कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 106 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 106

भाग 106

पुरवा को अपने इतने करीब देख कर महेश के रग रग में खुशी की लहर दौड़ गई। उसने मुस्कुराते हुए अपने दोनो दोनों बाजुओं का घेरा बना कर कस लिया।

पुरवा का चेहरा अपनी ओर उठाया तो उसने शर्म से अपनी आंखे बंद की हुई थी। होठों पर असीम संतोष था।

बाहर आंगन की तपी हुई मिट्टी बारिश की पहली बौछार पा कर तृप्त हो अपनी सोंधी सोंधी खुशबू फैला रही थी। महेश भी पुरवा के दामन से लिपट कर अपनी आठ महीने की जुदाई का दर्द मिटा रहा था।

एक दूसरे के साथ कैसे समय बीत गया पता भी नही चला। दो महीने पलक झपकते ही बीत गए।

महेश का नतीजा आ गया ये खबर लगी।

उसे कॉलेज जा कर देखना था।

दिल नही चाह रहा था कि वो पुरवा से एक पल के लिए भी दूर हो। पर नतीजा देखना भी जरूरी था। उसे अपनी मेहनत और त्याग का फल क्या मिला..? ये जानने की उत्कंठा भी थी।

महेश पटना चला गया।

वहां पहुंचा तो परिणाम बोर्ड पर लगा हुआ था।

अपना नाम देखने लगा। पर बिना ज्यादा आंखे गड़ाएं उसे तीसरे नंबर पर ही अपना नाम दिख गया। वो खुशी से उछल पड़ा। अच्छे नंबर आयेंगे ये तो उसे पता था, पर पूरे कॉलेज में वो तीसरा स्थान प्राप्त करेगा। उसकी उसे उम्मीद नहीं थी।

अपना परिणाम ले कर वो वापस घर लौट गया।

घर पहुंच कर मां पिताजी को परिणाम दिखा कर उनका आशीर्वाद लिया। वो भी अपनी इकलौती संतान के इस सफलता से गदगद थे।

गुलाब ने पूरे गांव में मिठाइयां बांटी।

कुछ दिन बाद भगवान सत्यनारायण की कथा पुरवा और महेश को साथ बिठा कर सुनवाई।

अब महेश अपनी वकालत शुरू करना चाहता था। इसके लिए सारी जरूरी कार्यवाही पूरी कर ली।

पटना के बड़े वकील रंजन सिन्हा के साथ सहयोगी के रूप में वकालत शुरू कर दी।

वो हर शनिवार को आता, सोमवार की सुबह ही वापस चला जाता था।

जल्दी ही महेश अपनी योग्यता और मेहनत की बदौलत पूरे पटना में अपनी पहचान बना ली। इसके बाद उसने अलग प्रैक्टिस शुरू कर दी।

एक बड़े रईस के बेटे को फर्जी मुकदमे में उसने बारी करवा दिया तो उसने खुश हो कर महेश को फीस के तौर पर अपना एक बंगला ही दे दिया।

उसके गृह प्रवेश में महेश ने बहुत धूम धाम किया। सब रिश्तेदार नातेदार को बुलाया था। गुलाब मारे खुशी के सब को घूम घूम कर पूरा बंगला दिखा रही थी।

महेश चाहता था कि पुरवा अब उसके साथ यहीं रहे। पर मां से कैसे इसे कहे समझ नही आ रहा था।

तभी किसी ने घर दिखा कर लौटती गुलाब से कहा,

"इतना बड़ा घर है तो पर महेश क्या करेगा इसका..? उसका काम तो एक कमरे में ही चल जायेगा। बेकार ही इतना बड़ा घर खाली पड़ा रहेगा।"

गुलाब तुरंत ही बोली,

"क्यों खाली रहेगा…? हम आयेंगे जायेंगे। फिर जब मन करेगा तो रुकेंगे भी। फिर बहू भी तो यहीं रहेगी। अब जब मेरे बेटे ने इतना बड़ा घर लिया है तो इसकी लक्ष्मी भी तो रहनी चाहिए। दिया बाती कौन करेगा..? क्या मेरे बाबू के इतने बड़े घर में अंधेरा रहेगा.!"

महेश के कानों में मां के शब्द मिश्री घोल गए। मां कितनी समझदार हैं। बिना कहे उसके दिल की सारी बात समझ लेती हैं। और उसे जिस भी चीज की जरूरत होती है बिना मांगे उसे दे देती है। बाकी सासो की तरह उन्हें ना पुरवा से शिकायत है, ना कोई गिला है। ना उन्हें ये चिंता है कि बेटा अपनी बीवी का गुलाम बन जायेगा तो उनकी ओर ध्यान नहीं देगा। उनकी बातों को अनसुनी करेगा। मां की तो बस यही इच्छा है, इसी में उनकी खुशी है कि उसके बेटा बहू हंसी खुशी रहे।

महेश मां की बातें सुन कर उनके बड़प्पन के आगे नत मस्तक हो गया। उसकी मां दुनिया में सबसे अलग और सबसे अच्छी, सबसे महान है। ऐसा सोचते हुए वो गुलाब के पास गया और उनकी गोद में सिर रख कर कमर में अपने हाथ लपेट लिए। गुलाब बेटे का प्यार देख कर महेश के बालों में उंगलियां फिराने लगी। तभी जवाहर जी आ गए। मां बेटे का प्यार देख कर बोल उठे,

"आज तो बड़ा लाड आ रहा है अपनी मां पर महेश। कभी अपने बाप के भी गले लग लिया कर। मेरी भी छाती जुड़ा जाए।"

गुलाब बोली,

"आपकी आंखों में तो सदा से ही हम मां बेटे का प्यार खटकता है। मैं आपकी तरह हमेशा बच्चों पर गरजती बरसती तो नही रहती हूं। नजर मत लगाइए हम मां बेटे के प्यार को..।"

जवाहर बोले,

"हां ..! तुम तो मुझको ही दोष दोगी। मैं ही हमेशा गरजता बरसता रहता हूं। मेरे गरजने बरसने का ही नतीजा है कि इतनी कम उम्र में उसे इतनी सफलता मिल गई। मैं सख्ती नही करता तो गांव के बाकी लड़कों को तरह ये भी नकारा हो कर घूमता।।"

महेश तुरंत ही उठा और बोला,

"बिलकुल सच कह रहे हैं पिता जी आप। मेरी यहां तक पहुंचने की यात्रा में सबसे बड़ा योगदान आपका ही है। आप जबरदस्ती न करते तो मैं पढ़ाई थोड़ी ना कर पता मन लगा कर।"

इतना कह कर उनके पांव छुए और गले लग गया। और बोला,

"ईश्वर का धन्यवाद कि उन्होंने मुझे आपके जैसा पिता दिया। आपने अगर रास्ता नही दिखाया होता तो मैं कभी सफलता के इस मुकाम तक नही पहुंचता।"

बेटे के दिल के भाव को समझ कर जवाहर गदगद हो गए।

कुछ दिन रुक कर पूरा घर व्यवस्थित करवा कर पुरवा को वही छोड़ कर गुलाब और जवाहर लौट आए।

पुरवा को भी आदत हो गई थी गुलाब के प्यार और स्नेह की। उनके लौटते वक्त वो खूब रोई।

कुछ वक्त लगा पटना जैसे बड़े शहर के माहौल में ढलने में पुरवा को। पर उसने यहां के रहन सहन को बड़ी जल्दी अपना लिया।

जल्दी ही पुरवा और महेश की जिंदगी में नई खुशी ने दस्तक दी। महेश ये खबर मिलते ही खुशी से झूम उठा। वो बाप बनने वाला था। बस अब उसके जीवन में यही एक कमी रह गई थी। आज वो भी पूरी हो गई।

समय होने पर देखभाल के लिए गुलाब आई। पुरवा ने एक स्वस्थ सुंदर बेटे को जन्म दिया। पुरवा घर में हफ्तों तक सोहर और ढोलक की थाप गूंजती रही।

दो साल बाद उनके घर एक बेटी का जन्म हुआ।

अब महेश का नाम सिर्फ पटना में नही बल्कि पूरे बिहार में अपनी शोहरत फैला रहा था। जो भी केस वो हाथ में लेता उसे जितने की सौ प्रतिशत गारंटी होती थी।