शहर से विवाह करके आई आराध्या जबसे अपने ससुराल एक गांव में आई तबसे देख रही थी घर में उसकी बुजुर्ग दादी सास का अपमान होता हुआ...
घर में उसके पति रमेश के अलावा उसकी सास और दादी सास थी बस चार लोगों का परिवार ... उसने ये बात अपने पति रमेश से कहीं तो वह बोला ...ये घर की औरतों का मामला है में इसमें क्या कर सकता हूं
आराध्या समझ गई जो कुछ करना है वह उसे अकेले ही करना होगा जब भी उसकी सासूमां दादी सास का अपमान करती वह विचलित हो जाती उसके मायके में उसके पापा और मम्मी तो दादी का कितना ख्याल रखते हैं और यहां एक बड़ी बुजुर्ग का तिरस्कार हो रहा है वक्त पर खाना ना देना बेवजह बातें सुनाना चलते हुए ताने कहना ...आराध्या को लगता उसे अपनी सास से इसपर बात करनी चाहिए मगर फिर मन में आया कहीं मैं सास से ये सब कहूँगी तो सासूमां आप दादी मां का तिरस्कार मत किया करो तो कहेंगी कि कल की बहू आकर मुझे उपदेश दे रही है और बात बजाय बनने के बिगड़ जाएगी आखिर उसने एक उपाय सोचा वह रोज अपने काम निपटाकर दादी सास के पास जाकर बैठ जाती और उसके पैर दबाने लगती आराध्या की सासूमां ने जब ये नोटिस किया की आराध्या ज्यादा दादी सास के पास बैठने लगी तो यह सब उन्हें पसंद नहीं आया और एक दिन आराध्या को गुस्से से पूछा ...बहू तुम वहां क्यों जा बैठती हो
आराध्या ने अंजान बनते हुए पूछा... मां जी कुछ काम है आपको बताइए ना ...
काम को छोड़ पहले ये बता तू वहां कयुं ज्यादा बैठती है
मां जी ...मेरे पिताजी ने कहा था कि जवान लड़कों के साथ कभी बैठना ही नहीं जवान लड़कियों के साथ भी कभी मत बैठना जो घर में बड़े-बूढ़े हों उनके पास बैठना, उनसे शिक्षा लेना हमारे घर में सबसे बूढ़ी ये ही हैं अब आप ही बताइए मे किसके पास बैठूं
तुम्हारे पिताजी ने कहा था ये वहां के तौर तरीके हमारे घर नहीं चलेगे यहां तो हमारे तौर तरीके ही चलेगे समझी
मां जी .... मुझे भी यहां के तौर तरीके सीखने है इसीलिए तो मैं उनसे पूछती रहती हूं कि मेरी सास आपकी सेवा कैसे करती है ताकि में भी आपकी तरह आपकी सेवा कर सकूं
अच्छा...तो क्या कहा बुढ़िया ने...
मां जी ...दादीजी बोल रही थी कि अगर मेरी बहु समय पर भोजन दें मुझे ताने ना दे तो मैं उसे ही सच्ची सेवा मान लूं
अच्छा ...तो क्या तू भी कर ऐसा ही करेगी
अब मैं ऐसा नहीं करना चाहती हूं मगर मेरे पिता जी ने कहा कि बड़ों से ससुराल की रीति सीखना जैसे वहां होता हो वैसा ही तुम्हें भी सीखकर करना होगा
आराध्या की बात सुनकर सास डर गयी कि ये सब क्या है यदि मैं अपनी सास के साथ जो बर्ताव करुँगी वही बर्ताव ये मेरे साथ करेंगी ये तो कल मेरे बुढ़ापे में मेरे लिए खतरनाक हो सकता है अचानक एक जगह कोने में मिट्टी के बर्तन इकट्ठे पड़े देखकर सास ने पूछा-बहू ये मिट्टी के बर्तन क्यों इकट्ठे कर रखे है
आराध्या ने कहा...आप दादी जी को ऐसे ही बर्तनों में भोजन देती हो इसलिए मैंने पहले ही ये बर्तन जमा कर लिए हैं ताकि कल ...
क्या मतलब तो तू मुझे कल को मिट्टी के बर्तन में भोजन करायेगी
जी ...अब आप ही ने तो थोड़ी देर पहले कहा कि यहां आपके यहां की रीति चलेगी हमारे घर में तो बड़े बुजुर्गो को आदर से अच्छे बर्तनों में खाना परोसते हैं
अरे यह कोई रीति थोड़े ही है
तो आप फिर आप दादी सास को इन बर्तनों में खाना क्यों देती हो मां जी
वो तो इसलिए की थाली कौन मांजेगा
थाली तो मैं मांज दूँगी
ठीक है तो तू आज से उन्हें थाली में खाना दिया कर और ये मिट्टी के बर्तन उठाकर बाहर फेंक
अब बूढ़ी दादीजी को थाली में भोजन मिलने लगा
लेकिन आराध्या ने नोटिस किया सबको भोजन देने के बाद जो बाकी बचे वह खिचड़ी की खुरचन बची हुई दाल दादी मां जी को दी जाती थी
आराध्या एक दिन ऐसे खाने को हाथ में लाकर देखने लगी तो सास ने पूछा ...क्या देख रही हो बहु
मां जी मैं देख रही हू कि बड़ों को भोजन कैसा दिया जाता है ये भी तो यहां की रीति होगी
ऐसा भोजन देने की कोई रीति थोड़े ही है
मतलब ...तो फिर आप दादीजी ऐसा भोजन क्यों देती हो
अरे बूढ़ों को पहले भोजन कौन देने जाएं
आप आज्ञा दो तो मैं दे दूँगी
अच्छा ... ठीक है तो तू पहले दादी को भोजन दे दिया कर
अच्छी बात है
अब बूढ़ी दादी जी को बढ़िया भोजन मिलने लगा
रसोई बनते ही आराध्या ताजी खिचड़ी, ताजा फुलका, दाल-साग ले जाकर दादी सास जी को दे देती
दादी मां जी तो मन-ही-मन आशीर्वाद देने लगी दादी मां जी दिनभर एक खटिया में पड़ी रहती और वह खटिया भी लगभग टूटी हुई थी उसमें से बन्दनवार की तरह मूँज नीचे लटकती थी
आराध्या ने उसे बड़े गौर से देखा तो ये सब देख रही उसकी सासूमां बोली ...अब क्या देख रही हो
मां जी देख रही हूं कि बड़ों को खाट कैसे दी जाती है
अरे नहीं ... तुम गलत समझ रही हो बड़ों को ऐसी खाट थोड़े ही दी जाती है यह तो टूट जाने से ऐसी हो गयी है
अच्छा ...तो दूसरी क्यों नही बिछा देती
एक काम कर तू बिछा दे दूसरी
अब बूढ़ी दादी के लिए निवार की खाट लाकर बिछा दी गयी एक दिन कपड़े धोते समय आराध्या दादीजी के कपड़े देखने लगी कपड़े छलनी हो रखे थे कपड़ों को गौर से देख रही आराध्या को उसकी सासूमां ने कहा अब क्या देख रही हो बहू
देख रही हूं कि बूढों को कपड़ा कैसे दिया जाता है
फिर वही बात अरे कपड़ा ऐसा थोड़े ही दिया जाता है यह तो पुराना होने पर ऐसा हो जाता है
तो फिर वही कपड़ा रहने दें क्या
तू बदल दे
आराध्या ने मुस्कुरा कर दादी मां के कपड़े चादर, बिछौना आदि सब बदल दिया उसकी चतुराई से बूढ़ी दादी मां का जीवन सुधर गया दोस्तों ....ये सब बाते आपको पुराने जमाने की लग रही होगी ये सच भी है क्योंकि आजकल तो बहु मुंह फट होकर सामने से विरोध कर सकती हैं ऐसी गलत रीतियों का तौर तरीके का मगर पोस्ट का असल मकसद आपको ये बताने का था कहने भर से ही असर नहीं पड़ता बल्कि आचरण का असर पड़ता है जैसे आप को करते हुए देखकर लोगों को सीखने का मौका मिलता है अपने वर्तमान में अपना भविष्य देखने का
असल में जैसा बोओगे वैसा काटोगे यहां तो समझदार बहु ने समझा दिया मगर यदि आप समझना ही नहीं चाहते तो कल होने वाली आपकी परिस्थितियां आप वर्तमान में ही तय कर रहे हैं