहले 3 मई 1857 को विद्रोह हुआ था जिसे अंग्रेजो ने दबा दिया।पुनः यह विद्रोह 30 मई 1857 और 31 मई 1857 के दिन भड़का था।
इधर झांसी में 1857 के विद्रोह की कमान झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने सम्हाली थी।उसके साथ झलकारी बाई भी थी।1857 के विद्रोह में बढ़ चढ़कर भाग लेने वालों में कानपुर की नर्तकी अजीजन बाई और नवाब शमसुद्दीन भी थे।इनके अलावा तांत्या टोपे,नाना साहब,अजीमुल्ला शाह, और बरेली के जनरल बरकत खा भी थे।
1857 का विद्रोह बिहार में भी बड़े पैमाने पर और विस्तृत क्षेत्र में हुआ था।बिहार की कमान कुंवर सिंह के पास थी।फैजाबाद में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व मौलवी अहमदुल्लाह कर रहे थे।बड़ौत परगना के शाहमल,छोटा नागपुर में आदिवासी गोन
6 जून 1857 को बख्शीश अली और देशपत दिवान ने विद्रोह करके अंग्रेज। अफसरों को मौत के घाट उतार दिया।पीर अली ने पटना की सड़कों पर अंग्रेजी राज के खिलाफ जुलूस निकाला था।
उजरियांव गांव की उन्दा देवी बहादुरी से लड़ी और 35 अंग्रेजो को मौत के घाट उतार दिया।बेगम हजरत महल ने अनेक औरतों को सैन्य प्रशिक्षण देकर 1857 के विद्रोह के लिए तैयार किया।इस सैन्य टुकड़ी का नियंत्रण अहिल्या ने संभाला था