ब्रह्मकमल : उत्तराखंड की लोक-कथा - 3 Sonali Rawat द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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ब्रह्मकमल : उत्तराखंड की लोक-कथा - 3

राजकुमार ने अपनी तलवार निकाली और एक गुफा के सामने आकर खड़ा हो गया। यह दानव की गुफा थी। गुफा के द्वार पर एक भारी पत्थर अड़ा हुआ था। इससे यह साफ था कि दानव अपनी गुफा में नहीं है।

राजकुमार ने अपनी तलवार पास की एक चट्टान पर रखी और पत्थर हटाने का प्रयास करने लगा। पत्थर बहुत भारी था और टस से मस नहीं हो रहा था। राजकुमार बहुत देर तक पत्थर हटाने का प्रयास करता रहा। अन्त में उसे सफलता मिली और पत्थर इतना खिसक गया कि गुफा के द्वार पर एक व्यक्ति के निकल जाने योग्य जगह बन गई।
राजकुमार ने अपनी तलवार चट्टान से उठाई और पूरी सावधानी के साथ गुफा के भीतर आ गया।

शाम होने में अभी कुछ समय बाकी था। गुफा के भीतर इतना प्रकाश आ रहा था कि भीतर की सभी चीजें घुँधली-धुँधली दिखाई दे रही थीं।

राजकुमार ने आँखें फाड़-फाड़कर गुफा के भीतर नजरें दौड़ाईं। वहाँ जीव-जन्तुओं के अस्थि पंजरों के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। राजकुमार को लगा कि दानव परियों की राजकुमारी को मार कर खा गया है।

अचानक राजकुमार के कानों में किसी स्त्री के सिसकने की आवाज टकराई। राजकुमार सावधान हो गया और धीरे-धीरे आवाज की ओर बढ़ा। गुफा के एक अँधेरे कोने में एक स्त्री खड़ी सिसक रही थी।

राजकुमार ने अनुमान लगाया कि यही परियों की राजकुमारी है। उसने जल्दी-जल्दी अपना परिचय दिया और उसका हाथ पकड़कर बाहर आ गया।

दानव के अत्याचारों के कारण परियों की राजकुमारी का रंग पीला पड़ गया था और वह मुरझा गई थी। किन्तु इससे उसकी सुन्दरता में कोई कमी नहीं आई थी।

राजकुमार ने परियों की राजकुमारी को देखा तो उस पर मोहित हो गया। परियों की राजकुमारी बहुत घबराई हुई थी। इस समय उसे राजकुमार एक देवदूत जैसा लग रहा था।

राजकुमार जानता था कि यह स्थान सुरक्षित नहीं है। दानव कभी भी वापस आ सकता था और उन दोनों के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकता था। अतः राजकुमार ने परियों की राजकुमारी को घोड़े पर बैठाया और स्वयं भी घोड़े पर सवार हो गया।

राजकुमार का घोड़ा अभी दो-चार कदम भी आगे नहीं बढ़ा था कि न जाने कहाँ से दानव प्रकट हो गया और घोड़े के सामने खड़ा हो गया।
परियों की राजकुमारी ने दानव को देखा तो वह भय से अचेत हो गई।
राजकुमार ने भी दानव को देखा । वह घोड़े के सामने सीना ताने उसका रास्ता रोके खड़ा था।

राजकुमार वीर और साहसी था। वह घोड़े से नीचे उतरा, परियों की राजकुमारी को सहारा देकर नीचे उतारा, उसे एक स्थान पर लिटाया और तलवार लेकर दानव के सामने आ गया।दानव ने राजकुमार को इस रूप में देखा तो जोर से हँसा। उसने राजकुमार को ऊँची आवाज में चेतावनी दी कि यदि वह उससे युद्ध करेगा तो बिना मौत मारा जाएगा। उसने राजकुमार को यह भी समझाया कि वह असीम शक्तिशाली दानव है। कोई उससे जीत नहीं सकता।
राजकुमार ने दानव की बात का कोई उत्तर नहीं दिया और मुस्कराता रहा।

राजकुमार की मुस्कराहट ने दानव का क्रोध बढ़ा दिया। उसने अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर राजकुमार को पकड़ने की कोशिश की।

राजकुमार सावधान था। उसने नीचे झुककर तलवार से दानव के हाथ पर वार कर दिया। उसका निशाना अचूक था। अगले ही क्षण दानव का दाहिना हाथ जमीन पर पड़ा था।

हाथ कटते ही दानव का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने चीखते हुए बायाँ हाथ राजकुमार को पकड़ने के लिए बढ़ाया।

राजकुमार ने अपनी तलवार से दानव का बायाँ हाथ भी काट डाला। इसी समय एक चमत्कार हुआ। दानव का दाहिना हाथ हवा में लहराया और उसके शरीर से जुड़ गया। हाथ जुड़ते ही दानव ने जोरदार ठहाका लगाया।

राजकुमार परेशान हो उठा। उसे लगा कि इस मायावी दानव से निपटना इतना आसान नहीं है, जितना वह समझ रहा था। फिर भी उसने हिम्मत से काम लिया और दानव के आगे बढ़नेवाले हाथ को काटता रहा।

परियों की राजकुमारी जमीन पर कुछ देर तो अचेत पड़ी रही, किन्तु उसे शीघ्र ही होश आ गया। उसने अपने सामने जो कुछ भी देखा तो घबरा गई। वह जानती थी कि दानव को इस प्रकार कोई नहीं मार सकता। उसने चीखकर राजकुमार को बताया कि दानव की जान गुफा के भीतर पिंजड़े में बन्द एक तोते में है। उसे मार दो तो दानव अपने आप मर जाएगा।

दानव ने यह सुना तो राजकुमार को छोड़कर परियों की राजकुमारी पर झपटा।

राजकुमार ने देखा तो वह परियों की राजकुमारी को बचाने के लिए आगे बढ़ा। तभी परियों की राजकुमारी ने उसे पुनः सावधान किया और बताया कि वह उसकी चिन्ता न करके तोते के पास पहुँचे।राजकुमार की समझ में बात आ गई। उसने दोनों को छोड़ा और गुफा की ओर भागा।

दानव ने भी परियों की राजकुमारी को छोड़ा और राजकुमार के पीछे-पीछे वह भी गुफा की ओर भागा । लेकिन इससे पहले कि दानव राजकुमार को पकड़ पाता, राजकुमार ने पिंजड़ा खोलकर तोते की गर्दन मरोड़ दी।

तोते के मरते ही दानव जमीन पर गिरकर तड़पने लगा और कुछ ही क्षणों में मर गया।

इसी मध्य परियों की राजकुमारी भी गुफा के भीतर आ गई थी। राजकुमार ने परियों की राजकुमारी का हाथ पकड़कर उसे घोड़े पर बैठाया और फिर स्वयं घोड़े पर सवार होकर एक ओर चल पड़ा।

रात का अँधेरा धीरे-धीरे बढ़ रहा था। राजकुमार परियों की राजकुमारी को घोड़े पर आगे बैठाए प्रतीक्षा करती हुई परियों की ओर तेजी से बढ़ रहा था।

राजकुमार जिस समय परियों के मिलनेवाले स्थान पर पहुँचा तो आधी रात हो चुकी थी। उसने इधर-उधर देखा, लेकिन उसे कहीं भी कोई परी नहीं दिखाई दी। राजकुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ।

अचानक उसके कानों में घोड़े के हिनहिनाने की आवाज पड़ी। इसी समय कुछ घुड़सवार सैनिक उसके सामने आए, अपने-अपने घोड़े से नीचे उतरे और सिर झुकाकर खड़े हो गए।

ये सभी राजकुमार के सैनिक थे, जो राजकुमार के महल में वापस न लौटने के कारण उसकी खोज में निकले थे। परियों को इन सैनिकों ने बन्दी बना लिया था।

राजकुमार की आज्ञा से सैनिकों ने सभी परियों को मुक्त किया। एक-एक परी को एक-एक सैनिक ने अपने घोड़े पर बैठाया और महल आ गए । राजकुमार के साथ परियों की राजकुमारी भी थी।

राजकुमार ने परियों की राजकुमारी सहित सभी परियों को अपने महल में राजसी ठाट-बाट से रखा और उन्हें अपने राज्य की सुन्दर-सुन्दर झीलों, नदियों और वनों की सैर कराई। वास्तव में वह परियों की राजकुमारी को हृदय से चाहने लगा था और चाहता था कि वह उसके साथ विवाह कर ले।परियों की राजकुमारी भी राजकुमार की वीरता, साहस और सद्व्यवहार पर मोहित थी और उसे चाहने लगी थी। उसके साथ की परियों ने भी एक-एक सैनिक को पसन्द कर लिया था और उनके साथ रंगरेलियाँ मना रही थीं।

इधर परियों और अपनी बेटी के न लौटने के कारण परी लोक की रानी बहुत चिन्तित थी। उसने कुछ समय तक तो प्रतीक्षा की और उसके बाद अपना चमत्कारी तारास्त्र लेकर धरती की ओर चल पड़ी।

रानी परी का तारास्त्र बड़ा चमत्कारी था। उसने अपने तारास्त्र के द्वारा यह मालूम कर लिया था कि उसकी बेटी और अन्य परियाँ धरती पर कहाँ हैं? और कया कर रही हैं? उसे यह जानकर बहुत क्रोध आया कि उसकी बेटी अन्य परियों के साथ धरती के मानवों के साथ रंगरेलियाँ मना रही है।
रानी परी सीधी राजकुमार के महल के बगीचे में पहुँची।

परियों की राजकुमारी इस समय राजकुमार का सिर अपनी गोद में लिए हुए किसी मधुर विषय पर बातें कर रही थी। उसने अपने सामने रानी परी को देखा तो उसके होश उड़ गए। रानी परी बहुत क्रोध में थी ।

परियों की राजकुमारी ने राजकुमार का सिर अपनी गोद से हटाया और उठकर खड़ी हो गई। इसी समय परी लोक की अन्य परियाँ भी अपने-अपने साथी सैनिकों के साथ आ गईं।

रानी परी ने सभी परियों को जलती हुई आँखों से देखा और उन्हें परी लोक वापस चलने का आदेश दिया, लेकिन परियों ने अपने-अपने सिर नीचे कर लिए और अपने-अपने साथी का हाथ पकड़ लिया।

रानी परी की समझ में आ गया कि बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। उसने अपने क्रोध पर नियन्त्रण किया और अपनी बेटी सहित सभी परियों को धरती के मानव और उनकी बुराइयों के विषय में बताकर परी लोक लौटने के लिए समझाने लगी।

रानी परी ने सभी को बहुत समझाया। लेकिन उसकी बेटी सहित सभी परियों ने परी लोक लौटने से साफ इनकार कर दिया।रानी परी ने सभी को बहुत समझाया, लेकिन जब उसकी बात किसी ने नहीं मानी तो उसे क्रोध आ गया और उसने अपने तारास्त्र की चमत्कारी शक्ति से अपनी बेटी को ब्रह्मकमल बना दिया और उसके साथी राजकुमार को पानी का कमल बना दिया। इसके साथ ही उसने अन्य परियों और उनके साथी सैनिकों को भी तरह-तरह के फूलों में बदल दिया और दुखी हृदय से परी लोक लौट आई।

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