द केरला स्टोरी फिल्म रिव्यू Mahendra Sharma द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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द केरला स्टोरी फिल्म रिव्यू

केरला स्टोरी अगर नहीं देखी है तो देखने के बाद इस रिव्यू को पढ़ें और देख ली है तो इस रिव्यू से आपको कहानी को अलग दृष्टिकोण से देखने का अवसर अवश्य प्राप्त होगा। कहानी केवल लव जिहाद नहीं पर एक कमज़ोर मानसिकता की भी है जिसमें लड़कियां अक्सर एक आयोजित अपराध का शिकार बनतीं हैं।

केरल स्टोरी उन ३ प्रकार की लड़कियों की कहानी है जिन्हें एक पूर्व आयोजित अपराध में सम्मेलित करने के लिए मानसिक तौर पर सम्मोहित किया गया। उन्हें लगातार उन पूर्वायोजित घटनाओं का हिस्सा बनाया गया जिसमें उन्हें एक धर्म दूसरे से कई गुना अच्छा लगने लगा। न केवल अच्छा लगने लगा पर उस धर्म में किन बातों को गुनाह या पाप कहा गया है उसपर अतिशय विश्वास होने लगा। आगे चलकर उन लड़कियों को अपनी शारीरिक महत्वकांक्षाओं को आसानी से पूरा करवाया जाने लगा और उसी को हथियार बनाकर उन लड़कियों को अपराध करने के लिए विवश कर दिया गया।

अब एक अन्य महत्वपूर्ण बात जो फिल्म मे दिखाई गई पर बोली नहीं गई वह इस प्रकार थी, पहली लड़की शालिनी, जिसकी परवरिश उसकी मां ने की, उसका पिता नहीं था , मतलब वह  पिता के प्यार से वंचित रही थी । उसका ज्ञान अपने धर्म के लिए अधूरा था और  शायद उसकी मां ने उसे धार्मिक शिक्षा दी नहीं थी । पिता के प्यार से वंचित लड़की हमेशा एक अन्य पुरुष से आकर्षित होने की संभावना अधिक रहती है । यह स्वाभाविक है। एक अधूरे ज्ञान को भ्रमित होने में समय नहीं लगता। तो लड़की को अन्य धर्म के बारे में बताया गया उसने बिना विरोध के माना और अपने शरीर और मन को अज्ञात लड़के को समर्पित कर दिया। यहीं गलती हुई । 

वहीं दूसरी तरफ गीतांजलि, उसके पिता कम्युनिस्ट थे। कम्युनिस्ट किसी धर्म को नहीं मानते । अब उन्हें न आप अधर्मी कह सकते हैं और न ही विधर्मी। पर वह अपराध नहीं । अपराध यह है की आप जिस धर्म में जन्म लेते हैं उसका ज्ञान अवश्य लें और फिर निर्णय करें की आप आजीवन उस धर्म के साथ रहेंगे या अन्य धर्म को स्वीकृत करेंगे। पर अगर ज्ञान लिए बगैर आप जीवन जी रहे हैं तो आप उन लोगों के निशाने पर हैं जो लोग अपने धर्म में आपको सम्मेलीत करना चाहते हैं। इस लड़की ने फिल्म में अपने ही पिता का अपमान किया तब उसके पिता को ज्ञात हुआ की इसमें पिता की परवरिश की भी गलती है। 

तीसरी लड़की थी नीमा, यह लड़की अपने धर्म के बारे में अच्छी समझ और सोच रखती थी। उसे अन्य धर्म की तरफ आकर्षित करना सरल नहीं था। क्योंकि जब आपके विचार एक दिशा में केंद्रित होते हैं मतलब उसे भ्रमित करना कठिन होता है। वही लड़की आगे चलके इस पूरी साजिश की गवाह बनी और प्रशासन तक सभी लड़कियों की गुमराह होने की कहानी लेकर गई।

धर्म कोई भी हो, मानवता एक है और एक मानव का अन्य मानव का अहित व हत्या का प्रयास भी एक विकृत मानसिकता प्रदर्शित करता है। राजनैतिक लाभ और व्यक्तिगत लालच में सरल व शिक्षित लोगों को अनेक मानव संहार करने वाली योजनाओं के लिए भ्रमित करके प्रयोग किया जाता है। सदैव सावधान रहें। 

यहां एक और बात पर आपको सावधान करना चाहूंगा की माता पिता का यह उत्तरदायित्व बनता है की अपने बच्चों को एक ऐसी शिक्षा दें जिसमे धर्म व मानवता दोनो का समन्वय हो। उस शिक्षा में धर्म और विज्ञान के साथ पाप और पुण्य में अंतर क्या है, ईश्वर क्या है और अच्छे बुरे की समझ बालकों को देना माता पिता का कर्तव्य है। अपूर्ण शिक्षा एक ऐसा रोग है जो कभी भी व्यक्ति को जकड़के उसे अन्य व्यक्ति व परिस्थिति के आधीन कर सकता है। अच्छी शिक्षा व्यक्ति को स्वाधीन व स्वतंत्र बनाती है।

फ़िल्म की कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है। एक अनजाना डर आपके मस्तिष्क में बैठ जाएगा की बच्चों को अन्य शहरों में पढ़ने भेजा जाए या नहीं। जिस प्रकार से एक आयोजित अपराध को दिखाया गया है उस प्रकार प्रत्येक कन्या के मां बाप को उन गुमराह किरदारों में अपनी बिटिया दिख सकती है।

फिल्म जल्द ही OTT पर आ जाएगी, अबतक नहीं देखी तो देख लीजिएगा और आत्म मंथन अवश्य करिएगा।

– महेंद्र शर्मा ७.६.२०१३