हर्जाना - भाग 11 - अंतिम भाग Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हर्जाना - भाग 11 - अंतिम भाग

आयुष्मान के साथ विजय राज शब्द सुन कर पूरा हॉल स्तब्ध था। आयुष्मान को अपने कानों पर यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि जिसे वह आज तक इस अनाथाश्रम का भगवान मानता था, उसी इंसान ने उसका और उसकी माँ का जीवन बर्बाद किया है। आयुष्मान ने उस दिन सब कुछ सुन लिया था लेकिन वह विजय राज का नाम ना सुन पाया था और सुहासिनी से वह नाम पूछने की हिम्मत उसमें नहीं थी।

तालियों की आवाज़ अब थम-सी गई थी, उसका स्थान सन्नाटे ने ले लिया था। बड़े-बड़े राजनेता हैरान थे। विजय राज की पत्नी और बच्चे अवाक होकर किसी शून्य में चले गए थे। इस समय विजय राज को काटो तो खून नहीं, उसकी ऐसी हालत हो रही थी। आज हॉल में अचंभा सबके ही मन में था। इतना बड़ा समाज सुधारक, समाज सेवक, सच में समाज को बर्बाद करने वाला ज़हरीला कीड़ा है।

आयुष्मान विजय राज सुन कर विजय राज हैरान होकर गीता मैडम की तरफ़ देखने लगा। सुहासिनी के स्टेज पर बढ़ते कदमों ने उसे यह पूरा विश्वास दिला दिया कि गुनहगार वह ही है क्योंकि सुहासिनी के साथ भूतकाल में किया गया कुकर्म से भरा वह पूरा दृश्य कुछ पलों के अंदर ही विजय राज की आँखों में दृष्टिगोचर हो गया। तब नाराज़ होते हुए विजय राज ने गीता मैडम को घूरते हुए ऊँगली जैसे ही उनकी तरफ़ कुछ बोलने के लिए उठाई।

तब विजय राज कुछ बोले उससे पहले गीता मैडम ने फिर कहा, "हम बिना प्रमाण के कभी किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगाते।"

गीता मैडम के तेवर देख कर विजय राज की ऊँगली स्वतः ही नीचे हो गई।

गीता मैडम ने फिर कहा, "हमारे इस अनाथाश्रम को दान देकर आपने उसकी जो क़ीमत वसूल की है, उसका हर्जाना आज आपको चुकाना ही होगा और आपकी सज़ा यही है कि पूरी दुनिया को मालूम होना चाहिए कि आप की असलियत क्या है। इंसान के भेष में भेड़िए हैं आप। 

आयुष्मान धीरे-धीरे अपनी माँ सुहासिनी को स्टेज पर ले आया और सबके सामने अपनी माँ के पैरों को स्पर्श किया।

इसके बाद गीता मैडम के हाथ से माइक लेते हुए उसने कहा, "मेरी माँ सुहासिनी, मेरे पिता सुहासिनी, मेरी दुनिया सुहासिनी और मेरा परिवार यह अनाथाश्रम। जब मुझे पता चला कि सुहासिनी मेरी माँ है, मुझे दुनिया भर की खुशियाँ मिल गईं लेकिन अब अभी-अभी जब मुझे मेरे नाजायज़ बाप का नाम पता चला तो दुनिया भर का सारा दुःख दर्द और घृणा मेरे सीने में उतर आई है।"

विजय राज हैरान होकर आयुष्मान और सुहासिनी की ओर देखता रह गया। उसके पास कहने के लिए कोई शब्द नहीं थे, ना ही सफ़ाई देने के लिए कुछ बाक़ी रह गया था। वह चुपचाप उस हॉल में बैठे लोगों के बीच से अपनी उस गर्दन को जो हमेशा शान से तनी रहती थी ज़मीन में झुका कर तेज कदमों से बाहर जाने लगा। बीच में पहली कतार में बैठी अपनी पत्नी और बच्चों की तरफ़ तिरछी नज़रों से देखते हुए वह सीधे बाहर निकल गया।

विजय राज की पत्नी और जवान बच्चों की नज़र ज़मीन में गड़ी जा रही थी। आयुष्मान अपनी माँ का हाथ पकड़ कर सन्नाटे को चीरता हुआ हॉल से बाहर निकल रहा था कि तभी आयुष्मान और सुहासिनी को जाता देख हॉल के सभी लोग उठ कर उनके सम्मान में खड़े हो गए। गीता मैडम आज बहुत ख़ुश थीं। विजय राज को उन्होंने किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा था। परंतु विजय राज के परिवार का इसमें क्या दोष था, वह बेचारे सर झुकाए बैठे थे। जहाँ पहले सब लोग उनके पास आकर मिलते थे, उनके सम्मान में खड़े होते थे, वहाँ आज कोई भी उनके पास नहीं आया। सब चुपचाप उनकी तरफ़ देखते हुए हॉल से बाहर जा रहे थे।

सब के जाने के बाद विजय राज की पत्नी और बच्चों को इस तरह देख कर गीता मैडम उनके पास आईं। विजय राज की पत्नी का हाथ अपने हाथों में लेकर गीता मैडम ने कहा, "मैंने तो केवल सच का साथ दिया है। मैं जानती हूँ बिना किसी कुसूर के भी आपकी गर्दन नीचे झुकी हुई है। जीवन संगिनी हैं आप उसकी, यदि आप उसके सम्मान में, आदर सत्कार में शामिल थीं तो आज निर्दोष होते हुए भी इस बेइज्ज़ती के, इस अपमान के छींटे आप पर भी पड़ रहे हैं। यह राज़ तो खुल गया परंतु ना जाने ऐसे और कितने राज़ हों जो शायद कभी भी सामने ना आ पाएं। आपके और आपके परिवार के लिए मुझे बहुत दुःख है, आई एम सॉरी मैडम ।" 

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

समाप्त