सच सामने आना अभी बाकी है - 5 Kishanlal Sharma द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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सच सामने आना अभी बाकी है - 5

और समाज के सभी वर्गों ने मिलकर विद्रोह करने का निर्णय लिया।इस विदरोह को भड़काने में एक घटना ने चइंगरी का म कीया।जनवरी 1857 से नई इनफीलद राइफल्स का प्रयोग शुरू किया गया।इन राइफल्स ने चिगारी काकाम किया।इन राइफलों में लगने वाले कारतूस को मुह से खोलना पड़ता था।इन कारतूसों को लपटने वाले आवरण पर गाय और सुुुुअर की चर्बी लगी हुई थी।इस बात की सुुुचना मंगल पांडे को खलासी मातादीन हेला ने दी थी।उसे यह बात अपनी पत्नी लाजो से पता चली थी।मातादीन की पत्नी लाजो अंग्रेज अफसरों के घरों में काम करती थी।भारतीय सेना में हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्म के लोग काम करते थे।उन्हें डर था कि इन कारतूसों के प्रयोग से उनका धर्म भृष्ट हो जााएगा।
इसलिए सिपाहियों ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया।सिपाहियों के मना करने पर अंग्रेज उन्हें सेना से हटा देते थे।1अंग्रेजो की इस नीति की वजह से असन्तोष कम होने की जगह और बढ़ा।
फरवरी 1857 में बहरामपुर में 19 एन आई के सिपाहियों ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार कर दिया।इस पर अंग्रेज अफसर कैनिंग ने इस टुकड़ी को भंग कर दिया।इससे 34 एन आई के सैनिकों में भी असन्तोष बढ़ा।
मंगल पांडे ने इन कारतूसों को प्रयोग न करने की ठान ली।29 मार्च 1857 को उसने अंग्रेजी फ़ौज के दो अफसरों को घायल कर दिया।दूसरे सैनिकों ने मंगल पांडे का साथ नही दिया।लेकिन अंग्रेजो ने समझा कि मंगल पांडे के साथ अन्य फौजी भी मिले हुए थे।इसलिए अंग्रेजो ने पूरी टुकड़ी को ही भंग कर दिया।दोनो टुकड़ियां भंग होने पर उनके सिपाही अपने अपने घर लौट गए।उन सेनिको ने अपने घर जाते समय चर्बी वाले कारतूसों की बात फैलाई।
2 मई 1857 अम्बाला में 7वी अवध रेजिमेंट के सिपाहियों ने जिन कारतूसों के बारे में चर्बी की अफवाह फेल चुकी थी।उनको चलाने से साफ मना कर दिया।अवध के चीफ कमिश्नर हेनरी लारेंस ने इस रेजिमेंट को भंग कर दिया।चर्बी के कारतूसों वाली बात मेरठ की छावनी में भी पहुंच गई थी।तीसरी लाइट कैवेलरी के अफसर कारमाइकल स्मिथ ने 24 अप्रैल को यह जानते हुए भी की सिपाहियों में चर्बी वाले कारतूसों की बात को लेकर असन्तोष है।एल सी की परेड का आदेश दिया।उस टुकड़ी में 90 घुड़सवार सैनिक थे उनमें से 85 घुड़सवार सैनिकों ने उन कारतूसों को चलाने से साफ मना कर दिया।इस पर उन 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल करने का आदेश दिया गया।कोर्ट मार्शल में उन्हें पांच साल की सजा सुनाई गई।9 मई को मेरठ छावनी के सैनिकों के सामने उन्हें अपमानित किया गया।फिर उन्हें सामान्य अपराधियो की तरह कपड़े पहनाकर उनके हाथ पैरों में बेड़िया पहना दी गयी।अपने साथियों के साथ हुए अपमान का बदला लेने के लिए 20 मई 1857 की शाम को मेरठ छावनी में 20 इन आई में विद्रोह शुरू हुआ जो बाद में 3 एल सी में फैल गया।सैनिकों ने अंग्रेज अफसरों की हत्या करके अपने साथियों को छुड़ा लिया।यह टुकड़ी 11 मई 1857 को दिल्ली पहुंची।दिल्ली की स्थानीय टुकड़ियां भी उनसे आ मिली।इन विद्रोही सैनिकों ने अंग्रेज अफसरों को मार डाला।फिर ये सैनिक तत्कालीन भारत के बादशाह बहादुर शाह जफर के पास पहुंचे।