एक सरकारी कार्यालय में लंबी लाइन लगी हुई थी। खिड़की पर जो क्लर्क बैठा हुआ था, वह बहुत ही तेज मिजाज़ का था और सभी से उच्चे स्वर में बात कर रहा था। उस समय भी एक महिला को डांटते हुए वह कह रहा था, "आपको ज़रा भी पता नहीं चलता, जो फॉर्म आप भर कर लायीं हैं, उसमें कुछ भी सही नहीं हैं। सरकार ने फॉर्म फ्री कर रखा है तो कुछ भी भर दो। जेब का पैसा लगता तो दस लोगों से पूछ कर भरती आप।"
एक व्यक्ति पंक्ति में पीछे खड़ा काफी देर से यह देख रहा था। वह पंक्ति से बाहर निकल कर, पीछे के रास्ते से उस क्लर्क के पास जाकर खड़ा हो गया और वहाँ रखे मटके से पानी का एक गिलास भरकर उस क्लर्क की तरफ बढ़ा दिया।
क्लर्क ने उस व्यक्ति की तरफ आँखें तरेर कर देखा और गर्दन उचका कर कहा, "क्या है?"
उस व्यक्ति ने कहा, "सर, आप काफी देर से बोल रहे हैं, गला सूख गया होगा आपका, पानी पी लीजिये।"
क्लर्क ने पानी का गिलास हाथ में ले लिया और उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे किसी दूसरे ग्रह के प्राणी को देख लिया हो और कहा, "जानते हो, मैं कड़वा सच बोलता हूँ, इसलिए सब नाराज़ रहते हैं मुझसे, चपरासी तक मुझे पानी नहीं पिलाता..."
वह व्यक्ति मुस्कुरा दिया और फिर पंक्ति में अपने स्थान पर जाकर खड़ा
हो गया।
शाम को उस व्यक्ति के पास एक फ़ोन आया, दूसरी तरफ वही क्लर्क था, उसने कहा, "भाईसाहब, आपका नंबर आपके फॉर्म से लिया था, शुक्रिया अदा करने के लिये फ़ोन किया है।
मेरी माँ और पत्नी में बिल्कुल नहीं बनती। आज भी जब मैं घर पहुँचा तो दोनों बहस कर रहीं थी, लेकिन आपका गुरुमन्त्र काम आ गया।"
वह व्यक्ति चौंका और कहा, "जी, गुरुमंत्र?"
"जी हाँ, मैंने एक गिलास पानी अपनी माँ को दिया और दूसरा गिलास अपनी पत्नी को और यह कहा कि गला सूख रहा होगा पानी पी लो... बस फिर हम तीनों हँसते - खेलते बातें कर रहे हैं। अब भाईसाहब, आज खाने पर आप हमारे घर आ जाइये।
मैं जानना चाहता हूँ, आपके दिए एक गिलास पानी में इतना जादू है, तो आपके साथ खाना खाने से कितना जादू होगा?"