भाग -13
“कहा जा रहा है कि कोविड-१९ गले और फेफड़ों को ख़राब कर रहा है, इसी से लोग मर रहे हैं। और तुम तो जानती ही हो कि यक्ष्मा यानी टीबी बीमारी भी फेफड़ों को ख़राब करती है। हर साल लाखों लोग टीबी से मरते हैं।
“आयुर्वेद में टीबी का उपचार है, तो मैंने सोचा कि टीबी बैक्टीरिया से होता है। जो वायरस से बड़ा होता है। इसकी कोशिका भित्ति पेप्टिडोग्लाईकन की होती है। दूसरी तरफ़ वायरस में कोशिका भित्ति तो नहीं होती लेकिन वह प्रोटीन कोट से कवर रहता है।
“दोनों की बनावट में भले ही अंतर हो, बीमारियाँ भी कई तरह से भिन्न पैदा करते हों, लेकिन एक समानता यह है कि बैक्टीरिया टीबी से और वायरस कोविड-१९ से फेफड़ों को बर्बाद करके ही आदमी की जान ले रहा है।
“ऐसे में मेरे मन में यह आ रहा है कि आयुर्वेद में तो बैक्टीरिया, वायरस जनित बीमारियों के उपचार हैं ही। ढूँढ़ने पर कुछ न कुछ समाधान ज़रूर मिलेगा। दोनों ग्रन्थ आ जाएँ तो यदि तुम्हारा मन हो तो तुम भी पढ़ना।”
वृंदा की बातों को सुनकर मैंने सोचा कि इसके दिमाग़ की उड़ान कितनी ऊँची चली जाए, इसकी कोई लिमिट ही नहीं हैं। हॉस्पिटल में भी थोड़ा सा समय मिला नहीं, कि कुछ न कुछ पढ़ने लगती है। तभी सब इससे कहते हैं कि तुम लेखिका क्यों नहीं बन जाती।
लेकिन मेरी हालत ऐसी थी कि लियो, ख़ुद की सुरक्षा के लिए जिधर भी आशा की किरणें दिखाई देतीं, मैं उधर ही मुड़ जाती। मुझे मंत्रों की शक्ति पर जो विश्वास था, वह वेस्टर्न कंट्रीस के डॉक्टर्स के वीडियोस देख कर और मज़बूत हो गया।
मैंने सोचा जब अति आधुनिकता में डूबे इन देशों के वैज्ञानिकों, डॉक्टर्स को मंत्रों पर इतना विश्वास है तो कुछ तो बात ज़रूर होगी। यू-ट्यूब पर एकाक्षरी मंत्र ‘ॐ’ और ‘गायत्री’ मंत्र के वीडियो देखे। सबसे पहले मैंने गायत्री मंत्र को सुना। कई बार उसे ध्यान से सुनने के बाद उसका उच्चारण करने का भी प्रयास शुरू किया।
वृंदा की यह बात मुझे बहुत गहराई तक प्रभावित कर रही थी कि अमरीकी वैज्ञानिक होवर्ड स्टिएनगेरिल ने लैब में जाँच करके बताया था कि गायत्री मंत्र के उच्चारण से एक सेकेण्ड में एक लाख दस हज़ार ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं।
कई बार प्रयास करके भी जब मैं गायत्री मंत्र का उच्चारण ठीक से नहीं कर सकी तो मैंने एकाक्षरी मंत्र ‘ॐ’ का वीडियो फिर से देख कर उसका इक्कीस बार उच्चारण किया। उसके बाद गायत्री मंत्र के एक वीडियो को दस मिनट तक चलने दिया।
जिसमें काशी में, गंगा की मणिकर्णिका घाट पर, नदी के जल के क़रीब पहुँची एक सीढ़ी पर, केसरिया वस्त्र पहने, सूर्योदय से केसरिया हो रहे क्षितिज, आसमान के नीचे पद्मासन में बैठी एक रूसी नव-युवती गायत्री मंत्र का सस्वर जाप कर रही थी।
वीडियो पूरा होने के बाद मैंने मोबाइल को बेड साइड टेबल पर रख कर, अपना गाउन भी निकाल कर उसी पर रख दिया।
दिन-भर पीपीई किट, एडल्ट डायपर पहने रहने से लगातार पसीना, गीलेपन के कारण कई जगह मेरी स्किन सिकुड़न भरी सफ़ेद और नर्म सी हो रही थी। मैं, वृंदा, तृषा रात-भर बदन को खुला रख कर उसे नॉर्मल कर लेने का प्रयास करती थी।
मैंने ही उन दोनों से कहा था कि ऐसा नहीं किया तो जैसे बर्फ़ से ढँकी चोटियों पर ठंड से सैनिकों के पैरों की स्किन इतनी ख़राब हो जाती है, कि कई बार उनके पैर काटने भी पड़ जाते हैं। लगातार नमीं से हमारी स्किन भी गल कर ख़राब हो सकती है।
जब-जब मैं पीपीई किट पहनती, मुझे चीन के उस डॉक्टर की याद आती, जिसकी स्किन लगातार किट पहने के कारण सफ़ेद होकर बदन से छूट रही थी, नाख़ून काले पड़ गए थे। ऐसी तमाम बातें मुझे चैन की एक साँस नहीं लेने दे रहे थे।
चैन की साँस मिल सके, इसके लिए मंत्रों की प्रैक्टिस कर लेने के बाद मैं सुबह काम-धाम से समय निकालकर पंद्रह मिनट तक उनका जाप करती थी। इससे मैं बहुत रिलैक्स महसूस करती थी। एक और बात से भी इधर बीच काफ़ी राहत महसूस कर रही थी कि अब मैं लियो को अकेले छोड़कर जाने की अभ्यस्त हो गई थी। और लियो अकेले रहने का।
हालाँकि सीसीटीवी फुटेज में इन्हीं दिनों में मेरी अनुपस्थिति में उसे दो बार पड़े दौरे को देख कर मुझे बहुत ज़्यादा तकलीफ़ हुई थी। अमूमन दौरे उसे रात में सोते समय ही पड़ते थे। लेकिन परिस्थितियों के आगे विवश थी। इस बीच हर तरफ़ लॉक-डाउन की होती चर्चा और सता रही थी।
लॉक-डाउन क्या है? इसे मैं चीन के कोरोना सम्बन्धी समाचारों में बराबर देख रही थी। लॉक-डाउन में घरों में क़ैद जीवन की भयावहता भी समझ रही थी। मैं यह सोच कर ही सिहर उठती कि लियो के दौरे बंद नहीं हो रहे हैं, इस हाल में इसका ट्रीटमेंट कैसे जारी रखूँगी। इसकी तबियत ज़्यादा बिगड़ी तो कैसे क्या करूँगी? बाहर से खाने-पीने का सामान कैसे आएगा।
इस उलझन ने मेरी कुछ घंटों की संक्षिप्त नींद भी छीन ली थी। सुख-चैन का तो ख़ैर मेरे जीवन में प्रवेश ही नहीं था, इसलिए उसके छिनने न छिनने का कोई प्रश्न ही नहीं था।
लॉक-डाउन की आहट मिलते ही, वृंदा की हर सामान स्टॉक कर लेने की बात मुझे, वृंदा के पति की ही तरह समझ में नहीं आ रही थी। लेकिन वृंदा यह कह कर मुझे समझाती रही कि “फ़्रेशिया तुम समझने की कोशिश करो। चीन की तरह यहाँ भी जैसे ही ज़्यादा लोग संक्रमित होने लगेंगे, वैसे ही गवर्नमेंट यहाँ भी लॉक-डाउन करेगी।
“जिस तेज़ी से लोग संक्रमित हो रहे हैं, उससे लॉक-डाउन मुझे एकदम सामने ही दिखने लगा है। सोचो जब बाहर ही नहीं निकल पाओगी, दुकानें वग़ैरह सब बंद रहेंगी, तो खाना-पीना कैसे चलेगा।
“इसलिए मेरे हस्बेंड की तरह लापरवाही नहीं करो। किचन के सामान के साथ-साथ लियो की ज़रूरी दवाएँ, कम्प्लीट फ़र्स्ट एड बॉक्स भी ज़रूर रख लो। सोचो लियो को दवा न मिल पाई तो?
“मेरे यहाँ ज़रूरत पड़ने पर हस्बेंड कहीं न कहीं से कुछ मैनेज कर लेंगे, लेकिन तुम उस कठिन स्थिति में लियो को सम्हालोगी, ख़ुद को देखोगी या बाहर निकल कर श्मशान सी सूनी पड़ी सड़कों, हर दुकानों, ऑफ़िसों पर लटके तालों, हर घर की बंद पड़ी खिड़कियों, दरवाज़ों को गिनोगी।”
चीन की स्थिति को ध्यान में रख कर जब मैंने उसकी बातों पर ध्यान दिया तो लगा कि वृंदा का पति नहीं, वृंदा सही है। इसके बाद मैंने कई महीने के लिए सारा सामान, दवाएँ स्टोर कर लीं। लियो की दवाओं, उसकी ज़रूरत की हर चीज़ों पर मेरा विशेष ध्यान था।
मगर कोरोना से ज़्यादा मेरा तनाव लियो के कारण बढ़ता जा रहा था। क्योंकि लियो के दौरों के बीच का समयांतराल कम होता जा रहा था। वह अब जल्दी-जल्दी पड़ने लगे थे।
चिंता, भय के बीच में बीतते इन्हीं दिनों जब एक दिन हॉस्पिटल पहुँची तो पता चला कि वहाँ अन्य बीमारियों से पीड़ित जो पेशेंट एडमिट थे, उनमें से न जाने कैसे चार कोविड-१९ से संक्रमित हो गए हैं। उनकी हालत गंभीर थी, उन्हें विशेष रूप से कोविड-१९ मरीज़ों के लिए रिज़र्व हॉस्पिटल में शिफ़्ट कर दिया गया था।
लेकिन गवर्मेंट की सख़्त गाइड-लाइन के हिसाब से इतना ही काफ़ी नहीं था, इसलिए मेरे सहित पूरे स्टॉफ़ की कोविड-१९ जाँच की गई। रिपोर्ट आने तक मैं लियो के समीप भी नहीं जाना चाहती थी, लेकिन मेरे पास कोई रास्ता नहीं था कि मैं उससे दूर रह पाती।
मेरी घबराहट, पसीना, आँखों में आँसू देख कर वृंदा ने समझाया, “ऐसे परेशान न हो फ़्रेशिया। सकारात्मक सोच के साथ सब-कुछ करती रहो, सब अच्छा ही अच्छा होगा। यह भी एक स्थिति है, जैसे आई है, वैसे ही गुज़र भी जाएगी।”
उसकी बातें मुझे हमेशा मज़बूत बनाती थीं, मेरी हताशा-निराशा को दूर कर मुझमें नई एनर्जी भरती थीं। जब हॉस्पिटल में बचे पेशेंट्स के लिए कुछ ज़रूरी स्टॉफ़ को छोड़ कर शेष को होम आइसोलेशन में भेजा गया, तो वह अपनी स्कूटर से, मेरी स्कूटर के पीछे-पीछे मुझे घर तक छोड़ कर गई। मैंने बहुत मना किया, लेकिन उसने मेरी एक नहीं सुनी, कहा, “तुम बहुत घबराई हुई हो, तुम्हें अकेले नहीं जाना है।”
सच यही था कि मैं बहुत घबराई हुई थी। मेरी हर साँस कोरोना के डर से थरथरा रही थी। इस डर को लिए-लिए मैं लियो के साथ अपने ही घर में क़ैद होकर रह गई।
मैं हर साँस में यही प्रार्थना करती कि अगले बीस-पचीस दिन सुरक्षित निकल जाएँ, जिससे यह और सुनिश्चित हो जाए कि मैं संक्रमित नहीं हुई हूँ। लियो भी सुरक्षित है।
हालाँकि होम-आइसोलेसन के चार दिन बाद जब स्टाफ़ की जाँच रिपोर्ट आई तो दो डॉक्टर, पाँच नर्सें संक्रमित पाई गई थीं, मेरे सहित बाक़ी सभी की रिपोर्ट निगेटिव थी।
मैं दिन भर में कई-कई बार मंत्र जपती, यूट्यूब पर ऑन करके उसे सुनती रहती। गॉड से प्रेयर करती। और योग, प्राणायाम, ध्यान भी। योग के कुछ आसन लियो को भी बार-बार प्रैक्टिस करवा कर सिखाए। उसे सिखाते हुए ही कई बार मेरे दिमाग़ में आया कि इस बीमारी का डर लोगों से न जाने क्या-क्या करवाएगा।
मैं स्वयं से ज़्यादा लियो को लेकर चिंतित रहती, लेकिन लियो को ऐसी किसी बात का अहसास नहीं था। वह सब-कुछ अपनी ही तरह से चाहता था। पहले जहाँ कहीं बाहर जाने के लिए जल्दी तैयार नहीं होता था, ज़िद नहीं करता था, वहीं आइसोलेशन के दूसरे दिन से ही बाहर जाने की ज़िद करने लगा। बड़ी मुश्किल से उसे समझा-बुझाकर शांत कर पाती थी।
किसी तरह बीस दिन मैंने डरते, काँपते, काटे। इतने दिन सुरक्षित बीत जाने के बाद मैंने राहत महसूस की, कि चलो आवश्यक चौदह दिन से ज़्यादा निकल गए। संदेह की सीमा धीरे-धीरे मिट रही है। बीस-पचीस दिन होते-होते, हो सकता है हॉस्पिटल पूरे स्टॉफ़ को बुला ले। ऐसा ही होता तो अच्छा था। क्योंकि अगर लम्बे समय तक यह स्थिति रही तो सैलरी भी फँस जाएगी। लेकिन हॉस्पिटल पूरे स्टॉफ़ को बुलाता, उससे पहले ही देश-भर में संक्रमण के बेतहाशा बढ़ते जाने के कारण गवर्नमेंट ने लॉक-डाउन घोषित कर दिया। इसके साथ ही सैलरी को लेकर मेरी चिंता घबराहट भी बढ़ गई।
मैंने सोचा कि जब केस बढ़ने पर लॉक-डाउन हुआ है, तो यह जल्दी तो हटने वाला नहीं। अभी तो इसका पीक आएगा, फिर स्थिर होगा, उसके बाद यह कम होना शुरू होगा, तब कहीं अन-लॉक होने की बात शुरू होगी। और सुरक्षित संख्या तक घट जाने पर ही अन-लॉक होगा . . . ओह गॉड अब क्या होगा?
दुनिया के अन्य देशों में यह वायरस जो रंग दिखा रहा है, उसको देखते हुए तो यह निश्चित है कि यह और ज़्यादा बढ़ेगा। कम्युनिटी ट्रांसमिशन का डर अलग है। जिस भी देश में यह शुरू हुआ, वहाँ पीक पर यह चार-पाँच महीने में ही पहुँचा है। तो क्या एक साल तक घर में ही बंद रहना पड़ेगा?
यदि ऐसा हुआ तो कोविड-१९ से पहले तो यह लॉक-डाउन ही मेरी जान ले लेगा। मेरे लियो की भी। हमें ही क्यों, और न जाने कितनों को यह लॉक-डाउन ही मार डालेगा। ओह गॉड कुछ ऐसा करो कि गवर्नमेंट के दिमाग़ में यह बात आ जाए और कोविड-१९ को कंट्रोल करने के लिए लॉक-डाउन की बजाय कोई और रास्ता निकाले।
यह ज़रूरी तो नहीं कि दुनिया इसे जिस रास्ते चल कर कंट्रोल करे, उसी रास्ते पर हम भी चलें। रास्ते तो निश्चित ही और भी बहुत से होंगे, खोजें तो पहले। यही सब सोचते-सोचते मेरे दिमाग़ की नसें फटने सी लगीं।
अपने माथे को पीटती हुई मैं चेहरा ऊपर कर बड़ी तेज़ आवाज़ में क़रीब-क़रीब चीखी, ओह गॉड, क्या होगा मेरी नौकरी का? कहाँ से पैसा लाऊँगी लियो के ट्रीटमेंट के लिए। इस बंदी के चलते इसका ट्रीटमेंट तो बंद ही हो जाएगा। हे प्रभु मैं कैसे बचाऊँ अपने लियो को . . .