Prem Ratan Dhan Payo - 15 Anjali Jha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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Prem Ratan Dhan Payo - 15




" नथिंग सर " ये बोलकर राकेश बाहर की ओर भागा । सारी जगह दिशा को तलाशने के बाद वो टेरिस पर चला आया । उसन लाल रंग का एक उडता हुआ दुपट्टा नज़र आया । राकेश ने एक गहरी सांस ली । वो अपने दोनों हाथ घुटने पर रख हांफते हुए सामने की ओर देख रहा था । इस वक्त दिशा उसकी ओर पीठ किए खडी थी । राकेश की सांसें नोर्मल हुई तो उसने कहा " दिशा ....... उसकी आवाज सुन दिशा उसकी ओर पलटी । राकेश अपने हाथों में पकडे लेटर को ऊपर की ओर उठाते हुए बोला " क्या इसमें जो लिखा हैं वो सच हैं ? "

दिशा ने सूनी आंखों से उस लेटर की ओर देखा और फिर उसमें लिखी बातों को दोहराते हुए बोली " हां करती हूं मैं तुमसे प्यार । आज या कल शुरू हुई मोहब्बत नही है ये । साल भर पहले ये कहानी शुरू हो चुकी थी , जब तुमसे पहली बार टकराई थी । हां तुमसे झूठ कहती आई हु कि मै तुमसे प्यार नहीं करती । " दिशा ये कहते कहते रो पडी थी । वो रूद्ध गले से आगे बोली " डरती हूं कई ज्यादा डरती हूं । अगर मेरे घरवालों को पता चला तो वो हम दोनों को खत्म कर देंगे । हमारी कहानी शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगी । "

राकेश आहिस्ता आहिस्ता अपने कदम उसकी ओर बढाने लगा । वो उसके पास आया और उसके आंसू पोंछते हुए बोला " ये क्यों सोच रही हो दिशा । वैसे भी प्यार करना कोई गुनाह नहीं है । तुम ये भी तो सोच सकती हो की हमारी कहानी पूरी होगी । दिशा कोई नही जानता आगे क्या होगा ? हम कल के बारे में सोचकर अपने आज को क्यों बर्बाद करे । इस डर के साये में रहोगी तो ली जाने वाली सांसें भी घुटन भरी होगी । "

" तो क्या करू ? " दिशा ने उसकी आंखों में देखते हुए सवाल किया । राकेश अपने दोनों हाथों में उसका चेहरा भरकर बोला" इस डर को मन से निकाल दो । जो तुम्हारा दिल करता है वो करो । मैं हूं तुम्हारे साथ हमेशा के लिए । " दिशा रोते हुए उसके सीने से लग गई ।

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दोपहर का वक्त , राघव का कैबिन


राघव इस वक्त लैपटॉप पर जरूरी काम कर रहा था तभी किसी ने कैबिन का डोर नोंक किया । ' कम इन ' राघव ने कहा ।

दीपक अंदर आते हुए बोला " सर एक बुरी खबर है । साइट पर हादसा हो गया है । हमे फौरन निकलना होगा ? "

व्हाट .... ? " राघव ने हैरान होकर कहा । उसने फौरन उठकर चेयर पर रखा अपना कोट पहना और तेज कदमों के साथ अपने कैबिन से बाहर निकला । दीपक भी उसके पीछे पीछे बाहर आया । कुछ ही देर में दोनों साइट वाली जगह पर पहुंचे । रोने और चीख पुकार की आवाजें थी । चार से पांच एंबुलेंस खडी थी जो की घायलों को हॉस्पिटल पहुंचा रही थी ‌‌। सुपर वाइजर भागता हुआ राघव के पास आया ।

" कैसे हुआ ये सब ? "

" पता नही सर , कल ही चौथे फ्लोर की ढलाई का काम किया गया था और आज अचानक ही छत नीचे गिर गयी ‌‌। तकरीबन अठारह से बीस मजदूर मौजूद थे वहां । जिसमें से चार की ऑन द स्पॉट मौत हो चुकी है । बाकी घायलों को हम हॉस्पिटल भिजवा रहे हैं । " सुपरवाइजर ने कहा ।

राघव आस पास के हालात देखते हुए बोला " इंजीनियर को बुलाओ । "

" सर हम कल से परेशान हैं । हजारों कॉल कर चुके हैं लेकिन एक बार भी जवाब नही मिला । पहले तो रिंग जा रही थी अब फ़ोन बंद आ रहा हैं । " सुपरवाइजर ने कहा ।

राघव ने गुस्से से अपनी मुट्ठियां भींच ली जिसका पहला कारण था सुपरवाइजर की बाते ‌‌। वही दूसरा कारण था सामने का नजारा ‌। एक औरत की लाश के आगे एक छोटा सा बच्चा रो रहा था जो सिर्फ दो साल का था । उसके पिता ने आगे बढ़कर उसे अपनी गोद में उठा लिया । राघव के लिए ये नजारा एक भयभीत करने वाले था । आंखें अब साथ नही दे रही थी उसका । उसने आंखों पर चश्मा चढा लिया और पीछे की ओर पलटकर बोला " दीपक अपने खास आदमियों को इंजीनियर को ढूंढने के लिए लगा दो । एक टीम तैयार करो जो इस हादसे की जांच करे । मैं कमिश्नर साहब से मिलने जा रहा हूं । " इतना बोल राघव आगे बढ गया ।

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शाम का वक्त , रघुवंशी मेंशन


राघव और अमित इस वक्त स्टडी रूम में बैठे थे । राघव इस वक्त खिडकी के पास खडा बाहर की ओर देख रहा था । अमित उससे पूछते हुए बोला " तुझे क्या लगता हैं राघव ? कौन हो सकता हैं इन सबके पीछे ? "

" फिलहाल तो मै नही जानता अमित बस एक बार वो इंजीनियर मिल जाए । इन सबके पीछे जिसका भी हाथ होगा मैं उसे छोडूगा नही । " राघव ने कहा ।

अमित उठकर उसके पास चला आया और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला " डोंट वरी सब ठीक हो जाएगा । "

" सब अपने आप ठीक नही होता अमित कुछ चीजों को हमे खुद ही ठीक करना पडता है । " राघव बिना उसकी ओर देखे बोला ।

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अगला दिन , जनकपुर


जानकी आज संध्या के साथ अयोध्या के लिए निकलने वाली थी । उसका सारा सामान पैक होकर एक साइड में रखा था । जानकी अपने पूरे घर को निहार रही थी । उसने पहले अपने पूरे कमरे को देखा , बचपन की ढेर सारी यादें यहां मौजूद थी । उसने अपने माता-पिता की तस्वीर को छुआ । वो उस आंगन को देख रही थी जहा वो बचपन से खेली थी । वो शरारतें , छुपना छुपाना मां पापा की डांट उनका दुलार सब कुछ । आज उसे इन सब से दूर जाना पड़ रहा था । जानकी कि आंखें नम थी । उसने अपना सारा सामान दरवाजे से बाहर रखा और आखिरी बार अपने माता-पिता की तस्वीर को देखा । जानकी ने गहरी सांस ली और खुद को संभालते हुए दरवाज़ा लॉक कर दिया । जानकी अपना सामान लेकर बाहर चली आई । संध्या टैक्सी वाले के पास खड़ी थी । संध्या के माता-पिता , मैथिली का पूरा परिवार और चंचल भी वही पर खडी थी । जानकी को विदा करने के लिए सभी वहां आए थे । जानकी एक-एक कर सब से मिली । उसने बड़ों का आशीर्वाद भी लिया ।

पूनम जी अपने आंचल से आंसू पूछते हुए बोली " जाय छी जानकी, बऊआ नीक स रोहब ..... बहुत याद ओत अहा के ..... फोन कोरऐत रोहब । "

मैथिली जानकी के गले लगकर बोली " अपना ख्याल रखना , सबकी परवाह करते हुए खुद की परवाह करना मत भूल जाना वरना मैं वहां चली आऊंगी तुझे पीटने के लिए । " उसे ये कहते हैं जानकी रोते हुए मुस्कुरा दी । सब से मिलने के बाद जानकी संध्या के साथ टैक्सी में बैठ गयी । इससे पहले गाड़ी आगे बढ़ती पूनम जी ने रोकने का इशारा किया ।

' भैया एक मिनट जरा रुकिए । ' संध्या ने कहा तो टैक्सी वाला कुछ पल के लिए रूक गया । पूनम जी भागती हुई गाडी के पास आई और जानकी को लाल रंग के कपडे में लपेटकर कुछ देते हुए बोली " बेटी के खाली हाथ विदा नयी केल जाए छए । हिनका हमेशा अपने संगे राखब । "

जानकी ने वो कपडा हटाकर देखा तो उसमें राम और सीता की छोटी सी प्रतिमा थी । जानकी के आंसू और बढ गए । अब पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नही जुटा पाई थी वो । खून का रिश्ता ना सही लेकिन कहने के लिए अपने थे ये । संध्या ने गाड़ी वाले को चलने के लिए कहा । जानकी से अब सब कुछ पीछे छूटता जा रहा था ।

कुछ ही देर बाद वो दोनों जनकपुर धाम रेलवे स्टेशन पहुंचे । अवध एक्सप्रेस समय अनुसार वहां पहुंच चुकी थी । संध्या ट्रेन में चढ़ते हुए बोली " जानू जरा संभलकर ..... वो ये कह ही रही थी की तभी उसे अपने पीछे जानकी आती हुई दिखाई नही दी । वह वही स्टेशन पर खडी पीछे छूटते अपने शहर को देख रही थी ।

" जानू जल्दी ऊपर आ ट्रेन निकल जाएगी । " जानकी को जब पीछे से संध्या की आवाज सुनाई दी , तो उसका ध्यान टूट । वह भी ट्रेन में चढ गयी । ट्रेन चल पडी थी और जानकी के लिए बहुत कुछ पीछे की ओर छूटता जा रहा था । संध्या ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखा , तो जानकी नजरें उठाकर उसकी ओर देखने लगी । उसने पलके झपकाकर उसे सब ठीक होने का इशारा किया , जानकी फिर से बाहर की ओर देखने लगी ।

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दोपहर का वक्त , राघव का ऑफिस


पूरे ऑफिस में भगदड़ मची हुई थी । हर कोई इधर से उधर भाग रहा था । सबकी व्हाट लगना तो तय थी खासकर उन लोगों की जिन्हें इस प्रोजेक्ट में शामिल किया गया जहां कल हादसा हुआ । राघव के गार्ड अभी भी इंजीनियर को तलाशने में लगे हुए थे ।

वक्त राघव के केबिन में चार लोग सामने खड़े थे और राघव उन पर बरस रहा था । " क्या मैं पूछ सकता हूं आखिर यह हादसा हुआ कैसे ? रिस्पांसिबिलिटी किसी एक इंसान की नहीं थी , बल्कि पूरी टीम की थी । मटेरियल कहां से आ रहा है ? कैसा आ रहा है ? इन सब चीजों की जांच तुमने पहले क्यों नहीं की ? इस प्रोजेक्ट के लिए कोई जल्दबाजी तो थी नहीं , इंजीनियर अगर साइट से गायब रहता था तो इसकी खबर मुझे पहले क्यों नहीं दी गई ? " ...... अमित .....

' जी सर ' राघव के पुकारने पर अमित आगे आया ।

राघव अपने सामने खडे लोगों को घूरते हुए बोला " इन सब को अभी के अभी मेरी कंपनी से दफा करो । दोबारा इस तरह के लोग मुझे मेरी कंपनी में दिखाई नहीं देना चाहिए । " राघव के मुंह से यह सुनते ही सामने खड़े चारों लोगों के चेहरे पसीने से तर बतर हो गए और राघव की बातों का मतलब वो अच्छे से जानते थे । राघव ने अपनी कंपनी से उन्हें फायर किया है , इसका मतलब कोई दूसरी बड़ी कंपनी उन्हें अपने यहां काम नहीं देगी । इससे पहले वो लोग कुछ कहते दीपक ने उन्हें से बाहर निकाल दिया ।

राघव इस वक्त काफी गुस्से में था , उसने दीपक से पूछा " जिन घायलों को हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था अब उनकी तबीयत कैसी है ? "

" सर वक्त रहते उन्हें निकाल लिया गया था इसलिए उनकी हालत ज्यादा गंभीर नहीं है और जिन 5 लोगों की मौत हुई हैं आपके कहे मुताबिक हमने उन्हें कंपनसेशन दे दिया है । " दीपक कह ही रहा था की तभी राघव उसकी बात बीच में काटते हुए बोला " सिर्फ मुआवजे से काम नही चलेगा । उनके परिवार में जो व्यक्ति नौकरी करना चाहता हैं उनकी एबिलिटी के अकोर्डिग अपनी कंपनी में काम दो । जिनके अपने खोए हैं उन्हें वापस तो नही लाया जा सकता लेकिन हम उनके जीवन भर का खर्च उठाने के लिए तैयार है । " दीपक ने राघव की बातों पर हां में अपना सिर हिला दिया ।

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जयनगर रेलवे स्टेशन , बिहार


संध्या और जानकी ने यहां से दूसरी ट्रेन ली । अब भारत का बार्डर शुरू हो चुका था । गाडी अपनी रफ़्तार से आगे बढ रही थी । ट्रेन जब मधुबनी में रूकी तो वहां का रेलवे स्टेशन पूरी तरह मिथिला पेंटिंग से सुसज्जित था । उन्हें देखकर जानकी के होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । संध्या उसे मुस्कुराते देख बोली " किस बात पर मुस्कुरा रही हो ? "

जानकी ने उसे बाहर की ओर देखने का इशारा किया । संध्या की नज़र उन पेंटिंग्स पर गयी ।

" जानती हो संध्या इन खूबसूरत पेंटिंग्स का संबंध रामायण से केसे जुडा है ? "

" कैसे .... ? " संध्या ने पूछा ।

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वैसे आप लोगों में से कितने लोगों को मधुबनी पेंटिंग के बारे में पता हैं । जिन्हें जानकारी हैं वो मेरे साथ इस पेंटिंग के बारे में दो बाते जरूर साझा करे ‌‌। वेसे तो भारत संस्कृतियों का देश हैं । मैंने अपनी इस कहानी में मिथिला संस्कृति पर फोकस किया हैं । उसके बारे में ढेर सारी बाते आपको आगे पता चलेगी । तीज त्योहार रस्में सब कुछ । ये जानने के लिए इस कहानी के साथ बने रहिए । कोशिश करूगी की आपको सही जानकारी दू और मेरे लिखे शब्द आपको बोर न करे ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )

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