ब्रह्मकमल : उत्तराखंड की लोक-कथा - 2 Sonali Rawat द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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ब्रह्मकमल : उत्तराखंड की लोक-कथा - 2

एक बार परियों की राजकुमारी ने अपने साथ की परियों से धरती पर उसे ले चलने का आग्रह किया। सभी परियाँ रानी के क्रोध से बहुत डरती थीं। अतः उन्होंने परियों की राजकुमारी को साथ ले चलने से मना कर दिया।

परियों की राजकुमारी बहुत जिद्दी थी। वह वापस अपने महल के बगीचे में आ गई और एक स्थान पर छिप गई।

प्रातःकाल का समय था। धरती पर आनेवाली परियों ने अपने-अपने पंख लगाए और धरती की ओर उड़ चलीं। इसी समय परियों की राजकुमारी बाहर निकली और वह भी अपने पंख लगाकर परियों के पीछे-पीछे चल पड़ी। धरती पर जानेवाली परियों को इसका पता नहीं चला।

परियाँ आगे-आगे उड़ती रहीं और परियों की राजकुमारी चुपचाप उनका पीछा करती रही। परियों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि परियों की राजकुमारी उनके पीछे-पीछे आ रही है।
वे अब धरती के बहुत पास आ गई थीं।

अचानक परियों की राजकुमारी को छींक आ गई। परियों ने पीछे मुड़कर देखा तो घबरा गईं। उन्होंने तुरन्त आपस में कुछ बातें की और यह निर्णय लिया कि वे धरती पर नहीं जाएँगी और वापस परी लोक चली जाएँगी। उन्होंने अपना निर्णय परियों की राजकुमारी को भी बता दिया।

परियों की राजकुमारी बहुत जिद्दी थी। उसने पहले तो सभी परियों से अनुरोध किया कि वे उसे धरती पर अपने साथ ले चलें, लेकिन जब परियाँ तैयार नहीं हुईं तो उसने परी लोक लौटने से इनकार कर दिया और उन्हें यह भी बता दिया कि वह अकेली ही धरती पर जाएगी।

सभी परियाँ असमंजस में पड़ गईं। वे जानती थीं कि परियों की राजकुमारी बहुत जिद्दी है और वह बिना धरती पर पहुँचे वापस परी लोक नहीं जाएगी। परियाँ रानी परी से भी बहुत डरती थीं। अतः परियों की राजकुमारी को छोड़कर वे परीलोक नहीं लौट सकती थीं। अन्त में सभी ने मिलकर यह निर्णय लिया कि वे परियों की राजकुमारी को धरती पर ले जाएँगी और कुछ समय रुककर जल्दी ही परी लोक वापस लौट जाएँगी।
परियों की राजकुमारी खुश हो गई।

धरती पास ही थी। अतः कुछ ही समय में सभी परियाँ धरती पर आ गईं। वे एक सुनसान जंगल में बड़े से तालाब के किनारे उतरी थीं। यह स्थान बहुत सुरक्षित था। यहाँ परी लोक की सभी परियाँ प्रायः आती रहती थीं।

परियों की राजकुमारी को यह स्थान बहुत अच्छा लगा। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि धरती इतनी सुन्दर होगी। सभी परियों ने अपनी राजकुमारी के साथ तालाब में स्नान किया, कुछ देर जल-क्रीड़ा की और परी लोक वापस लौटने के लिए अपने-अपने पंख लगाकर तैयार हो गईं। किन्तु परियों की राजकुमारी अभी धरती पर रुकना चाहती थी और कुछ नए स्थान देखना चाहती थी।

परियों ने अपनी राजकुमारी को बहुत समझाया, लेकिन जिद्दी राजकुमारी नहीं मानी । परियाँ अकेले वापस नहीं लौट सकती थीं। अतः उन्हें राजकुमारी की बात माननी पड़ी।

परियों ने अपनी राजकुमारी को बहुत से जंगल, जंगली जीव-जन्तु, पशु-पक्षी आदि दिखाए और अन्त में हिमालय के बर्फीले पहाड़ों पर आ गईं।

परियों की राजकुमारी को बर्फ से ढँके ऊँचे-ऊँचे पहाड़ बहुत अच्छे लगे। उसका मन हो रहा था कि वह परी लोक न लौटे और यहीं धरती पर रह जाए।

परियों की राजकुमारी ने अपने मन की बात अपने साथ आई परियों से कही तो कुछ परियाँ नाराज हो गईं और कुछ उसे समझाने लगीं। परियाँ अपनी राजकुमारी को यह समझाने का प्रयास कर रही थीं कि यह धरती उतनी सुन्दर नहीं है, जितनी सुन्दर वह समझ रही है। इस धरती पर बाघ, शेर, चीता, तेंदुआ जैसे हिंसक जीव, बड़े-बड़े राक्षस और देव-दानव भी रहते हैं, जो बड़े खूँख्वार और खतरनाक होते हैं। अतः उसे वापस परी लोक लौट चलना चाहिए।

परियाँ अपनी राजकुमारी को यह सब समझा रही थीं, तभी अचानक न जाने कहाँ से एक दानव प्रकट हो गया और अट्टहास करने लगा।

दानव को देखते ही परियों के होश उड़ गए। वे अपनी-अपनी जान बचाकर भागीं और जिसे जहाँ जगह मिली, वहाँ छिप गई।

परियों की राजकुमारी ने एक विशालकाय दानव को देखा तो उसे भी डर लगा, लेकिन वह भागी नहीं।

दानव ने परियों की राजकुमारी को देखा तो उसके रूप पर मोहित हो गया। उसने आगे बढ़कर परियों की राजकुमारी को उठाया, अपने कंधे पर लादा और पहाड़ के पीछे जाकर गायब हो गया।

पहाड़ी जंगल में वृक्षों और पत्थरों की आड़ में छिपी परियाँ अपनी राजकुमारी को ले जाते हुए दानव को देखती रहीं। वे दानव की शक्ति से परिचित थीं, अतः वे न बाहर निकलीं और न चीखी चिल्लाई।

परी लोक से धरती पर आनेवाली परियाँ परेशान हो उठीं। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें और क्‍या न करें। वे रानी परी के डर से अपनी राजकुमारी को धरती पर छोड़कर परी लोक नहीं लौट सकती थीं और धरती पर लम्बे समय तक रहना उनके लिए भी खतरे से खाली नहीं था।

परियों ने आपस में एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श किया। एक परी ने कहा कि धरती पर राक्षसों और देव दानवों के साथ ही वीर, साहसी और नेक इंसान भी रहते हैं। दूसरी परी ने सुझाव दिया कि सभी परियों को ऐसे इंसान की प्रतीक्षा करनी चाहिए और उसके सहयोग से अपनी राजकुमारी को मुक्त कराना चाहिए। एक अन्य परी ने सुझाव दिया कि प्रतीक्षा करने में बहुत समय लगेगा। ऐसा इंसान न जाने कब आए? अतः सभी को मिलकर ऐसे इंसान को ढूँढ़ना चाहिए और राजकुमारी को मुक्त कराने का अनुरोध करना चाहिए।

सभी परियों को अन्तिम परी का सुझाव अच्छा लगा और उन्होंने यह तय किया कि वे साधारण स्त्रियों के रूप में अगले दिन से ही एक वीर, साहसी और नेक इंसान की खोज आरम्भ कर देंगी और जल्दी से जल्दी अपनी राजकुमारी को दानव से मुक्त कराने का प्रयास करेंगी।

परियों ने किसी तरह एक प्राकृतिक गुफा में रात बिताई और सवेरा होते ही अपना अभियान आरम्भ कर दिया। वे इधर-उधर फैल गईं और जंगल से गुजरनेवालों पर नजर रखने लगीं। परियों को शाम हो गई, किन्तु वीर, साहसी और नेक इंसान तो दूर की बात, उन्हें कोई साधारण इंसान भी नहीं दिखाई दिया । सम्भवतः दानव के भय के कारण लोगों ने उधर से गुजरना छोड़ दिया था।
धीरे-धीरे तीन दिन हो गए, लेकिन परियों को कोई सफलता नहीं मिली।

अचानक एक दिन दोपहर के समय उस पहाड़ी जंगल से, घोड़े पर सवार एक हट्टा-कट्टा सुन्दर युवक गुजरा। उसे वहीं पास ही, एक वृक्ष की आड़ में खड़ी परी ने देखा और सहायता के लिए गुहार लगाने लगी।

परी की आवाज सुनकर घोड़े पर सवार युवक रुक गया और उसने अपनी दृष्टि इधर-उधर दौड़ाई।

युवक से कुछ दूरी पर एक सुन्दर स्त्री खड़ी थी और सहायता के लिए उसे पुकार रही थी।

युवक घोड़े से नीचे उतरा और पैदल चलता हुआ परी के पास पहुँचा । इसी समय अन्य परियाँ भी आ गईं। सभी ने उस युवक को यह बता दिया कि वे परी लोक की परियाँ हैं और इसके साथ ही अपनी राजकुमारी के अपहरण की पूरी कहानी भी उसे बता दी।

युवक वास्तव में वीर, साहसी और नेक इंसान था। उसने परियों को बताया कि वह इस राज्य का राजकुमार है और उनकी सहायता अवश्य करेगा।
परियों को थोड़ी-बहुत राहत मिली।

राजकुमार अपने राज्य के सभी क्षेत्रों से अच्छी तरह परिचित था। उसे दानव की पूरी जानकारी थी और यह भी मालूम था कि दानव कहाँ रहता है? राजकुमार ने परियों को आश्वासन दिया कि वह उनकी राजकुमारी को दानव से मुक्त कराने का पूरा प्रयास करेगा। इसके बाद वह अपने घोड़े पर सवार हुआ और एक ओर बढ़ गया।

राजकुमार ऊची-ऊची असमतल पहाड़ी चट्टानों पर बड़ी तेजी से अपना घोड़ा दौड़ाता रहा और कुछ समय बाद एक बड़ी नदी के पास आ पहुँचा। इस नदी के किनारे अनेक बड़ी-बड़ी गुफाएँ थीं।

राजकुमार ने अपनी तलवार निकाली और एक गुफा के सामने आकर खड़ा हो गया। यह दानव की गुफा थी। गुफा के द्वार पर एक भारी पत्थर अड़ा हुआ था। इससे यह साफ था कि दानव अपनी गुफा में नहीं है।

राजकुमार ने अपनी तलवार पास की एक चट्टान पर रखी और पत्थर हटाने का प्रयास करने लगा। पत्थर बहुत भारी था और टस से मस नहीं हो रहा था। राजकुमार बहुत देर तक पत्थर हटाने का प्रयास करता रहा। अन्त में उसे सफलता मिली और पत्थर इतना खिसक गया कि गुफा के द्वार पर एक व्यक्ति के निकल जाने योग्य जगह बन गई।
राजकुमार ने अपनी तलवार चट्टान से उठाई और पूरी सावधानी के साथ गुफा के भीतर आ गया।

शाम होने में अभी कुछ समय बाकी था। गुफा के भीतर इतना प्रकाश आ रहा था कि भीतर की सभी चीजें घुँधली-धुँधली दिखाई दे रही थीं।

राजकुमार ने आँखें फाड़-फाड़कर गुफा के भीतर नजरें दौड़ाईं। वहाँ जीव-जन्तुओं के अस्थि पंजरों के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। राजकुमार को लगा कि दानव परियों की राजकुमारी को मार कर खा गया है।

अचानक राजकुमार के कानों में किसी स्त्री के सिसकने की आवाज टकराई। राजकुमार सावधान हो गया और धीरे-धीरे आवाज की ओर बढ़ा। गुफा के एक अँधेरे कोने में एक स्त्री खड़ी सिसक रही थी।

राजकुमार ने अनुमान लगाया कि यही परियों की राजकुमारी है। उसने जल्दी-जल्दी अपना परिचय दिया और उसका हाथ पकड़कर बाहर आ गया।

दानव के अत्याचारों के कारण परियों की राजकुमारी का रंग पीला पड़ गया था और वह मुरझा गई थी। किन्तु इससे उसकी सुन्दरता में कोई कमी नहीं आई थी।

राजकुमार ने परियों की राजकुमारी को देखा तो उस पर मोहित हो गया। परियों की राजकुमारी बहुत घबराई हुई थी। इस समय उसे राजकुमार एक देवदूत जैसा लग रहा था।

राजकुमार जानता था कि यह स्थान सुरक्षित नहीं है। दानव कभी भी वापस आ सकता था और उन दोनों के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकता था। अतः राजकुमार ने परियों की राजकुमारी को घोड़े पर बैठाया और स्वयं भी घोड़े पर सवार हो गया।

राजकुमार का घोड़ा अभी दो-चार कदम भी आगे नहीं बढ़ा था कि न जाने कहाँ से दानव प्रकट हो गया और घोड़े के सामने खड़ा हो गया।
परियों की राजकुमारी ने दानव को देखा तो वह भय से अचेत हो गई।
राजकुमार ने भी दानव को देखा । वह घोड़े के सामने सीना ताने उसका रास्ता रोके खड़ा था।

राजकुमार वीर और साहसी था। वह घोड़े से नीचे उतरा, परियों की राजकुमारी को सहारा देकर नीचे उतारा, उसे एक स्थान पर लिटाया और तलवार लेकर दानव के सामने आ गया।

दानव ने राजकुमार को इस रूप में देखा तो जोर से हँसा। उसने राजकुमार को ऊँची आवाज में चेतावनी दी कि यदि वह उससे युद्ध करेगा तो बिना मौत मारा जाएगा। उसने राजकुमार को यह भी समझाया कि वह असीम शक्तिशाली दानव है। कोई उससे जीत नहीं सकता।
राजकुमार ने दानव की बात का कोई उत्तर नहीं दिया और मुस्कराता रहा।

राजकुमार की मुस्कराहट ने दानव का क्रोध बढ़ा दिया। उसने अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर राजकुमार को पकड़ने की कोशिश की।

राजकुमार सावधान था। उसने नीचे झुककर तलवार से दानव के हाथ पर वार कर दिया। उसका निशाना अचूक था। अगले ही क्षण दानव का दाहिना हाथ जमीन पर पड़ा था।

हाथ कटते ही दानव का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने चीखते हुए बायाँ हाथ राजकुमार को पकड़ने के लिए बढ़ाया।

राजकुमार ने अपनी तलवार से दानव का बायाँ हाथ भी काट डाला। इसी समय एक चमत्कार हुआ। दानव का दाहिना हाथ हवा में लहराया और उसके शरीर से जुड़ गया। हाथ जुड़ते ही दानव ने जोरदार ठहाका लगाया।

राजकुमार परेशान हो उठा। उसे लगा कि इस मायावी दानव से निपटना इतना आसान नहीं है, जितना वह समझ रहा था। फिर भी उसने हिम्मत से काम लिया और दानव के आगे बढ़नेवाले हाथ को काटता रहा।

परियों की राजकुमारी जमीन पर कुछ देर तो अचेत पड़ी रही, किन्तु उसे शीघ्र ही होश आ गया। उसने अपने सामने जो कुछ भी देखा तो घबरा गई। वह जानती थी कि दानव को इस प्रकार कोई नहीं मार सकता। उसने चीखकर राजकुमार को बता

या कि दानव की जान गुफा के भीतर पिंजड़े में बन्द एक तोते में है। उसे मार दो तो दानव अपने आप मर जाएगा।

दानव ने यह सुना तो राजकुमार को छोड़कर परियों की राजकुमारी पर झपटा।

राजकुमार ने देखा तो वह परियों की राजकुमारी को बचाने के लिए आगे बढ़ा। तभी परियों की राजकुमारी ने उसे पुनः सावधान किया और बताया कि वह उसकी चिन्ता न करके तोते के पास पहुँचे।

राजकुमार की समझ में बात आ गई। उसने दोनों को छोड़ा और गुफा की ओर भागा।

दानव ने भी परियों की राजकुमारी को छोड़ा और राजकुमार के पीछे-पीछे वह भी गुफा की ओर भागा । लेकिन इससे पहले कि दानव राजकुमार को पकड़ पाता, राजकुमार ने पिंजड़ा खोलकर तोते की गर्दन मरोड़ दी।

तोते के मरते ही दानव जमीन पर गिरकर तड़पने लगा और कुछ ही क्षणों में मर गया।

इसी मध्य परियों की राजकुमारी भी गुफा के भीतर आ गई थी। राजकुमार ने परियों की राजकुमारी का हाथ पकड़कर उसे घोड़े पर बैठाया और फिर स्वयं घोड़े पर सवार होकर एक ओर चल पड़ा।

रात का अँधेरा धीरे-धीरे बढ़ रहा था। राजकुमार परियों की राजकुमारी को घोड़े पर आगे बैठाए प्रतीक्षा करती हुई परियों की ओर तेजी से बढ़ रहा था।

राजकुमार जिस समय परियों के मिलनेवाले स्थान पर पहुँचा तो आधी रात हो चुकी थी। उसने इधर-उधर देखा, लेकिन उसे कहीं भी कोई परी नहीं दिखाई दी। राजकुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ।

अचानक उसके कानों में घोड़े के हिनहिनाने की आवाज पड़ी। इसी समय कुछ घुड़सवार सैनिक उसके सामने आए, अपने-अपने घोड़े से नीचे उतरे और सिर झुकाकर खड़े हो गए।

ये सभी राजकुमार के सैनिक थे, जो राजकुमार के महल में वापस न लौटने के कारण उसकी खोज में निकले थे। परियों को इन सैनिकों ने बन्दी बना लिया था।

राजकुमार की आज्ञा से सैनिकों ने सभी परियों को मुक्त किया। एक-एक परी को एक-एक सैनिक ने अपने घोड़े पर बैठाया और महल आ गए । राजकुमार के साथ परियों की राजकुमारी भी थी।

राजकुमार ने परियों की राजकुमारी सहित सभी परियों को अपने महल में राजसी ठाट-बाट से रखा और उन्हें अपने राज्य की सुन्दर-सुन्दर झीलों, नदियों और वनों की सैर कराई। वास्तव में वह परियों की राजकुमारी को हृदय से चाहने लगा था और चाहता था कि वह उसके साथ विवाह कर ले।

परियों की राजकुमारी भी राजकुमार की वीरता, साहस और सद्व्यवहार पर मोहित थी और उसे चाहने लगी थी। उसके साथ की परियों ने भी एक-एक सैनिक को पसन्द कर लिया था और उनके साथ रंगरेलियाँ मना रही थीं।

इधर परियों और अपनी बेटी के न लौटने के कारण परी लोक की रानी बहुत चिन्तित थी। उसने कुछ समय तक तो प्रतीक्षा की और उसके बाद अपना चमत्कारी तारास्त्र लेकर धरती की ओर चल पड़ी।

रानी परी का तारास्त्र बड़ा चमत्कारी था। उसने अपने तारास्त्र के द्वारा यह मालूम कर लिया था कि उसकी बेटी और अन्य परियाँ धरती पर कहाँ हैं? और कया कर रही हैं? उसे यह जानकर बहुत क्रोध आया कि उसकी बेटी अन्य परियों के साथ धरती के मानवों के साथ रंगरेलियाँ मना रही है।
रानी परी सीधी राजकुमार के महल के बगीचे में पहुँची।

परियों की राजकुमारी इस समय राजकुमार का सिर अपनी गोद में लिए हुए किसी मधुर विषय पर बातें कर रही थी। उसने अपने सामने रानी परी को देखा तो उसके होश उड़ गए। रानी परी बहुत क्रोध में थी ।

परियों की राजकुमारी ने राजकुमार का सिर अपनी गोद से हटाया और उठकर खड़ी हो गई। इसी समय परी लोक की अन्य परियाँ भी अपने-अपने साथी सैनिकों के साथ आ गईं।

रानी परी ने सभी परियों को जलती हुई आँखों से देखा और उन्हें परी लोक वापस चलने का आदेश दिया, लेकिन परियों ने अपने-अपने सिर नीचे कर लिए और अपने-अपने साथी का हाथ पकड़ लिया।

रानी परी की समझ में आ गया कि बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। उसने अपने क्रोध पर नियन्त्रण किया और अपनी बेटी सहित सभी परियों को धरती के मानव और उनकी बुराइयों के विषय में बताकर परी लोक लौटने के लिए समझाने लगी।

रानी परी ने सभी को बहुत समझाया। लेकिन उसकी बेटी सहित सभी परियों ने परी लोक लौटने से साफ इनकार कर दिया।

रानी परी ने सभी को बहुत समझाया, लेकिन जब उसकी बात किसी ने नहीं मानी तो उसे क्रोध आ गया और उसने अपने तारास्त्र की चमत्कारी शक्ति से अपनी बेटी को ब्रह्मकमल बना दिया और उसके साथी राजकुमार को पानी का कमल बना दिया। इसके साथ ही उसने अन्य परियों और उनके साथी सैनिकों को भी तरह-तरह के फूलों में बदल दिया और दुखी हृदय से परी लोक लौट आई।

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