क्षमा करना वृंदा - 12 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्षमा करना वृंदा - 12

भाग -12

अगले दिन उसे हॉस्पिटल ले गई। वह जाने को तैयार ही नहीं हो रहा था। मैंने डॉक्टर से फ़हमीना प्रकरण छुपाते हुए सारी बातें बताईं। डॉक्टर ने वही कहा जिसका मुझे शक था। यह सोचकर कि उसका दिमाग़ दूसरी तरफ़ डायवर्ट हो सके, उसे पूरा दिन हॉस्पिटल में ही रखा।

दवा के असर के चलते उस दिन वह पूरी रात आराम से सोया। मगर आगे चल कर चार-पाँच दिन के अंतराल पर यह समस्या बार-बार होने लगी तो उसे एक नामचीन डॉक्टर को दिखाया; फ़हमीना प्रकरण को विस्तार से बताते हुए। क्योंकि मुझे लगा कि समस्या का मूल कारण जाने बिना डॉक्टर लियो को सही ट्रीटमेंट नहीं दे पाएँगे।

फ़हमीना चैप्टर सुनकर डॉक्टर आश्चर्य पड़ गए। उन्होंने कुछ दवाएँ लिख दीं। साथ ही दो-चार दिन में सिर का एमआरआई टेस्ट करवा कर, रिपोर्ट लेकर आने को कहा।

मैं जब टेस्ट करवा कर फिर पहुँची, तो उन्होंने लियो को एक मनोचिकित्सक के पास ले जाने के लिए कहा। मनोचिकित्सक पहले वाले डॉक्टर के मित्र थे। मैंने उनसे फ़ोन भी करवा दिया था। इससे जब मैं लियो के साथ उनके पास पहुँची, तो उन्होंने बड़े ध्यान से केस स्टडी की, सारी बातें सुनीं।

लियो की स्थिति को देख कर उन्होंने कहा, “मेरे अब-तक के तीस साल के करिअर में यह अपनी तरह का अकेला केस है। अमूमन यही होता है कि जिनकी आई-साइट नहीं होती, वो बोल-सुन लेते हैं। जो बोल-सुन नहीं पाते, उनकी आई-साइट ठीक होती है।”

डॉक्टर ने लियो किसी बात पर कैसे प्रतिक्रिया करता है, किन बातों से कैसे भाव चेहरे पर आते हैं, यह जानने के लिए तरह-तरह के प्रश्न किए। उनके और लियो के बीच संवाद का माध्यम मैं थी।

मैंने जिस तरह संवाद क़ायम किया, उससे डॉक्टर आश्चर्य में पड़ गए। क़रीब दो घंटे की मैराथन जाँच के बाद उनका निष्कर्ष वही निकला जो मेरा था। फ़हमीना के साथ बिताए गए पल उसके दिमाग़ में एक ग्रंथि की तरह बैठ गए थे। इस ग्रंथि को समाप्त करना, लियो के स्वस्थ होने की पहली और आख़िरी शर्त थी।

डॉक्टर ने इसकी पूरी ज़िम्मेदारी मुझ पर ही यह कहते हुए डाली कि “देखिये यह काम आपको ही करना होगा, क्योंकि और कोई इनके साथ संवाद कर नहीं सकता। और ट्रीटमेंट में बड़ा निर्णायक रोल इनसे संवाद का ही है।”

इसके साथ ही डॉक्टर ने मेरी इस बात के लिए बहुत प्रशंसा की कि मैंने लियो से संवाद का ऐसा अनूठा तरीक़ा विकसित किया। यह सलाह भी दी कि इसे और बेहतर करके एक पुस्तक के रूप में मार्केट में ले आइये। जिससे आपकी इस खोज का दुनिया के और लोग भी फ़ायदा उठा सकें।

लेकिन इस बात के लिए डॉक्टर ने एक तरह से मुझ को बहुत डाँटा, आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि “आपने फ़हमीना के इतने घिनौने अपराध के बावजूद उसके ख़िलाफ़ पुलिस में केस दर्ज नहीं कराया। जबकि उसका अपराध तो दोगुना ज़्यादा है।

“उस गन्दी औरत ने लियो जैसे एक एक्सट्रीम हैंडीकैप्ड के साथ एक नहीं बार-बार रेप किया। चाकू की नोक पर किया। ऐसी भयानक दुर्दांत औरत को आपने बजाय पुलिस को देने के, उसकी पूरी हेल्प की। उसका अबॉर्शन कराया, उसने बार-बार आपके साथ मिसविहेब किया, इसके बावजूद।

आपने तो उसे एक तरह से अपना गंदा काम आगे जारी रखने के लिए पूरी शह दे दी। अब-तक वह न जाने और कितने लोगों को अपना शिकार बना चुकी होगी। वेस्टर्न कंट्रीस में तो ऐसी गन्दी औरत को हमेशा के लिए जेल में डाल दिया जाता। आपके पास वीडियो फुटेज तो हैं ही, अब भी आप उसे जेल भिजवा सकती हैं।”

मैं उनकी बात चुपचाप सुनने के बाद बोली, “सर आप सही कह रहे हैं, वह सब जानने के बाद मैं पुलिस स्टेशन जाने के लिए घर के दरवाज़े पर पहुँच कर रुक गई। लौट आई लियो के पास।

क्योंकि तभी मेरे दिमाग़ में यह बात आई कि इसका हस्बेंड बहुत पहले ही इसे बच्चों सहित मार-पीट कर भगा चुका है, ये भी जेल चली गई, तो इसके दोनों बच्चे तो अनाथ हो कर सड़क पर भीख माँगने लगेंगे। भूख-प्यास से तड़पते हुए दर-दर भटकेंगे। उन्हें अपना जीवन बचाना मुश्किल हो जाएगा। उसका जीवन तो जेल में सुरक्षित रहेगा।

मैं नहीं चाहती थी कि उसके अपराध की सज़ा उसके बच्चे भुगतें। लियो को तो मैंने अपना लिया। लेकिन हर अनाथ को फ़्रेशिया मिल जाए, यह तो मुमकिन नहीं। मुझे लगा कि उसे सज़ा दिलाने से ज़्यादा ज़रूरी है, दो बच्चों को अनाथ होने से बचाना। इसलिए मुझे अपने निर्णय पर कोई पछतावा या दुःख नहीं है।”

अपनी बात पूरी करते-करते मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। मुझे ध्यान से सुन रहे डॉक्टर ने कहा, “अच्छी बात है, लेकिन दो बच्चों के अनाथ होने की सम्भावना के दृष्टिगत एक स्पेशल यूथ के साथ हुए घोर अन्याय को भुला देना, उसके साथ एक और अन्याय करने जैसा है।

“मैं समझता हूँ कि दुनिया के किसी भी न्याय-शास्त्र में इसे अन्याय ही कहा जाएगा। उस गंदी औरत के जेल जाने पर उसके बच्चों को प्रशासन एडल्ट होने तक सरकारी अनाथालय में भेज देती। ऐसे तो आपने उसे गंदे काम को और आगे भी करते रहने के लिए प्रोत्साहित ही किया है। वैसे आप अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। धन्यवाद।”

डॉक्टर ने यह कह कर एक झटके में अपनी बात समाप्त कर दी, क्योंकि अगला पेशेंट अपने नंबर की प्रतीक्षा कर रहा था।

लियो की दवाएँ लेने के बाद, मैं उसका मूड चेंज करने के लिए, उसे एक मॉल, रेस्ट्रां ले गई। टैक्सी बुक करके लॉन्ग ड्राइव पर भी ले गई। इसमें उसे मज़ा भी आया। इन सारे समय मैं लियो के चेहरे, उसकी हर गतिविधि का अध्ययन करती रही कि उसके मूड में कोई अंतर आ रहा है कि नहीं।

रात में लियो के सो जाने के बाद भी, डॉक्टर की यह बात मुझे परेशान करती रही कि लियो के दिमाग़ से फ़हमीना चैप्टर को निकाला नहीं गया, तो इसके ब्रेन को बड़ा नुक़्सान पहुँच सकता है। यह किसी गंभीर न्यूरो संबंधित बीमारी से पीड़ित हो सकता है।

मैं सोचती रही कि आख़िर इसे कैसे समझाऊँ? कैसे इसका ब्रेनवाश करूँ। सुन सकता तो भी कुछ उम्मीद करती। और सबसे बड़ी बात कि वाश किस बात को करना है? एक औरत को? किसी मर्द के दिमाग़ में यदि कोई औरत बस जाए, तो उसे वाश करना तो दुनिया में इससे ज़्यादा मुश्किल काम और कोई हो ही नहीं सकता। यह एक असंभव सा काम है। वो भी लियो जैसे यूथ के दिमाग़ से। समस्या का हल ढूँढ़ते-ढूँढ़ते मुझे नींद आ गई।

लियो पहले दिन दवाओं के असर या फिर बहुत देर तक चलते-फिरते रहने के कारण हुई थकान के चलते रात-भर सोता रहा।

लेकिन अगले दिन फिर वही पुरानी बात। अब मेरी चिंता बहुत ज़्यादा बढ़ गई। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। एक तो हर जगह से निराशा, दूसरे किसी गंभीर दिमाग़ी बीमारी होने का आसन्न संकट।

मैं सोचती कि गंभीर दिमाग़ी बीमारी ही क्यों? यह ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, ओबेसिटी, आदि चिंता-जनित बीमारियों का भी शिकार हो सकता है। यह सारी बातें मुझे हर साँस में भयभीत कर रही थीं।

मेरे लिए जैसे इतनी ही समस्याएँ बहुत नहीं थीं। शहर में चीनी ब्रेन-चाइल्ड कोरोना-वायरस ने भी अपनी उपस्थिति रजिस्टर करवा दी। हॉस्पिटल में तमाम तरह के सुरक्षा नियमों के पालन और कड़े कर दिए गए।

अब मैं लियो को मिनट भर के लिए भी हॉस्पिटल लेकर नहीं जा सकती थी। और जिस तरह उसे दौरे पड़ रहे थे, उसे देखते हुए उसे घर में अकेले बंद करके छोड़ना, उसकी जान को गंभीर ख़तरे में डालना था। वैसे इस वायरस के चलते लियो के लिए घर से हज़ार गुना ज़्यादा ख़तरा बाहर था।

कोई रास्ता न देख, आख़िर थक-हार कर, विवश होकर मैं लियो को घर में ही बंद करके जाने लगी। जब-तक हॉस्पिटल में रहती भीतर ही भीतर डरती, थरथराती रहती कि कहीं बेटे को कोई परेशानी न हो गई हो। हॉस्पिटल में मोबाइल भी यूज़ नहीं कर पा रही थी।

दिन-भर जहाँ घर पहुँचने के लिए व्याकुल होती रहती, वहीं निकलने के समय दूसरा डर मेरे प्राण सुखाने लगता। कोरोना संक्रमण का डर। भय से काँपती हुई घर पहुँचती।

हॉस्पिटल में सारा समय पीपीई किट, एडल्ट डायपर पहनकर काम करती, लेकिन बार-बार मेरे दिमाग़ में यही बात घूमती रहती कि कहीं मैं संक्रमित हो गई, मुझे कुछ हो गया, तो फिर लियो का क्या होगा? कौन उसे देखेगा। इस कोरोना के भय से तो लोग दूसरे की छाया से भी दूर भाग रहे हैं, किसी की देख-भाल क्या करेंगे। मेरा प्यारा लियो कैसे जिएगा। घर पहुँचने पर मैं सबसे पहले दरवाज़े की कुण्डियों, अपनी सैंडल पर ऊपर से नीचे तक, सोल पर भी बहुत सारा सेनिटाइज़र स्प्रे करती। उसके बाद ही दरवाज़ा खोल कर अंदर जाती। दरवाज़ा बंद करने के बाद उलटा चलती हुई बाथरूम की तरफ़ जाती। जिससे पीछे दरवाज़े पर, मेरे क़दम जहाँ-जहाँ पड़े, वहाँ भी सेनिटाइज़र स्प्रे कर सकूँ।

सीधे बाथ-रूम में पहुँच कर, सबसे पहले सारे कपड़े निकाल कर वाशिंग मशीन में डालती। दोगुना डिटर्जेंट पाउडर डालकर, फिर कई बार स्पिन कराती। इसके बाद कई बार साबुन से हाथ धोने के बाद डिटर्जेंट पाउडर का ही घोल बनाकर, उससे शरीर के रोम-रोम को पंद्रह-बीस मिनट तक ख़ूब रगड़-रगड़ कर गर्म पानी से नहाती।

इसके बाद कमरे में आकर अलमारी से कपड़े निकाल कर पहनती। आते ही अलमारी या कोई भी चीज़ मैं किसी भी स्थिति में हरगिज नहीं छूना चाहती थी। इसलिए बाथरूम से बिना कपड़ों के ही अंदर कमरे में रखी अलमारी तक जाना पड़ता था। मैं अपने से ज़्यादा लियो को लेकर परेशान रहती।

कपड़े वग़ैरह पहनकर जब लियो को छूती, तब भी मन में डर समाया रहता। ऐसे में मैं चीन को बहुत सारे अपशब्द कहती, कि यह गंदा देश न जाने क्या-क्या करता रहता है। पहले उन्नीस सौ अठारह में स्पेनिश फ़्लू से पाँच करोड़ लोगों को मरवाया। बदनाम स्पेन को किया। यहाँ तक कि बीमारी का नाम ही स्पेनिश फ़्लू के नाम से इतिहास के पन्नों में रजिस्टर हो गया।

अब बीस साल के अंदर ही सॉर्स, स्वाइन फ़्लू के बाद कोरोना वायरस जनित यह कोविड-१९ महामारी भी दुनिया को दे दी। चार महीने में ही दुनिया भर में लाखों लोगों को मरवा दिया। न किसी दवा का पता, न ही किसी वैक्सीन का। पूरी दुनिया इतने ही दिनों त्रस्त हो गई है। हे प्रभु रक्षा करना। मुझे लियो के लिए ही सही, सुरक्षित रखना।

खाने-पीने के बाद मैं टीवी न्यूज़ में दुनिया भर में कोविड-१९ का स्टेटस ज़रूर देखती, देख-देख कर पसीने-पसीने होती रहती, लेकिन स्टेटस जाने बिना रह भी न पाती। जैसे ही किसी देश का हाल सुनती कि आज वहाँ पर इतने नए पेशेंट मिले, इतने लोगों की डेथ हुई, तो मेरी आत्मा काँप उठती। हाथ अनायास ही बग़ल में लेटे लियो पर चला जाता। उसे ऐसे पकड़ लेती, जैसे कोई उसको मुझसे छीन रहा है। मन ही मन, बार-बार कहती, हे प्रभु रक्षा करना।

ऐसी ही स्थिति में एक दिन अचानक ही मुझे वृंदा की कुछ बातें, उसके भेजे हुए कुछ मेसेज की याद आई। उसने कुछ वीडियो मुझे यह कहते हुए भेज थे कि “यार बहुत डर लगता है। तीन-तीन बच्चे, हस्बेंड, कहीं किसी को कुछ हो गया तो यह सोचकर ही मेरी जान निकलने लगती है। हस्बेंड की लापरवाही मुझे और डराती है।

“कोई सावधानी नहीं बरत रहे हैं। मॉस्क, सेनिटाइज़र कुछ भी यूज़ नहीं कर रहे। जब मैं टोकती हूँ तो मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। कहते हैं, ‘तुम तो हॉस्पिटल में पीपीई किट पहने रहती हो न, बस बहुत है इतना।’ बताओ ऐसी बेतुकी बात का कोई मतलब है।

“अरे तुम ऑफ़िस जाते हो, दिन-भर सैकड़ों लोगों के बीच से होकर आते हो, जब तुम फ़र्म के मालिक होकर इतने लापरवाह हो, तो तुम्हारे वर्कर तो और भी ज़्यादा बेपरवाह होंगे। लेकिन कुछ सुनते ही नहीं।

“मैं कहती हूँ कि दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है, तुम्हें यह सब दिखता नहीं, तो राम चरित मानस की एक चौपाई गाते हुए मुझे चिढ़ाएँगे कि ‘होइहे वही जो राम रचि राखा।’ जो होना होगा, वह होगा। क्यों सबको डराती रहती हो।‘ मैं कहती हूँ कि ठीक है, जो ईश्वर चाहेगा, वही होगा। लेकिन भगवान कृष्ण तो गीता में यह कहते है न कि अपना कर्म करते रहिए।

“इस बीमारी से हर तरह से हारी दुनिया आख़िर ईश्वर की शरण में ही पहुँच रही है। लोग अपने-अपने धर्म की सीमा से ऊपर उठ कर, जिस भी धर्म में उनका विश्वास बन पा रहा है, उसी की शरण में जा रहे हैं।

“मगर फ़्रेशिया ढाक के तीन पात, ये चिकने घड़े से भी ज़्यादा चिकने बन जाते हैं। वो मेरी ऐसी किसी बात पर ध्यान ही नहीं देते। निश्चित ही इसीलिए कहा गया होगा कि घर की मुर्गी दाल बराबर।

“मेरी दादी एक और बात कहती थीं कि घर का मनई पसंघा बराबर। सच फ़्रेशिया हस्बेंड पर मेरी किसी बात का कहने भर को भी कोई असर नहीं होता। लेकिन तुम पूरा ध्यान रखो फ़्रेशिया।

“इन वीडियोज को ध्यान से देखना। स्पेन, इटली में डॉक्टर, स्टॉफ़ सुबह-शाम हॉस्पिटल की गैलरी में इकट्ठा होकर मरीज़ों और अपनी रक्षा के लिए रोज़ दस-बारह मिनट तक वैदिक मंत्रों का जाप कर रहे हैं।

“रूस, फ्रांस, जर्मनी हर जगह यह हो रहा है। दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका अपनी संसद में वैदिक मंत्रोचार से रक्षा की कामना कर रहा है। हमें भी बचाव के जो भी रास्ते हैं, उसे अपनाना ही चाहिए।

“यह मंत्र एक वैज्ञानिक आधार लिए हुए हैं। इनके उच्चारण से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगें, बहुत बड़ी पॉज़िटिव एनर्जी जनरेट करती हैं। जिनसे आदमी स्वस्थ भी हो रहा है। देखो तुम्हें ये इसलिए भेज रही हूँ कि इन्हें पहले ध्यान से देखना।

यदि इन्हें सही समझना तभी इनका उच्चारण करना। तुम्हें बोलने में कठिनाई हो सकती है। इसलिए एकाक्षरी मंत्र ‘ॐ’ से ही शुरूआत करना।

“जानती हो मैंने ऑनलाइन चरक और सुश्रुत संहिता मँगवाई है। ये आयुर्वेदिक चिकित्सा के तीन-साढ़े तीन हज़ार वर्ष पुराने ग्रन्थ हैं। इनमें हर रोगों के उपचार के लिए औषधियों के बारे में बताया गया है। मैं इन ग्रथों में से कोविड-१९ के सटीक उपचार को ढूँढ़ निकालूँगी।