बत्तीस साल पुरानी उस बीती से पहले माँ और पपा की आपसी जोड़-तोड़ से मैं अपने को अलग रखा करती थी.
जिस तनातनी को वे आपस में बाँटते उस पर अपना साझा कभी न लगाती.....
आपस में वे बोलचाल बन्द रखें या खोलें, अपने फासले बढ़ाएँ या घटाएँ मैं कभी बीच में न पड़ती....
दोनों पर बराबर यही प्रदर्शित करती:
मैं कुछ नहीं जानती....
मैं कुछ नहीं समझती....
लेकिन बीते उस दिन ने सब उलट दिया.....
1
दोपहर में नीना निझावन आई थी, अपनी बेटी के साथ.....
’’वेलकम,गरल्र्ज़, वेल्कम,’’ पपा की आवाज़ सीढ़ियों पर गूँजी थी।
दो शयनकक्ष वाले इस सरकारी फ्लैट में हर कहीं की बातचीत हर कहीं सुनाई दे जाती।
’’मेरे मम्मी-पापा का लंच आज बाहर था,’’ नीना निझावन से कहा, ’’इसलिए जिगल्ज़ को वहाँ लाने पर मजबूर रही.....’’
’’नीना निझावन की यह बेटी अभी चिकन-पौक्स से उठी है,’’ रसोई में पराँठे सेंक रही माँ मेरे कमरे में चली आईं, ’’इसके क़रीब मत जाना.....’’
’’आपकी फ्राक ग़ज़ब की सुंदर है, जिगल्ज़,’’ पपा उन्हें बैठक में ले आए।
’’यह मेरी तैयार की हुई है,’’ तलाक़शुदा नीना निझावन अपने पिता के बँगले के गैराज में अपना बुटीक चलाती थी, ’’आप कहें तो नन्ही के लिए भी अपने ’क्रियु’ से ऐसी ही फ्राक तैयार करवा दूँ?’’
’’ज़रूर, ज़रूर,’’ पपा हँसे, ’’लेकिन लंच के बाद.....अभी तो शैम्पेन फ्रिज़ में लगी है, हमारी पिक्चर डिस्क-प्लेयर पर और दावत मेज़ पर.......’’
’’और आपकी दोनों पत्नियाँ पहरे पर ?’’ नीना निझावन भी हँसने लगी।
हमारी पीठ पीछे नीना निझावन मुझे पपा की ’दूसरी पत्नी’ कहा करती थी: ’दिस गर्ल आव योर्ज़ बिहेब्ज़ मोर लाइक अ वाइफ़ एंड लैस लाइक अ डाॅटर’ (आपकी बेटी आपकी तरफ़ एक पत्नी का रूख़ रखती है, एक बेटी का नहीं.......)।
’’नन्ही,’’ पपा ने पुकारा।
’’मेरी बात भूलना नहीं,’’ माँ अपनी चेतावनी दोहराई, ’’चिकन-पौक्स वाली उसकी बेटी से दूर-दूर रहना......’’
’’हाँ, माँ,’’ मैंने कहा।
’’जी, पपा,’’ बैठक में पहुँचकर मैं उस सिरे पर जा खड़ी हुई जहाँ खाने की मेज़ थी।
’’जिगल्ज़ से मिलो, नन्ही,’’ पपा ने कहा, ’’इधर आओ....’’
जिगल्ज़ हमारे घर पर पहली बार आई थी।
दो डग आगे बढ़कर मैं सोफ़े की कुर्सी के पीछे जा सटी। वहीं से जिगल्ज़ को मैंने अपनी निगाह में पहली बार उतारा।
वह बहुत दुबली थी और शायद इसीलिए उसे घुटनों तक पहुँच रहे मोज़े पहनाए गए थे और वे भी मोटी बुनती के। फ्राक उसकी ज़रूर किसी महीन कपड़े की थी और बहुत सुंदर थी। गुलाब रंग की पृष्ठभूमि में पीले और लाल गुलाब अपनी हरी पत्तियों समेत हाथ की कढ़ाई से खड़े किए गए थे: आधे बाजू की दोनों आस्तीनों पर, गले पर, घेरे पर। गुलाबी ही रंग के एक बैंड ने उसके बाल पीछे की ओर फेंक रखे थे जिससे उसका चेहरा पूरे का पूरा आगे की तरफ़ लपकता हुआ मालुम होता था।बाहें भी उसकी अजीब उछाल ले रहीं थीं।कहीं टिकने की ताक में वे कभी बायीं तरफ झूलतीं तो कभी दायीं तरफ और कभी जिगल्ज़ की पीठ की तरफ़ जा छिपतीं।
’’तुम्हारी तरह यह भी तीसरी जमात में पढ़ती है,’’ स्याहीदार आँखों और गुलाबी होंठों को साथ-साथ फैलाकर नीना निझावन मेरी दिशा में मुस्कराई ।
गहरे नीले रंग की अपनी जीन्स के साथ उसने अपनी गुलाबी लिपस्टिक के रंग की टी-शर्ट पहन रखी थी।
’’मेरी जमात अब चौथी है,’’ मैंने कहा, ’’इसी मार्च में मेरे सालाना इम्तिहान हुए हैं....’’
’’जिगल्ज़ के चिकन-पौक्स ने मेरी याददाश्त गड़बड़ कर रखी है। मैं भूल जाती हूँ ये दिन स्कूल के बच्चों के प्रमोशन के दिन हैं.....ख़ैर, उम्र में तो तुम ज़रूर ही इसके बराबर हो..’’
’’मालूम नहीं,’’ मैंने अपने कंधे उचकाए, ’’मेरा नवाँ जन्मदिन सितंबर में पड़ेगा.....लगभग छह महीने बाद......’’
’’फिर जिगल्ज़ तुमसे बड़ी है,’’ नीना निझावन मुस्कराई, ’’वह 7 मार्च की तारीख़ में नौ साल पहले पैदा हुई थी....’’
’’जिगल्ज़ को अपने साथ ले जाओ,’’ पपा ने मेरी तरफ़ देखा।
’’तुम दोनों खेलोगी?’’ नीना निझावन फिर मुस्कराई।
’’क्या?’’ मैंने पूछा।
’’कुछ भी....’’
’’कंप्यूटर पर?’’ पपा ने अपने कंप्यूटर पर मुझे कई खेल सिखला रखे थे।
’’मेरी जिगल्ज़ पिछड़ी लड़की है। कंप्यूटर नहीं जानती…."
तभी जिगल्ज की दिशा से एक गरज, एक घनघनाहट, एक दहाड़ किसी डकार की भाँति फूटी और वह कै करने लगी: तेज़ और ज़ोरदार; उग्र और उत्कट।
’’स्टौप इट, जिगल्ज़’’ नीना निझावन चिल्लाई, ’’स्टौप इट। अजनबियों के घर पर यह झाँझ-झोंक कैसी?’’
’’रूकिए,’’ माँ बैठक में चली आईं, ’’इसके चिकन-पौक्स का आज कौन सा दिन है?’’
स्थानीय अस्पताल में माँ डाॅक्टर रहीं।
’’इक्कीसवाँ,’’ नीना निझावन ने कहा, ’’क्यों?’’
’’इस बीच आपने इसे एस्पिरिन देने की भूल की हो?’’ माँ ने पूछा।
’’भूल?’’ नीना निझावन चौंक गई, ’’वह भूल तो मैंने की है। आज ही। अभी आधा घंटा पहले। यह सिर दर्द की शिकायत कर रही थी और मैंने इसे एस्पिरिन खिला दी....’’
’’मैं अभी आई,’’ माँ अपने सोने वाले कमरे में भाग लीं, एक तौलिया लाने।
तौलिए में उन्होंने जिगल्ज़ को फ़ौरन लपेटा और बैठक में बरामदे वाले दरवाज़े पर जा खड़ी हुईं, ’’इसे अभी अस्पताल ले जाना होगा.....’’
’’मगर क्यों?’’ नीना निझावन काँपने लगी।
’’तुम व्यर्थ आतंक क्यों फैलाया करती हो?’’ पपा झल्लाए।
’’यह इमरजेंसी केस है,’’ सीढ़ियाँ उतर लीं, ’’हमें फ़ौरन अस्पताल पहुँच जाना चाहिए..’’
’’इस समय मैं ड्राइव न कर पाऊँगी,’’ अपनी मारूति जेन की चाबियाँ नीना निझावन ने पपा को सौंप दीं, ’’पीछे जिगल्ज़ को लेकर बैठूँगी.....’’
’’ठीक है,’’ पपा ने चाबियाँ अपनी जेब में सँभाल लीं, ’’आप नन्ही को लेकर नीचे चलिए। घर में ताला लगाकर मैं अभी पहुँच रहा हूँ....’’
रास्ते-भर जिगल्ज़ की क़ै बाढ़ की धार की तरह बहती रही, फैलती रही..... उसकी दुबली काया की ऐंठन के बीच......
नीना निझावन के विलाप के बीच......’’ममा को सज़ा न देना, जिग्ज़...ममा के दुख का तुम्हें पूरा अन्दाज़ है, जिग्ज़.....ममा तुम्हें यहाँ घसीट कर लाईं.....ममा को माफ़ कर देना, जिग्ज़...ममा की तुम अकेली गवाह हो, जिग्ज़.....ममा को सज़ा न देना....यह आखि़री बार हुआ, जिग्ज़.....ममा अब कहीं भी घसीट कर तुम्हें नहीं ले जाएगी, जिग्ज....’’
पपा के दिलासे के बीच.....’’आप निश्चिंत रहें, नीना...मुझे यक़ीन है जिगल्ज़ ठीक हो जाएगी, जल्दी ठीक हो जाएगी..... नमिता के अस्पताल का बाल-रोग विभाग, एकदम उम्दा है, उसके विभागाध्यक्ष डाॅ. दुबे हैं, जिनका शहर-भर में ऊँचा नाम है....आप घबराएँ नहीं, नीना...बीमार सभी बच्चे होते हैं, बीमारी उनके विकास का सोपान है, चरण है.....’’
माँ की चुप्पी के बीच....संकट के समय वे अक्सर मौन साध लेतीं.....और उस दिन तो वे वैसे ही सुबह से ख़ामोशी की टेक लगाए थीं.....
2
सुबह उनकी ख़राब गुज़री थी।
’’नीना निझावन आज लंच पर आएगी,’’ सुबह उनके घर में क़दम रखते ही पपा ने घोषणा की थी।
मेरी आया के छुट्टी पर गए होने की वजह से माँ उन दिनों अस्पताल की नाइट ड्यूटी करती थीं और दिन में घर-घराने की।
’’मना कर दीजिए उसे,’’ माँ झल्लाई थीं, ’’यह कौन दस्तूर हुआ? ढीठ बनकर बेगानों के घर पर एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, चार बार खाना खाओ? और अपने घर पर एक बार न बुलाओ?’’
’’हाइआरकि में, पदानुक्रम में मैं उसके पिता के बहुत नीचे हूँ,’’ नीना निझावन के पिता स्थानीय न्यायपालिका के मुख्य न्यायाधीश थे जबकि पपा ने अभी तीन महीने पहले यहाँ अतिरिक्त जिला जज का कार्यभार सँभाला था, ’’वे मेरे साथ एक ही मेज़ पर कैसे बैठ-बतिया सकते हैं?’’
’’यह दलील आपका मन बहला सकती है, मेरा नहीं....’’
’’सोच लो। नीना निझावन तो यहाँ आएगी ही आएगी। ठीक एक बजे.....तुम लंच नहीं बनाओगी तो हम लंच लेने बाहर चले जाएँगे......’’
’’मैंने उसे लंच नहीं खिलाना है,’’ माँ की आवाज़ में वह दृढ़ता शामिल हो ली जो उनके ज़िद्दी स्वभाव का अंग थी, ’’न घर पर न ही बाहर। आज मुझे सिर्फ़ आराम करना है। पूरी रात मैंने आँखों में काटी है।’’
’’क्यों? एमरजेंसी में कल रात वहाँ कोई राजकुमार आ टपका क्या?’’
’’मेरे लिए मेरा हर पेशंट एक राजकुमार है.....मेरी सेवा का हक़दार....’’
’’जानता हूँ....जानता हूँ, सब......सभी हक़दार तुम्हारे वहीं अस्पताल में बसे हैं, इधर कोई नहीं....’’
’’इधर कोई नही?तो फिर मैं इधर आती क्यों हूँ? वहीं अस्पताल के होस्टल में क्यों नहीं रह लेती?’’
’’क्योंकि तुम्हारे बाप ने तुम्हारे लिए यह होस्टल तय कर दिया है....’’
’’ठगे गए वे,’’ माँ रोने लगी थीं, ’’बुरी तरह ठगे गए वे। दाखि़ल कराने की फ़ीस भी भारी-भरकम भरी उन्होंने और लड़की उनकी फिर भी बेदख़ली की रोज़ाना धमकी के साथ दाखि़ला पाती है.....’’
’’हँसाओ नहीं मुझे,’’ पपा ने ताली बजाई थी-उत्तेजना में वे अक्सर ताली बजाने लगते-’’जिसे तुम भारी-भरकम बतला रही हो, उतनी रक़म तो लोग आजकल एक चाय-पार्टी में उड़ा देते हैं। ऊँची सोसायटी में तुम बाप-बेटी कभी उठे-बैठे होते तो जानते, भारी-भरकम होता क्या है.....’’
जिस क़स्बापुर के सरकारी अस्पताल में मेरे नाना ने आँख-नाक-कान के डाक्टर के रूप में सैंतीस साल पहले नौकरी शुरू की थी और जारी रखी थी, वह क़स्बापुर हर मानक और कोण में ऊँची ’सोसाइटी’ से अनज़ान तो रहा ही था।
’’आप बैठिए ऊँची सोसाइटी में और सीखिए दूसरों को चूसने और निचोड़ने के नए तरीक़े, नए सबक़.....’’
’’सबक़ तो मुझे तुमसे भी लेने चाहिए,’’ पपा हँसे थे, ’’पास में ख़ाली हाथ हैं और पैर फिर भी ऊपर पहाड़ पर टिके हैं-’होली एंड प्योर’......’’
इन दो शब्दों का माँ पर जादुई असर होता था। कितने भी गुस्से में वे क्यों न होतीं, इन दो शब्दों के उचरते ही शांत हो जातीं या शांत होने हेतु अपने को बाथरूम में बंद कर लेतीं।
’’ये शब्द हमारे ’हिप्पोक्रेटिक ओथ’ में आते हैं,’’ मेरे पूछने पर माँ ने एक दिन मुझे बताया था, ’’डाॅक्टरी के पेशे को अपनाने से पहले हम सभी डाॅक्टर उस हिप्पोक्रेट्स के मूल-सिद्धांत अपनी शपथ में दोहराते हैं जिसने ईसा-पूर्व की पाँचवीं सदी के यूनान में डाॅक्टरी आचार-शास्त्र तैयार किया था, ’द रेजिमन आइ अडौप्ट शैल बी फौर द बेनिफिट आव द पेशंट अकौरडिंग टु माई अबिलिटी ऐंड जजमेंट नौट फौर देयर हर्ट और फौर एनी रौंग-प्योर एंड होली- विल आए कीप माए लाइफ़ एंड माए आर्ट....’’
(मेरे द्वारा अंगीकार किए गए सभी पथ्यापथ्य नियम मेरी प्रतिभा और परख की संगति में मेरे रोगियों के हित में प्रयोग होंगे, उनकी क्षति अथवा अनुपयुक्ति के लिए नहीं। अपने जीवन तथा अपने कौशल को निष्पाप एवं पवित्र बनाए रखने का ज़िम्मा मेरा रहेगा।"
3
’’लाइए,’’ मारूति जेन के रूकते ही माँ ने अपनी बाँहें जिगल्ज़ की ओर बढ़ा दीं, ’’इसे आई.सी.यू. में मैं लिए चलती हूँ.....’’
’’थैंक-यू,’’ नीना निझावन ने माँ का प्रस्ताव स्वीकारा।
बाल-रोग विभाग के इंटेसिव केयर यूनिट में जाकर माँ रूक गईं।
यूनिट में दो डाॅक्टर और एक बीमार बच्चा अपने परिवारजन के साथ मौजूद थे। डाॅक्टरों में एक युवा महिला थी और दूसरे एक अधेड़।
’’रेस्पिरेटर चाहिए,’’ माँ ने जिगल्ज़ को दो ख़ाली बिस्तर में से किनारे वाले बिस्तर पर लिटा दिया, ’’जल्दी। पेशंट को आक्सीजन की सख़्त ज़रूरत है....’’
’’आप इसे बचा लेना, नमिता,’’ नीना निझावन ने अपना हाथ माँ के कंधे पर रख दिया, ’’प्लीज। आप यक़ीन मानो, मेरे प्राण इसी में बसे हैं....’’
’’मैं समझ सकती हूँ,’’ माँ ने कहा।
’’यह आपकी बच्ची है?’’ अधेड़ डाॅक्टर ने अपने मरीज़ की जब्ज़ से अपनी नज़र ऊपर उठाईं।
’’जी हाँ,’’ पपा ने कहा, ’’इनके पिता वहाँ न्यायपालिका के अध्यक्ष हैं, जस्टिस निझावन। आप देखिए, प्लीज़। आप मेरी पत्नी से ज़्यादा अनुभव रखते हैं। यों भी बाल-रोग उसका विषय नहीं है। वह सर्जन है.....’’
’’आपकी पत्नी?’’ अधेड़ डाॅक्टर हमारी ओर बढ़ आए।
’’नमिता पाठक....’’ पपा ने कहा।
’’आपको क्या शक है, डाॅ. पाठक?’’ अधेड़ डाॅक्टर ने माँ से पूछा।
’’राइ सिंड्रोम,’’ वार्ड-बौएज़ द्वारा लाया गया आक्सीजन ऐपेरेटस मास्क जिगल्ज़ को माँ ने पहना दिया, ’’केस हिस्ट्री में चिकन पौक्स है, एस्पिरिन है, सिर दर्द है, ऐंठन है, उलटी है...तिस पर मार्च का यह महीना....’’
’’इन्ट्रावीनस इन्फ़्यूयन के लिए सौल्यूशन तैयार करो,’’ अधेड़ डाॅक्टर ने युवा डाॅक्टर की तरफ़ देखा, ’’दस परसेंट डेक्सट्रोज़ और पाइंट नाइन परसेंट सोडियम क्लोराइड.....’’
’’पल्स औक्सिमीटरी भी अटैच कर दें न?’’ माँ ने अधेड़ डाॅक्टर से अपने सुझाव का अनुमोदन चाहा, ’’ताकि पेशंट का एस.पी. मौनिटर किया जा सके......’’
’’बिल्कुल,’’ अधेड़ डाॅक्टर ने कहा।
’’राइ सिन्ड्रोम?’’ नीना निझावन उसकी ओर मुड़ ली, ’’यह नाम मैं पहली बार सुन रही हूँ.....’’
’’इट इज़ अ हाइपोग्लाइसीमिया आव द ब्रेन एंड अ हेपोटिमिगली आव द लिवर,’’ युवा डाॅक्टर बोली।
’’दिमाग़ और जिगर दोनों के सैल्ज़ (कोशिकाओं) में सूजन आ जाती है,’’ माँ ने समझाना चाहा।
’’अ फे़टल कंडीशन?’’ (प्राणहर स्थिति?) नीना निझावन रोने लगी।
’नहीं,’’ अधेड़ डाॅक्टर ने सिर हिलाया, ’’अब नहीं, चूँकि आप बच्ची को वक्त़ पर अस्पताल ले आईं। अब ख़तरा टल गया है.....’’
4
’’पापा को यहाँ बुलाना है,’’ नीना निझावन ने पपा से कहा।
’’मैं आपके साथ पी.सी.ओ. चला चलता हूँ,’’ पपा ने अपनी सेवाएँ प्रस्तुत कीं।
’’चलिए,’’ नीना निझावन आई.सी.यू. से बाहर चली आईं, पपा के साथ।
मैं भी दोनों के पीछे हो ली।
’’नमिता को तुम वहाँ से हटवा दो,’’ पपा ने कहा, चुटकी बजाते हुए।
’’क्यों?’’ नीना निझावन चैंकी।
’’वह जिगल्ज़ को नुक़सान पहुँचा सकती है,’’ पपा ने एक और चुटकी बजाई।
’’कैसे?’’ नीना निझावन का अचरज कम न हुआ।
’’ईष्र्यावश। वह जानती है मैं तुमसे बेहिसाब प्यार करता हूँ.....’’
’’लेकिन जिगल्ज़ को वही तो यहाँ लेकर आई....’’
’’ताकि तुम उस पर शक न कर सको। मेरे साथ भी वह ऐसे कई खेल खेलती है। बीमारी मेरी छोटी होगी, लेकिन वह उसे बढ़ा-चढ़ाकर मेरे सामने रखेगी। ऐसी तेज़ दवा खिला देगी कि फिर वह दवा मेरे लिए नई आफ़त खड़ी कर जाएगी.....’’
चलते-चलते नीना निझावन रूक गई, पीले से सफ़ेद पड़ रहे अपने चेहरे के साथ। काँपते हाथों से उसने अपने बटुए से एक कार्ड निकाला और पपा की ओर बढ़ा दिया, ’’मेरे पापा-मम्मी इस पते पर गए हैं.....’’
’’मैं फ़ोन करके अभी आता हूँ’’ पपा ने कार्ड अपने हाथ में ले लिया, ’’इस बीच तुम बाल-रोग विभाग के अध्यक्ष, डाॅ. दुबे के पास हो लो। जिगल्ज़ का इलाज उन्हें करना चाहिए, नमिता को नहीं। किसी सूरत में नहीं.....’’
’’आपने ऐसा क्यों कहा, पपा?’’ मैं पपा के साथ हो ली।
’’मुझे भूख लगी है। मैं घर जाना चाहता हूँ.....’’
’’मगर पपा, नीना निझावन माँ के बारे में क्या सोचेगी?’’ मेरे मन का आलोड़न तनिक न थमा। मन पर पड़ा भारी पत्थर तनिक न खिसका।
’’नीना से नमिता को क्या लेना-देना? नीना जो सोच ले, जो न सोचे, न सोचे....’’
’’और वे डाॅ. दुबे? नीना निझावन जो उन्हें माँ की शिकायत लगाएगी?’’
’’वे नमिता के विभागाध्यक्ष नहीं। वे नमिता को कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकते.....’’
पी.सी.ओ. के आने पर मैं बाहर ही खड़ी रही।
पपा के साथ अन्दर न गई।
पी.सी.ओ. के ऐन बाहर बने ख़ाली घेरे के उस कोने में; जहाँ पपा मुझे शीशे के अन्दर दिखाई देते रहे। देखने में मुझसे सिर्फ़ आध-एक गज दूर मगर वैसे कोसों दूर, काले कोसों दूर, मानो किसी गैंती ने आगे बढ़कर हमारे बीच एक गड्ढा खोद डाला था, नितल और गहरा। और वह ज़मीन वहीं कहीं धँस गई थी जिस पर मैंने अपने पैर सदैव टिकाए रखे थे, समांतराली, अडिग और अडोल!
’’फ़ोन मैं कर आया हूँ,’’ पपा ने डाॅ. दुबे के साथ आई.सी.यू. की दिशा में जा रही नीना निझावन को रास्ते में रोक लिया, ’’जस्टिस निझावन जल्दी ही पहुँच रहे हैं...’’
’’आपने मुझे बुलवाया था, सर?’’ माँ भी वहीं चली आईं।
’’क्या हो रहा है?’’ डाॅ. दुबे ने पूछा।
’’राइ सिंड्रोम के एक पेशंट के लंबर पंक्चर और सी.एस.एफ. लेने की तैयारी में हूँ,
सर.....’’
"राइ सिंड्रोम?’’ डाॅ. दुबे ने नाक सिकोड़ी, ’’जिसे आप राइ सिंड्रोम समझ रही हैं, वह सीधा-सादा फूड पौइज़निंग का केस भी हो सकता है.....’’
’’रेस्पिरेशन, ट्वेंटी फ़ोर? पल्स वन हंड्रेड एंड टेन? टेम्परेचर नाइंटी एट? ब्रिस्क प्युपिलरी रिएक्शन? रिपीटिड वौमिटिंग? (श्वसन, चैबीस? नब्ज़, एक सौ दस? ताप, अट्ठानवे? आँख की पुतली की तेज़ प्रतिक्रिया? बार-बार उलटी?) क्या कहेंगे इसे?’’ माँ ने डाॅ.दुबे को चुनौती दी, ’’हिस्ट्री, चिकन पौक्स?’’
’’फंक्शन लिवर टेस्ट्स लेंगे,’’ डाॅ. दुबे अपने स्वर में सख़्ती ले आए, ’’एस.जी.ओ.टी., एम.जी.पी.टी. की रिपोर्ट देखेंगे। मरीज़ का सिरम सेलिस्सिसेट लैवल देखेंगे....’’
’’मगर, डाॅ. दुबे,’’ माँ ने फिर प्रतिवाद करना चाहा।
’’आप एक सर्जन हैं। बाल-रोग आपका विषय नहीं,’’ माँ के कंधे पर पपा ने अपना हाथ टिका दिया, ’’जिगल्ज़ यहाँ सही हाथों में है, सुरक्षित हाथों में है, बेहतर हाथों में है....चलिए....घर चाहिए....रात में आपकी फिर ड्यूटी है.....’’
’’मैं कुछ समझ नहीं पा रही,’’ माँ चकरा गईं।
’’घर चलें,’’ पपा ने दोहराया।
’’थैंक-यू,’’ नीना निझावन ने पपा की ओर देखा।
’’आप बेशक चली जाइए, डाॅ. पाठक,’’ डाॅ.दुबे ने कहा, ’’बाल-रोग विभाग में मेरे डाॅक्टर मौजूद हैं....’’
’’मैं इन दोनों मां बेटी को घर छोड़ कर अभी लौटता हूं,’’ पपा ने कहा।
’’थैंक-यू,’’ नीना निझावन ने दोहराया।
घर हम टैक्सी से लौटे।
’’चलो। अब कुछ खाया जाए,’’ अस्पताल के गेट से जैसे ही टैक्सी बाहर हुई, पपा ने कहा।
’’उस जिगल्ज़ के पास अभी मैं रहना चाहती थी,’’ मां रूंआसी हो आईं।
’’मगर क्यों?’’ पपा हंसे, ’’घर में हमारे पकवान हमारा इंतज़ार कर रहे हैं; मुझे भूख लगी है, नन्ही को भूख लगी है......’’
’’मुझे भूख नहीं लगी,’’ मेरे अन्दर फिरक रही चिनगारियां बाहर आ लपकीं।
’’क्या बात करती हो?’’ पपा ने मेरी गाल थपथायी।
उनका हाथ नीचे झटक कर कै करने लगी मैं।
घर पहुंच कर मां ने मुझे थर्मामीटर लगाया। मुझे बुखार था। एक सौ दो डिग्री।
शाम तक मां ने उसे वाइरल फ़ीवर का नाम दे दिया और अपने अस्पताल में अपनी छुट्टी की अरज़ी भेज दी।
चौथे-पांचवे रोज़ मेरा बुख़ार चिकन पौक्स के फफोलों के रूप में मेरी पीठ और छाती में फूट पड़ा जिन्हें दूर करने में चार सप्ताह और लग गए।