यशवन्त कोठारी
आज मैं भिक्षावृत्ति पर चिन्तन करुगां।वास्तव में भिक्षा, भिखारी, हमारी संस्कृति के अंग है। पिछले दिनों सरकार ने भिखारियों की धड-पकड़ की। उन्हे मन्दिरों, मसजिदो, गिरिजाघरों, चौराहो, होटलो के आस पास से खदेड़ा। मगर भारतीय संस्कृति के मारे भिखारी फिर वापस आकर जम गये। मैं ऐसे सैकड़ो भिखरियों को जानता हू जिनके भीख मांगने के ठीये निश्चित है। वे निश्चित समय पर निश्चित स्थानों पर भीख मांगते है। कुछ के बैंक खाते में बड़ी बड़ी रकमे है। कुछ ओटो, रिक्शा और टेक्सी तक में आते है। कुछ भिखारियों को घर वाले धन्धे पर छोड़ जाते है और भिक्षा-समय समाप्त होने पर वापस ले जाते है। कुछ भिखारी सपरिवार भीख मांगते है। पत्नी, बेटे, बेटी तक सब एक साथ आपके पीछे पड़ जाते है। कुछ भिखारियों की प्रेमिकाए भी भीख के व्यवसाय में जुड़ गई है। भिखारी सोमवार को शिवजी के, मंगलवार को हनुमान जी के, बुधवार को गणेश जी के, गुरुवार को मस्जिद के बाहर, शुक्रवार को पीर बाबाजी के, शनिवार को शनि महाराज के बाहर भीख मांगते नजर आते है। रविवार को गिरजागर के बाहर भीख मांगते नजर आते है। कुछ भिखारी रविवार को अवकाश मान कर आराम करते है।
भीख देना एक सांस्कृतिक परम्परा है। एक विरासत है। हर भारतीय कभी दया, कभी ममता, कभी मजबूरी में भीख देता है। प्रशासन इन गरीब भिखारियों को तो खदेड़ देता है। क्योंकि ये शहर में बदनुमा दाग है मगर उन भिखारियों का क्या जो अन्तरराप्टीय चौराहो पर खड़े होकर भीख मांगते है। गरीब राप्ट अमेरिका, ब्रिटेन, युरोप के देशो के सामने कटोरा लेकर खड़े हो जाते है। हर मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार के दरबार में अपना खाली कटोरा लेकर खड़ा रहता है। कभी सड़क निर्माण के नाम पर कभी मेटो, बिजली, पानी, विकास, सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, मननोरंजन, संस्कृति, के नाम पर भीख लेकर आता है और अपने प्रदेश में बांट देता है। प्रशासन के आला अफसर, नेता, अध्यक्ष, मंत्री सभी इधर से उधर नजरे फिराते रहते है। पता नहीं कहां से कब कितनी भीख मिल जाये।
भीख मांगने के लिए लोग रसीद बुक तक छपवा लेते है। एक संस्कृति कर्मी ने भीख चेक से लेना शुरु कर दिया, पकड़े गये।
सड़को, चौराहे वाले गरीब भीखारी तो बिचारे पेट के लिए भीख मांगते है। सर्दी में एक कम्बल या रेन बसेरे में जिन्दगी गुजार देते हे। कभी-कभार नकद पैसा मिल जाता है तो एक थैली खरीद कर दो-या तीन भिखारी मिल कर गला तर कर लेते है। कुछ अपराधी होते है कुछ बेरोजगारी में भीख रुपी रोजगार कर लेते है। कुछ रिक्शा वाले, कुछ पढ़े लिखे भी भीख के धन्धे में शामिल है। गांवो से आये बेरोजगार भी भीख के धन्धे में शामिल हो जाते है। एक समाज शास्त्रीय सर्वे में भिखारियों में स्नातक, स्नातकोभर, छात्र तक मिल गये। एक भिखारी ने अपनी लड़की का दहेज में घाटकोपर का ठीया दे दिया था। तब इसकी बड़ी चर्चा हुई।
ष्शहरों में खास खास चौराहो पर भिखारियों के ठीये है और इन ठीयों पर माफियाओं का कब्जा है। कुछ लोगो ने भीख के लिए बच्चों को अपंग बना कर धन्धा शुरु कर दिया। भिखारियों के भीख लेने का भी स्तर होता है। गरीब चौराहे पर खड़ा भिखरी एक, दो, पांच रुपयो या चाय या खाने की भीख मांगता है। बड़ा भिखारी दिल्ली, या न्यूयार्क, या लन्दन से करोड़ो की भीख मांगता है। दे दाता के नाम पर। तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा।
पैसो के बाद प्रेम के भिखारी भी होते है। वे बेचारे प्रेम, प्यार, शरीर की भीख मांगते मांगते ही मर जाते है। कुछ पद, प्रतिप्ठा, पैसे के भिखारी होते है। कुछ टिकट के भिखारी होते है। कुछ नोटो के और कुछ वोटो के भिखारी होते है। मैं कहता हू कहां नहीं है भिखारी। ये भिखारी कुछ भी हो सकते थे, हो सकते है, मगर ये सिर्फ भिखारी है और भिखारी चिन्तन को सार्थक कर रहे है।
बड़े भिखारी दिन-रात भीख मांगने में व्यस्त रहते है। साहित्य कला, संस्कृति में भी भीख मांगने वालों की कमी नहीं है। कोई पुरस्कार की भीख चाहता है, कोई अकादमी की सदस्यता की भीख चाहता है, कोई अकादमी की किताबो- पत्रिकाओं के सम्पादक की भीख चाहता है। कल एक बड़े भिखारी से मुलाकात हुई वे राज्यसभा की सदस्यता की भीख के लिए गिड़गिड़ा रहे थे, एक अन्य बड़े भिखारी तो पदमपुरस्कारों के लिए राग अलाप रहे थे। चुनाव के टिकटों की भीख मांगने के बाद ये ही भिखारी वोटो की भीख मांगने के लिए आने वाले है। सावधान रहियेगा पूरे देश पर भिखारी-चिन्तन हावी है। हर जगह भिखारी खड़े है, आप नहीं दोगे तो जेब से निकालने की हिम्मत रखते है ये बड़े भिखारी।
ये बड़े भिखारी बस स्टेण्ड, वैंक, योजना आयोग, वर्ल्ड बैंक, यूनओ, यू.नेस्को राजधानियों आदि में पाये जाते है।
गरीब दो रोटी की जुगाड़ में भीख मांगने वालों से ज्यादा शरम तो इन अन्तरराप्टीय भिखारियों को आनी चाहिये, मगर ये भिखारी सबसे ज्यादा बेशर्म है।
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यशवन्त कोठारी,