रात का वक्त , रघुवंशी मेंशनराघव ऑफिस से आ चुका था । इस वक्त वो अपने कमरे में किसी से फोन पर बात कर रहा था । इसी बीच किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी । दरवाजा खुला हुआ था । राघव ने पलटकर देखा तो बाहर सुरेश खडा था । राघव ने हाथों के इशारे से उसे अंदर आने के लिए कहा ।
सुरेश अंदर आया और सिर झुकाकर धीरे से बोला ' भैया आपको बडी मालकिन खाने के लिए नीचे बुला रही हैं । "
राघव ने हां में सिर हिलाया और उसे हाथों के इशारे से जाने के लिए कहा । कुछ देर बाद राघव नीचे चला आया । करूणा टेबल पर नाश्ता लगा रही थी और संध्या इसमें उसकी मदद कर रही थी । राघव अपनी चेयर पर आकर बैठ गया । " भाभी मां परी ने खाना खा लिया क्या ? "
करूणा उसकी प्लेट में खाना सर्व करते हुए बोली " हां जानू उसे खिला रही हैं । ...... संध्या .... संध्या ..." करूणा ने संध्या को आवाज दी तो वो किचन से निकलकर बाहर चली आई । " जी भाभी '
" संध्या जानू का खाना भी परी के कमरे में लेकर चली जाओ । न जाने परी कितने नखरे करेगी उस बेचारी को खाने की फुर्सत ही नही मिलेगी । धीरे धीरे उसे संभालने की आदत पड जाएगी । "
" जी भाभी मैं अभी लेकर जाती हूं । " ये बोल संध्या वापस कीचन में चली गई ।
राघव करूणा से पूछते हुए बोला " भाभी मां ये जानू कौन है ? "
" हमारी परी की नयी केअर टेकर । " करूणा ने कहा ।
" आपने सारी जांच पड़ताल कर ली है न भाभी मां । "
" हां बस यूं समझ लो घर की ही लडकी हैं । अपनी संध्या की सहेली हैं । जनकपुर से आई हैं । जानकी नाम हैं उसका । पढी लिखी और समझदार है इससे भी बडी बात परी एक ही मुलाकात में इस कदर घुल मिल गयी जैसे कोई पुराना नाता हो उससे । " राघव ने कोई और सवाल नही किया वो चुपचाप खाने पर ध्यान देने लगा । संध्या भी जानकी का खाना परी के कमरे में दे आई । वो जब नीचे आई तो करूणा ने उसे आवाज देकर अपने पास बुला लिया ।
" मैं तो बातों ही बातों में तुमसे तुम्हारे पिताजी की तबियत के बारे में पूछना ही भूल गयी । क्या वो अब ठीक हैं ? "
" अरे भाभी पूछिए मत , परेशान हो चुके हैं हम मां के झूठ से । पिताजी की कोई तबियत खराब नहीं थी । उन्होंने झूठ बोलकर हमे बुलाया था । दरअसल हमारे लिए फिर कोई नया लडका खोज लिया था उन्होंने । " संध्या के ये कहने पर करूणा बोली " ओह तो ये बात हैं । फिर क्या हुआ तुम्हे वो लडका पसंद आया ? "
" कैसे पसंद आता भाभी ? उसे लडकी नही चाहिए थी । दहेज का पिटारा चाहिए था । हमने भी अच्छे से आरती उतारकर विदाई दे दी । साथ ही चेतावनी भी दे डाली दोबारा हमारे आस पास किसी भी घर में लडकी देखने आए न तो उन्हीं टांगों को तोड दूंगी जिससे वो चलकर आए हैं । " संध्या ने कहा ।
करूणा हंसते हुए बोली " मतलब तुमने उन्हें झांसी की रानी के दर्शन करा दिए । "
संध्या प्लेट उठाते हुए बोली " और नही तो क्या ? दहेज मांगने वालों तुम्हारा मूंह काला । बेटे को पढा लिखाकर इसलिए बडा करते हैं ताकी शादी के वक्त लडकी के घरवालों से सारी कीमत वसूल सके । अगर लडके की सरकारी नौकरी हैं तो लाखों की डिमांड करेंगे । वही लडकी अच्छी पढी लिखी और कमाने वाली हुई तो उसे कितना दहेज देंगें । "
" सही कहा संध्या इस जमाने की रीत ही निराली है । " करूणा ने कहा । संध्या किचन में चली गयी । खाना खाने के बाद राघव अपने कमरे में चला गया । करूणा परी के कमरे में आई , तो देखा परी जानकी की गोद में सिर रखकर सो रही थी । करूणा की नज़र टेबल पर रखे ट्रे पर गयी । जानकी ने अभी तक खाना नही खाया था । करूणा मन में बोली " काम में इतना मन हैं की खुद के खाने का होश ही नही । " करूणा के होंठों पर हल्की मुस्कुराहट थी । वो वही से लौट गयी ।
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अगला दिन , सुबह का वक्त
जानकी सुबह जल्दी जग गयी थी । वो जब तैयार होकर नीचे आई तो उसे कोई जगा हुआ दिखाई नही दिया । बाहर सिर्फ गार्डस जगे थे । जानकी गार्डन में चली गई और पूजा के लिए फूल तोड़कर ले आई । वो जब अंदर आई तो देखा सुरेश जग गया था और अपने काम में लगा हुआ था । जानकी उसके पास जाकर बोली " ज़रा सुनिए .....
" जी कहिए " सुरेश ने पूछा ।
" हवेली तो इतनी बडी हैं । क्या यहां कोई मंदिर भी हैं ? " जानकी ने पूछा तो सुरेश उसे पूजा घर की तरफ ले आया । उसने सामने की ओर इशारा कर कहा " ये इस घर का मंदिर हैं और इस रस्ते से आप जाएगी तो आंगन में आपको तुलसी का पौधा भी मिल जाएगा । " जानकी ने मुस्कुराकर उसका धन्यवाद किया और मंदिर के अंदर चली गई । सुरेश वहां से चला गया । जानकी अंदर आई तो देखा । राम सिया और लक्ष्मन की सुंदर सी प्रतिमा यहां विराजमान थी । जानकी ने उनके सामने पहले हाथ जोडे और फिर सफाई में जुट गयी । कुछ ही देर में उसने मंदिर की पूरी सफाई कर ली । जिन पुष्पों को वो चुनकर लाई थी उनसे माला पिरोई । जानकी गुनगुनाते हुए राम का भजन गा रही थी । .......
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन, कंज मुख, कर कंज, पद कन्जारुणम ॥1॥
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम ।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमी जनक सुतावरम् ॥2॥( करूणा अपने कमरे में तैयार हो रही थी । किसी के गाने की आवाज जब उसके कानों में पडी , तो वो कमरे से बाहर निकलकर नीचे चली आई । वो मंदिर के दरवाजे पर ही रूक गयी । दूर से ही मंदिर की साफ सफाई उसे नज़र आई तो करूणा मुस्कुरा दी । धीरे धीरे कर घर के बाकी नौकर भी उस जगह इकट्ठा हो गए । वही राघव जो बेड पर पेट के बल लेटा हुआ था , आवाज सुनकर उसकी भी नींद टूट गयी । ये वही आवाज थी जो उसने कल गार्डन में सुनी थी । इतनी सुबह सुबह भजन सुनने की आदत उसे बिल्कुल नहीं थी । आवाज का जादू ही ऐसा था की वो कमरे से बाहर खिंचा चला आया । उसने पास से गुज़र रहे नौकर को टोकते हुए पूछा " इतनी सुबह सुबह कौन गा रहा हैं ? "
" भैया वो जानकी दीदी गा रही हैं । इस वक्त मंदिर में वो पूजा कर रही हैं । " इतना कहकर नौकर वहां से चला गया । राघव वही रेलिंग से अपने दोनों हाथ टिकाकर पूजा घर की ओर देखने लगा । इस वक्त दरवाजे के करीब बहुत भीड जमा थी । हो भी क्यों न सब जानकी की आवाज में मंत्रमुग्ध होकर वहां खडे थे ।)
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम् ।
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथ नन्दनम ॥3॥( जानकी की नज़र दरवाजे पर खडे लोगों पर पडी तो वो गाते हुए रूक गयी । करूणा अंदर चली आई । ' हमे माफ़ कर दीजियेगा भाभी मां हम आपसे बिना पूछे यहां चले आए । "
" कैसी बातें करती हैं आप ? पूजा पाठ के लिए भी इजाजत की जरूरत पडती हैं क्या ? " करूणा राम जी की मूर्ती की ओर देखकर बोली " इनपर सिर्फ मेरा या आपका हक नही हैं , बल्कि समूचे जगत क अधिकार है । आप बहुत मीठा गाती हैं जानू । रूक क्यों गयी आगे गाइए । " जानकी मुस्कुराते हुए आगे गाने लगी ।)
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धुषणं ॥4॥
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम् ।
मम् हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम् ॥5॥पूजा पूरी होने के बाद जानकी ने सबको आरती दी । ऊपर राघव अभी भी पूजा घर की ओर देख रहा था । उसे भीड़ की वजह से जानकी नज़र नही आ रही थी । उसे कुछ नज़र आया तो बस जानकी के कानो का झुमका । कभी उसकी आंखें नज़र आती । संपूर्ण चेहरा वो अब भी नही देख पाया था । जानकी के सामने खडी औरत पलटकर जाने लगी । जानकी भी पलट गयी । राघव को सिर्फ पीछे है वो नज़र आई । राघव वापस से अपने कमरे मे चला गया ।
जानकी पूजा की थाल रखते हुए बोली " पहले हम परी के लिए नाश्ता बना देते हैं । उसके बाद उन्हें जगाएंगे । "
" जैसा तुम्हें ठीक लगे । " ये कहकर करूणा वहां से चली गई । जानकी किचन में चली आई । संध्या इस वक्त किचन में खाना बना रही थी । जानकी अंदर आते हुए बोली " गुड मॉर्निंग " ।
संध्या मुस्कुराते हुए बोली " तेरा भजन सुनकर मेरी मार्निंग वैसे ही गुड हो गयी । "
सुरेश किचन के अंदर आया तो संध्या बोली " सुरेश भैया राघव भैया की कॉफी तैयार हो चुकी हैं । उनके कमरे में दे आइए । " सुरेश उसके हाथों से कॉफी लेकर वहां से चला गया । जानकी परी के लिए नाश्ता बनाने में जुट गयी । संध्या जानकी से बोली " जानू कुछ बाते बतानी हैं तुम्हें उसका खास ख्याल रखना । इस हवेली में सभी को हर जगह जाने की अनुमति हैं बस राघव भैया के कमरे को छोड़कर । वहां की साफ सफाई और राघव भैया के जो भी जरूरी काम हैं वो सुरेश देखता हैं । राघव भैया के कमरे में परी और भाभी मां के अलावा वही आदमी अंदर जाता हैं जिसे राघव भैया जाने की परमिशन देते हैं । ये मैं तुम्हें इसलिए बता रही हूं क्योंकी तुम्हारे लेफ्ट साइड जो रूम है वो राघव भैया का हैं इसलिए संभलकर जाना । "
" तुम तो मुझे ऐसे समझा रही हो जैसे वो राक्षस हो और मुझे उनसे बचकर रहना हैं । वैसे भी मुझे क्या जरूरत पडी हैं उनके कमरे में जाने की । मैं तो घूरकर भी न देखू । " जानकी सब्जियां काटते हुए बोली ।
" ऐसा नही हैं जानू मैं बस इसलिए बता रही थी क्योंकी भैया थोडे सख्त मिजाज के है । उन्हें ज्यादा शोर शराबा पसंद नही । वो ज्यादा किसी से बात भी नही करतें । गुस्सा उन्हें बहुत ज्यादा आता हैं और राम जी कसम वो मंजर काफी खौफ़नाक होता हैं । जितना हो सके उनके मामलों से दूर ही रहना । " जानकी संध्या की बातों से पक चुकी थी । वो खीजते हुए बोली " प्लीज संध्या बस कर ये सब । मुझे कोई लेना देना नही हैं तेरे राघव भैया हैं । वो अच्छे हैं या बुरे मुझे नही जानना । मुझे बस अपने काम से मतलब रखना है । अगर कुछ पूछना होगा तो भाभी मां से पूछूंगी । उनके पास भला क्यों जाऊगी ? " इतना बोलकर जानकी वापस से अपने काम में लग गयी ।
संध्या मन में बोली " अब कैसे बताऊ जानू तुझे , तूने तो आते ही उनसे पंगा ले लिया । बस भैया को ये न पता चल जाए उन्होंने जिस आदमी को मारा है उसे तूने बचाया हैं । अगर ऐसा हुआ तो बहुत बुरा होगा , साथ में मैं भी निकाली जाऊगी । "
जानकी सब्जियां काटते हुए मन में बोली " पता नही क्या हो गया है इसे जब से आई हु तब से ये राघव नाम सुन रही हूं । अब तो कान भी पक गए हैं मेरे । इनसे अच्छे तो मेरे राम जी , जिनका नाम सिमरू तो मन को शांति मिलती है और दूसरे इसके राघव भैया । मैंने तो देखा भी नही उन्हें फिर भी उनके नाम से मुझे चिढ हो रही हैं । " जानकी खुद में बड़बड़ाते हुए परी के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी । नाश्ता बनाने के बाद वो परी के कमरे में चली गयी । चारो तरफ टेडी बियर से घिरी हुई गुड़िया आराम से सो रही थी । जानकी मुस्कुराते हुए उसके पास चली आई ।
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जानकी तो अभी तक राघव से मिली भी नही और उसे उसके नाम से चिढ भी होने लगी । जब मुलाकात होगी तब क्या होगा ? चिंता मत कीजिए कल इनकी मुलाकात पक्का होगी । आई प्रोमिस .....
प्रेम रत्न धन पायो
( अंजलि झा )********